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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
गुण तेरे अपार कैसे गायूँ मैं
साध्वी रत्नरेखाश्री भारतवर्ष महापुरुषों का देश है । इस विषय में संसार का कोई भी देश या राष्ट्र भारत की समता नहीं कर सकता। यह अवतारों की जन्म भूमि हैं, संतों की पुण्य भूमि है, योगियों की योग भूमि है । वीरों की कर्म भूमि हैं और विचारकों की प्रचार भूमि हैं । इस भूमि पर ऐसे अनेक नवरत्न, समाज रत्न, राष्ट्ररत्न पैदा हुए है, जिन्होंने मानव मन की सूखी भूमि पर स्नेह की सरस सरिता प्रवाहित की । जन जीवन में अभिनव जागृति का संचार किया । भ. महावीर स्वामी के शासन में समय समय पर तेजस्वी वर्चस्वी ओजस्वी एवं साधना शील युग पुरुषों का जन्म होता रहा । भारत की शस्य -श्यामला वसुन्धरा पर एक ऐसे युग पुरुष का जन्म हुआ, जिनके व्यक्तित्व में अगाध सागर सा गांभीर्य है, देदीप्यमान दिवाकर की प्रकाशशीलता है, कलानिधि चन्द्र की सौम्यता है, उत्तुंग हिमाद्री की अचलता, धारित्री की क्षमाशीलता, वायु की सी प्रचण्ड गतिशीलता और अग्नि की सी तेजस्विता है । पू. गुरुदेव अपने हृदय की निर्मलता, मन की विराटता अन्तकरण की उदारता, बुद्धि की विवेकशीलता, बालक की सी सरलता करुणा की संवेदनशीलता के कारण जन जन के श्रद्धेय एवं आदरणीय बन गये । वे महापुरुष हैं राष्ट्रसंत शिरोमणि वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. | आपका जन्म बागरा (राज.) में हुआ । माता उज्जमबाई के हाथों आपका पालन पोषण हुआ । श्री ज्ञानचन्दजी को पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । माता पिता ने अपने बच्चे का नाम पूनमचन्द रखकर बहुत सपने संजोए थे और वे मन ही मन सोच रहे थे
हमारे सुखों का खिलौना है ।
हमारे घर का चिराग है || हमारे बुढापे की बागडोर है |
यह तो भ. की कृपा कोर है || पूनमचन्द बड़े लाड़ प्यार से बड़े हुए । सर्व गुण संपन्न थे । बागरा के ये पूनम बाल्यकाल से ही बुद्धि तथा प्रतिभा के धनी रहे हैं । गृहस्थ जीवन से श्रमण जीवन में प्रवेश ही आपका अपनी क्षमताओं का सही मूल्यांकन था। बाल्यकाल के जाते जाते किशोरावस्था ने ही वैराग्य का रंग ओढ़ लिया । दीक्षा के पश्चात आपने अपना सम्पूर्ण समय अध्ययन मनन एवं गुरु सेवा में लगाया । आपके चिंतन में गंभीरता, सरलता, नम्रता आदि गुणों का बहुत बड़ा भण्डार है । आपके ज्ञान की तेजस्विता साधनामयी पवित्र प्रभावशाली वाणी की मधुरता और सरलता की मन मोहक छवि लाखों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र है । आपका जीवन उस महकते हुए पुष्प की तरह हैं जो स्वयं तो तीखे कांटो से घिरा रहता हैं परन्तु दूसरों को सुगंध बांटता रहता है । आज के युग में गुरुदेव जैसे महापुरुष मिलना मुश्किल है।
"गुरुवर आप के चरणों में, जब मैं शीश झुकाती हैं |
नही बता उस को सकती, जो परमानंद मैं पाती हूं' || 18 वर्ष तक गुरुदेव के संपर्क में साथ रहकर मुझे पूर्ण ज्ञात हुआ कि गुरुदेव ज्ञान ध्यान तप जप क्रिया अनुष्ठान, रात्रि 2 बजे उठकर जाप करते हैं । वृद्धावस्था होने के बावजूद भी अभी तक संपूर्ण क्रिया खडे खड़े करते है । अपनी क्रिया में जितने आप अटल हैं । उतने वर्तमान काल में मिलना कठिन है ।
। त्रिस्तुतिक संघ की खान से हीरा निकला जो कलाकार पू. मुनि प्रवर श्री हर्षविजय जी म.सा. के अमित वात्सल्य और पैनी दृष्टि रूप नजरों से तराशा गया । महानता का स्पर्श पाकर महान बन गया । और आज त्रिस्तुतिक संघ समाज के मुकुट पर समलंकृत हो गया । यह सच है कि प.पू. श्री हर्षविजयजी म. के सुदक्ष करों की कुशल तूलिका से निर्मित वह भव्यकृति अपने आप में विराट अनोखी, अमिट, अनुपम और अद्वितीय है । आप की दिव्यता और भव्यता की थाह पाना अगम्य है।
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