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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
4 अभ्यर्थना (कामना)
-समर्थमल जैन, (छैगांववाला) खाचरौद
अखिल भारतीय त्रिस्तुतिक संघ द्वारा परम उपकारी प्रातः स्मरणीय विश्व पूज्य जैनाचार्य गुरुदेव श्रीमद विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा संस्थापक श्री मोहनखेडा तीर्थ के षष्टम पट्टधर परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति वर्तमान आचार्य भगवंत श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रंथ उनके परम पवित्र चरणों में समर्पित किया जा रहा है। खाचरोद श्रीसंघ के लिये बड़े हर्ष का विषय है।
विगत कई वर्षो से अभिनन्दन ग्रंथ भेंट करने का विचार त्रिस्तुतिक संघ में चल रहा था सो प्रभु कृपा से शुभ घडी प्राप्त हो गई।
परम पूज्य हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. कस्तूरी के समकक्ष है । कस्तूरी वास्तविक रंग रूप से हीन होते हुवे भी सुगन्धित होने के साथ साथ बहुत कीमती होती है ।
परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. भगवान महावीर स्वामीजी के द्वारा आगम ग्रंथ में जो साधु क्रिया का वर्णन किया गया है । पंचमकाल में उसका पालन अक्षर सह अक्षर आगम वचनों पर श्रद्धा के साथ आज पर्यन्त तक तदानुसार आचरण कर रहे हैं । इसी से आपश्री का चन्द्र समान शान्त निर्मल चारित्र बना हुआ है ।
परम पूज्य श्री आचार्य पूर्ण रूप से सम्यक्त्वी है । जो सम्यक्त्वी होता है वह लौकेषणा की कतई परवाह नहीं करता है।
परम पूज्य आचार्य देव वाह्याडम्बर से बहुत दूर है । आप सभी को वाहरी दृष्टि नहीं अन्तर दृष्टि के द्वारा ही उपदेश देते रहते हैं । जो साधु एवं आचार्य भगवन्त आगमों में ही अपने मनोयोग को जोड़ देता है । उसके आचार विचार गंगाजल समान पवित्र हो जाते हैं ।
परम पूज्य आचार्यदेव के जीवन काल में छोटे बालक सी सरलता है एवं कहीं भी कपट भरा व्यवहार नहीं और फरमाते जैसी भावना होगी वैसे ही पुण्य बंधते हैं । व्यवहार में आत्मीयता एवं सौहार्द्रपूर्ण संयमी जीवन उत्तम निर्मल नीर लिप्त भगवान महावीर स्वामीजी के शासन को उन्नति पर लाने वाले सच्चे शासन दीपक हैं ।
ऐसे परम पूज्य आचार्यदेव के श्री चरणों में अभिनन्दन ग्रंथ में मेरे जैसा तुच्छ व्यक्ति क्या शुभ कामना संदेश दे सकता है । केवल अभ्यर्थना (कामना) ही कर सकता है कि महाराज श्री परम पूज्य हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. श्री संघ की सेवा के लिये जीवो हजारों साल । यही मंगल भावना है।
4 चिर जीवे गुरू महाराज हमारे
-कु. सुधर्मा जैन छैगाँववाली, खाचरौद
मन के सागर में कभी अनुभूतियों की लहरें मचलती हैं, तो कभी वह फूलों से लदी डाली की तरह सौरभ की वर्षा करता है, कभी यह मन नगाड़ों के साथ 'अमृत महोत्सव' तो कभी यह मन संयम पथ की पदचाप हीरक जयंती मनाने में प्रफुल्लित हो उठता है ।
हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्रज्योति 58 हेमेन्य ज्योति * हेगेन्द्र ज्योति
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