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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
सुसंस्कारित होना अनिवार्य है । माता के महत्व को स्वीकारते हुए नेपालियन ने कहा था कि तुम मुझे बीस श्रेष्ठ मातायें दे दो । मैं तुम्हें विश्व का साम्राज्य दे दूंगा । ऐसी अनेक माताओं के उदाहरण इतिहास की पुस्तकों में मिल जायेंगे जिनके प्रयासों से उनकी संतान महान बनी । उन पर हम यहां चर्चा करना उचित नहीं समझते । हम तो यहां यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि माताओं को चाहिये कि वे बाल्यावस्था से ही अपने बच्चों में सुसंस्कार वपन करने का कार्य करे । कारण कि जिस प्रकार पक्के घड़े पर मिट्टी नहीं चढ़ती उसी प्रकार बड़े होने पर युवक पर वातावरण का प्रभाव अधिक पड़ता है, इस कारण वह सुसंस्कार ग्रहण करने में या तो संकोच करता है अथवा उनसे दूर भागता है । अतः संस्कार वपन का कार्य तो बचपन में ही उचित रहता है ।
बच्चा जब कुछ कुछ समझने लगे तब से ही उसे अपने माता पिता तथा बुजर्गो के चरण स्पर्श करना सिखाया जाना चाहिये । आप जब नियमित रूप से देव दर्शन करने जाती है तो अपने साथ अपने बच्चों को भी ले जावें और उन्हें देव वंदन विधि पूर्वक सिखाये । अपने बच्चों को सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य का महत्व बतावें । उनका पालन करने का निर्देश दें। आपके यहां जब कोई अतिथि अथवा मिलने वाले आवे तो उनका सम्मान करना सिखावें । अपनी संतान को दया, दान, क्षमा का महत्व समझाते हुए उन्हें अपने जीवन में उतारने की शिक्षा प्रदान करें । उतना ही नहीं आप अपनी संतान को स्वावलम्बी बनने का पाठ पढ़ावे और दीन-हीन लोगों की सहायता करने तथा वरिष्ठजनों की सेवा सुश्रुषा अग्लानभाव से करना भी सिखावें । सेवा जिसे वैयावच्च भी कहा जाता है, एक तप है, आप अपनी संतान को तप, व्रत, उपवास का भी महत्व समझावें। साथ ही इन्हें अपने जीवन में उतारने के लिये भी कहें । अपनी संतान को व्यसनों से दूर रखने का पूरा प्रयास करें । उन्हें इनकी बुराइयाँ बतावें और इसी प्रकार जो जीवन की अहितकारी बातें हैं उनके दोष बताते हुए उनसे बचने की शिक्षा प्रदान करें । संक्षिप्त में यह कि आप अपनी संतान को आदर्श नागरिक बनाने का प्रयास करें । उससे न केवल आपकी संतान का वरन आपका, समाज का व देश का भविष्य उज्ज्वल होगा । 33. पर्यावरण की रक्षा करें
पहले तो संक्षेप में हम यह जानने का प्रयास करें कि पर्यावरण किसे कहते हैं? आज पर्यावरण की चर्चा तो बहुत होती है किंतु हमारे विचार से पर्यावरण के अर्थ से कई लोग आज भी अनभिज्ञ है । पृथ्वी, आकाश, हवा, पानी, वन और हमारे आस पास का जो परिवेश हैं, संक्षेप में यही पर्यावरण है । पृथ्वी में मैदान, पठार, पहाड़ आदि आकाश में समूचा आकाश, तारामंडल, ग्रह आदि हवा में आंधी तूफान, ठण्डी, गरम हवा आदि, पानी में नदी, समुद्र, तालाब कुएं आदि, वन में सभी प्रकार के वन और वनस्पति, वन्य प्राणी आदि हमारे आसपास के परिसर से आशय यह है कि जिस स्थान पर हम रहते हैं, वह साफ सुथरा हो । उसके आसपास गंदगी न हो । पानी रुका हुआ न हो ।
आज इस वैज्ञानिक युग ने पर्यावरण को काफी क्षति पहंचाई है । माना कि विज्ञान की प्रगति से मानव समाज ने विकास की ऊँचाइयों को छुआ है । जीवन रक्षक औषधियों का निर्माण कर जीवन बचाने के लिये महत्वपूर्ण योगदान दिया है । इसी प्रकार उत्पादन के क्षेत्र में, यातायात और दूर संचार के क्षेत्र में तथा अनुसंधान के क्षेत्र में अनुपम योगदान दिया है और आगे भी कार्य चल रहा है । इन सबके परिणाम स्वरूप आज विश्व सिमट गया है। अंतरिक्ष की खोज में भी महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं तथा आगे भी हो रहे हैं । उन सबके महत्व को नकारा नहीं जा सकता ।
इसके विपरीत इनका दुष्प्रभाव भी हमारे सामने आया है । कल-कारखानों से निकलने वाला विषैला धुआं, अपने आसपास के तथा कुछ दूरस्थ क्षेत्र के वातावरण को दूषित कर रहा है । कारखानों से निकलने वाला विषैला पानी नदियों के पानी को विषैला बना रहा है । परिणाम स्वरूप वह पानी पीने योग्य तो रहता नहीं, उलटे असंख्य जलचर उसके प्रभाव से मौत के मुँह में चले जाते हैं । विश्व की बड़ी शक्तियां घातक हथियारों का निर्माण करती हैं, उनका परीक्षण करती है जिसके फलस्वरूप उनकी विषैली गैस से वायुमंडल दूषित हो जाता है । विषैला हो जाता है । घातक हथियारों की होड़ में आज विश्व बारूद के ढेर पर बैठा है । एक चिनगारी लगी कि विश्व का विनाश हो सकता है । क्या इस विनाशशील प्रगति को विकास कहा जा सकता है? जहां आज आदमी सांस लेता है तो उसे घुटन का अनुभव होता है । क्या उसे विकास कहा जा सकता है?
हेगेन्च ज्योति * हेगेन्द्र ज्योति 16
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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