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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
2. राजनैतिक विवरण :
इसके अन्तर्गत राजा, राजा की शिक्षा, दैनिक चर्या, राजा के कर्तव्य, राज्य के अन्य पदाधिकारी और उनके कर्तव्य, गुप्तचर व्यवस्था, राज्यों में पारस्परिक सम्बन्ध, युद्ध, युद्ध को टालने के प्रयास, युद्ध में प्रयुक्त अस्त्र शस्त्र, पराजित राजा के साथ व्यवहार । कानून, कानून के स्रोत, न्याय व्यवस्था, अपराध, दण्ड का स्वरूप, कारागार, कारागार में कैदियों के साथ व्यवहार आदि आदि । 3. आर्थिक विवरण :
राज्य की आय के स्रोत, राज्य की आर्थिक स्थिति, समाज की आर्थिक स्थिति, कृषि, पशुपालन, व्यापार, स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय व्यापार, आयात निर्यात नियम आदि । नाप-तौल, मुद्रा आदि । उद्योग धंधे, उद्योग धंधे में कार्यरत श्रमिकों की दशा । 4. धर्म एवं दर्शन :
इस बिन्दु के अंतर्गत धर्म की अवधारणा, समाज में प्रचलित धर्म, समयग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र, पंच महाव्रत (अहिंसा, सत्य अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य), तप, तप का महत्व, तप से मिलने वाली उपलब्धियां, आचार, श्रमणाचार, श्रावकाचार, कर्म सिद्धांत, पुनर्जन्म विषयक मान्यता, ईश्वर सम्बन्धी, धारणा एवं विवरण व्रतादि। अन्य धार्मिक विवरण/सद्गुणों का विवरण, सामायिक प्रतिक्रमण आदि । तथा इसी प्रकार अन्य धार्मिक पर्वो आदिके विवरण को भी इसके अन्तर्गत लिया जा सकता है । अन्य धर्मो का विवरण यदि हो । दार्शनिक चिंतन :- आत्मा, तत्व, सृष्टिवाद, अनेकांत एवं स्याद्वाद । अन्य भारतीय दर्शनों के विवरण यदि हों । 5. कला विषयक विवरण :
इसमें पुरुषोचित कलायें, स्त्रियोचित कलाऐं लेना है । तत्कालीन समाज में प्रचलित कलायें, कलाकार का समाज में स्थान, संगीतकला, नृत्यकला, चित्रकला । नगर रचना, भवन निर्माण कला तथा अन्य कलायें। 6. पर्यावरण :
पर्यावरण का अर्थ बताते हुए आचार्यश्री की रचनाओं में पर्यावरण विषयक मिलने वाले विवरण को प्रस्तुत करना । 7. उपसंहार :
अंत में उपसंहार में रूप में समग्र रूप से मूल्यांकन प्रस्तुत करना ।
यहां यह आशंका अभिव्यक्त की जा सकती है कि काव्य साहित्य में इस प्रकार का विवरण कैसे मिल सकता है । तो आशंका का निवारण करते हुए हम यहां कुछ उद्धरण प्रस्तुत कर अपने मत की पुष्टि करना चाहेंगे । यहाँ हम यह भी स्पष्ट उल्लेख करना अपना कर्तव्य समझते हैं कि इस समय हमारे समक्ष आचार्य श्री की काव्यकृतियाँ उपलब्ध नहीं है, जो भी उपलब्ध है उसी आधार पर ये उद्धरण दिये जा रहे है । यथा :
आचार्य श्री द्वारा रचित श्री शांतिनाथ महाकाव्य को ले लीजिये । इस काव्य की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए पं. शितिकण्ठ शास्त्री साहित्याचार्य ने अपनी भूमिका में लिखा है - इसकी एक विशेषता यह भी है कि - यह काव्य सही रूप में जैन सिद्धांत के कर्म एवं पुनर्जन्मवाद का परम पोषक है - क्योंकि इसकी रचना कल्पना के आधार पर नहीं अपितु वास्तविक रूप में घटित सत्य कथानक के आधार पर हुई है । (पृ. 11) इस महाकाव्य में यज्ञोपवीत संस्कार का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है ।
थे नन्दीमुनि लघुवय श्रीमुनि पुत्रों उसी के, थे अभ्यासी धरगिजर से पुत्र दोनों सुभागी । दोनों यज्ञोपवित पहिनी शास्त्रबोधी बने थे, था दासी पुत्र कपिल उसे दी नहीं थी सुदीक्षा ||
प्रस्तुत पंक्तियों में यज्ञोपवीत के साथ ही यह भी बताया गया कि दासीपुत्र को शिक्षा नहीं दी जाती थी । यह समाज दर्शन के अंतर्गत उल्लेख करने योग्य भी है ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेगेन्द्र ज्योति 14
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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