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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
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तब आचार्यश्री ने विचार किया चौमासा नजदीक आ गया हैं । मैं बूढ़ा हूं । स्वास्थ्य भी बराबर नहीं रहता। उम्र भी पूरी है । उग्र विहार करके महीने भर में चौमासे के पहले पहुंचना है । बहुत मुश्किल है । मगर भक्तों की भाग्यता को ध्यान में रखकर सोचा जो होना होगा वो हो जायेगा । यह शरीर नहीं रहेगा तो कोई बात नहीं। शासन की सेवा व गुरुभक्ति का जो अवसर आया है, उसे नहीं छोड़ना है। और यह प्रतिष्ठा का काम मुझे ही करवाना है ।
यह सोचकर आचार्यश्री ने उसी वक्त कोंकण केसरी मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी को बुलाकर कहा मुझे राणीबेन्नूर प्रतिष्ठा कराने जाना है व तुमको तुम्हारे शिष्यों सहित व श्रमणी मंडल सहित मेरे साथ आना है । लाभेश व लवकेश को भी साथ लेना है । यह प्रतिष्ठा का काम अपने हाथों से करना है | कोंकण केसरी श्री लेखेन्द्र शेखर विजयजी ने बिना किसी विलम्ब के कहा जैसी आपकी आज्ञा | आपकी आज्ञा शिरोधार्य है । आपके आशीर्वाद से एवं श्री गुरुदेव श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी की कृपा से व उनकी शक्ति से हम जरुर जरुर प्रतिष्ठा करायेगे । हमें गुरुदेव मंदिर की प्रतिष्ठा कराने का जो अवसर मिला है । उसे अवश्य ही पूरा करना है । और राणीबेन्नूर संघ को वहां चातुर्मास करने की आज्ञा दी व मोहनखेड़ा में ही राणीबेन्नूर चौमासा करने एवं प्रतिष्ठा करने की जय बुलाई गई । सारा संघ खुश हुआ । और उन्हें कहा कि हम जल्दी से जल्दी विहार करके आ रहे हैं ।
दो चार दिन में विचार करके मोहनखेडद्या से 7 मुनि भगवंत एवं 10 साध्वीजी भगवंत राणीबेन्नूर प्रतिष्ठा कराने के लिये उग्र विहार करते हुए 2000 कि.मी पैदल यात्रा करते हुए करीब 50 दिन में आचार्य भगवंत एवं मुनिमंडल व साध्वी मंडल बड़े ही सुखशातापूर्वक राणीबेन्नूर की धन्य धरा पर आ गया और वहां का संघ हर्षविभोर हो उठा । लोगों में खुशियाँ छा गई । सारे गांव ने आनंद मंगल छा गया । लोगों का उल्लास बढ़ गया । लोग समझने लगे । हम धन्य है । हमारा जीवन सार्थक है । हमारे यहां गुरुदेव दादावाड़ी की प्रतिष्ठा का सुअवसर पर आया है । उस हेतु आचार्य श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी एवं कोंकण केसरी श्री लेखेन्द्रशेखरजी का यहां पधारना हमारे लिये परम सौभाग्य की बात है । हमारे भाग्य का उदय है व हमारे पूर्व की पुण्याई है। जिससे आचार्य श्री इस वृद्धावस्था में उग्रविहार करते हुए यहां पधारे हैं । और हमें दर्शन वंदन पूजन का लाभ दिया । यह हमारे व हमारे गांव के लिए खुशी का अवसर है | ऐसे अवसर बार बार नहीं आते हैं । ऐसे अवसर तो प्रभु की परम कृपा होती है, तभी मिलते हैं।
गुरुदेव ने शुभ दिन देखकर राणीबेन्नूर नगर में प्रवेश किया । हजारों की संख्या में लोग प्रवेश प्रसंग पर आये। बड़े ही ठाठ पाट व धूमधाम व खुशियों के साथ वहां जैन श्वेताम्बर धर्मशाळा में गुरुदेव का प्रवेश कराया । गुरुदेव का अभिनंदन किया व कई लोगों ने सभा को सम्बोधन करते हुए अपने विचार प्रकट किये । व गुरुदेव को सुखशाता पूछते हुए अभिनंदन व स्वागत करते हुए आभार प्रकट किया ।
गुरुदेव ने भी अपने विचार प्रकट किये व अन्त में गुरुदेव ने मांगलिक सुनाया व सभा जयघोष के साथ विसर्जित हुई । उसके बाद में आचार्यश्री मुनिमण्डल श्रमणीमंडल का चौमासा राणीबेन्नूर ने बडी ही ठाठबाट से शुरू हुआ । चौमासे में अनेकों प्रकार की तपस्याएं हुई । महामंत्र की आराधना हुई । अनेक महापूजन हुए । चारों माह जाल जलाली रही । तप जप की ज्योति जलती रही । सभी लोगों में बहुत ही उत्साह व जोश था । लोग सब कुछ भूलकर हर समय गुरुसेवा व धर्म आराधना में लीन रहते थे । वहां के अनेक लोगों ने अनेक धर्म आराधानाएं की व अपने जीवन को सफल बनाया।
चौमासे के बाद आप मैसूर पधारे वहां भी अनेक तप जप व महापूजन करवायें व शासन की शोभा बढाई गुरु सप्तमी आपने बड़े ही ठाठबाट से मैसूर में मनाई । जिसकी आज भी मुक्तकंठ से प्रशंसा हो रही है ।
उसके बाद वापस राणीबेन्नूर की तरफ विहार किया । गांव गांव घूमते हुए आचार्यश्री राणीबेन्नूर पहुंचे और गुरुदेव के मंदिर की प्रतिष्ठा की तैयारियों शुरू हो गई । लोगों में उमंग ही अलग थी, जोश भी अलग था । प्रतिष्ठा के चढ़ावे का समय आया । हर व्यक्ति ने दिल खोलकर चढ़ावे लेने का लाभ लिया, जिसमें करोड़ों रुपयों के चढ़ावे हुए । वहां बिना भेद भाव के सभी समुदाय वाले इस में आये व लाभ लिया । प्रतिष्ठा की धूमधाम थी । अनेक मंडल,
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