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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
देखकर परस्पर कानाफूसी करने लगे "क्या यह कोई गुप्तचर है?" एक ने साहस कर पूछा - "तुम कौन हो बाबा?" यहां भयावने जंगल में किसलिये आये हो?" "तुम्हारी इस गठड़ी में क्या माल है?" तुम बोलते हो कि नहीं महाराज?"
"देवानुप्रिय ! मैं साधु हूँ । वर्षा के कारण यहां आ गया हूं । मार्ग में हरियाली पर्याप्त मात्रा में हो चुकी है। इसलिये अब मैं आगे न जाकर तुम्हारे आसपास ही वर्षा के चार माह व्यतीत करूंगा ।"
"अच्छा साधु महाराज! हम साधु- वाधु कुछ नहीं जानते । हमारे सरदार के पास चलो ।"
बीच में सन्त और आगे-पीछे चोर चल रहे थे। उनके कंधों पर वस्त्र में बंधे शास्त्र लटक रहे थे । द्वार पर साधु को खड़ाकर दिया । उनकी निगरानी करने के लिये एक चोर वहीं खड़ा रहा ।
सिर झुका कर चोर बोला सरदार ! एक साधु बाबा मार्ग भूलकर द्वार पर खड़ा है। चार माह तक यहीं गुफा में रहना चाहता है। कौन जाने कहीं कोई गुप्तचर तो नहीं है । वरना बड़ी मुश्किल हो जाएगी । आप वहीं जाकर पूछताछ कर लें । सम्मान पूर्वक सरदार ने कहा- मुनिवर ! इस भयावने विकट वन में चार मास तो क्या एक दिन भी नहीं रह सकते हैं । यहां जंगली जन्तु जहरीले कीड़े अधिक मात्रा में है तथा चोर डाकुओं की भी अधिकता है। आपको तंग करेंगे । इसलिये यहाँ रहना उचित नहीं है ।
"संत की विवशता जानकर सरदार ने इस शर्त पर रहने की अनुमति दे दी कि चार मास पर्यन्त किसी भी मेरे साथी को उपदेश देना नहीं, किसीको किसी प्रकार का त्याग करवाना नहीं और किसीसे भी मेरे निवास से संबंधित जानकारी पूछना नहीं ।"
सन्त ने चार मास पूर्णकर वहां से प्रस्थान किया। मुनि की सत्यता सहिष्णुता समता व अखण्ड तपोमय साधना जीवन में प्रत्यक्ष देखकर सरदार अत्याधिक प्रभावित हुआ ।
सरदार ने कहा - "कृपालु ! सहर्ष आप मेरे योग्य शिक्षा प्रदान करें । मैं यथाशक्ति उस पर चलने का प्रयत्न करूंगा।"
“देवानुप्रिय ! ज्ञान और विज्ञान तो अनन्त है। किन्तु तुम तो मेरी चार बातें याद रखना अवश्य तुम्हारा कल्याण होगा । वे चार बातें इस प्रकार हैं :
1. बिना नाम जाने फल नहीं खाना |
2. सावधान किये बिना किसी को मारना नहीं ।
3. अन्य राजा-रानी व दूसरे की बहिन बेटी अर्थात् पराई स्त्री को माता व बहिन समझना ।
4. कौए का मांस कभी भी खाना नहीं ।
चारों शिक्षाओं को सुनकर सरदार सउल्लास प्रतिज्ञा स्वीकार कर अपने आवास की ओर लौट गया ।
एक बार वह अपने साथियों के साथ एक नगर के राज्य कोष को लूटने चल दिया । मार्ग में सबको भूख लगने लगी राह में आये फलों को तोड़ने के लिये जैसे ही हाथ बढाये सरदार ने उन्हें मना करते हुए कहा "साथियो ! क्या तुम्हें इन फलों के नाम याद है । किसी ने जवाब नहीं दिया । मगर कतिपय साथियों ने चुपके से फल तोड़ कर खा लिये। जैसे ही फल खाये उन्हें बेहोशी आने लगी, देखते-देखते सभी साथी मौत की गोद में सदा के लिये सो गये । सरदार को सन्त की पहली शिक्षा पर विश्वास हो गया ।
एक बार सरदार गुप्त मार्ग के द्वारा अपने घर पहुंचा, उसने देखा उसकी पत्नी पर पुरुष के साथ एक ही बिस्तर पर सोई हुई है। उसका चेहरा क्रोध से लाल हो गया, उसने दोनों को मौत के घाट उतारने के लिये म्यान से तलवार बाहर निकाली ही थी कि मुनि की दूसरी शिक्षा याद आगई । "बिना सावधान किये किसी को नहीं मारना ।"
हेमेार ज्योति ज्योति
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हेमेन्द्र ज्योति मेजर ज्योति
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