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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
श्रावक-श्राविकायें दर्शनार्थ उपस्थित होते । गुरुदेव एवं वरिष्ठ मुनि भगवंतों के दर्शन करते, आपके निकट भी दर्शनार्थ आते। आपसे कुछ बातें भी करने का प्रयास करते तो आप गुरुदेव की ओर संकेत कर देते । आपने इस वर्षावास में सम्पर्क बढाने, परिचय करने में कोई रुचि प्रदर्शित नहीं की । आपका पूरा ध्यान गुरुदेव द्वारा सौंपे गए कार्य को ठीक प्रकार से सम्पन्न करने उनकी सेवा करने और अपना अध्ययन करने में ही व्यतीत होता । इस प्रकार आपका प्रथम वर्षावास व्यतीत हुआ । वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् अपने गुरुदेव के साथ आपका भी भीनमाल से विहार हो गया ।
शेषकाल में आप अपने गुरु भगवंत के साथ गुमानुग्राम विचरण करते रहे । समयानुसार अध्ययन भी चलता रहा । हिन्दी तो आपकी मातृभाषा ही है । आपने गुरुदेव के सान्निध्य में रहते हुए मुनि जीवन की क्रियाओं को सीखने के साथ ही संस्कृत और प्राकृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करना भी प्रारम्भ कर दिया । विहारकाल में वैसे भी समयाभाव रहता है और अध्ययन के लिए अनुकूलता नहीं रहती है । फिर भी जहां कहीं भी अनुकूलता मिलती आप अपने अध्ययन में लग जाते। उसी बीच पौष शुक्ला सप्तमी आगई । यह दिन प्रातः स्मरणीय विश्व पूज्य गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की जन्मतिथि एवं पुण्य तिथि है । इस तिथि को आज तो बहुत ही भव्यरूप से विशाल स्तर पर स्थान - स्थान पर मनाया जाता है । उस समय भी गुरु सप्तमी मनाई गई। इसमें भी आपको बहुत कुछ सीखने को मिला ।
अपने गुरुदेव के साथ ग्राम-ग्राम, नगर-नगर में विचरण कर धर्मप्रचार करने में सहायक बनकर आप अपना सेवा कार्य भी यथावत करते रहें । सं 2000 का वर्षावास आपने मारवाड़ के आहोर गांव में सम्पन्न किया । अपने मुनि जीवन का आपका यह दूसरा वर्षावास था । विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के साथ यह वर्षावास सानन्द सम्पन्न हुआ और वहां से विहार कर आप अपने गुरुदेव के साथ थराद क्षेत्र में पधारे तथा वहां लुवाणा में हुई प्रतिष्ठा में सहयोग प्रदान किया । आपके सामने यह प्रथम प्रतिष्ठोत्सव था । अतः इस अवसर पर होनेवाली प्रत्येक क्रिया को आपने ध्यानपूर्वक देखा और समझा।
सं. 2001 का आपका वर्षावास अपने गुरुदेव के सान्निध्य में गुड़ा में व्यतीत किया । गुड़ा के गुरुभक्त समर्पित श्रद्धालु है । यहां वर्षावास के चारों माह धर्म की पावन गंगा प्रवाहित होती रही। इस वर्षावास के पष्चात गुरुदेव तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. ने थराद श्री संघ को प्रातः स्मरणीय पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. पू. गुरुदेव आचार्य श्रीमद विजय धनचन्द्र सूरीश्वरजी म. एवं पू. गुरुदेव आचार्य श्रीमद विजय भूपेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की प्रतिमाओं की स्थापना करवाकर गुरुमंदिर बनवाने की प्रेरणा प्रदान की । आपकी प्रेरणा से श्रीसंघ ने गुरुमंदिर का निर्माण कर प्रतिष्ठा करवाना स्वीकार कर लिया। थराद में भगवान ऋषभदेव की प्रतिष्ठा भी तपस्वी मुनिराज श्री हर्षवियजी म. तथा आपके पावन सान्निध्य में समारोह पूर्वक सानंद सम्पन्न हुई । उस अवसर पर आपने पूर्ण उत्साह के साथ प्रतिष्ठा के कार्य सम्पन्न करवाये । थराद का प्रतिष्ठोत्सव सम्पन्न हुआ और आपने अपने गुरुदेव तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. एवं मुनिराज श्री ललितविजयजी म. के साथ सिद्धाचल की ओर विहार कर दिया । तीर्थाधिराज शत्रुजय गिरिराज पधारने पर आप चम्पा निवास धर्मशाला में बिराजे । यहां आपश्री का अक्षय तृतीया पर वर्षीतप का पारणा सम्पन्न हुआ । इसी दिन गुरुदेव का 59 वां जन्म दिन भी मनाया गया। सं. 2002 का वर्षावास आपका गुरुभगवंतों के साथ यहीं विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न हुआ । मुनिमण्डल के सान्निध्य में अनेक श्रावक-श्राविकाओं को वर्षावास भी हुआ । स्मरण रहे यह तीर्थ जैनधर्मावलम्बियों का प्रमुख तीर्थ है और प्रति वर्ष वर्षावास के लिए यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और वर्षावास कालीन धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न कर अपना मानव जीवन सफल बनाने का प्रयास करते हैं । इस महान तीर्थ स्थान पर आपका प्रथम बार आगमन हुआ था । यहां की धर्माराधना की धूमधाम देख कर और शासनदेव तीर्थाधिपति के दर्शन का आप अभिभूत हो गये थे । यहां के मन्दिर समूहों की भव्यता देखकर आपका हृदय गद्गद् हो गया था । इस प्रकार विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के साथ वर्षावास समाप्त हुआ । वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् भी आप कुछ समय यहीं
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