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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
बाथरूम में :
आजकल प्रायः यह देखा गया है कि श्रावक बाथरूम में स्नान करते वक्त गाने गाया करते हैं। बाथरूम सिंगर होना ठीक नहीं है।
इसके अतिरिक्त बाथरूम में स्नान करने से पानी के लिए बनी नाली से जब पानी बाहर आता है और किसी कारणवश एक स्थान पर एकत्र हो जाता है तो वहाँ जीव उत्पत्ति हो जाती है और वे पल-पल मरते हैं। जब तक यह मैला पानी जिसमें मलमूत्र, थूक, पसीना, बलगम आदि मिला हुआ रहता है सूखता नहीं तब तक असंख्य जीवों का जन्म मरण सतत् चलता रहता है। इसलिए जहाँ तक संभव हो, ऐसे स्थान पर स्नान करना चाहिए जहाँ पानी फैलकर कुछ ही समय में सूख जायें।
स्नान करते समय रखी जाने वाली सावधनियां :
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लौकिक व्यवहार शास्त्र की दृष्टि से निम्नांकित सावधनियां रखना आवश्यक है :
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पूर्ण रूप से नग्न होकर कभी भी स्नान नहीं करना चाहिए। शरीर पर एक वस्त्र तो कम से कम रहना चाहिए।
सभी वस्त्र पहन कर भी स्नान नहीं करना चाहिए।
स्नान करते समय मौन रहना चाहिए।
उल्टी के बाद, शमशान के धुआं स्पर्श के बाद, कुस्वप्न आने के बाद, बाल कटवाने के बाद, मैथून सेवन के बाद स्नान करना ही चाहिए हां भोजन करने के बाद स्नान नहीं करना चाहिए।
स्नान के लिए गरम एवं ठंडे पानी का मिश्रण नहीं करना चाहिए ।
कम से कम पानी से स्नान करना चाहिए।
स्नान में चर्बीयुक्त साबुन का उपयोग नहीं करना चाहिए ।
एकान्त में स्नान नहीं करना चाहिए। न ही बाथरूम की खिड़कियां आदि बंद कर स्नान करना चाहिए।
जहाँ प्राण भय हो वहाँ स्नान नहीं करना चाहिए। अर्थात अनजाने कुऐं, बावड़ी, तालाब, नदी आदि स्थानों पर स्नान नहीं करना चाहिए।
10. इसके साथ ही एक बात यह स्पष्ट की जाती है कि यदि शरीर के किसी अंग पर घाव हो और उसमें
पस/मवाद आता हो तो पूजन नहीं करना चाहिए। उसके अतिरिक्त यदि किसी धारदार हथियार से लग जाये, दाड़ी बनाते समय ब्लेड आदि की लग जायें और खून आदि न बहता रहे तो पूजन बंद करने की आवश्यकता नहीं। इसी प्रकार यदि मवाद बहता न हो तो भी पूजन को जा सकते हैं।
मुख शुद्धि
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परमात्मा की पूजा करने से पहले मुख शुद्धि आवश्यक है। दस अंगुलि लंबा कनिष्टिका अंगुली के समान मोटा गांठ रहित शुद्ध और अच्छे भूमि में उगे हुए वृक्ष का दातुन लेकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर बैठकर मुख शुद्धि करनी चाहिए। आजकल टूथपेस्ट का चलन हो गया है। ये टूथपेस्ट हानिकारक होते हैं उनमें मिठास होती है, जिससे दाँत सड़ने का एक कारण बनता है और उनसे जीवोत्पत्ति होती है फिर भी आजकल इनका चलन अत्यधिक हो गया है किसी भी रीति से मुख शुद्ध कीजिये किंतु यह ध्यान रखें कि मुख से निकली हुई चिकनाहट 5 मिनट में सूख जानी चाहिए।
कितने ही श्रावक प्रातः मुख शुद्धि के पूर्व ही प्रभु की पूजा करते हैं। यह उचित नहीं है। नवकारसी के पच्चक्खाण आने के पश्चात् ही मुख शुद्धि करना चाहिए।
नवकारसी करने वाले को मुख शुद्धि करने के बाद ही पूजा करनी चाहिए ।
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