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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
( आज्ञानांधकार को दूर करने वाले - सुमेरमल, संघ अध्यक्ष, आहोर
परम पूज्य गुरुभगवंत जन-जन के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान करने वाले होते हैं वे ही हमारे जीवन निर्माता, मार्गदर्शक एवं संरक्षक होते हैं उनका संरक्षण प्राप्त कर हम निर्मल बन जाते हैं। वे ही हमें भव-सागर पार करने का मार्ग दर्शन करते हैं। उनके बताये मार्ग का हम कितना अनुशरण करते हैं यह हम पर निर्भर करता है यदि उनके बताये मार्ग पर न चलकर अन्य मार्ग अपनाया तो हमारा अपना दोष ही कहलायेगा। गुरु भगवंत तो दिशा निर्देश कर देते हैं यदि हम नहीं सम्हलते हैं, फिर हमारे समान मूर्ख कौन हो सकता है।
परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. हमें सदैव हित-शिक्षायें प्रदान कर हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। विशेषकर बाल वय में वे सद्गुणों का वपन करना अनिवार्य मानते हैं। उनका यह मार्गदर्शन आज भी सतत् चल रहा है।
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यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि उनकी दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है। यह अभिनन्दन ग्रन्थ, अभिनन्दन ग्रन्थों की परम्परा में अपना विशिष्ट स्थान बनायेगा, यही हार्दिक शुभकामना है। पूज्यश्री के पावन चरणों में कोटि-कोटि वंदन ।
अनुपम त्याग
- शांतिलाल बजावत, चैन्नई
मनुष्य अपनी युवावस्था में लोगों की ओर आकर्षित होता है। वह विश्व की भौतिक चकाचौंध के प्रति समर्पित होकर उसमें आकर डूब जाता है। इस वय में उसे और कुछ भी दिखाई नहीं देता है किंतु हजारों लाखों युवाओं में एक-दो युवा ऐसे भी होते हैं जो भोग को रोग मानकर उसका त्याग कर योग की ओर प्रवृत्त होते हैं तथा अपना अमूल्य मानव भव सार्थक करने में जुट जाते हैं।
हमारे हृदय सम्राट परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. लाखों युवकों में से एक हैं जो वासंती वय में भोग को ठोकर मानकर योग मार्ग की ओर अग्रणी हुए। यह उनके संयम पालन का ही परिणाम है कि आज इस आयु में भी पूज्यश्री सक्रिय हैं।
जब ज्ञात हुआ कि पूज्यश्री के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीकर जयंती के अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है तो मन आल्हादित होकर नाच उठा। मैं शासन देव से पूज्यश्री के सुदीर्घ स्वस्थ जीवन की कामना करता हूँ और उनके श्री चरणों में कोटि-कोटि वंदन प्रेषित करता हूँ।
जन्म से नहीं कर्म से महान
-पुखराज जोकमलजी वाणीगोता, चैन्नई
आदमी कहां जन्म लेता है और कहां कार्य करते हुए अपनी जीवन की गाड़ी को चलाता रहता है? इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता। फिर इस धरा पर असंख्य व्यक्ति जन्म लेते हैं। उनमें से हम कितनों को जानते हैं। लोग उन्हीं लोगों को जानते हैं जिनके कर्म उच्च कोटि के होते हैं। जो जन-जन के लिये जीते हैं। अपने लिये तो सभी जीते हैं किंतु दूसरों के लिये जीना वास्तविक जीना है। ऐसे ही व्यक्तियों के कर्म भी उच्च कोटि के होते हैं फिर भले ही वे किसी भी क्षेत्र में हों। धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, कोई भी क्षेत्र हो, यदि ऐसे क्षेत्रों में जन-जन के कल्याण के लिये व्यक्ति कार्य करता है तो वह अमर हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों को लोग सदा-सदा स्मरण करते रहते हैं।
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