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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
का आंखों देखा हाल हमें सुनाते हैं तब गुरु भगवंत पर हमारी श्रद्धा और भी गहरी हो जाती हैं। आप इतने सरल स्वभावी है कि छोटा सा बच्चा भी अगर आपकी शरण में दर्शन वंदन करने आये तो वासक्षेप देकर धर्मलाभ का आशीर्वाद देते हैं । जिस दिन से चेन्नई में राजेन्द्र भवन में आपका मंगलमय चातुर्मास हेतु पदार्पण हुआ उस दिन से ज्ञान ध्यान तप की तो गंगा ही बह रही है। आचार्यश्री जी के शिष्य रत्न मुनिश्री प्रीतेशचन्द्रविजयजी म.सा. ने हमें बताया कि आप रात्रि में लगभग 2 से 2.30 बजे उठकर ध्यान जप करते हैं एवं जब तक आपके 60 माला गिननी पूरी नहीं होती, तब तक गोचरी नहीं करते हैं। इस वृद्धावस्था में 86 वर्ष की उम्र में भी आपका संयममय जीवन अति उत्कृष्ट है। अतः आप उत्कृष्ट चारित्र पालक है सूरि पद के बाद आपने जो जिन शासन में धर्मध्वजा फहराई वह प्रशंसनीय है । वंदनीय है । आचार्यश्री जी के साथ कई सन्तों में एक और महान सन्त कोंकण केशरी प्रवचन प्रभावक मुनि श्री लेखेन्द्रशेखर विजय म.सा. जिन्होंने प्रवचन में श्री शंखेश्वर पार्श्वप्रभु की महिमा बताई एवं श्री शंखेश्वर पार्श्वप्रभु के अट्टम आपने करवाए हैं । आज इसका तीसरा दिवस है । पार्श्व प्रभु की महिमा के साथ पूरा शंखेश्वर नगर का इतिहास बताया पूज्य गुरुवर की वाणी अति ओजसैव तेजस्वी है।
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दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो । हेमेन्द्र सूरि गुरू जुग जुग जीवो ॥
दिव्य पुरुष पू. गुरुदेव श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. कोटि कोटि वंदन
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सदाशिवकुमार जैन, श्रीमोहनखेड़ा तीर्थ
आदि अनादि अनन्त जन्मों से हमारा यह मानव जीवन, इस मानव जीवन को प्राप्त कर हम सदियों से भटक रहे हैं। चौरासी लाख जीवायोनि में हम निरंतर जन्म एवं मृत्यु का खेल खेल रहे हैं। हमारे पुण्योदय से हमें जन्म एवं जाति प्राप्त होती हैं । हमारे अच्छे कर्मों का फल हमें सद्गति प्रदान करता हैं । मोक्ष प्रदान करता हैं । सही प्रेरणा प्राप्त होती है । बुरे कर्मों का फल हमेशा बुरा ही होता है ।
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हमारा यह मानव जन्म एक अनमोल रत्न की भांति अति दुर्लभ है। क्योंकि मानव भव प्राप्त करने हेतु देवी देवता भी तरसते हैं अपार शक्तियों से सुसज्जित यह हमारा मानव मन उस मानव मन में अनेक शक्तियां छिपी है । जिस तरह मृग कस्तूरी की सुगंध से भाव विभोर होकर कस्तूरी को पाने हेतु वन में भटकता रहता है । फिर भी वह कस्तूरी को पाने में असमर्थ रहता है और कस्तूरी मृग के नाभिस्थल में ही विद्यमान रहती है उसी प्रकार हमारे नाभिचक्र में भी अनेकानेक शक्तियाँ छिपी हैं । चाहिये उसको ध्यान के माध्यम से, प्राणायाम के माध्यम से जागृत करने की ।
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जन्म एवं मृत्यु के इस चक्कर को यही विराम देकर क्यों न हम सद्गति (मोक्ष) के द्वार खोलने की तैयारी में जुट जाए । इसके लिए हमें सबसे पहले त्याग तपस्याएं, धर्म आराधनाएं, दान धर्म पूजा आदि धर्म क्रियाओं पर ध्यान देने होगा। इसके बिना हमें सद्गति प्राप्त होना असम्भव है । इसी क्रम में है हमारे पूज्य गुरुदेव राष्ट्रसंत शिरोमणि पू. आचार्यदेव श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. जो कि श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढी (ट्रस्ट) श्री मोहनखेडा महातीर्थ के वर्तमान अध्यक्ष भी है । आपश्री का जन्म बागरा (राज.) नगरी में पिताश्री ज्ञानचन्दजी पोरवाल मातुश्री उजमबाई की कुक्षि से सम्पन्न हुआ। आपश्री की शिक्षा दीक्षा धर्म गुरु श्रद्धेय तपस्वीरत्न श्री हर्षविजयजी म.सा. के हाथों सम्पन्न हुई । आपश्री का ज्ञान ध्यान त्याग तपस्याएं दीर्घ है । धन्य हैं ऐसे माता पिता जिन्होंने समाज को एक अनमोल रत्न प्रदान किया जो आज आपके समक्ष एक सूर्य की भांति प्रकाशमान है। मैं भी इनके सौम्य एवं सरल रूप को कभी भी नहीं भुला पाऊंगा । ऐसे पू. गुरुदेव के सादर चरण कमलों में सदा नतमस्तक रहूंगा। आपके जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर आपश्री के चरणों में कोटि कोटि वंदन ।
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