Book Title: Hemendra Jyoti
Author(s): Lekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 412
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन था यह बात एक मच्छीमार ने सुनी और रोज औषधियां मिश्रित करके बहुत सी मछलियों को उत्पन्न करके बेचने लगा। इस प्रकार वह बहुत धनवान बन गया। एक बार महाराज साहेब का उपकार याद करके उन्हें सौगात (भेंट) देने गया। जब महाराज साहेब को यह बात ज्ञात हुई तब उन्होंने हिंसा की परम्परा को रोकने के लिए मच्छीमार को कहा कि अमुख औषधियों को मिलाने से इससे भी अधिक मछलियाँ पैदा होगी। मछुआरे ने घर जाकर यह प्रयोग किया जिससे उनमें से सिंह उत्पन्न हुआ और मछुआरे को खा लिया। इस प्रकार औषधि के मिश्रण से जो मछलियां और सिंह बने वे सब वास्तव में जीव थे लेकिन समूर्छिम जाति के थे। समूर्छिम मनुष्य - समूर्छिम मनुष्य, गर्भज मनुष्य जैसे नहीं दिखते। इन्हें पाँच इन्द्रियां होती है परन्तु इनका शरीर अत्यन्त छोटा (अंगुल का असंख्यातवा भाग जितना) होने से, एक साथ असंख्य उत्पन्न होने पर भी नहीं दिखते। इनका आयुष्य भी अंतर्मुहूर्त का ही होता है। ये गर्भज मनुष्य के चौदह असूचि स्थानों में उत्पन्न होते हैं। ये अपर्याप्त ही होते हैं। मनुष्य के चौदह असूचि स्थान : 1. विष्टा, 2. मूत्र, 3. कफ थूक, 4. नाक का मैल, 5. उल्टी, 6.झूठा पानी अथवा भोजन, 7. पित्त, 8. रक्त, 9. वीर्य, 10. वीर्य के सूखे पुद्गगलों के भीगने से एवं शरीर से अलग रखे हुए भीगे पसीने वाले कपड़ों में, 11. रस्सी, 12. स्त्री-पुरुष के संयोग में, 13.नगर के नालों में (गटरों में), 14. मनुष्य के मुर्दे में। _मनुष्य के शरीर से अलग हुए इन चौदह स्थानों में 48 मिनट के बाद असंख्य समूच्छिम पंचेन्द्रिय मनुष्य उत्पन्न होते हैं मरते हैं, उत्पन्न होते हैं मरते हैं। इस तरह निरन्तर उत्पत्ति एवं मरण चालू ही रहता है। इन जीवों की रक्षा करने के लिए इन असूचि पदार्थों की बराबर जयणा करनी चाहिए। जयणा के नियम :1. झूठे बरतन 48 मिनट में धो लेना। उबाला हुआ पानी ठंडा हुआ है यह देखने के लिए अंदर हाथ नहीं डालना लेकिन बाहर से थाली को स्पर्श करके। जान लेना। थाली धो कर पीना और कपड़े से पोंछना। 4. कपड़े उतारकर डूचा करके बाथरूम में नहीं रखना। पसीने वाले होने से सुखा देना। 5. कपड़ों को 48 मिनट से ज्यादा भिगोकर नहीं रखना। 6. रसोइघर में डिब्बे वगैरह को भीगे अथवा जैसे तैसे हाथ लगाये हों तो बराबर पौंछकर रखना। 7. पेशाब संडास सक्य हो तो बाहर खुले में जाना। 8. कफ-थूक वगैरह को राख अथवा धूल में मिला देना अथवा कपड़े में लेकर मसल देना। गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय की जयणा के लिए नियम : कुत्ते, बिल्ली, चूहे, सांप, भुंड, चिड़िया, मुर्गा, गाय, भैंस, छिपकली वगैरह की हिंसा न हो उसकी सावधानी उनके माँस और हड्डी से मिश्रित टूथ पेस्ट वगैरह वस्तुएं नहीं वापरनी। फैशन की भी बहुत सारी वस्तुएं लिपस्टिक वगैरह इन निर्दोष प्राणियों की हिंसा से बनते हैं इसलिए उपयोग में नहीं लेना। गर्भज मनुष्य : एक बार पुरुष के साथ संयोग होने के बाद स्त्री की योनी में नौ लाख गर्भज पंचेन्द्रिय मनुष्य, दो से नौ लाख विकलेन्द्रिय तथा असंख्य समूर्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 64हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Inputsp d

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