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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
जागी जब दीक्षा प्यास, ज्ञानी गुरु की तलाश,
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मिले हर्ष विजयजी, आशीर्वाद पाया है ।
आषाढ़ शुक्ला द्वितीया, उन्नीसौ निन्याणु साल,
भीनमाल नगर में, उत्सव सजाया है ।
तपस्वीरत्न सरल-स्वभावी मुनि प्रवर,
हर्ष विजयजी हस्ते, दीक्षा-दान पाया है ।
मुनि हेमेन्द्र विजय शुभ नाम दिया गुरु,
'पारदर्शी' तीन थुई, संघ हरषाया है ।
|| 4 || ज्ञान लिया ध्यान किया, तन को तपाय लिया,
मुनि हेमेन्द्र विजय, सेवा मन भाई है ।
ध्यान-साधना महान, श्वेत खादी परिधान,
तेजस्वी-तपस्वी गुरु, वाचा - सिद्धि पाई है ।
बच्चों को दें सुसंस्कार, किया गुरु उपकार,
जिन - धर्म की भावना, हृदय जगाई है ।
'पारदर्शी उपकारी, जग-जन हितकारी,
हेमेन्द्र विजयजी में, समता समाई है ।
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विश्व पूज्य गुरुदेव, श्री राजेन्द्र सूरीश्वर,
तीन स्तुति का सिद्धांत, प्राचीन बताया है ।
धन- भूपेन्द्र - यतीन्द्र, फिर आए विद्याचन्द्र,
तीन थुई समाज का गौरव बढ़ाया है ।
पंचम थे पट्टधर, सिद्ध क्षेत्र पाया है । फली यों भविष्यवाणी, आचार्य कहाया है ।
आचार्य श्री विद्याचन्द्र सूरीश्वर गुरुदेव,
'पारदर्शी' छट्टे पाट, बिराजे हेमेन्द्र मुनि,
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दस फरवरी सन् उन्नीसौ तिर्यासी वर्ष, आचार्य का उच्च पद, श्रीसंघ प्रदान किया,
गांव-नगर-शहर, पैदल ही घूमकर,
जीओ और जीने दो का, सन्देश सुनाया है । शुद्ध आचार-विचार, किया अहिंसा प्रचार,
'पारदर्शी' गुरुदेव, सुमार्ग दिखाया है ।
आहोर में श्रीसंघ ने, उत्सव मनाया है ।
हेमेन्द्र सूरीश्वरजी, शासन दिपाया है ।
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