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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
रहता था । मैंने सोच लिया था कि ठग सदा दूसरे की जेब ही तलाश किया करता है, वह कभी अपनी जेब नहीं देखता । इसी विश्वास के आधार पर मैं यह अदला-बदली किया करता था ।
यह परम सत्य है कि अपनी तलाश करना ठग का काम नहीं साहूकार का काम है । ठग को सदा अपनी जेब खाली लगती है तथा दूसरों की जेब भरी हुई लगती हैं, क्योंकि उसकी दृष्टि दूसरों पर रहती है ।
बुद्धि का महत्व एब बार एक सन्त घूमते फिरते गंगा किनारे जा पहुंचे । वहां सन्त ने देखा कि एक श्रद्धाशील भक्त गंगा के निर्मल प्रवाह में से एक लौटे में जल भरता है, उसे अपने दोनों हाथों में ऊँचा उठाकर सूर्य की ओर अपना मस्तक झुकाता है और जलधारा छोड़ देता है । सन्त ने पूछा -" यह क्या हो रहा है?"
गंगा तट के पास खड़े पंडितों ने कहा कि आपको पता नहीं? सूर्य को जल चढ़ाया जा रहा है ।
पंडितों की बात सुनकर वह सन्त गंगा की धारा में गया और कमण्डल में जल भर सूर्य से विपरीत दिशा की ओर फेंकने लगे ।
तट पर उपस्थित पण्डितों ने और उनके श्रद्धाशील अनेक भक्तों ने इस अजीबों गरीब नजारे को देखा तो हँसने लगे। दो चार पंडित आगे बढ़े और मुस्कराकर सन्त से पूछने लगे - महाराज! आप यह क्या कर रहे हैं? सूर्य को गंगा जल अर्पण न करके इधर कहाँ और किसे जल चढ़ा रहे हो? बहुत देर से हम आपके इस अनोखे कार्य को देख रहे हैं, पर कुछ समझ में नहीं आ रहा कि आपका क्या तात्पर्य है?
अनुभवी एवं ज्ञानी सन्त ने गंभीर होकर पण्डितों की बातों को सुना और मुस्कराकर बोले – मैं बहुत दूर से आया हूँ । मेरे देश में बहुत सूखा है, जल का अभाव है । अतः मैंने विचारा कि गंगा का जल बड़ा ही स्वच्छ एवं पवित्र है, इस जल को अपने देश के सुदूर खेतों में पहुँचा दूं? मुझे सूर्य को जल नहीं चढ़ाना है । मुझे तो अपने देश के खेतों को जल पहुँचाना है। अतः अपने देश की ओर ही जल अर्पण कर रहा हूँ । ताकि मेरे देश के सूखे खेत हरे भरे हो उठे ।
यह सुनकर सब के सब भक्त और पंडित हंस पड़े और बोले- मालूम होता है आपका मस्तिष्क ठिकाने पर नहीं है। भला यहाँ दिया गया जल आपके सुदूर देश के खेतों में कैसे पहुंच जाएगा? यहाँ की गंगा का जल आपके देश के खेतों को हरा-भरा कैसे कर देगा? आपके देश के खेतों के लिये तो आपके देश का जल ही काम आ सकता है । आप यहाँ इतनी दूर बैठे, इस प्रकार गंगाजल अपने देश के खेतों में कैसे पहुँचा सकते हैं?
संत स्वर में माधुर्य भरते हुये बोले- जब आपका किया हुआ जल दान इस मृत्यु लोक से सूर्य लोक में पहुँच सकता है और वहाँ स्थित अतृप्त सूर्यदेव परितृप्त हो सकते हैं, अथवा सूर्य के माध्यम से पितृलोक में पितरों को जल मिल सकता है, तब मेरा वह जल दान मेरे देश के खेतों में क्यों नहीं पहुँच सकता? मेरा देश तो आपके सूर्य लोक एवं पितृलोक से बहुत निकट है । मैं समझता हूं जब यहाँ का जलदान एक लोक से दूसरे लोक में पहुंच सकता है अथवा पहुंचाया जा सकता है तब इसी धरती का जल इसी धरती के दूसरे देश में क्यों नहीं पहुंच सकता या क्यों नहीं पहुंचाया जा सकता?
संत की तर्क पूर्ण बात को सुनकर सब सकपका कर रह गए । किसी से कोई उत्तर देते नहीं बना। सब सन्त के मुंह की ओर देखने लगे । सबने देखा कि सन्त के मुख मण्डल पर और उनके सतेज नेत्रों में ज्ञान की आभा चमक रही है ।
सबको मौन देखकर संत ने गंभीरता के साथ कहा - मेरी बात आप लोगों की समझ में आई या नहीं? मनुष्य जो भी कार्य अपनाए पहले उसे बुद्धि और विवेक से छान लेना चाहिये?
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 50
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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