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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
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(आचार्यश्री हेमेन्द्र सूरिजी दक्षिणभारत में
शा. घेवरचंद भण्डारी, सियाणा (चेन्नई) आचार्य श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी भारत देश के राष्ट्रसंत शिरोमणि आचार्य है । आज राजेन्द्र सूरीश्वरजी की पाट गादी पर बिराजमान है और त्रिस्तुतिक समाज के अग्रगण्य आचार्य है । आप सरल स्वभावी शान्तमूर्ति एवं समता के सागर हैं। आपकी वाणी में मधुरता हैं । आपका जीवन सादगी एवं सरलता से भरा हुआ हैं । आपके पास किसी भी बात के लिये कोई पकड़ या खींचातानी नहीं है । आप सभी भक्तों के साथ स्नेह का व्यवहार करते हैं । व छोटे बडे सभी को आशीर्वाद देते हैं । व सभी को अपना समझते हैं ।
साध्वाचार पालन में आप नियम के पक्के हैं । आपका जीवन नियमों से भरपूर हैं । कभी किसी भी प्रकार का आलस नहीं है । जैसे सुबह शीघ्र ही उठना, प्रतिक्रमण करना, देव दर्शन, स्वाध्याय, ध्यान आदि सभी प्रकार की क्रियाओं को इस 82 वर्ष की आयु में नियमपूर्वक करते हैं । किसी के भी इनके पास जाने के लिये आचार्यश्री के दरवाजे हर समय खुले रहते हैं । कोई भी व्यक्ति इनसे कभी भी मिल सकता हैं । जब भी चाहे मांगलिक व वासक्षेप ले सकता हैं | आचार्यश्री कहते हैं मैं श्रावकों के लिए व कभी भी किसी भी धार्मिक काम के लिये तैयार हूं। कभी कभी भक्त व श्रद्धालु लोग रात को भी आते हैं । आपकी वृद्ध अवस्था होते हुए भी आप कभी भी आलस्य या कष्ट महसूस नहीं करते हैं । और भक्तों को मांगलिक सुमाने को तैयार हो जाते हैं । और भक्तों को सन्तुष्ट करके भेजते हैं ।
इस वृद्धावस्था में भी आपकी स्मृति बहुत ही अच्छी है । इस उम्र में भी आपको दो प्रतिक्रमण पंच प्रतिक्रमण व कई पुरानी सज्झाय, स्तवन व स्तुतियाँ तो अनेक मुखाग्र हैं । पुरानी बातें व चुटकले भी काफी याद है । और हर बात को आप सत्यता पूर्वक बिना किसी प्रकार का छल कपट रखे साधारण भाषा में कहते हैं । जिसे सुनकर भक्त लोग गदगद हो जाते हैं । इस प्रकार की ये विशेषताएं आपकी विद्ववता के प्रमाण हैं ।
आपका जीवन सादगी एवं सरलता से भरा पड़ा है । आपको अपने पद का कोई गर्व नहीं है । आप तो समाज की सेवा व अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहते हैं । अतः आप अपनी आत्मा को पहले व बाद में दूसरी चीजों को देखते हैं । आप कभी भी कोई भी चीज की मांग नहीं करते हैं । कम से कम आवश्यकता से अपना जीवन चलाते हैं | ज्यादा परिग्रह रखना ही नहीं चाहते हैं | आप के पास जब कभी श्रावक लोग कोई भी प्रकार का लाभ मांगते हैं तो वे कहते हैं मेरे पास है, जरुरत होने पर ले लूंगा । कभी भी बिना जरुरत के कोई भी चीज न लेते हैं न मांगते है । आडंबर में भी आपको विश्वास नहीं हैं । आप कहते हैं। ज्यादा आंडम्बर मत करो यह तो महापाप है ।
शान्त स्वरूपी, सरल स्वभावी, हेमेन्द्र सूरीश्वर नाम है,
तेरी कृपा से गुरुवर, डूबती नैया पार है | दक्षिण देशे आये गुरुवर, धर्म का डंका बजाया है,
राणीबेन्नूर, टीपटूर प्रतिष्ठा में नाम आपने खूब कमाया है | आचार्य श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी एक अलौकिक एवं भद्रिक संत महात्मा है । आप त्यागी तपस्वी, मधुर भाषी एवं सरल स्वभावी है । आपको देश के महान् पुरुषों ने राष्ट्रसंत शिरोमणि की उपाधि से अलंकृत किया है । ये एक महान आत्मा है । आपका जन्म राजस्थान प्रान्त के जालोर जिले के गांव बागरा में हुआ । पोरवाल कुल में जैन जाति में जन्म किया। आपके पिताजी का नाम ज्ञानचन्द्रजी था एवं माताजी का नाम उजमबाई था । आपका परिवार धार्मिक परिवार था । आपके माता पिता ने बचपन से ही धार्मिक शिक्षण देकर उन्हें धर्म की ओर अग्रसर किया । जिससे बचपन से ही आपकी भावना वीतरागता की ओर अग्रसर होती रही । और आपने जीवन को त्याग व ज्ञान ध्यान में लगाया । जिसमें संसार से आपको नफरत हो गई व आपने अपने आत्मा का कल्याण करने की मन में ठान ली । व माता पिता से संसार छोडकर दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की । माता पिता ने उन्हें कुछ समय के लिए ठहरने के लिए कहा । आखिर उनका मन संसार में नहीं जाता था।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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