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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
राणीबेन्नूर वर्षावास :
जिस समय राष्ट्रसंत श्री आदि मुनिमण्डल एवं साध्वी मण्डल के साथ हुबली पधारे, उस समय आपके यहां पदार्पण की सूचना न केवल राणीबेन्नूर वरन् आसपास के विभिन्न ग्राम नगरों तक पहुंच चुकी थी । परिणाम स्वरूप जितने दिन आप हुबली में विराजमान रहे, वहां दर्शनार्थियों का सतत आवागमन बना रहा । राणीबेन्नूर श्री संघ ने गुरुभक्तों का तो अब प्रतिदिन आपकी सेवा में आना बना रहा । यह क्रम आपके राणीबेन्नूर पदार्पण तक बना रहा।
परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. एवं पू. कोंकण केसरी मुनिराज श्री लेखेन्द्र शेखर विजयजी म.सा. ठाणा 7 तथा साध्वीजी श्री विमलयशाश्रीजी म.सा आदि ठाणा हुबली से विहार कर मार्गवर्ती ग्राम-नगरों को पावन करते हुए दिनांक 18-7-1999 को वर्षावास के लिए राणीबेन्नूर पधारे । हजारों गुरुभक्तों के साथ आपका समारोहपूर्वक भव्यातिभव्य नगर प्रवेश हुआ । वर्षों से जिस दिन की प्रतीक्षा यहां के गुरुभक्त कर रहे थे, वह स्वप्न आज साकार हुआ । नगर के विभिन्न मार्गों से होता हुआ नगर प्रवेश का चल समारोह वर्षावास स्थल पहुंचा। इस अवसर पर पूरे नगर का उत्साह एवं उमंग देखने योग्य था । अनेक स्थानों पर आपके स्वागत में गवलियाँ की गई । इस प्रवेशोत्सव के अवसर पर पू. आचार्यश्री तथा मुनिमण्डल साध्वी मण्डल की अगवानी करने के लिये दक्षिण भारत के राज्यों से अनेक श्रीसंघ तथा कर्नाटक के मंत्रीगण आये थे। यह चल समारोह जैन आराधना भवन पहुंचकर धर्मसभा में परिवर्तित हो गया । यहां सर्वप्रथम भगवान श्री सुविधिनाथ व विश्वपूज्य गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. को माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित किया गया । तत्पश्चात् श्री संघ के अध्यक्ष श्री भंवरलाल भण्डारी ने स्वागत भाषण दिया । पू. राष्ट्रसंत श्री के मंगलाचरण के पश्चात् श्री कोंकण केसरीजी म. का प्रेरक प्रवचन हुआ ।
स्वागत समारोह की औपचारिकता पूर्ण होने के पश्चात् चढावे बोले गये । पू. आचार्यश्री को काम्बली औढ़ाने का लाभ 2 लाख 51 हजार रुपयों में श्री चम्पालालजी श्री हुक्मीचंदजी, श्री सोहनलालजी बागरेचा, रायचन्द हुक्मीचंद एण्ड कम्पनी वालों ने लिया । गुरु पूजन का लाभ भीनमाल निवासी श्री पृथ्वीराज लकलचन्दजी परिवार मुम्बई वालों ने लिया । पू. राष्ट्रसंत श्री के प्रथम बार कर्नाटक में आगमन पर से रू. 101 की प्रभावना श्रीसंघ की ओर से हुई। इस अवसर पर बेंगलोर, चित्रदुर्ग, बीजापुर, मैसूर, दावणगिरि, चेन्नई, मुम्बई, पूना, बेल्लारी, शिमोगा, हुबली आदि विभिन्न ग्राम नगरों से श्री संघों का आगमन हुआ था । आपके यहां पधारते ही वर्षावास कालीन धार्मिक कार्यक्रम प्रारम्भ हो गये । इसके साथ ही यहां दर्शनार्थियों का भी सतत् आवगमन प्रारम्भ हो गया । राष्ट्रसंतश्री एवं मुनिमण्डल के दर्शनार्थ केन्द्रीय उड्डयन मंत्री श्री अनंतकुमार तथा कन्नड फिल्म जगत के प्रसिद्ध अभिनेता श्री श्रीनाथ जैन आराधना भवन पधारे । राजस्थान जैन श्री संघ की ओर से दोनों महानुभावों का राजस्थानी परम्परानुसार स्वागत सम्मान किया गया ।
राणीबेन्नूर वर्षावास काल में तीन दिन तक श्री शंखेश्वर भगवान का जाप अखण्ड रूप से चला । श्री नवकार महामंत्र की सामूहिक आराधना में 175 आराधकों न भाग लिया । इस वर्षावास में तपस्याओं की तो जैसे झड़ी ही लगगई थी । मासखमण, सोलह, पन्द्रह, ग्यारह दस, नौ की तपस्या के साथ अट्ठाइयों की तो लडी ही लग गई थी । शत्रुजय तप, आयंबिल तथा चंदनबाला अट्ठम तप भी खूब हुए । श्री नवकार महामंत्र की आराधना के समय सिद्धचक्र पूजन का भी आयोजन हुआ। यहाँ ज्ञान शिविर का आयोजन भी हुआ जिसका संचालन मुनिराज श्री लाभेशविजयजी म. ने किया । यहां और भी अनेक कार्यक्रम सम्पन्न हुए। इन कार्यक्रमों में सभी भक्तों ने पूर्ण उत्साह के साथ भाग लिया ।
यहां पू. राष्ट्रसंतश्री जी म. तथा कोंकण केसरीजी म.सा. तथा पू. साध्वी मण्डल के पावन सान्निध्य में प.पू. पन्यास प्रवर स्व. श्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा. गणिवर्य की पुण्यतिथि भी धूमधाम से मनाई गई । गुणानुवाद सभा में विभिन्न वक्ताओं ने उनका स्मरण करते हुए अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये । पूज्यश्री की स्मृति में गरीबों को भोजन भी करवाया गया । इस प्रकार राणीबेन्नूर का वर्षावास सभी दृष्टि से सफल रहा । दक्षिण भारत में निवास कर रहे गुरुभक्तों की धार्मिक भावना को आपके दक्षिण भारत की धरती पर वर्षावास करने से काफी सम्बल मिला । उनकी वर्षों की आस पूरी हो गई । वर्षावास समाप्त हुआ । राणीबेन्नूर से विहार का दिन आ गया । सभी गुरुभक्त आश्चर्यचकित रह गये । वर्षावास के चार माह इतनी जल्दी व्यतीत हो गये । किसी को कुछ पता ही नहीं चल पया ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेगेन्द्र ज्योति
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