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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
मार्गदर्शन मिलता रहे ) परम पूज्य कविरत्न आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के देवलोक गमन के पश्चात् श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर पेढ़ी (ट्रस्ट), श्री मोहनखेडा तीर्थ, राजगढ़ जिला धार (म.प्र.) के अध्यक्ष का पद रिक्त हो गया । उस समय संघ ने वरिष्ठतम मुनिराज श्री हेमेन्द्रविजयजी म.सा. के नेतृत्व में कार्य करने का निर्णय लिया। यह स्थिति उस समय तक बनी रही जब तक कि पू. मुनिराज श्री हेमेन्द्र विजयजी म.सा. को सूरिपद पर अलंकृत कर आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित नहीं किया गया । संघ समाज और तीर्थ के सभी कार्य आपश्री के तथा अन्य मुनिराजों के मार्गदर्शन में चलता रहा । आचार्य जैसे महत्वपूर्ण पद को अधिक समय तक रिक्त नहीं रखा जा सकता। इस बात को ध्यान में रखते हुए संघ ने दिनांक 10-2-1983 के शुभ दिन पू. मुनिराज श्री हेमेन्द्रविजयजीम.सा. को भव्यातिभव्य समारोह पूर्वक आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया और उसी समय से पू. आचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर पेढ़ी (ट्रस्ट) श्री मोहनखेडा तीर्थ, राजगढ के अध्यक्ष के पद पर भी आसीन हुए । यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक प्रतीत होता है कि श्री मोहनखेडा तीर्थ ट्रस्ट के नियमानुसार आचार्यश्री ही ट्रस्ट मण्डल के अध्यक्ष होते हैं ।
वैसे तो तीर्थ विकास के कार्य कभी अवरूद्ध नहीं हुए फिर भी पू. आचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के अध्यक्ष पद पर पदारूढ़ होने के पश्चात् तीर्थ के विकास के कार्यों में तेजी आ गई । पू. आचार्य भगवन के पावन सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में जब से आपश्री ने अध्यक्ष का पद सम्हाला तब से अभी तक तीर्थ विकास की दृष्टि से निम्नांकित महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुए ।
1. पूर्व की भोजनशाला का स्थान कुछ सीमित था । यात्रियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही थी । अधिक यात्रियों के आजाने के कारण व्यवस्था में कठिनाई उत्पन्न हो जाती थी । इस बात को ध्यान में रखते हुए नई भोजन शाला के निर्माण की आवश्यकता का अनुभव हुआ । पू. आचार्यश्री ने ट्रस्ट मण्डल के सदस्यों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श किया और तत्पश्चात् भीनमाल निवासी गुरुभक्त नाहर बाबूलाल को प्रेरणा प्रदान की। परिणाम स्वरूप शीघ्र ही सर्व सुविधायुक्त नवीन भोजनशाला बनकर तैयार हो गई । नई भोजनशाला के बन जाने से एक बहुत बड़ी आवश्यकता की पूर्ति हो गई ।
2. श्री विद्या विहार धर्मशाला :- यात्रियों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए नवीन धर्मशाला की आवश्यकता प्रतीत होने लगी । तब पू. आचार्य भगवन के मार्गदर्शन में श्री विद्या विहार धर्मशाला के निर्माण का कार्य शुरू हुआ और आज इस धर्मशाला में सर्व सुविधा युक्त दो सौ कमरे हैं ।
3. श्री यतीन्द्र विहार धर्मशाला :- इस धर्मशाला में 50 कमरें हैं ।
4. श्री मोहन विहार धर्मशाला :- इसमें लगभग 50-60 कमरें है । उल्लेखनीय है कि इस धर्मशाला में हाईस्कूल तक की कक्षायें लगती है । यह हाईस्कूल माध्यमिक शिक्षा मण्डल म. प्र., भोपाल द्वारा मान्यता प्राप्त है।
5. श्री राजेन्द्रविहार धर्मशाला :- यह धर्मशाला तीन खण्डों में बनी हुई है । इसमें 50 कमरें हैं । इस प्रकार श्री मोहनखेडा तीर्थ पर यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए धर्मशालाओं का निर्माण करवाया गया ।
6. पेढ़ी कार्यालय :- जैसे जैसे तीर्थ क्षेत्र का विकास होता जा रहा है । वैसे वैसे पेढी के कार्य में भी अभिवृद्धि हो रही हैं । जिस कक्ष में पेढ़ी का कार्यालय था, वहां स्थानाभाव का अनुभव होने लगा । तब पू. आचार्य भगवन के मार्गदर्शन एवं सान्निध्य में पेढ़ी के नवीन कार्यालय के निर्माण की योजना बनी । पू. आचार्य भगवन की प्रेरणा से पेढ़ी कार्यालय के निर्माण का कार्य करवाना श्री पारसमलजी सांवलचंदजी निवासी भेंसवाड़ा जिला जालोर ने स्वीकार कर निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया और आज पेढ़ी कार्यालय इसी स्थान पर है ।
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