Book Title: Hemendra Jyoti
Author(s): Lekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 376
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ धर्म और जीवन मूल्य पं. रत्न मुनि नेमिचन्द्र, अहमदनगर विश्व के नाना प्राणियों का जीवन विचार छोड़कर मानव जीवन का विचार करना अभीष्ट जब हम आँखें खेलकर चारों ओर इस जगत् पर दृष्टिपात करते हैं तो हमारे सामने विविध प्रकार के प्राणियों का जीवन हलचल करता हुआ दिखाई देता है। यद्यपि हमें इन चर्म चक्षुओं से प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति इन ऐकेन्द्रिय जीवों का जीवन चलता फिरता दृष्टिगोचर नहीं होता, किन्तु वर्तमान वैज्ञानिकों तथा सर्वज्ञ तीर्थंकर महर्षियों ने इन में भी जीवन का अस्तित्व सिद्ध किया है। द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों का जीवन तो हम अपनी आँखों से देख सकते है, देखते है, परन्तु एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के जीवों के जीवन में चेतना होने के बावजूद उनकी चेतना इतनी विकसित नहीं होती कि वे अपने हित अहित का, कर्तव्य अकर्तव्य का, धर्म अधर्म का, पुण्य पाप का, पूर्वजन्म पुनर्जन्म का, जीवन के विकास हास का विचार एवं विवेक कर सकें। उनमें चेतना तो है, किन्तु मूर्च्छित चेतना है, ज्ञान तो है किन्तु क्रमशः विकास प्राप्त होते हुए भी केवल अमुक-अमुक इन्द्रिय विषयक ज्ञान है, उनकी दृष्टि आत्म लक्षी न होने से सम्यक नहीं है, मिथ्या है, अतएव उनका ज्ञान भी सम्यग्दर्शन रहित होने से सम्यक् नहीं मिथ्या है। इसलिए चतुरिन्द्रिय प्राणियों तक के जीवन में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप धर्म न होने से उनके जीवन मूल्यों के विषय में यहां विचार नहीं करना है। पंचेन्द्रिय प्राणी चार प्रकार के है - नारक, देव, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य । इनमें से नारक और देव पंचेन्द्रिय होने से उनकी चेतना विकसित होते हुए भी तथा प्रत्येक व्यक्ति को चर्म चक्षुओं से दृष्टिोचर न होने से एवं कतिपय नारकी और देवों में सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान होते हुए भी सम्यक् - संवर – निर्जरा रूप चारित्र धर्म न होने से उनके जीवन मूल्यों का भी विचार करना यहां अपेक्षित नहीं है। अब रहे तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव। उनकी चेतना विकसित होते हुए भी उनके जीवन में पूर्ण चारित्र धर्म (संवर-निर्जरा रूप धर्म) का अवकाश न होने से उनके जीवन मूल्यों के संबंध में विचार करना अभीष्ट नहीं है। हमें यहाँ मानव जाति के जीवन मूल्यों का विचार करना ही अभीष्ट है। अतः जीवन मूल्य का अर्थ यहाँ मानव जीवन का मूल्य समझना चाहिए। मानव जीवन प्राप्ति का वास्तविक प्रयोजन : सर्वप्रथम हमें जीवन का उद्देश्य या प्रयोजन क्या है ? यह समझ लेना चाहिए। इसीलिए एक विचारक ने कहा है - जीवन का क्या अर्थ यहाँ है, क्यों नर भूतल पर आया है ? चूंकि अन्य प्राणियों के जीवन की अपेक्षा मानव जीवन विशेष महत्वपूर्ण है। संसार में जितने भी प्राणी है, उनमें मनुष्य के सिवाय किसी भी प्राणी को सर्वकर्म मुक्ति रूप मोक्ष पाने का अधिकार नहीं है। एक मात्र मनुष्य ही वह विशिष्ट प्राणी है, जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र और सम्यग्तप का यथा विधि आचरण करके केवलज्ञान, केवलदर्शन तथा एकांत सुख रूप जन्म मरणादि तथा समस्त कर्मों से सर्वथा मुक्त परमात्म पद को प्राप्त कर सकता है। देव जीवन में स्वर्ग के वैषयिक सुख प्राप्त हो सकते है, किन्तु मोक्ष सुख नहीं। और नारकीय जीवन में नाना दुखों की प्रचुरता है। मनुष्य जीवन ही ऐसा जीवन है, जिसमें पूर्वकृत कर्मों के उदय से प्राप्त होने वाले दुखों को सम भाव से सहकर उन्हें क्षय कर सकता है तथा कर्मों को काटने के लिए तथा नये आते हुए कर्मों का निरोध करने के लिए व्रत, नियम, त्याग, तप करके वह परीषह, उपसर्ग आदि पर विजय प्राप्त करके आत्मा को उज्ज्वल, समुज्ज्वल बना सकता है। मानव जीवन में मानव अपने द्वारा निर्धारित तथा ऋषि मुनियों द्वारा प्ररूपित-निर्दिष्ट जीवन मूल्यों पर चलकर अपने मनुष्यत्त्व को सार्थक कर सकता है, जीवन मूल्यों में वृद्धि करके आराधक होकर उत्तम देवलोकों को प्राप्त करके आगामी भव या भवों में मनुष्य जन्म प्राप्त करके उत्तम करणी द्वारा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बन सकता है। हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द ज्योति 28 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Edit ational

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