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श्री राष्ट्रसंत शिरामणि अभिनंदन गंथ
मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. ने भीनमाल चातुर्मास मुनिराज श्रीललितविजयजी म. एवं मुनिराज श्री हेमेन्द्रविजयजी म. के साथ विविध धार्मिक कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न किया । चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् आपने यहां से विहार कर दिया और विभिन्न क्षेत्रों में धर्म प्रभावना करते रहे । सं. 2000 का वर्षावास आपने मारवाड़ के मंडवारिया में सम्पन्न किया । वर्षावास के पश्चात् विहार कर थराद क्षेत्र में पधारे और वहां लोवाणा में प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई ।
सं. 2001 का चातुर्मास आपने थराद में सम्पन्न कर धर्म की गंगा प्रवाहित की । चातुर्मास के पश्चात् श्री ऋषभदेव भगवान की प्रतिष्ठा का मुहूर्त प्रदान किया । आपने अपने उपदेश से थराद में पू. स्व. गुरुदेव आचार्य श्रीमद विजय राजेन्द्र सूरीजी म., पू. स्व. आचार्य श्रीमद विजय धनचंद्र सूरिजी म. एवं पू. स्व. आचार्य श्रीमद विजय भूपेन्द्र सूरिजी म. की प्रतिमाओं की स्थापना करवा कर गुरुमंदिर बनवाने की प्रेरणा प्रदान की । संघ ने आपकी आज्ञा स्वीकार कर गुरुमंदिर बनवाना मान लिया । और फाल्गुन शुक्ला पंचमी सं. 2002 को समारोह पूर्वक तीनों गुरुदेवों की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई । इसी प्रकार आपके सान्निध्य में थराद में श्री ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा की भी महोत्सवपूर्वक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । वर्षीतप का पारणा वैशाख 3 :
थराद का प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न होने के पश्चात मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. ने मुनिराज श्री ललितविजयजी म. एवं श्री मुनिराज श्री हेमेन्द्रविजयजी म. के साथ सिद्धाचल की ओर विहार किया । तीर्थाधिराज शत्रुजय गिरिराज पधारने पर आप चम्पा निवास धर्मशाला में पधारे, जहां गुरुदेव विराजमान थे । यहां मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. ने वर्षीतप का पारणा कर अपना 59वां जन्म दिवस अमर बनाया । सं. 2003 का चातुर्मास आपने अपने शिष्यों सहित यही पर व्यतीत किया । आपके पावन सान्निध्य में अनेक श्रावक श्राविकाओं ने चातुर्मासिक धर्माराधना की । आचार्यश्री की सेवा में :
सं. 2004 का चातुर्मास आचार्यदेवेश श्रीमदविजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का थराद में स्वीकृत हो चुका था। आचार्य भगवन का स्वास्थ्य कुछ अस्वस्थ चल रहा था । एक दिन उनका स्वास्थ्य कुछ अधिक ही अस्वस्थ हो गया। आचार्यश्री की अस्वस्थता की सूचना पालीताणा में विराजित मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. को दी गई। मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. को तीन तीन आचार्यदेवों की सेवा का लाभ मिल चुका था । आचार्य भगवन की अस्वस्थता की सूचना मिलते ही मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. उग्रविहार कर पालीताणा से थराद पू. आचार्य भगवन श्रीमदविजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. की सेवा में पधार गये । सं. 2004 का चातुर्मास आपने आचार्य भगवन के सान्निध्य में किया। आपने आचार्य भगवन की सेवा का अच्छा लाभ लिया । जब तक आचार्यश्री स्वस्थ नहीं हो गये तब तक आप बराबर उनके समीप तत्पर बने रहे । वे आचार्य के साथ ही ज्येष्ठ गुरुभ्राता भी थे। विहार एवं प्रतिष्ठाएं :
आचार्य श्रीमदविजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. की आज्ञा से चातुर्मास पश्चात सं. 2005 मगसर शुक्ला दशमी को पीलुडा प्रतिष्ठा आपने सानंद प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई । पीलुड़ा में प्रतिष्ठा करवा कर आप नैनावा पधारे और माघ शुक्ला पंचमी को प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई ।
सं 2005 का चातुर्मास मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. ने मुनिराज श्री हेमेन्द्रविजयजी म. मुनिराज श्री विमलविजयजी म. एवं मुनिराज श्री रसिकविजयजी म. के साथ आहोर में सम्पन्न किया । सं. 2006 का चातुर्मास भीनमाल में सम्पन्न कर सं. 2007 माघ शुक्ला त्रयोदशी को दासप्पा में प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई । वहां से भीनमाल पधारे और फिर कागमाला पधार कर जिनेश्वर भगवान की पांच प्रतिमाओं की समारोहपूर्वक प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई।
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