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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
में अधिक वृद्धि हुई। यहां से आपने विहार कर दिया और तणुकु, निरदवोलु में प्रतिष्ठा को जाजम का शुभमुहूर्त प्रदान किया। फिर विहार कर आपका पदार्पण पेदीमीरम तीर्थ पर हुआ। यहां आपके सान्निध्य में गुरु सप्तमीपर्व समारोहपूर्वक मनाया गया। साथ ही यहां आपके ही सान्निध्य में प्रतिष्ठा महोत्सव के चढ़ावे की जाजम भी हुई।
यहां से विहार कर आप तणुकुनगर पधारे। आपके यहां पधारने से गुरुभक्तों की वर्षों की भावना साकार हुई । यहां आपके सान्निध्य में माघ शुक्ला 6 को भगवान श्री शांतिनाथ भगवान, श्री गौतमस्वामी एवं गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा अष्टाहिका महोत्सव सहित सानन्द सम्पन्न हुई। यहां से विहार कर आप निरदवोलु नगर पधारे जहां आपका 19वां आचार्य पाट महोत्सव माघ शुक्ला 9 को हजारों गुरुभक्तों की उपस्थिति में हर्षोल्लासमय वातावरण में मनाया गया। यहां पर आपके सान्निध्य में पंचाह्निका महोत्सव सहित भगवान श्री श्रेयांसनाथ जिनमंदिर एवं श्रीमद् राजेन्द्रसूरि, श्रीमद् विद्याचंद्रसूरि गुरुमंदिर की प्रतिष्ठा भी सानन्द सम्पन्न हुई। यहां से विहार कर आप राजमहेन्द्री पधारे। जहां माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन भगवान श्री सुमतिनाथ, गुरुदेव श्रीमद् राजेन्द्रसूरिजी, श्री शांतिसूरिजी के मंदिर का शिलान्यास भव्य समारोह के साथ सम्पन्न हुआ। यहीं पर फाल्गुन कृष्णा प्रतिपदा को भगवान श्री सुमतिनाथ के जिनमंदिर का भूमिपूजन भी करवाया गया।
राजमहेन्द्री के कार्यक्रम सम्पन्न कर आपने यहां से विहार कर दिया। रामचंद्रपुरम, द्राक्षावरम, काकीनाड़ा, सामलकोटा, पीठापुर, पेदापुर आदि मार्गवर्ती ग्राम-नगरों में विचरण करते हुए आप विशाखापट्टनम पधारे, जहां आपकी पांच दिन तक स्थिरता रही। इस अवधि में यहां अच्छी धर्मप्रभावना हुई। फिर यहां से विहार कर आपका पदार्पण विजयनगरम हुआ, जहां भगवान श्री संभवनाथ आदि जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा पंचाह्निका महोत्सवपूर्वक चैत्र शुक्ला 9 को आपके सान्निध्य में सानन्द सम्पन्न हुई। यहीं पर आपकी सेवा में बीजापुर, हुबली, चित्रदुर्ग, विशाखापट्टनम, काकीनाड़ा, विजयनगरम आदि स्थानों के श्रीसंघों ने वर्षावास के लिये विनती की। सन् 2002 के वर्षावास के लिए देशकाल परिस्थिति को देखते हुए आपने काकीनाड़ा श्रीसंघ को साधु भाषा में स्वीकृति प्रदान कर दी। इस स्वीकृति से काकीनाड़ा श्रीसंघ में हर्ष की लहर व्याप्त हो गई।
विजयनगर से विहार कर आप विशाखापट्टनम पधारे जहां शासनपति भगवान महावीर की 2600वीं जन्म जयंती आपके सान्निध्य में बड़े ही हर्षोल्लासमय वातावरण में भव्य रूप से मनाई गई। यहां से विहार कर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए आप पेदीमीरम तीर्थ पधारे। यहां आपके सान्निध्य में अक्षय तृतीया के दिन वर्षी तप के पारणे हुए और यहीं पर ऐतिहासिक एवं भव्य गुरुमंदिर में प्रभुजी राजेन्द्रसूरिजी म. की प्रतिमा की प्रतिष्ठा वैशाख शुक्ला 13 को समारोहपूर्वक सम्पन्न हुई। यहां से विहार कर आप तणुकु, निदरवोलु, राजमहेन्द्री आदि मार्गवर्ती ग्राम-नगरों में धर्मजागृति करते हुए गुम्मीलेरू पधारे। यहां त्रिदिवसीय भक्ति महोत्सव का आयोजन आपके सान्निध्य में हुआ। यहीं पर गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का क्रियोद्धार दिवस एवं पू. तपस्वीरत्न मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. की पुण्यतिथि समारोहपूर्वक मनाई गई। श्रमण पूतपस्वीरत्न मुनिराज हमारे ग्रंथनायक राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के दीक्षा गुरु थे।
यहां से आपका विहार मुनिमंडल सहित रामचंद्रपुरम् डाथावरम् आदि मार्गवर्ती ग्राम-नगरों में होते हुए • वर्षावास के लिए काकीनाड़ा की ओर हुआ । वर्षावास के लिये दिनांक 15 जुलाई 2002 को समारोहपूर्वक आपका प्रवेश हुआ और उसी के साथ यहां वर्षावास कालीन धर्माराधनाएं प्रारम्भ हो गई।
पू. आचार्यश्री के काकीनाड़ा में प्रवेश के साथ ही यहां चातुर्मासिक आराधनाएं प्रारम्भ हो गई। इस चातुर्मास में सदैव ही भांति श्री नवकार महामंत्र की आराधना हुई। पर्युषण महापर्व के अवसर पर भी धर्माराधना हुई। इस वर्षावास का एक दुःखद पक्ष भी रहा। दिनांक 29-8-2002 को एकाएक पूज्य मुनिराजश्री प्रीतेशचंद्रविजयजी म.सा. का स्वर्गवास हो गया। मुनिराजश्री के एकाएक स्वर्गवास से न केवल काकीनाड़ा में वरन् देशभर में फैले गुरुभक्तों में शोक की लहर व्याप्त हो गई।
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