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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ दक्षिण भारत में धूम मचा दी
-सुमेरमल कुहाड़, काकीनाड़ा परम श्रद्धेय शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. जिस समय अपने राणीबेन्नूर वर्षावास के लिये दक्षिण भारत की धरा पर पधारे तो वहां लोगों में धर्म जागृति का अद्भुत उत्साह संचरित हुआ। दक्षिण भारत में रहे गुरुभक्तों को विश्वास हो गया कि श्रद्धेय गुरुदेव उनके क्षेत्रों को भी अपनी चरण रज से पवित्र करेंगे और वैसा ही हुआ। राणीबेन्नूर वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् चेन्नई और फिर राजमहेन्द्री के वर्षावास हुए। इस बीच आपने अनेक क्षेत्रों में विचरण कर धर्म की गंगा प्रवाहित कर दी। आपके पावन सान्निध्य में अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठाएं भी हुई। अनेक धार्मिक कार्यक्रम भी उत्साहपूर्वक सानन्द सम्पन्न हुए। इससे दक्षिण भारत में धर्म की धूम मच गई।
आचार्यश्री के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर प्रकाश्यमान अभिनन्दन ग्रन्थ के विषय में जब भक्तों को जानकारी मिली तो उनका उत्साह और भी द्विगुणित हो गया। मैं इस अभिनन्दन ग्रन्थ की सफलता के लिये अपनी हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करता हूं। पूज्य आचार्यश्री के पावन चरणों में शत्-शत् वंदन।
मन खिल उठा
–झवेरचंद मिश्रीमलजी, निरदवोलु राजस्थान अथवा मालवा की धरा पर रहो तो गुरु भगवंतों के दर्शन सहजता से होते रहते हैं किंतु दक्षिण भारत में गुरु भगवंतों के दर्शन होना बड़े सौभाग्य की बात है। कारण यह है कि इस ओर गुरु भगवंतों का विहार कुछ कम ही हो पाता है। जब यह सूचना मिली कि परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. अपने धर्म परिवार के साथ दक्षिण भारत पधार रहे हैं तो मन खिल उठा। उनके इस ओर आगमन से गुरु भक्तों में उत्साह का संचार हुआ। अच्छी धर्म-जागृति हुई। जहां-जहां भी वे पधारे आनंद और उमंग की लहरें उत्पन्न हो गई।
इसी बीच यह ज्ञात हुआ कि उनके जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के उपलक्ष्य में एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन होने जा रहा है तो प्रसन्नता द्विगुणित हो गई। इस अवसर पर मैं प.पू. आचार्यश्री के पावन चरणों में वंदन करते हुए शासनदेव से उनके सुस्वस्थ-सुदीर्घ जीवन की हार्दिक शुभकामना करता हूं।
सतत् साधना चलती है।
-रिखबचंद सोलंकी, विजयवाड़ा परमश्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. को अपने पाट पर बैठे हुए एकाएक कोई देखे तो वह यह सोचेगा कि वे वैसे ही बैठे हैं। किन्तु वस्तुस्थिति इससे ठीक विपरीत है। वे मौन साधक हैं और उनकी साधना सतत चलती रहती है। उठते-बैठते, चलते-फिरते, खाते-पीते हर स्थिति में उनका मानस धर्माराधना में रत रहता है। इतना ही नहीं वे प्रत्येक दर्शनार्थी को भी धर्माराधना करने के लिये प्रेरित करते रहते हैं।
जब यह ज्ञात हुआ कि परमश्रद्धेय आचार्यश्री के सम्मान में एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन होने जा रहा है तो हार्दिक प्रसन्नता हुई। मैं इस आयोजन की सफलता की कामना करते हुए श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणिजी के पावन चरणों में वंदन करता हूं।
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हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
Awarerana