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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
उत्साह देखते ही बनता था । इस अवसर पर अनेक ग्राम-नगरों के श्री संघ भी पधारे थे । वर्षावास काल में आहोर, भीनमाल, बागरा, सायला, रेवतडा राजगढ़ (धार) बम्बई खाचरोद आदि विभिन्न ग्राम नगरों के श्रीसंघ जावरा में एकत्र हुए और इन श्रीसंघों ने आचार्यश्री से एक स्वर में प. पू. गुरुदेव श्री के क्रियोद्धारक पाट पर विराजने की भावभरी विनती की । आचार्यश्री ने विनम्र शब्दों में उस पाट पर बैठने से मनाकर दिया तो श्रीसंघों का आग्रह और बढ़ गया । अंततः श्रीसंघों के अत्यधिक आग्रह को मान देकर आप क्रियोद्धारक पाट पर विराजित हुए।
इस वर्षावास काल में नवकार महामंत्र की आराधना तो हुई ही, साथ ही श्री राजेन्द्र जैन महासभा का सम्मेलन भी हुआ। मुनिराज श्री रवीन्द्रविजयजी म.सा. ने 42 उपवास की तपस्या की । पू. गुरुदेव श्रीमद विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा लिखित श्री कल्पसूत्र बालावबोध के तृतीय संस्करण का समारोहपूर्वक विमोचन भी हुआ । जिसके प्रकाशन में आहोर निवासी मुथा घेवरंचदजी जेठमलजी एवं पुखराजजी केशरीमलजी कंकू चौपड़ा का विशेष सहयोग रहा ।
मगसर शुक्ला नवमी को चौपाटी , जावरा पर श्री शंखेश्वर पार्श्व राजेन्द्र चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा निर्मित जैनमंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न करवाया । इसी दिन संघवी शांतिलालजी की सुपुत्री निर्मलाकुमारी की जैन भवगती दीक्षा सम्पन्न हुई और उन्हें साध्वी श्री दर्शनरेखाश्रीजी म. के नाम से प्रसिद्ध किया । दीक्षोपरांत पौष कृष्णा दशमी को श्री जीतमलजी केशरीमलजी लुंकड़ एवं श्री ऊंकारमलजी सागरमलजी वोरा की ओर से साढ़े तीन सौ व्यक्तियों का छरिपालक पैदल संघ श्री मोहनखेड़ा तीर्थ के लिये निकला । जावरा से नामली रतलाम, करमदी, धराड, बिलपांक, सूपाखेडा, धारसीखेडा, राजोद, लाबरिया, जोलाना, नरसिंहरेवला, सरदारपुर, राजगढ़ होते हुए संघ पौष शुक्ला तृतीया को श्री मोहनखेडा तीर्थ पहुंचा । तीर्थ की पावनभूमि पर संघमाल आदि कार्यक्रम हुए । पौष शुक्ला सप्तमी को गुरु सप्तमी पर्व विशाल स्तर पर मनाया गया ।
संवत 2042 का वर्षावास बागरा में किया। वर्षावास काल में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के अतिरिका तपस्यायें भी खूब हुई । गुरु सप्तमी पर्व भी यही समारोहपूर्वक मानाया गया ।
फाल्गुन शुक्ला 2 सं 2042 में मुनिराज श्री जिनेन्द्रविजयजी म. का दीक्षोत्सव सम्पन्न हुआ । फाल्गुन शुक्ला तृतीया सं 2042 को कविरत्न आचार्य श्रीमद विजय विद्याचन्द्र सूरिजी की प्रतिमा समाधि मंदिर में अतिथि रूप में प्रवेश करवाया गया। काकीनाड़ा श्रीसंघ के लिये श्रीगौतम स्वामी एवं गुरुदेव आदि जिन प्रतिमाओं का अभिषेक किया।
यहीं आपकी सेवा में आहोर श्री संघ का आगमन हुआ | श्री संघ आहोर ने आपकी सेवा में श्री गोड़ी पार्श्वनाथ के विशाल प्रांगण में निर्मित श्री सीमंधर स्वामी के जिनमंदिर के प्रतिष्ठांजनशलाका के लिये विनंती की। श्री विद्या विहार में निर्मित श्रीपार्श्वनाथ एवं गुरुमंदिर की प्रतिष्ठा के लिये भी विनंती की । आचार्यश्री ने इनके लिये शुभमुहूर्त प्रदान किया। तदानुसार श्री सीमंधरस्वामी के लिये सं. 2043 ज्येष्ठ शुक्ला षष्ठि एवं श्री विद्या विहार के लिये ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी का मुहूर्त प्रदान किया गया ।
श्री मोहनखेडा तीर्थ से राजस्थान की ओर मुनिमण्डल सहित विहार कर दिया । मार्गवर्ती ग्राम नगरों में जिनवाणी की वर्षा करते हुए आचार्यश्री ज्येष्ठ कृष्णा द्वितीया को आहोर में पधारे । आपके पधारते ही श्री संघ में उत्साह का संचार हो गया । समारोहपूर्वक आपका नगर प्रवेश करवाया गया । यहां दशान्हिका महोत्सव के साथ ही कार्यक्रम प्रारम्भ हो गये। यहां 200 जिनबिम्बों की अंजनशलाका, प्रतिष्ठा महोत्सव, विद्या विहार की प्रतिष्ठा आदि सब आपश्री के पावन सान्निध्य में सम्पन्न हुए । यहीं पर श्री शांतिलाल लक्ष्मणजी, श्री मांगीलाल लक्ष्मणाजी की ओर से बीस स्थानक तप का उद्यापन भी सम्पन्न हुआ ।
ज्येष्ठ शुक्ला षष्ठी को विभिन्न श्री संघों ने आचार्यश्री की सेवा में अपने अपने यहां वर्षावास करने की भावभरी विनतियां की । देशकाल परिस्थिति को ध्यान में रखकर और श्री संघ बागरा की अत्यधिक आग्रहभरी विनती को मान देकर आपने सं. 2043 के वर्षावास के लिये श्री मोहनखेड़ा तीर्थ को साधु भाषा में स्वीकृति प्रदान कर दी । अपने यहां वर्षावास की स्वीकृति मिलते ही श्रीसंघ मोहनखेड़ा तीर्थ जय जयकार कर उठा ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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