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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
सेठ के नौकर चाकर और प्रधान मुनीम को पता लगा कि सेठ किसी अज्ञात कुल के लड़के को गोद लेकर आये हैं तथा उसी को अपना उत्तराधिकारी बनाकर अतुल सम्पत्ति का वारिस घोषित करेंगे । उन इर्ष्यालु कर्मचारियों को यह बात सहन नहीं हुई । सबने मिलकर निश्चय किया कि इस लडके को किसी तरह से सेठ से विमुख कर देना चाहिये । एक दिन कर्मचारियों ने परस्पर विचार विमर्श कर सेठ पुत्र से मिलने गये । सेठ पुत्र को वे एकान्त में ले गए और कहा - " हम आपके हित की कुछ बातें आपसे कहने आये हैं ।" तत्पश्चात् उन्होंने उससे पूछा - "आप कौन है?"
"मैं कौन हूँ? क्या आपको पता नहीं है? मैं सेठ पुत्र हूँ । सेठ-सेठानी मुझे अपना पुत्र मानते हैं ।" सेठ पुत्र ने कहा।
कर्मचारीगण - "यह ठीक है कि सेठ-सेठानी आपको अपना पुत्र मानते हैं । परन्तु आप सेठ के वास्तविक पुत्र तो नहीं है ।"
सेठ पुत्र - इससे क्या अन्तर पड़ता है ? मैं सेठ का वास्तविक पुत्र हूँ या नहीं? इससे उनके मन में भेदभाव की कोई बात नहीं है ।
कर्मचारीगण - अन्तर क्यों नहीं पड़ता? आपको यही तो अनुभव नहीं है । सेठ जब तक आप पर प्रसन्न हैं, तब तक आपको सब तरह से प्यार मिलेगा, परन्तु जिस दिन सेठ आपसे नाराज हो जायेगे, उस दिन आपको यहां से निकाल भी सकते हैं ।
यदि सेठ ने नाराज होकर आपको निकाल दिया तो आप कहाँ जायेंगे । क्या आपने अपना कोई ठिकाना बना रखा है, जहाँ स्वतंत्र रूप से रह सकें | क्या अपने जीवन निर्वाह के लिये भी आपके पास कुछ धन है, जिससे स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत कर सकें और फिर आपका विवाह नहीं होगा तो क्या आप जीवन पर्यन्त अकेले ही जीवन व्यतीत कर सकेंगे।
सेठ पुत्र - "हां आपकी बात में कुछ सत्यता लगती है । तनिक स्पष्ट कहो कि मुझे क्या करना चाहिये? आप तो मेरे हित की बात कहने आये हैं ।
कर्मचारियों ने विचारा कि तीर ठीक निशाने पर लगा है। अतः अब इसे सेठ-सेठानी से विमुख करने का अच्छा अवसर है । अतः उन्होंने कहा - हम तो आपके हितैषी बनकर आये हैं । हमारी बात माने, न माने, यह आपकी इच्छा। हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है । सोचिये - सेठ जब तक आप पर प्रसन्न है उनसे स्वतंत्र रूप से रहने के लिये एक भवन मांग लें ।
यद्यपि सेठ ने समय-समय पर अपनी इच्छाएं उस लड़के के सामने दोहरायी थी, परन्तु उसके मन में आज पिता सेठ के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो गया । पता नहीं, सेठ कब अपनी संपूर्ण सम्पतिं मेरे नाम करेगा? और कब कुलीन कन्या के साथ मेरा विवाह करेगा । लड़के ने उन कर्मचारियों की बात मानते हुए कहा – ठीक है मैं सेठ पिता से यही मांगूगा । कर्मचारी अपना काम करके चले गये ।
एक दिन तथा-कथित पुत्र मुंह लटकाये उदास हो कर सेठ के पास पहुंचा । सेठ ने पूछा - "पुत्र ! आज क्या बात है? उदास क्यों हो? क्या किसी ने तुम्हें कुछ कह दिया?"
पुत्र - नहीं पिताजी! आप की और माताजी की मुझ पर असीम कृपा है । आपके प्यार का कोई मूल्य नहीं, आप दोनों इतना प्यार देते हैं कि मैं उसमें सराबोर हो जाता हूं । फिर मुझे कौन कुछ कह सकता है? किन्तु मैं अब तक आपके आश्रित जीवन व्यतीत करता था, अब मैं स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत करना चाहता हूं, ताकि अपने भाग्य का मैं परीक्षण कर सकू।
सेठ - "बोलो क्या चाहते हो?"
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