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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
दूसरे ने पूछा – क्यों क्या बात है? पंडित लोग बारूघोला का अर्थ नहीं बता सके । पहले ने पछा - तम्हें आता है। हाँ आता है । दसरे ने कहा । तब बताओ - बा – बालचन्द को रू - रूपचन्द ने घो - घोर नींद में सोते समय ला - लाख रुपयों के लिये मार डाला ।
वृक्ष पर बैठा हुआ पंडित अर्थ सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ । प्रातः होते ही वह सीधा राजा के सम्मुख उपस्थित हुआ। जब किसी पंडित को अर्थ नहीं आया तो उसने उसका अर्थ बता दिया ।
जाँच के पश्चात् रूपचन्द को बुलवाया गया । सख्ती से पूछताछ करने पर उसने सारी सत्यता कह दी । राजा ने उसे मृत्यु दण्ड की सजा देकर उसकी संपूर्ण सम्पत्ति जप्त कर बालचन्द की विधवा को दे दी ।
पश्चाताप एक समय की बात है कि कोई राजा किसी समय शिकार खेलने के लिये चल पड़ा । जब वह बियावान जंगल में पहुँचा तो मार्ग भूल जाने से घबराने लगा । गर्मी का मौसम था । गर्मी तेज पड़ रही थी । आसपास कोई तालाब भी नहीं दिखाई देने के कारण राजा का गला प्यास के मारे सूखने लगा । वह दुःखी हो कर एक वृक्ष की छाया में आकर बैठ गया। उस बीहड़ वन में कोई मनुष्य भी आता जाता हुआ दृष्टिगोचर नहीं होने के कारण राजा का भय और भी बढ़ता जा रहा था । अकस्मात भाग्यवशात एक व्यक्ति उधर से आ निकला । उसने राजा के पास आकर उसकी परेशानी का कारण पूछा। राजा ने सारी घटना कह सुनाई, तब उस व्यक्ति ने मानवता के नाते उस राजा को पानी पिलाया और नगर का मार्ग सही रूप में बता दिया ।
राजा ने पानी को अमृत समझ कर पिया । जब पानी पीने से राजा के शरीर में चेतना आ गई तो उस दयालु व्यक्ति का आभार माना और एहसान भरे शब्दों में कहा कि तुमने मुझे ऐसे विकट समय में प्राणदान दिया है, जिसे मैं जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकता । मैं निकटवर्ती नगर का राजा हूँ । मैं तो उम्र भर राज करूँगा ही, परन्तु मैं तेरी असीम सेवा के बदले तुझे एक पत्र लिखकर देता हूँ । आवश्यकता पड़ने पर तेरे काम आएगा।
राजा ने पत्र में लिख दिया कि जब कभी तू मेरे पास आएगा तो तुझे दो पहर का राज्य दे दिया जाएगा । राजा उसे पत्र देकर अपने नगर को चला गया । वह व्यक्ति भी खुश होता हुआ अपने गाँव में गया और जो कोई भी उसे रास्ते में मिला उसे राजा के द्वारा लिखा गया पत्र बताते हुये अपने घर पहुँचा । जब वह अपने घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने उससे देरी से आने का कारण पूछा । उसने अपनी पत्नी को राजा के द्वारा दिया हुआ पत्र बताते हुये कहा कि भाग्यवान आज मैं बड़ा भाग्शाली हूँ । आज मेरे थोड़ा-सा उपकार करने के बदले राजा ने मुझे दो पहर राज करने का पत्र लिखकर दे दिया है । अब हमारे ये गरीबी के दिन नहीं रहेंगे । मैं केवल दो पहर का राजा बनकर जीवन भर सुखी बन जाऊँगा।
पत्नी ने कहा - जब तुम राजा बनोगे तब देखा जाएगा । अभी से इतने खुशी के क्यों गीत गा रहे हो । पहले खाने-पीने की व्यवस्था तो करो ।
इतनी बात सुनते ही वह व्यक्ति बाजार में गया और कई दुकानों में आवश्यक वस्तुएँ खरीद लाया । पत्नी भी इतनी वस्तुएँ देखकर मन में बड़ी प्रसन्न हुई । दोनों पति पत्नी ने आनन्द पूर्वक विभिन्न प्रकार के व्यंजन बना कर खाए।
कुछ दिन व्यतीत होने के बाद जब सभी दुकानदारों के तकाजे आने लगे तो उसकी पत्नी ने कहा कि अब राजा के पास जाकर दो पहर का राज्य लेने का समय आ गया है । इसलिये तुम राजा के पास जाओ और राज्य प्राप्त कर विपुल धनराशि लेकर आओ ताकि भविष्य में सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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