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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन था।
रुपयों के देने का आदेश सुनते ही यशोदा के शरीर पर मानों किसी ने घड़ों पानी डाल दिया हो । वह बीच में ही बात काट कर बोली – आखिर इस बौखलाहट का कुछ कारण भी?"
"अरे वाह ! मेरे गुरु आये हैं और तुझे बौखलाहट दिखाई देती है" मदन तनिक आंखें तरेरकर बोला ।
"गुरु आये हैं तो क्या हुआ? कोई नई बात तो हैं नहीं , यहां तो नित्य ही एक न एक भुखमरा पड़ा रहता है।" यशोदा पुनः तनिक आंखें मटका कर बोली - "दुतकार क्यों नहीं देते? भूखों मरकर कब तक अतिथि-सत्कार करोगे ! कुछ गांठ की भी बुद्धि है या उम्र भर जो दूसरा कहेगा वैसा ही करते रहोगे?"
मदन तनिक मुस्कराकर बोला - "मर्सिये गाना हम जानते, मैं हरकाम में उस्ताद हूँ फिर भी कहती है - क्या उम्र भर दूसरों के ऊपर निर्भर रहोगे? अरे हमने तो वह वह संगति की है कि परमात्मा के दूत भी आकर बुद्धि की शिक्षा ले।"
यशोदा हंसी को दबाते हुए कहने लगी - बेशक! मुझसे गलती हुई । आखिर मैं भी तो सुनूं आज कौन साहब पधारे हैं जिनके लिये..."
पण्डित मदन बीच में ही बात काटकर कहने लगे - "अरे क्या, तू आज भी ऐसा - वैसा अतिथि आया हुआ समझती है? आज मेरे गुरु आये हैं, गुरु ! इन्हीं की कृपा से पतंगबाजी का ज्ञान हुआ है । ईश्वर की सौगन्ध अपने फन में ये पक्के हैं बहुत होशियार हैं । भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी नाम है । इनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता ।"
यशोदा पति की इन शेख चिल्ली वाली बातों से रही-सही और भी जल-भुन गई । तुनककर बोली - "तभी तो सासजी कहा करती थी" मेरे बेटे के तीन चार मित्र है ।" तीन चार मित्र गुरुओं के गुरु हैं ।
मदन घर में तो पड़ा नहीं रहता था, जो चुपचाप पत्नी के ताने सुनता । आज उसने दस रुपये कमा कर पत्नी यशोदा को दिये थे । फिर क्यों किसी की जली-कटी बातें सुनने लगा । वह दांत-पीसकर बोला - "रुपये देती है या नहीं,नहीं तो कपडे की तरह कूट दूंगा ।
यशोदा मार खाने की आदी बन चुकी थी, पर न मालूम उसे क्या सूझा । मटक कर बोली- तुम तो नाराज हो गये, मैंने तो हंसते हुए तुम्हें छेड़ दिया था, लो यह एक पैसा इसका पान खा लेना, इतना कहकर वह रुपये लेने चौके में चली जाती है।
मदन इठलाता हुआ पान खाने चला जाता है ।
गरीबी में रही-सही गांठ की बुद्धि भी चली जाती है, पर व्यापार में बुद्धू होते हुए भी बुद्धि हाथ जोड़े खड़ी रहती है। यशोदा के पास आज दस रुपये थे, जिसकी उसे गर्मी थी, तत्काल उसे भी उपाय सूझ गया । वह किवाड़ की ओट से मदन (पति) के गुरु से बनावटी रोनी आवाज में बोली ईश्वर के लिये तुम अपने शिष्य को उत्तम मार्ग पर लाओ, मुझ पर बड़ी कृपा होगी, यदि आपने उन्हें सही राह दिखायी ।
"ऐसी क्या बात है? आखिर कुछ बात भी तो सुनूं । गुरु तनिक गौरवान्वित होकर बोले ।
मदन की पत्नी तनिक गिड़गिड़ाकर बोली – “कोई बात भी तो हो । कहूँ तो घर की इज्जत का सवाल है, न कहूं तो चैन नहीं, मेरी तो सब तरह से फजीहत ।"
गुरुजी तनिक अपनी हवा में लहराती सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोले - "नहीं बेटी! हमसे क्या छिपाना, हम तो घर के व्यक्ति है । अपने ससुर की तरह और पिता की तरह मुझे भी समझो ।"
ससुर और बाप तो समझाते-समझाते हार गये, पर इनको कोई असर नहीं हुआ । ईश्वर जाने किस मूर्ख से यह बुरी आदतें सीखें हैं ।" यशोदा तनिक उदास होकर बोली ।
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