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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
मंदिर जाने से पहले
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जैनधर्म दिवाकर मुनि नरेन्द्रविजय नवल' शास्त्री जब हम मंदिर जाते हैं तो हमारे मस्तिष्क में कभी भी यह विचार उत्पन्न नहीं हुआ कि हम मंदिर क्यों जाते हैं ? आप सहज ही कह सकते हैं कि इसमें विचार करने की बात ही क्या है ? मंदिर भगवान के या प्रभु के दर्शन करने के लिए जाते हैं। आप का ऐसा कहना स्वाभाविक ही है, कारण कि उससे आगे कभी आपने सोचा ही नहीं। न ही आपने मंदिर में दर्शन/वंदन करने के अतिरिक्त कुछ ध्यान दिया। हो सकता है आप पूजा, अर्चना भी करतें हों। किंतु हमारा कहना अपने स्थान पर सत्य है। अब आप विचार कीजिये, जिस समय आप अपने घर से अथवा कहीं से भी मंदिर जाने के लिए रवाना होतें हैं तो आप के मन-मस्तिष्क में कौन-कौन से विचार रहते हैं ? निश्चय ही उस समय आप प्रभु के दर्शन/वंदन की बात ही सोचते हैं। आप के मस्तिष्क में उस
समय अन्य किसी प्रकार के भी विचार नहीं रहते हैं। उस समय जैसे-जैसे आप मंदिर की ओर बढ़ते जाते हैं आप के विचारों की निर्मलता/पवित्रता में वृद्धि होती जाती है। जिस समय आप मंदिर में प्रवेश करते हैं उस समय प्रभु दर्शन में आप लीन हो जाना चाहते हैं और जिस समय आप प्रभु के समक्ष खड़े होकर कर बद्ध कर उनमें परम पावन दर्शन करते हैं तब आपका मन मस्तिष्क वैचारिक दृष्टि से एकदम निर्मल हो जाता है। आपके अंदर रहे हुए समस्त विकार वहाँ समाप्त हो जाते हैं और आप एक ऐसे अवर्णनीय आनंद की अनुभूति करते है जिसे आप स्वयं ही महसूस कर सकते हैं। उस आनंदानुभूति को आप शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकते। उस समय आप समस्त सांसारिक चिंताओं से भी अपने आप को मुक्त समझते है। ऐसी आनंदानुभूति, विचारों की निर्मलता, निश्चिंतता आपको कहीं दूसरे स्थान पर नहीं मिल सकती। यह मंदिर का और वहाँ के शासन देवता अर्थात मूलनायकजी के पुण्य प्रभाव का परिणाम होता है। किंतु दुख की बात यह है कि ऐसे परम पवित्र स्थान पर जाने से आज का युवा वर्ग संकोच करता है, वह मंदिर जाने से अपना जी चुराता है।
उस संबंध में जब युवाओं से बात करते हैं तो उनका एक सीधा उत्तर यही होता है कि समय नहीं मिल पाता। वास्तव में मंदिर नहीं जाने का उनका यह सबसे सरल बहाना है, जहां तक समय का प्रश्न है, यदि मंदिर जाने का संकल्प हो, प्रभु-दर्शन करने की भावना हो तो समय तो सरलता से निकाला जा सकता है। यह सभी अच्छी प्रकार से जानते हैं कि मित्रों से गप-शप करने में, सिनेमा जाने में, होटल और पान की दुकान पर जाने में जब समय मिल जाता है तो फिर थोड़ा सा समय मंदिर जाने के लिए क्यों नहीं मिल सकता। हम यहाँ उस विषय पर अधिक और कुछ कहना नहीं चाहते। बस यही कहेंगे कि यदि भावना हो, इच्छा शक्ति हो तो सब कुछ संभव है, अन्यथा कुछ भी संभव नहीं है। हम इतना अवश्य कहना चाहेंगें कि दिन में एक बार और वह भी हो सके तो अपने दैनिक कार्य में लगने से पूर्व अर्थात प्रातःकाल मंदिर जाकर प्रभु के दर्शन कर अपने विचारों को, भावना को सभी प्रकार के विकारों से मुक्त कर निर्मलता पवित्रता प्राप्त कर लेना चाहिए। यदि आपमें से कोई अभी तक ऐसा नहीं कर रहा है तो एक बार ऐसा करके देखिये और फिर देखिये आपको अपने कार्य में कैसा आनंद प्राप्त होता है। प्रभु के दर्शन करने मात्र से पूरे दिन आपका मन आल्हाद से भरा रहेगा। मंदिर जाने से पहले :
अब हम उस बात पर विचार प्रकट करेंगे कि मंदिर जाने से पहले हमें क्या करना है मंदिर जाने के लिए। प्रभु के दर्शन करने से पूर्व कुछ तैयारी करनी आवश्यक होती है। उसी संबंध में हम यहां आपको बताने जा रहें हैं। कारण कि जब हम अपने प्रत्येक कार्य को प्रारंभ करने के लिए पूर्व तैयारी करते है, तो मंदिर जाने के लिए पूर्व तैयारी क्यों नहीं? मंदिर एक परम पवित्र स्थान है। इसलिए वहां मन माने ढंग से नहीं जा सकते। मंदिर जाते समय निम्न लिखित सावधानियां रखनी चाहिए:
1. सचित्तक का परित्याग :- मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व समस्त सचित्तक अर्थात स्वयं के उपयोग की वस्तुएं और जैसे फूल माला, वेणी, साफा, कलंगी, राज चिन्ह, जूते-मोजे, तंबाकू और उससे संबंधित सामान, पान - मसाले, सिगरेट, औषध-इत्र आदि ऐसी अन्य समस्त वस्तुएं मंदिर के बाहर किसी सुरक्षित स्थान पर रख देनी चाहिए
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