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की राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन गंथा
देव योनि:- जो मनुष्य अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि व्रतों की परिपालना संयम है, सामायिक, पौषध, प्रतिक्रमण दान तन दीक्षा स्वीकार करने वाला तथा बाल तप अर्थात अविवेक या मूढ़ भाव से जो तपश्चर्या की जाय, जैसे अग्नि या जल में कूद कर मरना, पर्वत की ऊँचाइयों से गिरना, मिथ्यात्व भाव से की गई क्रियाओं का करना इत्यादि कर्मों को करने वाला देव योनि उत्पन्न होता है। इनमें भी अलग अलग स्थानों को अलग अलग पुकारा जाता है। जिनमें 1. भुवनवासी देव, 2. व्यंतर देव, 3. ज्योतिषी देव, 4.वैमानिक देव।
___तिर्यच योनी :- जो मनुष्य माया, छल कपटाई के भावों से दूसरों को ठगने की प्रवृति करता है। गूढ माया, झूठी माया में भी भुलावे डालने वाली माया करता है, झूठा तोल माप करता है, झूठी लिखा पढ़ी कर भोले लोगों को फांसना आदि कर्म करने से तिर्यंच योनि (पशु-पक्षी, जलचर, थलचर, नभचर) में जन्म लेना पड़ता है।
नरक योनि:- मनुष्य प्राणियों को दुख हो ऐसी प्रवृति से महारंभ करता है, धन कुटुम्बादि, पर आसक्ति ममत्वभाव रखता है, महापरिग्रह की तीव्र इच्छा रखता है, पंचेंद्रिय प्राणियों का वध करता है, मांस मदिरा का भक्षण करता है इत्यादि इस प्रकार के कारणों से लिप्त हो वह नरक में जन्म लेने वाले नारकीय जीव का आयु कर्म बाँधता है। जहाँ वह अनंत दुखों को भोगता है।
6-नाम कर्म :
शुभ नाम कर्मों का संग्रह मनुष्य के नामों में प्रसिद्धि व प्रभाविकता देता है। अशुभ नाम कर्म बदनामी व झूठा आरोप दिलाता है। शुभ नाम कर्म व अशुभ नाम कर्म इसका बंध कैसे होता है इसके बारे में महामना उमास्वाति म. सा. कहते हैं :- योगवक्रता विसं वादनं चा शुभस्य नाम्नः । 16-21 योग वक्रता अर्थात मन वचन काया की वक्रता अर्थात टेढ़ा बोलना, बोलना कुछ और करना कुछ और, दूसरों को उल्टे रास्ते प्रेरित करना आदि प्रवृति मनुष्य को अशुभ नाम कर्म का बंध करवाती है। इसके विपरीत चलना जैसे सरलता, ऋजुता, वचन से कहा गया करने वाला सही मार्ग बताने वाला तथा अच्छे मार्ग की प्रेरणा देने वाला शुभ नाम कर्म बांधता है।
7-गोत्र कर्म :
इस कर्म के प्रभव से मनुष्य उच्च तथा नीच जातियों में जन्म लेता है। जिसे दो भागों में बांटा जाता है, ऊँच और नीच गोत्र कर्म :- स्वयं की बुराई बोलने वाला, पर निंदा से विरत दूसरों के गुणों की प्रशंसा करने वाला तथा असदगुणों को उजागर नहीं करने इत्यादि कर्म करने वाला ऊँच गोत्र कर्म बंध करता है। जिसके प्रभाव से उच्च जाति में जन्म लेता है।
नीच गोत्र कर्म - पर निंदा, दूसरों की निंदा, आत्म प्रशंसा, अपनी बढ़ाई करने वाला, अच्छे गुणों को ढकने वाला और बुरे गुणों को प्रकट करने वाला नीच गोत्र कर्म बांधता है। जिससे वह नीच कुल में जन्म लेता है। 8-अन्तराय कर्म :
किसी योग उपयोगादि वस्तुओं में या दानादि देते हुए को रोकना अथवा उसमें विघ्न करना, अंतराय कर्म का प्रभाव है, इसके प्रभाव से पिछले सातों ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, गोत्र, आयु नाम सातों प्रभावित होते है।
मेन्य ज्योति हेमेन्त ज्योति66 हेमेन्ट ज्योति हेमेन्द ज्योति।
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