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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
उस युवक ने विचार किया - सौ रुपये और लगाऊँगा । शायद इस बार भाग्य खुल जाय और कुछ मिल जाय।
दूसरी बार गोता खोर ने गोता लगाया और मुट्ठी में सीपें फिर दी पर भाग्य से कुछ नहीं निकला । वह युवक निराश नहीं हुआ । उसने तीसरा गोता लगवाया, फिर भी कुछ हाथ न लगा । चौथे और पांचवें गोते में भी कोई सफलता न मिली। छठा गोता भी व्यर्थ गया । सातवाँ और आठवां गोता भी खाली गया ।
अन्त में उसने विचार किया कि आठ सौ रुपया समुद्र में फेंक चुका सौ और सहीं संभव है, इस बार भाग्य देवता प्रसन्न हो जाय ! यह सोचकर उसने नौंवा गोता लगवाया, वह भी खाली गया । फिर भी वह निराश नहीं हुआ | उसने सोचा घर से एक हजार रुपया लेकर चला था उसमें से एक सौ रुपये शेष रहे है कहीं यह भी चले गये तो क्या होगा? पर जब नौ सौ चले गये तो एक सौ रखकर क्या करूँगा । जो होगा देखा जायेगा ।
इस प्रकार निश्चय करके उसने शेष सौ रुपये भी दाव पर लगा दिये । गोताखोर सागर की असीम जलराशि में प्रविष्ठ हुआ और उसे चीरिता हुआ तल तक जा पहुँचा । इस बार उसने दूर तक टटोला बड़ा परिश्रम किया और एक जुड़ी हुई सीप लेकर ऊपर आया । बोला - यह लो भाई, अपना भाग्य आजमाओ ।
सीप को चीरा गया तो उसमें से एक ऐसा सुन्दर मोती निकला कि वह सर्वोत्कृष्ट जाति का प्रमाणित हुआ। उसे देखकर गोता खोर ने कहा - भाई, मुझे गोता लगाते बहुत वर्ष व्यतीत हो गये, मगर इतना बढ़िया मोती मैंने कभी निकला नहीं देखा । ज्ञात होता है कि तेरा भाग्य खुल गया । हम कहते हैं कि यह बहुत ऊँची जाति का मोती है पर ठीक से मूल्य नहीं जानते । इस पर तेरा भविष्य निर्भर है । इस मोती को किसी ईमानदार व्यक्ति को दिखलाना। किसी बेईमान व्यक्ति के हाथ पड़ गया तो वह बड़ी सफाई के साथ बदल लेगा ।
उस युवक के हर्ष का पार न था । वह मोती को लेकर एक बड़े नगर में पहुँचा । बाजार में चक्कर काटते-काटते उसे एक बड़ी दुकान दिखाई दी । गद्दे बिछे हुये थे उस पर एक तकिये के सहारे सेठ आराम से बैठे थे। उसने सोचा यदि यह सेठ जौहरी होगा तो मेरे मोती की परीक्षा हो जायेगी ।
यह विचार कर वह दुकान पर गया और दोनों हाथ जोड़ प्रणाम कर बैठ गया । सेठ के पूछने पर उसने घर से निकलने से लेकर अपनी यात्रा का पूरा वृतान्त सुनाकर मोती दिखलाया ।
सेठ जौहरी था । मोती को देखकर बोला- यह मोती बहुत उच्च कोटि का है । मैं दूसरे के धन को मिट्टी के समान समझता हूँ । अनीति का एक पैसा भी लेना नहीं चाहता । आप इस मोती को संभालकर रखना । शरद् पूर्णिमा के दिन इसकी परीक्षा करना । इतने दिन ठहरना तो पड़ेगा और आपका ठहरना ही उचित हैं । आप मेरे भवन में ठहर सकते हैं। भोजन भी वहीं करना ।।
सेठ ने मन में सोचा - यह मोती बड़ा ही मूल्यवान है । मेरी सारी सम्पति और भवन का मूल्य भी इस मोती के बराबर नहीं । यह कैसा भाग्यशाली प्राणी है कि ऐसा बहुमूल्य मोती उसके हाथ लगा ।
उस जौहरी को सत्संगति के प्रभाव से विवेक प्राप्त हो गया था । इसी कारण वह उस मोती को देखकर और उसके महत्व को समझ कर भी नीति के मार्ग से नहीं गिरा । उसने मोती वाले उस युवक से कहा – भाई, इसे बड़े यत्न से संभाल कर रखना । शरद पूर्णिमा के दिन इसकी परीक्षा करना ।
युवक के कहने पर जौहरी ने ही उस मोती को संभाल कर रख लिया । यह बात उन दोनों के अतिरिक्त किसी तीसरे को मालूम नहीं थी । यथा समय शरद पूर्णिमा आ गई । सेठ ने बीस मन लोहा एकत्र किया और उसे सोच विचार कर एक विशेष ढंग से छत पर जमा दिया । सबके ऊपर वह मोती रखा । दोनों वही बैठ गये।
। इतने में पूर्व दिशा से चन्द्रमा का उदय हुआ और मोती पर उसका प्रतिबिम्ब पड़ा । मोती पर चन्द्र का प्रतिबिम्ब पड़ते ही मोती की परछाई पश्चिम की ओर पड़ी । पश्चिम की ओर जितना लोहा था वह सब सोना बन गया। इस प्रकार जिधर जिधर मोती की परछाई पड़ती गई, उधर-उधर का लोहा सोना बनता गया । रात भर में वह बीस मन लोहा सब सोना बन गया । सोना भी ऐसा कि पीला जर्द । शरद स्वर्ण के बराबरी की धातु ही कौन सी है।
हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द ज्योति
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