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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
( ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया
-नरेन्द्रकुमार रायचंदजी, बागरा
'पूर्ण पुरुष, विकसित मानव, तुम जीवन सिद्ध अहिंसक | मुक्त हो तुम, अनुरक्त हो तुम, जन जग वंद्य महात्मन् ।।
आस्था एवं निष्काम कर्म के नंदादीप -
संत कबीर कहते हैं कि 'दास कबीर जतन से ओढ़ि ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया । जीवन के उतार चढ़ाव और झंझावतों को समभाव से झेलते हुए अपनी श्वेत-शुभ चादर को बेदाग जैसी थी वैसी छोड़ देना विरले मानव के ही बुते की बात है । ऐसे ही विरले व्यक्तित्व है राष्ट्रसंत शिरोमणि मानवता के पोषक, प्रचारक और उन्नयाक, विन्रमता और ज्योतिर्मयी प्रज्ञा का अद्भुत योग, सरल मना आचार्यभगवत श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. । हेमेन्द्रसूरि होने का अर्थ है निःस्पृहता, निखालिसपन और सत्य की साक्षात मूर्ति । पुरुष होना सामान्य बात है, महापुरुष होना विशिष्ट बात है । जीवन जीना एक बात है, कलापूर्ण उपयोगितापूर्ण एवं परोपकारी जीवन जीना विशिष्ट बात है । यह वैशिष्ट्य आचार्य हेमेन्द्रसूरिजी के जीवन में उभरता है इसलिये उनका जीवन जन जन के लिये प्रेरणा स्रोत है, दिशासूचक यंत्र है । आध्यात्मिक दुष्काल और आत्म शिथिलता के इस युग में भौतिक सुखों के पीछे भागते इस संसार में वे आशा एवं विश्वास की वह अनवरत ज्योति है जो ज्ञान-दर्शन चारित्र की उपासना का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उदारता और निश्चलता से ओत-प्रोत हेमेन्द्रसूरिजी के भीतर एक सात्विक अग्नि है जो अपने चारों ओर फैली अनास्था आचरणहीनता अमानवीयता को भस्म कर देना चाहती है ।
"जिनकी आत्मा में जलता है दीपक सम्यक दर्शन का |
जन्म-जन्म तक आलौकित होगा पथ उनके जीवन का |" महावीर के अनेकान्तवाद, तथागत के करूणा की प्रतिमूर्ति -
जिस साधु या संत के पास जाने से कामना का जन्म हो, वासना को बल मिले वह सच्चा संत नहीं हो सकता । आत्मदर्शी
न्द्र सूरिजी के पास जाने से सिर्फ वासना कम ही नहीं होती मर जाती है | उनकी उपस्थिति मात्र से ही अंहकारी वृत्तियाँ दब जाती है और शुद्ध प्रवृत्तियाँ क्रियाशील हो जाती है । परम कारुणिक इस महामानव के संस्पर्श से ही मनुष्य में परमात्मा जाग उठता है । हेमेन्द्रसूरिजी के आत्मजयी व्यक्तित्व में अर्हत् तत्व प्रकाशित होते ही समाज में उसकी वात्सल्यभावी पुण्य-प्रमा संचरित हुई । जगतवल्लभ अचार्य हेमेन्द्रसूरिजी मानव जाति को असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमृत की
ओर अभिमुख करते है । आचार्यश्री के व्यक्तित्व में संवेदनशीलता, साहिष्णुता और उदारता की वृत्तियां मूल रूप से विद्यमान रही हैं जिसे अनेकान्त दृष्टि ने और भी गहनता एवं व्यापकता प्रदान की। उनके व्यक्तित्व की माखनी स्निग्धता, उज्ज्वलता भीतरी दुर्निवार आकांक्षा की प्रतिमूर्ति है | वे एक प्रयोग धर्मा अन्वेषक है, उनका जीवन एक चलती फिरती प्रयोगशाला है । उनकी दार्शनिकता तर्क से नहीं साक्षात्कार से आप्लावित है । वे अपने गुरु हर्षविजयजी म.सा. के कुशल हाथों की एक अनुपम कृति है। जीवन की परम ऊंचाइयों पर जो पुष्प खिलना संभव है, उन सबका दर्शन उनके व्यक्तित्व में सहज हो जाता है ।
"प्रेम-ममत्व भंडार अनोखा, बसा है आपके अंतर में | इसलिये तो स्नेहामृत बरसता, मनमोहक मधुर स्वर में |
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