________________
श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
हार्दिक शुभकामना
-भरतकुमार साकलचंद रायगांधी, जालोर राष्ट्रसंत शिरोमणि श्री हेमेन्द्र सूरिजी म.सा. वर्तमान में सिर्फ आप ही त्रिस्तुतिक जैन समाज के एक वयोवृद्ध अनुभवी संत हैं।
आपने भारत में प्रायः सब क्षेत्रों में विचरण करके जैन जैनेतर समाज में धार्मिक संस्कार के बीजारोपण करके अनेक भव्य आत्माओं को धर्माभिमुख किया है ।
आपकी वाणी में मिठास, कंठ में माधुर्य, वक्तृत्वकला में अद्भुत शक्ति हैं, और अखूट ज्ञान के भण्डार हैं । आप सौम्य प्रकृति के सेवाभावी, समाज उन्नति के सूत्रधार और श्रमण संघ के आधार स्तंभ हैं । आपकी वाणी में अद्भुत जादूभरा हुआ है । जिसको सुनकर श्रोतागण मंत्र मुग्ध हो जाते हैं ।
आप वय, ज्ञान और दीक्षा स्थविर होते हुए भी छोटे बड़े सन्तों के साथ एक रूप हो जाते हैं । यह आपकी नम्रता का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । अभिनन्दन ग्रंथ के प्रकाशन के अवसर पर हमारी हार्दिक शुभकामनाएं एवं कोटि कोटि वंदना ।
4 मार्गदर्शक
-प्रकाश बाफना, इन्दौर पूज्य गुरुदेव श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जीवन के सम्बन्ध में जितना भी लिखा जाय उतना ही अपूर्ण लगेगा। जैसे सागर को गागर में समाने के बराबर है | आपके व्यवहार में सरलता, सुबोधता, प्रेम एवं सद्भावना सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है । जो वस्तु बांटने से बढ़ती हैं वह है प्रेम, अपनत्व ! जैन धर्म ही नहीं सभी धर्मो को समान रूप से देखना अपनत्व से ही संसार की गहराई से बाहर निकला जा सकता है । रागद्वेष से विरक्त होना ही सच्चा वैराग्य है । ये ही सारी विद्यायें हमारे आचार्यश्री में विद्यमान है । मानव मात्र की दया के पात्र की सच्ची भावना से समस्त दुखों का नाश होता है । सभी के प्रति समभाव के स्वभाव के कारण ही आज वर्तमान में आचार्यश्री सभी के मार्गदर्शक बने हुये हैं। यह अनुभव प्रत्येक व्यक्ति को सम्पर्क में आने के पश्चात ही होता है।
शुभकामना
-संयज छाजेड हिमांशु,' राजगढ़ (धार) परम पूज्य वर्तमानाचार्य राष्ट्रसंत शिरोमणि जैनाचार्य श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का संयम जीवन जैन शासन के गौरवमयी इतिहास का प्रतीक है । आपका 63 वर्षीय संयम जीवन अनेक उपलब्धियों से भरा हुआ हैं । आप उत्कृष्ट तपकर अपने संयमित जीवन को तपाकर वर्तमान में वैराग्य मार्ग पर आरूढ़ वैरागी के मार्ग प्रणेता बने हुए हैं। आपकी सरल, सुबोध एवं ममतामयी, छबि बरबस हर व्यक्ति को आकर्षित कर लेती हैं । आपमें अखूट ज्ञान का भंडार है । जिस प्रकार सोना तपकर कुन्दन बनता है तब जाकर आभूषण बन कर किसी के जीवन को शृंगारित करता है । उसी प्रकार आपने अपने तन को तप की अग्नि में तपाकर संयम जीवन के मर्म को जन मानस को समझा दिया। आप करुणावतार सम्यग्दृष्टि उत्कृष्ट संयम जीवन का पालन, सौधर्म वृहत्तपागच्छीय परम्परा के उज्ज्वल पट्ट परम्परा का प्रतीक बने हुए हैं । इसी संदर्भ में चार पंक्तियां सादर समर्पित हैं ।
हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति
53 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति ।
wilwainelariary.org