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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
जीवण क्षणभंगुर है ।
-फूलचंद वेगाजी, गुंटूर सच्चा साधक वही होता है जो स्वयं तिरे और दूसरों को तीरने का मार्ग बतावे। मैंने कई बार देखा है कि परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वर म.सा. के दर्शनार्थ जब कोई आता है तो आपश्री सहज ही पूछते हैं "कुछ धर्म-ध्यान भी करते हो या नहीं। इस जीवन का कोई निश्चित नहीं है। यह क्षणभंगुर है। कब पंछी उड़ जाय कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिये जितना बन सके उतना धर्मध्यान अवश्य करो।" इसके पश्चात् भी यदि मनुष्य जागृत न हो तो क्या किया जाये।
परम श्रद्धेय आचार्यश्री के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीक जयंती के अवसर पर प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रन्थ की सफलता के लिये मैं अपनी ओर से हार्दिक शुभकामना प्रेषित करता हुए श्रद्धेय आचार्यश्री के पावन चरणों में वंदन करता हूँ।
मानव भव सार्थक कर लो।
-पुष्पराज कोठारी, विशाखापट्टनम मनुष्य यह जानता है कि यह मानव भव दुर्लभ है फिर भी वह भौतिकता की चकाचौंध में पड़कर इसे व्यर्थ बरबाद कर रहा है। हमारे आराध्य परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. समय-समय पर अपने भक्तों को कहा करते हैं कि जो दुर्लभ मानव भव मिला है, धर्माराधना करके उसे सार्थक कर लेना चाहिये। कहा नहीं जा सकता है कि अगले भव में यह तन मिले या नहीं मिले, जो अमूल्य अवसर अभी मिला है, उसका सदुपयोग करने में ही बुद्धिमानी है।
ऐसे आचार्य भगवन के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर गुरु भक्तों द्वारा एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन कर उनके पावन चरण कमलों में समर्पित करना स्तुत्य प्रयास है। मैं इस प्रयास की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामना करते हुए श्रद्धेय आचार्यश्री के चरणों में सादर वंदन करता हूँ।
कृपा है उनकी
-घेवरचंद साकलचंदजी, अध्यक्ष, विशखापट्टनम बड़े-बड़े नगरों में एवं सुविधाजनक मार्ग वाले ग्राम-नगरों में हर कोई जाना चाहता है अथवा चाहेगा। देश के दक्षिण भागों में जहां भाषायी समस्या भी रहती है, जाना और अपने भक्तों को दर्शन देकर उपकृत करना, यह उनकी कृपा का ही परिणाम है। श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. एक ऐसे ही विरल संतरत्न है जो दूरस्थ से दूरस्थ क्षेत्रों में भी जाकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं उन्हें धर्माराधना करने के लिये प्रेरणा प्रदान करते हैं। इस कथन की पुष्टि उनके उत्तरी आंध्रप्रदेश के विहार से होती है।
पू. आचार्यश्री की आयुष्य एवं संयमकाल को देखते हुए जब हम उनकी सक्रियता देखते हैं तो विस्मित रह जाते हैं। आज भी वे अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्णरूप से सजग हैं। ऐसी महान विभूति के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के उपलक्ष्य में प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रन्थ की सफलता के लिए मैं अपनी हार्दिक शुभकामना प्रेषित करता हूँ। प.पू. आचार्यश्री के पावन चरणों में कोटि-कोटि वंदन। बागरा ही नहीं मारवाड़ के गौरव हैं।
-पारसमल, संघ अध्यक्ष, विजयनगर परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यदेव हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का जन्म बागरा में हुआ। उनके वर्तमान के कारण आज पूरा बागरा गांव गौरव का अनुभव कर रहा है। मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ कि उन जैसे
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