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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन गंथा
सार पूर्ण भाषा में यही कहा जा सकता है कि स्याद्वाद सिद्धांत का महान आदर्श है - सत्य अनंत। हम अपने इधर-उधर, चारों ओर से जो कुछ भी देख जान पाते हैं, वह सत्य का संपूर्ण रूप नहीं है। प्रत्युत सत्य का स्फुलिंग है, अंशमात्र है। अतएव स्याद्वाद सम्मत विचार धारा मानव के सत्य दर्शन के लिये आंखें खोल सब ओर देखने की दूरगामी सप्राण प्रेरणा देती है। उक्त सिद्धांत का उन्मुक्त आघोष है कि जितनी भी वचन पद्धति है, कथन के प्रकार है। उन सबका संलक्ष्य 'सत्य' के दर्शन कराना है। सब अपने-अपने दृष्टि-बिन्दु से सत्य की व्याख्या करते है। परंतु उन के कथन में अवश्य भेद है। स्याद्वाद सिद्धांत की सतेज आंख से ही उन तथ्यांशों के प्रखर प्रकाश को देखा और समझा जा सकता है। वास्तविकता यह है कि स्याद्वाद सत्य का सजीव भाष्य है। यह सत्य एवं तथ्य की शोध करने और पूर्ण सत्य की मंजिल पर पहुंचने के लिये प्रकाशमान महामार्ग है। स्याद्वादमयी कथन प्रणाली सब दिशाओं से उदघाटित हुआ अति दिव्य मानस नेत्र है, जो अपने आप से ऊपर उठकर दूर दूर तक के तथ्यों को देख लेता है। पदार्थ स्वरूप पर अनेक दृष्टि बिंदुओं से विचार कर के चौमुखी सत्य को आत्मसात् करने का प्रयास करता है। अतएव स्याद्वाद संगत दृष्टिकोण सत्य का दृष्टिकोण है। शांति का दृष्टिकोण है, जन हित का दृष्टिकोण है और सह अस्तित्व के इस अमृत वर्षण में ही स्याद्वाद सिद्धांत की अनुपम उपादेया संनिहित है। यही इस की शिरसिशेखरायमाण विशेषता है।
संदर्भ
1. न्यायदीपिका-3/57
बृहद्नयचक्र - 70 3. पंचाध्यायी, पूर्वार्ध - 262-263
न्यायदीपिका -3/76 5. क. स्वयम्भू स्तोत्र 22-25 ख. पंचाध्यायी पूर्वार्ध 42-44 6. क. धवला 1/1-111 ख. श्लोक वार्तिक 1/1.1, 127 7. राजकार्तिक-1/6/14/37 8. धवला 15/25/1
क. स्वयम्भू स्तोत्र 103 ख. बृहनय चक्र- 181 ग. श्लोक वार्तिक - 2/1,6, 56 10. आप्त मीमांसा -1/14 11. सप्तभंगी तरंगिनी-23/1 12. अष्टसहस्री टिप्पणी, पृष्ठ-286 13. श्लोक वार्तिक 2/1/6 14. सप्तभंगी तरंगिनी -30/1 15. धवला, 13/5,4,26 16. स्वयम्भू स्तोत्र टीका - 134 17. समयसार तात्पर्याख्य वृत्ति - 513 18. स्याद्वादमंजरी - 23 19. आत्म मीमांसा - 15 20. क. प्रमाण नय तत्वालोकालंकार -4 ख. सप्तभंगी तरंगिनी- पृष्ठ 1 ग. तत्वार्थ राजवार्तिक 1,6, 5 घ. भगवती सूत्र -श.
12, 3010 प्र. 19-20 ङ. विशेषावश्यक भाव्य गाथा -2232 21. स्याद्वाद मंजरी -7 22. स्वयंभू स्तोत्र -25 23. सप्तभंगी तरंगिनी-9 24. प्रमाणनय तत्वारत्नावतारिका-4/43 25. क. स्थानांग सूत्र वृति - 4/4/345 ख. तत्वार्थ भाष्यानुसारी टीका - पृष्ठ 415 26. उत्तराध्ययन सूत्र, चूर्णि-234 27. प्रमेमय कमल मार्तण्ड - पृष्ठ 676 28. सर्वार्थसिद्धि -1/33 29. सन्मति तर्क गाथा -47 30. क. अनुयोगद्वार सूत्र-156 ख. प्रज्ञापना सूत्र-स्थान-7/552 ग. स्थानांग सूत्र-पद-16 31. क. नयकर्णिका -19 पृष्ठ 48 ख, तत्वार्थ राजवार्तिक - 136 ग. शेषावश्यक भाव्य गाथा-226
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हेमेन्द ज्योति* हेगेन्य ज्योति
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