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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
लकड़हारा और राजा एक लकड़हारा लकड़ियां बेचकर चार आने प्रतिदिन कमाया करता था । जिनमें से एक आना वह किसी पुण्य कार्य में लगा देता और शेष तीन आनों में अपने घर का काम चलाया करता । एकरात को लकड़हारे की पत्नी ने पति से कहा कि तुम केवल चार आने प्रतिदिन कमाते हो जिसमें से भी एक आना दान कर देते हो । इससे सबको बड़ा कष्ट होता है, अतः तुम नित्य एक आने का दान करना बन्द कर दो । एक चौथाई दान तो राजा भी नहीं करता। इस पर लकड़हारे ने उत्तर दिया की राजा की अपनी करनी, मेरी अपनी करनी, मैं दान देना कदापि बन्द नहीं करूंगा, लकड़हारे की कुटिया के बाहर खड़ा राजा इन दोनों की बातें सुन रहा था । उसने प्रातःकाल होते ही लकड़हारे को दरबार में बुलवा लिया । राजा ने उससे पूछा कि रात को तुम अपनी कुटिया में क्या बातें कर रहे थे? लकड़हारे ने उत्तर दिया कि महाराज यद्यपि आप राजा हैं लेकिन मेरी कुटिया में मैं जो चाहूँ बात करूँ, इसे पूछने का आपको कोई अधिकार नहीं है । लकड़हारे की बात सुनकर राजा नाराज हुआ और उसने उसे जेल में डाल दिया ।
लकड़हारे के लिये नित्य रात को स्वर्ग से विमान आया करता और वह उसमें बैठकर प्रतिदिन स्वर्ग जाया करता। उसी बन्दी गृह में एक सेठ भी था | उसने एक दिन लकड़हारे से पूछा कि तुम रात को कहां जाया करते हो? लकड़हारे ने सारी बात सेठ को सच-सच बतला दी । सेठ ने कहा कि एक रात मुझे भी स्वर्ग ले चलो । लकड़हारा बोला कि विमान में तो तुम बैठ नहीं सकोगे, लेकिन तुम विमान का पाया पकड़ लेना । रात्रि को विमान आया तो सेठ भी पाया पकड़ कर स्वर्ग में पहुंच गया ।
सेठ ने स्वर्ग के दूतों से पूछो कि वह सुन्दर महल किसका है तो दूतों ने कहा कि यह लकड़हारे के लिये हैं। फिर सेठ ने पूछा कि ये विविध प्रकार के भोजन किसके लिये है तो उत्तर मिला कि ये सब लकड़हारे के लिये है। सेठ ने फिर पूछा कि सब वस्तुएं लकड़हारे के लिये ही है तो भला मेरे लिये क्या है? देव दूतों ने उत्तर दिया कि तुम्हारे लिये क्या होता? तुमने कभी किसी को एक पैसा भी दिया नहीं, अतः तुम्हारे लिये यहां कुछ भी नहीं है। सेठ ने देवदूतों से पुनः पूछा कि मेरे लिये कुछ नहीं है तो हमारे राजा के लिये तो कुछ होगा ही । इस पर दूतों ने सेठ को लहू और मवाद की बहती हुई नदी दिखला दी और कहा कि तुम्हारा राजा बड़ा अन्यायी है इसलिये उसके लिये यह नदी तैयार है । सेठ ने पूछा कि राजा के पापों का क्या प्रायश्चित है तो दूतों ने कहा कि यदि राजा नंगे पैरों फिर कर गायों की बारह वर्ष तक सेवा करे तो उसके पाप धुल सकते हैं ।
स्वर्ग में घूम-फिर कर जब वे लौटने लगे तो वहाँ एक मोची आया । मोची ने सेठ से कहा कि सेठ, मैं तुम से एक चवन्नी मांगता हूँ सो मेरी चवन्नी दे जाओ | सेठ ने कहा कि मेरे पास इस समय कुछ भी नहीं है । इस पर मोची ने सेठ के शरीर से चार आने के मूल्य का चर्म काट लिया । अनन्तर लकड़हारा और सेठ विमान में बैठकर जेल में आ गए।
प्रातःकाल होते ही सेठ ने राजा से मिलने की इच्छा प्रकट की । राजा ने सेठ को बुलवा लिया । सेठ ने रात की सारी बात राजा को कह सुनाई और साथ ही उसने अपने शरीर का वह भाग भी दिखलाया जहाँ से मोची ने सेठ की चमड़ी काटी थी । राजा पर सेठ की बात का बड़ा प्रभाव पड़ा । उसने लकड़हारे सहित सारे कैदियों को मुक्त दिया और स्वयं नंगे पैरों गायें चराने चला गया ।
नदी के किनारे गायें चराते-चराते जब राजा को बारह वर्ष पूरे हो गये तो एक एकदिन तत्काल प्रसूति हुई एक गाय का बछड़ा नदी में बह गया । राजा को बड़ा दुःख हुआ कि बछड़े की हत्या और सिर लगी । राजा उदास होकर वही बैठ गया । एक घण्टे पश्चात् बछड़ा नदी में से स्वयं ही निकल कर गाय के पास आ गया । गाय ने बछड़े से पूछा कि बेटा, जन्म लेते ही मुझे छोड़कर तू कहाँ चला गया? इस पर बछड़ा बोला कि मां इस अन्यायी राजा को तेरी सेवा करते-करते आज बारह वर्ष हो गये, अतः इसके पाप धोने गया था । अब इसके लिये लहू और मवाद की जो नदी थी, वह दूध-दही की नदी वन गयी है । राजा ने बछड़े की बात सुनी तो उसे सांसारिक कार्यों से वैराग्य हो गया और वह अपने मंत्रियों को राज-काज सुपुर्द कर स्वयं तपस्या करने के लिये वन में चला गया।
हेमेन्द्र ज्योति* हेगेन्द्र ज्योति
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