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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
त्यागी तपस्वी संयम पारखी गुरुवरजी,
ए ज्ञान गुणों रा दरिया आप हो जी
उपदेशे कई भविजन बोधिया गुरुवरजी, ए जैन शासन रा शणगार हो जी
ज्योत जलाई थे तो ज्ञान री गुरुवरजी, ए कीधा हे शासन रा घणा काम हो जी मुक्ति से मारगिया देखाडीयो गुरुवरजी, ए नहीं रे भूले ओ जग उपकार हो जी
वंदन स्वीकारो घणुं विनवुं गुरुवरजी, ए संघ सकल सरातज हो जी
अन्तकरण री अर्जी सांभलो गुरुवरजी,
ए हेमेन्द्र सूरीश्वर गुरु महाराज हो जी
अभिनंदन
ज्ञानचन्द ने ज्ञान बिखेरा, मां उजमां ने उपजाया ।
भीनमाल का माल मुकम्मिल हेमेन्द्र विजय कहलाया ।
मोहनखेडा उद्यान सुचि, अद्भुत षटपद गुंजन ।
बुहारा पन्थ बागरा भूने, पूनम तब प्रगटाया ।।
हीरा-सा जगमगाय, आज्ञा चक्र चिरन्तन ।
यह हर्ष सहर्ष प्रताप, कि विजय राजेन्द्र पदपदपाया ।।
धीर ने वीरों री
हेमचन्द्र की अमर ज्योत्सना, जगमग जग में छाये ।
धीर ने वीरों री
गच्छाधिपति गुण गान, समाज का शत शत वंदन ।।
हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
धीर ने वीरों री
त्रिस्तुतिक समाज का चक्र षट विध, वीतराग दर्शाये ।
-सोहनलाल 'लहरी, खाचरौद
कुण्डलनी जागरण, अमर लहरी अभिनंदन ||
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मंद मंद मुस्कान सदा, मंगल वर्षा बन जाये ||
घर घर मानवता निबजाकर, जैन जगत हर्षाये ।।
हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति