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GURUSAGE
श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय गुर्वावली ।
पूज्यपाद व्याख्यानवाचस्पति, लक्ष्मणीतीर्थोद्धारक आचार्यवर्य श्रीयतीन्द्र सूरीश्वरान्तेवासि स्व. मुनि देवेन्द्रविजय 'साहित्यप्रेमी'
शासनपति श्री महावीरस्वामी
1. श्री सुधर्मस्वामीजी 2. श्री जम्बूस्वामीजी 3. श्रीप्रभवस्वामीजी 4. श्रीशय्यंभवसूरिजी 5. श्रीयशोभद्रसूरिजी 6. श्रीसंभूतिविजयजी, श्रीभद्रबाहुस्वामीजी 7. श्रीस्थूलिभद्रसूरिजी 8. श्रीआर्यमहागिरिजी, श्रीआर्यसुहस्तिसूरिजी 9. श्रीसुस्थितसूरिजी, श्रीसुप्रतिबद्धसूरिजी 10. श्रीइन्द्रदिन्नसूरिजी 11. श्रीदिन्नसूरिजी 12. श्रीसिंहगिरिसूरिजी 13. श्रीवज्रस्वामीजी 14. वज्रसेनसूरिजी 15. श्रीचन्द्रसूरिजी 16. श्रीसामंतभद्रसूरिजी 17. श्रीवृद्धदेवसूरिजी 18. श्रीप्रद्योतनसूरिजी 19. श्रीमानदेवसूरिजी 20. श्रीमानतुंगसूरिजी 21. श्रीवीरसूरिजी 22. श्रीजयदेवसूरिजी 23. श्रीदेवानन्दसूरिजी 24. श्रीविक्रमसूरिजी 25. श्रीनरसिंहसूरिजी 26. श्रीसमुद्रसूरिजी 27. श्रीमानदेवसूरिजी 28. श्रीविबुधप्रभसूरिजी 29. श्रीजयानन्दसूरिजी 30. श्रीरविप्रभसूरिजी 31. श्रीयशोदेवसूरिजी 32. श्रीप्रद्युम्नसूरिजी 33. श्रीमानदेवसूरिजी 34. श्रीविमलचन्द्रसूरिजी 35. श्रीउद्योतनसूरिजी 36. श्रीसर्वदेवसूरिजी 37. श्रीदेवसूरिजी 38. श्रीसर्वदेवसूरिजी 39. श्रीयशोभद्रसूरिजी, श्रीनेमिचन्द्रसूरिजी 40 श्रीमुनिचन्द्रसूरिजी 41. श्री अजितदेवसूरिजी 42. श्रीविजयसिंहसूरिजी 43. श्रीसोमप्रभसूरिजी श्रीमणिरत्नसूरिजी 44. श्री जगचन्द्रसूरिजी 45. श्रीदेवेन्द्रसूरिजी, श्रीविद्यानन्दसूरिजी 46. श्रीधर्मघोषसूरिजी 47. श्रीसोमप्रभसूरिजी 48. श्रीसोमतिलकसूरिजी 49. श्रीदेवसुन्दरसूरिजी 50. श्रीसोमसुन्दरसूरिजी 51. श्रीमुनिसुन्दरसूरिजी 52. रत्नशेखरसूरिजी 53. श्रीलक्ष्मीसागरसूरिजी 54. श्रीसुमतिसाधुसूरिजी 55. श्रीहेमविमलसूरिजी 56. श्रीआनन्दविमलसूरिजी 57. श्रीविजयदानसूरिजी 58. श्रीहीरविजयसूरिजी 59. श्रीविजयसेनसूरि 60. श्रीविजयदेवसूरिजी 61. श्रीविजयसिंहसूरिजी 62. श्रीविजयप्रभुसूरिजी ।
63. श्री विजयरत्नसूरिजी :- जन्म संवत् 1712 शीकर में, पिता ओशवंशीय श्री सौभाग्यचंदजी, माता शृंगारबाई, जन्म नाम रत्नचन्द्रजी । आपका अति रूपवती सूरिबाई नामक श्रेष्ठीकन्या के साथ हुआ । सगपन को छोड़ कर सोलह वर्ष की किशोर वय में श्रीविजयप्रभसूरिजी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की थी । स्वगुरु के पास विद्याभ्यास कर वि. संवत् 1733 ज्येष्ठ कृ. 6 के रोज नागौर (मारवाड़) में आचार्यपद प्राप्त किया । संवत् 1770 को जोधपुर में चातुर्मास में रहकर महाराजा अजितसिंहजी को उपदेश दे कर मेड़ता में मुसलमानों ने उपाश्रय की जो मस्जिद बना डाली थी, उसे तुड़वा कर फिर से उसको उपाश्रय का रूप दिया। आनन्दविमलसूरि आदि आचार्यों के प्रसादीकृत 'मासकल्पादि मर्यादा बोलपट्टक' सर्वत्र प्रसिद्ध कर गच्छ के साधु-साध्वियों को उत्कृष्ट मर्यादा में चलाए और जो शिथिल थे उनको गच्छ बाहर किये । चंद, सागर, और कुशल आदि शाखाओं के कितने शिथिलाचारियों ने आपका सामना भी किया, किन्तु उनकी परवाह नहीं करते हुये । गच्छमर्यादा प्रवर्तन में आप कटिबद्ध रहे । किसी भोजक-कवि ने कहा है कि
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फिट् चन्दा फिट् सागरा, फिट् कुराला नै लेड़ां | रत्नसूरि धडूकतां, भाग गई सब भेड़ां ||1||
DOSTOMODE
आपके 33 हस्तदीक्षित शिष्य थे, उनमें से वृद्धक्षमाविजयजी सदाचारप्रिय, विनीत, सिद्धान्तपाठी, गच्छमर्यादापालक और सहनशीलतादि गुणों के प्रधानधारक थे । और लघुक्षमाविजयजी भी गच्छमर्यादा के दृढ़पालक और अति लोकवल्लभ थे। आप वृद्धक्षमाविजयजी को आचार्यपदारूढ करके संवत् 1773 आश्विन कृष्णा द्वितीया के दिन उदयपुर (मेवाड़) में स्वर्गवासी हुए ।
64. श्रीवृक्षमासूरिजी :
जन्म संवत् 1750 खेतड़ी, पिता ओशवंशीय केशरीमलजी माता लक्ष्मीबाई, जन्म नाम क्षेम (खेम) चंद | आपने श्रीरत्नसूरि महाराज के पास 11 वर्ष की वय में दीक्षा ली थी । संवत् 1772 में माघ शु. पांचम के दिन आपको
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