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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
इसका एक ही उद्देश्य व लक्ष्य देखने में आता है, वह जनमानस में उमड़ रही गुरु भक्ति तथा धार्मिक आस्था ।
जिस आर्य धरा पर महान गुणीवंत, तपस्वी, त्यागी सेवारत, परम उपकारी, संत प्रवर, परम पूज्य आगमज्ञ कर्म विशारद, अध्याम विद्या विशारद, राष्ट्रसंत शिरोमणि वर्तमान आचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती पर जो ग्रन्थ गुरु चरण में समर्पित किया जाने का निर्णय किया गया है । यह अनंत जीव आत्माओं के कल्याण के लिये प्रेरणा व जागृति का साक्षात प्रदर्शक होगा ।
भौतिक युग में मनुष्य भागमभाग की जिन्दगी जी रहा है, उसे अपनी आपाधापी से फुर्सत नहीं है किंतु अनेक भव्य आत्माएं जो कि अध्यात्म से परिचित है, उन आत्माओं ने पूज्य गुरुदेव श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के प्रतिबिम्ब मात्र से अपनी आत्मा को गुरुचरण में शरण लेकर अपना कल्याण कर रहे जिन आत्माओं को ऐसे बहुगुणों से अलंकृत गुरु का सान्निध्य मिले जिनकी वाणी में माधुर्य, नैतिक सामाजिक और धार्मिक तथा वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से जनमानस को जाग्रत करने के लिये अपनी वृद्धावस्था में भी उग्र विहार कर जिन मंदिर महोत्सव संघ यात्रायें प्रतिष्ठा महोत्सव उपधान, तप, धर्माराधना, दीक्षा समारोह और अन्य कार्यों में सकल संघ को अपने व्यक्तित्व व कर्तव्य से झंकृत करते हुए अपने आचार्यपद को कंचनमय बनाते हुए जो उपकार सम्पूर्ण मानस को प्रदान कर रहे हैं, हम आपके बहुत बहुत आभारी हैं और रहेंगे । इसी तारतम्य में आचार्यश्रीजी के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं तथा मंगलमय जीवन की आशा एवं विश्वास के साथ आपका आशीर्वाद हमें मिलता रहे तथा यह आदि अनादि चिरवंत भगवान श्री महावीरस्वामी का शासन देदीप्यमान बना रहे । पुनः इन्ही शुभ इच्छाओं के साथ शत्-शत् वन्दन, नमन ।
समर्पण
-कु. सुधर्माजैन, छैगांववाली, खाचरौद
आचार्य भगवन्त के चरणों में, जिन शासन के श्रुतधर ! कलिकाल के प्रभुवर तुम्हारे चरणों में नमस्कार,
करलो इसको तुम स्वीकार । क्योंकि तुम्हारा ही तुम्हें अर्पण है, तव आशीष का संवेदन है, सोचती हूं - यह परमात्मा का कीर्तन है । या तुम्हारा निकेतन है । लगता है तुम प्रतिमूर्ति हो परमात्मा की मेरे हृदय आकाश तरंग की, तुम्हारा कीर्तन मेरा वतन है तुम्हारा ही तुम्हें अर्पण है ।
पूज्यवर !
मेरे भावों को स्वीकार करो, प्रभु से मेरी मनुहार करो तुम्हारा आशीष नित नूतन है, तुम्हारा ही तुम्हें अर्पण है सच ही तुम - मेरे जीवन के वरदान हो । इस जग की मुस्कान हो, तुम्हारा आसन शासन सनातन है तुम्हारा तुम्हें अर्पण है ।
हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति 59 हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति