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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
आचार्य श्री विद्याचन्द्र सूरिजी विरचित काव्य साहित्य के सांस्कृतिक अध्ययन की आवश्यकता
पंन्यास रवीन्द्र विजय गणि
साहित्य के निर्माण में, विशेष कर भक्ति साहित्य और चरित साहित्य के निर्माण में जैन आचार्यों, मुनिराजों तथा जैन साध्वियों का योगदान अक्षुण्ण रहा है । यद्यपि जैन संतों का जीवन आत्मलक्ष्मी है, तथापि पर हितार्थ भी वे सतत चिंतन करते रहते है तथा अपने लेखनी के माध्यम से जन-जन का मार्ग दर्शन करते रहते हैं । भक्ति परक रचनाओं के साथ-साथ वैराग्य से ओतप्रोत रचनाओं का भी सृजन हुआ है । साथ ही दार्शनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रणयन हुआ है । ऐतिहासिक दृष्टि से पुराणा ग्रन्थों की रचना की गई । यहां हमारा लक्ष्य समग्र जैन साहित्य के विषय में लिखना न होकर कविरत्न आचार्य श्रीमद्विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म. द्वारा काव्य साहित्य की ओर संकेत करते हुए उनका सांस्कृतिक अध्ययन करने की ओर आवश्यकता का प्रतिपादन करना है । आचार्यश्री ने कुल मिलाकर तीस-चालीस पुराणों/ग्रन्थों का प्रणयन किया है । इनमें से कुछ महाकाव्य है तो कुछ महाकाव्य की श्रेणी में रखे जाने वाले ग्रन्थ है । यहां यह उल्लेख करना प्रांसगिक ही होगा कि आचार्यश्री ने एक से अधिक महाकाव्यों की रचना की हैं और जो महाकाव्य की श्रेणी की कृतियाँ हैं वे भी किसी महाकाव्य से कम नहीं है । आचार्यश्री द्वारा रचित प्रमुख महाकाव्य एवं काव्य कृतियां इस प्रकार है
श्री भूपेन्द्र सूरि, श्री शिवानंदन काव्य, दशावतरी महाकाव्य, शांतिनाथ महाकाव्य, चरम तीर्थंकर महावीर काव्य सचित्र, पथिक काव्य लता, श्री यतीन्द्र सूरि, श्री राजेन्द्र सूरि चालीसा, पथिक मणिमाला, चिंतन की रश्मियां, प्रभु गुण गरिमा आदि प्रमुख है । आचार्यश्री ने अपनी काव्य साधना छन्द बद्ध रूप से की है । साहित्यिक दृष्टि से यदि इनका अध्ययन किया जावे तो रस, छन्द, अलंकार, संधि आदि का विपुल मात्रा में विवरण उपलब्ध होता है ।
हमारे विचार से साहित्यिक/समीक्षात्मक अध्ययन रचनाओं के मूल्यांकन की एक विधा है । उस आधार पर यह निश्चित किया जाता है कि अमुक रचना साहित्य के धरातल पर खरी उतरती है या नहीं? हम इस प्रकार के अध्ययन से कुछ भिन्न अध्ययन की चर्चा करना चाहेंगे । इस में यह भी साथ-साथ हो सकता है कि आचार्यश्री की काव्य कृतियों में काव्य के विभिन्न अंगों का अध्ययन भी एक अध्ययन के माध्यम से कर लिया जावे । हम तो आचार्यजी के समग्र काव्य संसार का सांस्कृतिक अध्ययन करने की आवश्यकता पर बात कर रहे हैं । हो सकता है, कुछ पाठकों को हमारा यह विचार इसलिये विचित्र लगे कि इस प्रकार का अध्ययन अभी तक कही हुआ नहीं है और यह परम्परा से हट कर है ।
___ सांस्कृतिक अध्ययन के लिये जिन बिन्दुओं की आवश्यकता होती है, सर्वप्रथम हम उनकी ओर संकेत करना उचित समझते है । इन बिन्दुओं का उपयोग अध्यायों के रूप में भी किया जा सकता है । सम्बन्धित रचनाकार की रचनाओं के सांस्कृतिक अध्ययन के पूर्व एक बिन्दु अथवा अध्याय में रचनाकार का जीवन परिचय और परम्परा (यदि संत है तो) का उल्लेख करना आवश्यक प्रतीत होता है । तत्पश्चात् निम्नांकित बिन्दुओं को लिया जा सकता है। 1. समाजदर्शन :
इसके अन्तर्गत आचार्य श्रीमद्विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा रचित काव्य कृतियों में पाया जाने वाला सामाजिक विवरण जैसे सामाजिक संगठन, वर्ण, जाति, जातियों की उत्पत्ति एवं उनके कर्म, परस्पर सम्बन्ध, परिवार, खान पान, वस्त्राभूषण, विवाह तथा अन्य संस्कार प्रचलित, रूढियां एवं परम्पराएं, समाजगत दोष, दोषों को दूर करने के उपाय, शिक्षा व्यवस्था, मनोरंजन के साधन, व्याधियां, उपचार, अंतिम क्रिया, स्त्रियों की दशा आदि आदि । काव्य कृतियों में इस विषयक मिलने वाली सामग्री का व्याख्यात्मक विश्लेषण किया जावें ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 13 हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति
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