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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
पर मां ! किसी भी कार्य को करने के लिये रुपया भी तो चाहिये, धन के अभाव में कोई भी कार्य नहीं हो सकता।
मां ने कहा - तल मंजिल ने जो भंडार बने हुये है। उनमें से कुछ स्वर्ण मोहरें तथा सोने चांदी के आभूषण निकाल कर ले आ । उन्हें बेचकर धंधा करो, ताकि दोनों का जीवन सुख से व्यतीत हो ।
चन्दन ने जब भण्डार खोले तो वह यह देखकर दंग रह गया, बोला – मां! यहां तो सब कोयला और कंकर ही कंकर है । न तो मोहरें हैं और न कोई सोने, चाँदी के आभूषण । अब क्या होगा माँ ।
चन्दन की बात सुनकर मां कि कर्तव्यविमूढ सी बन गई और दहाड़े मार रोने लगी । चन्दन भवन पर एक व्यापारी ने अपना अधिकार जमा लिया । माँ-बेटे को भवन से निकाल दिया ।
नगर के बाहर एक झोपड़ी बनाकर माँ-बेटे अपने दिन व्यतीत करने लगे । मां ने चन्दन को रास्ता सुझाया कि वन से लकड़ी लाकर बाजार में बेचो । उससे जो मूल्य प्राप्त हो उसी में संतोष कर जीवन व्यतीत करो । तथा सुबह शाम जगत पिता परमात्मा पर विश्वास रखकर उनका स्मरण करो । ताकि आत्मा को शांति मिले ।
चन्दन मां के बताये मार्ग पर चलने लगा । सुबह अपने आराध्य को स्मरण कर जंगल जाता और लकड़ियां काट कर लाता, उन्हें बाजार में बेचकर मूल्य मां को देता । भोजन से निवृत्त हो प्रभु के चित्र के समक्ष दीपक अगरबती जला कर प्रभु और इष्ट का एकाग्रता के साथ स्मरण करते ।
एक दिन सेठ के पुराने मित्र ने उनकी दुर्दशा देखी तो उसने झोपड़ी में पहुँच कर उन्हें पच्चीस मोहरें दी । उनसे माँ बेटे ने कपड़े बनवाये, वन से लकड़ियां लाने के लिये एक बैल क्रय कर लिया ।
चन्दन प्रतिदिन वन में जाता और बैल की शक्तिनुसार लकड़ियां लादकर लाता और उन्हें नगर में बेच देता। उनसे जो कुछ रुपये पैसे मिलते माँ को लाकर सौंप देता । इस तरह खाते-पीते एक महीने में पच्चीस स्वर्ण मोहरों का ऋण भी चुका दिया । दिन पर दिन व्यतीत होते गये पर परिस्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया ।
एक दिन उस नगर में महाज्ञानी महामुनि का अपने शिष्यों सहित आगमन हुआ । जनता उनके दर्शन और अमृत वाणी का लाभ लेने के लिये प्रतिदिन जाने लगी, चन्दन भी उनके दर्शनार्थ गया और पूछा-महामुनि ! मेरा भाग्य कब बदलेगा? क्या इसी तरह मारे-मारे फिरते रहने में ही जीवन व्यतीत कर देंगे या परिस्थिति में सुधार होगा?
मुनिवर ने चन्दन के उच्च ललाट को देख कर कहा - चिन्ता न करो । परिस्थिति कभी एक-सी नहीं रहती है । उसमें परिवर्तन अवश्य आता ही है । पुरुषार्थ से मुँह मत मोड़ना, पुरुषार्थ ही परिस्थिति में परिवर्तन लाएगा। इससे दूर मत भागना । चन्दन ने घर आकर अपनी माँ को सारी बात बतायी तो वह प्रसन्नता पूर्वक बोली - पुत्र अब अपने अच्छे दिन आने वाले हैं । घर में आनन्द मंगल होगा ।
चन्दन प्रतिदिन की भाांति लकड़ियां बैल पर लादकर बाजार में बेचने गया, उस दिन उसे इष्ट की कृपा से अन्य दिनों की तुलना में लकड़ी का मूल्य अधिक मिला । उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था । इतने में उसे जोर की ठोकर लगी वह गिर पड़ा और बेहोश हो गया । कुल देवता जो वृद्ध के रूप में उसके पीछे-पीछे आ रहे थे, उसे सहारा देकर घर तक पहुँचाया ।
जब चन्दन ने अपनी माँ को मार्ग में घटित घटना से अवगत कराया और कहा एक वृद्ध सहारा देकर यहां छोड़ गया तो, माँ ने कहा - जरा जल्दी दौड़ तो जो वृद्ध तुझे यहां छोड़ गया क्या वह बाहर खड़ा है? उसे भीतर बुला ला, जा देख देर मत कर ।
चन्दन ने बाहर जाकर चारों ओर देखा, वह जा चुका था । वह मां के पास जाकर बोला - माँ वह तो बाहर कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुआ । तुम क्यों बुलाना चाह रही हो उसे?
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