Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ale जीवन श्रेयस्कर NISTRI Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन- श्रेयस्कर - पाठमाला प्रकाशक श्री. केशर बहिन अमृतलाल झवेरी पालनपुर (उ. गुजरात ) द्वितीयावृत्ति १००० श्री वीर सम्वत् २४७५ विक्रमार्क २००५ सन् १९४८ ई० मूल्य २) 5 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशककेशर बहिन अमृतलाल झवेरी पालनपुर (उ. गुजरात) - विषयसूची २६७ नाम दशवैकालिक सूत्र सुखविपाक भूत्र उववाई २२गाया पुच्छिसु णं मोचमार्ग अध्ययन उत्तराध्ययन सूत्र नन्दी सूत्र अनुत्तरोववाइय सूत्र दशाश्रु तस्कन्ध श्वी दशा पृष्ठ । नाम १से५६ १८ उसरण पयन्ना सुभाषित गाथाएं भक्तामर स्तोत्र ई कल्याण मन्दिर स्तोत्र है रत्नाकर पंचविंशति पार्थना पंचविशति चिन्तामणि पा० स्तोत्र है मेरी मावना प्रकीर्ण गाथाएं CMWW mc . २६६ मुद्रकश्री जा० सिंह के प्रबन्धसे श्री गुरुकुल प्रिंटिंग प्रेस, व्यावर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका श्री जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला को पाठकों के कर-कमलों में समर्पित करते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है। श्री छोटेलालजी यति द्वारा संचालित जीवन-श्रेयस्कर ग्रन्थमाला ने जीवन श्रेयस्कर-पाठमाला की प्रथमावृत्ति छपायी थी जिसको स्वाध्याय प्रेमियों ने ठीक पसंद की थी। अब अप्राप्य होने के कारण इसकी दूसरी आवृत्ति धर्मानुरक्ता श्रीमती केशर बहिनत्र मृतलाल जौहरी ने कई बहिनों की प्रेरणा से छपवाई है। हमें आशा ही. नहीं वरन् पूर्ण विश्वास है कि पाठकों ने पहिले पाठमाला को अपनाई है उसी प्रकार इसे भी अपनावेंगे। ... - इस पुस्तक में प्रकाशित सूत्रों आदि का प्रकाशन यद्यपि कई स्थानों से हो चुका है किन्तु ये स्वाध्याय के लिए परमोपयोगी होने से इन सब का संग्रह एक ही जगह किया गया है। स्वाध्याय आत्मोन्नति का सरल, सुन्दर और सुगम अत्युत्तम मार्ग है । अतः स्वाध्याय के लिए उत्तमोत्तम ग्रन्थों का संग्रह करना प्रत्येक मनुष्य के लिये आवश्यक है । शास्त्र, धर्म ग्रन्थ, महापुरुषों के जीवन चरित्र, महापुरुषों के उपदेश, प्राप्तपुरुषों द्वारा उपदेशित परमपद प्राप्ति के साधनों का ज्ञान कराने वाले ग्रन्थ तथा आत्म दर्शन कराने वाले साहित्य के पठन-पाठन एवं स्वाध्याय करने से निश्चय ही विचारों में तपनुकूल परिवर्तन होकर जीवन शान्तिमय बन सकता है। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ख) धर्म ग्रन्थादि, शास्त्र और उपदेश-पूर्ण पुस्तकों के पढ़ने से मनुष्य को महात्माओं तथा विद्वानों के विचार जानने को मिलते हैं, जिन्हें मनन कर मनुष्य स्वयं उनके समान बन सकता है। स्वाध्याय से ज्ञान बुद्धि और अनुभव बढ़ता है तथा आलस्यशत्रु का नाश होता है। मनुष्य का जैसा भी पठन-पाठन होगा तथा संगति होगी उसके आचार विचार भी बैसे ही होंगे। अतः मनुष्य को चाहिये कि वह सदा सत्पुरुषों की संगति में रहें। अर्थात् सदा सद्गुरुओं की विनय-भक्ति करना, तथा सत्संग करने का नियम रखना चाहिए। :- स्वाध्याय के ५ अंग हैं। उन्हीं के अनुसार ही संत-समागम की टेव रखनी चाहिये । पाँच अंग निम्न हैं: १ वाचना-गुरु के पास या स्वयं पढ़ना । २. पृच्छना-अपनी शंकाएं गुरु अथवा किसी अनुभवी से पूछना। ३ परावर्तना-पढ़े हुए भाग को पुनः सोचना या दुहराना। ४ अनुप्रेक्षा-पढ़े हुए विषय पर मनन करना। ......५ धर्मकथा-अपना सिखा हुआ ज्ञान दूसरों को सुनाना, सिखलाना, व्याख्यान या चर्चा करना तथा लेखन द्वारा उनका प्रचार करना। 'अतएव प्रतिदिन स्वाध्याय द्वारा थोड़ा २ ज्ञान करने से मनुष्य बहुत बड़ा ज्ञानवान बन सकता है । इसी उद्देश्य से इस ग्रन्थ का नाम 'स्वाध्याय पाठमाला' रखने का विचार था किन्तु इसमें वर्णित सभी बातों से जीवन सुखमय बनता है इसी लिये इसका नाम 'जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला रखना अधिक उपयुक्त समझा गया है। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ग) इस ग्रन्थ का प्रकाशन करने के लिये बम्बई व पालनपुर की कतिपय स्वाध्याय प्रेमी बहनें बहुत दिनों से आग्रह कर रहीं थीं इसी लिये यह द्वितीयावृत्ति छपवाई है। कागज और छपाई की महंगाई होने पर भी यह पुस्तक सिर्फ २) रु० में दी जाने की व्यवस्था की गई है। श्री जैन गुरुकुल प्रेस ब्यावर ने इसे छापने में पूर्ण सहयोग दिया है। प्रफ संशोधन आदि कार्य में पं० शान्तिलाल वनमाली सेठ ने तथा श्री जिनागम प्र० समिति के पंडितों ने पूर्ण परिश्रम किया है। श्री श्वे. स्था. जैन कॉन्फरेन्स द्वारा श्री जिनागम प्रकाशन कार्यालय चल रहा है उससे आगमों के संशोधित पाठ इसके लिये मिले हैं। इसके लिए उक्त विद्वानों को और जिनागम प्र० कार्यालय को हार्दिक धन्यवाद दिया जाता है, इतना प्रयत्न होने पर भी प्रेस से या दृष्टिदोष से कोई भूल रह गई हो तो पाठक सुधार कर पढ़े और प्रकाशक को सूचित करेंगे तो कृपा होगी और नई आवृत्ति में सुधार किया जा सकेगा। स्वाध्यायरत सब आत्माएँ स्वकल्याण प्राप्त करें यही भावना है। ज्ञान पंचमी । धीरजलाल के० तुरखिया . वि० सं० २००५ । अधिष्ठाता, श्री जैन गुरुकुल, ब्यावर Page #7 --------------------------------------------------------------------------  Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अहं ॥ । दसवेनालियसुर्त॥ दुमपुफिया नामं पढममज्झयणं । धम्मो मंगलमुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणे ॥ १ ॥ जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो आवियइ रसं । न य पुष्पं किलामेइ सो य पीणेइ अप्पयं ॥२॥ पमेए समणा मुत्ता जे लोए संति साहुणा । विहंगमा व पुप्फे दाणभत्तसमे रया ॥३॥ वयं च वित्तिं लब्भामो न य कोइ उवहम्मद । अहागडेसुरीयन्ते पुप्फेसु भमरा जहा ॥४॥ महुगारसमा बुद्धा जे भवंति अणिस्सिया। नाणापिण्डरया दन्ता तेण वुश्चन्ति साहुणे ॥५॥त्ति बेमि ॥ ॥ पढमं दुमपुस्फियज्झयणं समत्तं ॥ ॥ सामएणपुव्वयं बीयमझयणं ।। कहं नु कुजा सामए जो कामे न निवारए । पए पर विसीयंता संकप्पस्स वसं गओ ॥१॥ वत्थगन्धमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य । अच्छन्दा जे न जन्ति न से चाइ त्ति वुच्चइ ॥२॥ जे य कन्ते पिए भोए लद्धे विपिढिकुव्वइ । साहीणे चयह भोए से हु चाइ त्ति वुच्चइ ॥ ३॥ 1. कट्ट । २. रीयंति । ३. वि पिट्टी । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियसुत्तं 'समाइ पेहाइ परिव्वयन्तो सिया मणो निस्सरई बहिद्धा । "न सा महं नो वि श्रहं पि तीसे" इश्चैव ताश्रो विएज रागं ॥ ४ ॥ आयावयाही, चय सोगमल्लं. कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । छिन्दाहि दोर्स, विणएज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए ॥ ५ । पक्खन्दे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं । नेच्छति वतयं भोक्तुं कुले जाया अगंधणे ॥ ६ ॥ धिरत्थु astraमी जो तं जीवियकारणा । वतं इच्छसि वेडं ! सेयं ते मरणं भवे ॥ ७ ॥ अहं च भोगरायस्स तं च सि अन्धगवहिणो । मा कुले गन्धरणा होमो, संजम निहु चर ॥ ८॥ जइ तं काहिसि भावं जा जा दिच्छसि नारियो । वायाविद्धुव्व हडो अट्ठियप्पा भविस्यसि ॥६॥ तीसे सेा वयां सेोच्चा संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ ॥ १० ॥ एवं करेंति संबुद्धा पण्डिया पवियक्खणा । वियिट्टन्ति भोगेसु जहा से पुरिसुत्तमो ॥११॥ त्ति बेमि ॥ || बीयं सामरपुव्वयज्झयणं समत्तं ॥ १. समाए पेढाए । २. जसोकामी । अज्झयण २ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ३ दसवेत्रालियसुतं ॥खुड्डियायार कहा नामं तइयमझयणं । संजमे सुट्टिअप्पाणं विप्पमुक्काण ताइणं । तेसिमेयमणाइएणं निग्गन्थाण महेसिणं ॥ १ ॥ उद्देसियं कीयगडं नियागं अभिहडाणि य । राइभत्ते सिणाणे य गन्धमल्ले य वीयणे ॥२॥ सन्निही गिहिमत्त य रायपिण्डे किमिच्छए । संवाहणा दन्तपहोयणा य संपुच्छणा देहपलोयणा य ॥३॥ अलावएय नालीए छत्तस्स य धारणट्राए । तेगिच्छ पाणहा पाए समारम्भं च जोहणे ॥४॥ सिन्जायरपिण्डं च आसन्दी पलियङ्कए । गिहन्तरनिसिज्जा य गायस्सुव्वट्टणाणि य ॥५॥ गिहिण वेयावडियं जा य ाजीववित्तिया । तत्तानिव्वुडभोइत्तं पाउरस्सरणाणि य ॥६॥ मूलए सिङ्गाबेरे य उच्छुखंडे अनिव्वुडे । कन्दे मूले य सञ्चित्त फले बीए य आमए ॥ ७ ॥ सोवञ्चले सिन्धवे लोणे रोमालोणे य आमए । सामुद्दे पंसुखारे य कालालोणे य आमए ॥८॥ धुवणेत्ति वमणे य वत्थीकम्मविरेयणे । अञ्जणे दन्तवणे य गायब्भङ्गविभूसणे ॥९॥ सव्वमेयमणाइएणं निग्गन्थाण महेसि संजमम्मि य जुत्ताणं लहुभूयविहारिणे ॥ १०॥ पश्चासवपरित्राया तिगुत्ता छसु संजया। पश्चनिग्गहणा धीरा निग्गन्था उज्जुदंसिणो ।। ११ ॥ आयावयंति गिम्हेनु, हेमन्तेसु अवाउडा । वासासु पडिसंलीणा संजया सुसमाहिया ॥ १२ ॥ १. पाहणा । २. धूवणे । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियसुत्तं अज्झयण ३ परीसहरिऊदन्ता'धुयमोहा जिइन्दिया । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमन्ति महेसिया ॥ १३ ॥ दुक्कराइं करेत्ताणं दुसहाई सहेत्तु य । केइत्थ देवलोगेसु केइ सिज्झन्ति नीरया ॥ १४। खवित्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य । सिद्धिमग्गमणुप्पत्ता ताइण परिनिव्वुडा ॥१५॥ त्ति बेमि ॥ ॥ तइयं खुड्डियायारकहज्झयणं समत्तं ॥ ॥ छज्जीवणिया नामं चउत्थमज्झयणं । सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु छजीवणिया नामभयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुक्खाया सुपएणत्ता । सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपराणत्ती ॥ कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामझय समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुक्खाया सुपएणत्ता सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपएणत्ती? इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगघया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुक्खाया सुपएणत्ता सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपएणत्ती। तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सहकाइया, तसकाइया॥ पुढवी चित्तमन्तमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं । आउ चित्तमन्तमक्खाया अणेगजीवा पुढो १ धूम। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियसुते सत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएां । तेउ चित्तमन्तमक्खाया अणेगजीवा पुढेासत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणए । वाउ चित्तमन्तमक्खाया अणेगजीवा पुढेासत्ता अन्नत्थ सत्यपरिणं । वसई चित्तमन्तमक्खाया अरोगजीचा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्यपरिणणं तं जहा - अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खन्धबीया, बीयरुहा, संमुच्छिमा, तणलया, वर्णस्सइकाइया सबीया चित्तमन्तमक्खाया अणेगजीवा पुढेासत्ता अन्नत्थ सत्यपरिणri || अज्झयण ४ से जे पुस इमे अगे बहवे तसा पारणा तं जहा - अण्डया पोयया जराउया रसया संसेइमा संमुच्छिमा उब्भिया उववाइया; जेसि केसिंचि पाणारां अभिक्कन्तं पडिक्कन्तं संकुचियं पसारियं रुयं भतं तसियं पलाइयं आगइगइविन्नाया जे य कीडगा जाय कुन्थुपिवीलिया सव्वे बेइं दिया सव्वे तेइंदिया सव्वे चउरिंदिया सच्चे पंचिंदिया सव्वे तिरिक्खजोणिया सव्वे नेरइया सव्वे मणुया सब्वे देवा सव्वे पाणा परमाहम्मिया । सो खलु छट्टो जीवनिकाश्रो "तसकाउ" त्ति पवुश्चइ ॥ इच्चेसिं हं जीवनिकायाणं नेव सयं दंडं समारंभिज्जा, नेवन्नेहिं दंडं समारंभाविज्जा, दंडं समारम्भन्ते वि अन्ने न 'समगुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेां मां वायाए कारणं न करेमि न कारवेम करन्तंपि अन्नं न समजाणामि तस्स भन्ते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पा वोसिरामि । पढमे भंते ! महत्वए पाणाइवायाओ वेरमणं । सव्वं भंते! पाणाइवायं पच्चक्खामि, से सुहुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वा नेव सयं पाणे श्रइवापज्जा, नेवन्नेहिं पाणे अहवा१. समयुजाणिज्जा । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेत्रालियसुत्तं अज्झयण ४ यावेज्जा, पाणे अइवायंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कापणं न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पारणं वोसिरामि । पढमे भन्ते ! महव्वर उवट्टिो मि, सव्वाश्रो पाणाइवायाओ वेरमणं ।।१।। अहावरे दोच्चे भन्ते ! महब्बए मुसावायाओ वेरमणं । सव्वं भन्ते ! मुसावायं पच्चक्खामि, से कोहा वा लोहावा भया वा नेव सयं मुसं वएज्जा, नेवन्ने हिं मुसं वायावेज्जा, मुसं वयन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेण वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणां वोसिरामि । दोच्चे भन्ते ! महत्वए उवटियो मि, सव्वाअो मुसावायाओ वेरमणं ।।२।। ____ अहावरे तच्चे भन्ते ! महव्वए अदिन्नादाणाश्रो वेरमणं । सव्वं भन्ते ! अदिनादाणं पच्चक्खामि, से गामे वा नयरे वा रएणे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमन्तं वा अचित्तमन्तं वा नेव सय अदिन्न गिरहेजा, नेवन्ने हिं अदिन्नं गिराहावेजा, अदिन्नं गिरहन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिवेहेणं मणे वायाए काप न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्न न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । तच्चे भन्ते ! महत्वए उवट्ठिो मि, सव्वाओ अदिन्नादाणानो वेरमणं ॥३॥ अहावरे चउत्थे भन्ते ! महव्वए मेहुणाश्रो वेरमणं । सव्वं भन्ते ! मेहुणं पच्चक्खामि से दिव्वं वा माणुसं वा तिरिक्खजोणियं वा नेव सयं मेहुणं सेवेजा, नेवन्नेहिं मेहुणं सेवावेजा Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ४ दसवेआलियसुतं मेहुणं सेवन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणे वायाए काए न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पारणं वोसिरामि । चउत्थे भन्ते ! महव्वर उवडिओ मि, सव्वाअो मेहुणाश्रो वेरमणं ।।४।। अहावरे पंचमे भन्ते ! महब्वए परिग्गहारो वेरमयां । सव्वं भन्ते ! परिग्गहं पच्चक्खामि, से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं परिग्गहं परिगिरहेज्जा, नेवन्ने हिं परिग्गहं परिगिराहावेज्जा, परिग्गहं परिगिरहन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कापणं न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्ल भन्ते पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिगमि। पंचमे भन्ते ! महव्वए उवडिओ मि, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥५॥ ___ अहावरे छठे भन्ते ! वए राइभोयणाओवेरमणं । सव्वं भन्ते ! राइभोयां पच्चक्खामि से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा नेव सयं राई भुजेज्जा, नेवन्नेहिं राई भुजावेज्जा राई भुजंते वि अन्ने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए ति विहं तिविहेण मणेण वायाए कारण न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्न न समणुजाणामि, तस्ल भन्ते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्याणं वोसिरामि । छठे भन्ते ! वए उवट्टिो मि; सव्वाश्रो राइभोयगाओ वेरमणं ॥ इच्चेयाइं पंच महव्ययाई राइभोयणवेरमणछट्ठाई अत्त हियट्टयाए उपजित्तागो विहरामि ॥६॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियसुत्त अज्झयण ४ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा, से पुढविं वा भित्तिं वा सिल वा लेखें वा ससरक्खं वा कायं ससरक्खं वा वत्थं हत्थेण वा पारण वा कट्टेण वा किलिंचेण वा अङ्गुलियाए वा सलागाए वा सलागहत्येण वा न आलिहेजा न विलिहेजा न घट्टेजा न भिन्देजा, अन्नं नालिहावेजा न विलिहावेजा न घट्टावेजा न भिन्दावेजा, अन्नं पालिहन्तं वा विलिहन्तं वा घट्टन्तं वा भिन्दन्तं वा न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणे वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करन्त पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पारणं वोसिरामि ॥७॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिवा वाराओ वा एगो वा परिसागो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा, से उदगं वा ओसंवा हिमं वा महियं वा करगं वा हरतणुगं वा सुद्धोदगं वा उदउल्लं वा कायं उदउल्लं वा वत्थं, ससिणिद्धं वा कायं, ससिणिद्ध वा वत्थं नामुसेज्जा न संफुसेज्जा न आवीलेज्जा न पवीलेज्जा न अक्खोडेज्जा न पक्खोडेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा, अन्नं नामुसावेज्जा न संफुसावेज्जा न आवीलावेज्जा न पवीलावेज्जा न अक्खोडावेज्जा न पक्खोडावेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा, अन्नं आमुसन्तं वा संफुसन्तं वा प्रावीलन्तं वा पवीलन्तं वा अक्खोडन्तं वा पक्खोडन्तं वा पायावन्तं वा पयावन्तं वा न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्नं १. कलिंचेण । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्झवण ४ दसवेत्रालियनुत्त न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पारणं वोसिरामि ॥८॥ से भिषायू वा भिक्खणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपायकम्मे दिया वा गओ वा एगो बा परिसागो वा सुत्त वा जागरमाणे वा, से अगणिं वा इङ्गालं वा मुम्मुरं व अञ्चि वा जाळं वा अलायं वा सुद्धागणिं वा उकं वान उजेज्जा न घट्टेज्जा न भिंदेउजा न उज्जालेज्जा म पज्जालेज्जा न निव्वावेज्जा, अन्नं न उंजावेज्जा न घट्टावेज्जा न भिंदावेज्जा न उजालावेजा न पजालावेजा न निव्वावेजा, अन्नं उंजतं या बदृतं वा भिदंतं वा उज्जालंतं वा पज्जालंतं वा निव्वावंतं वा म समरणुाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेगा वायाए काएगां न करेमिन कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समजाणामि तस्स भन्ते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पा वोलिरामि ॥६॥ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा रोप्रो वा एगओ वा परिसामानो वा सुत्त वा जागरमाणे वा, से सिरण वा विहुयणेण का तालियंटेण वा पत्तण वा पत्तभंगेण वा साहाए वा साहाभंगेल वा पिढोण वा पिहुमहत्थेण वा चेलेण वा चेलकरामेण वा हत्येण वा मुहेण वा अप्पणो वा कायं बाहिरं वा वि पोग्गल न 'फूमेजा, न वीएजा अन्नं न फूमावेजा न वीमावेजा अन्नं फूमन्तं वा वीयन्तं वा न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविई तिविहेणं मणेणं वायाए काए न करेमि न कारवेमि करें पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि १. फुमेज्जा। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० जीवम-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयम ४ गरिहामि अप्पाणं वोसरामि ॥१०॥ "से मिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चस्खायपावकम्मे दिया वा राम्रो वा एगो वा पस्सिागो का सुत्ते वा जागरमाणे वा, से बीपसु वा बीयपइटेसु वा रूढेसु वा रूढपइष्टेसु वा जाएसु वा जायपइटेसु वा हरिएसु वा हरियपइडेसु वा छिन्नेसु वा छिन्नपइट्टेसु वा सचित्तेसु वा सचित्तकोलपडिनिस्सिएसु वा.न. गच्छेजा न चिडेजा न निसीएजा न तुयहेजा, अन्न न गच्छावेजा न चिट्ठावेजा न निसीयावेजा न तुपट्टावेजा, अन्नं गच्छन्तं वा चिटुंतं वा निसीयन्तं वा तुयट्टन्तं वा न समशुजाणासि जावजीचाए तिविहं तिबिहेणं मणेणं वायाए काए न करेमि न कारवेमि करन्सं पि अन्न न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ ११ ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्लायपावकम्मे दिा वा राम्रो पा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा, से कीड वा पथंग वा कुन्थु वा पिवीलिय या हत्थंसि वा पायंसि वा बाहुंसि वा ऊरंसि वा उदरंसि वा सीसंसि वा वत्थंसि वापडिग्गहंसि-या कंबलगंसि या पाय-पुंछसि वा रयहरसि वा गोच्छगंसि वा उडुगंसि वा दण्डगसि वा पीढगंसि वा फलगंसि वा सेजंसि वा संथारगंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पमारे उघगरपजाए तो संजयामेव 'पडिलेहिय पडिले हिय पमजिय पजिय एगन्तमवरज्जा, नो णं संघायमावज्जेज्जा ॥ १२॥ अजयं चरमाणो उ' पाणभूयाइं हिंसइ । बन्धइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ।।१।। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभयग ४ . दसैवेआलियसुतं - - - - अजयं चिट्ठमाणो उ पाणभूयाई हिलइ । बन्धह पावयं कम्म, तं ले होइकडुयं फलं ॥२॥ अजयं पासमाणो उ पाराभूयाई हिंसइ । बन्धई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ।।३।। अजयं सयबाणो उ पाणभूयाई हिंसा । बन्धइ पावयं काम. तं से होइ कडयं फलं ॥४॥ अजयं भुञ्जमाणो उ पाणथूयाई हिंसा । बन्धइ पावयं कम्म, तं से होइ. कडयं फलं ॥५॥ अजय भासमायो उ पारणभूयाइं हिंसइ । बन्धइ पावयं कम, सं से होइ कडुयं फलं ॥६॥ कहं चरे ? कह चिट्टे ? कहमा ? कहं सए ? कहं भुजंती मासंतो पावं कम्मं न बन्धा ? ॥७॥ जयं चरे, जयं चिट्टे, जयमाले, जयं सए । जयं भुञ्जन्तोभासन्तो पावं कम्मं न बन्धइ | सयभूयप्पभूयस्स सम्मं भूयाई पासओ। पिहियासवस्स दन्तस्स पावं कम्मन बन्धह ॥६॥ पढमं माण तओ दया, एवं चिट्टइ सव्वसंमए । अनाणी किं काही किं वा 'नाहिइ छेयशवगं ॥१०॥ सोचा जाणइ कल्ला सोच्चा नामइ पावगं । उभयं पिजाणइ सोच्चा जं छेयं तं समापरे ।।११।। जो जीवे वि न याणाइ आजीवे वि न याद। . जीवाजीवे अयाणन्तो कह सो नाहीइ संजमं ॥१२॥ जो जीवे वि घियाणे अजीचे वि वियाणइ । जीवाजीवे वियागन्तो सो हु नाहीइ संजमं ॥१३॥ songm anianimuanimum १. नाही। २. सेय। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२. जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ४ जया जीवमजीवे य दो वि एए वियाणइ । तया गई बहुविहं सम्वजीवारण जाणइ ॥१४॥ नया गई बहुविहं सध्वंजीवाण जाणइ । सया पुराणं च पावं च बन्धं मोक्खं च जाण्इ ॥१५॥ सया पुराणां च पाधं च बन्ध मोक्खं च जाणइ । तया निधिन्दए भोए जे दिव्वे जे य माणुसे ।।१६।। नया निविदए भोए जे दिवे जेय माणुले । तया चयाइ संजोगं सम्भितरबाहिरं ॥ १७ ॥ अया चयइ संजोगं सभितरबाहिरे । तया मुरडे भविसाणं पन्बयइ अणगारियं । १८ जया मुण्डे भपित्ताणं पव्वयइ अरणगारियं । त्या संवरमुकिट्ट थम्म फासे अणुत्तरं ॥ १६ ॥ जया संघरमुक्किट्ठ धम्मं फासे अणुत्तरं । बया धुरपड कम्मरयं अबोहिकलुर्स कंड ॥ २० ॥ अथा धुणइ, कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं । वया सवचगं नाणं दसणं चामिगच्छद ॥ २१ ।। जया सब्यत्तगं नाणं दसणं चाभिगच्छद। . सया लोगमलोगं च जियो जाणइ केवली ॥ २२ ॥ जया लोगमलोग च जिरमा जाइ केवली। तया जोगे निलंभित्ता सेलेसिं पडिवजह ॥ २३ ॥ जथा जोगे निलंमित्ता सेलेसिं पडिवजह । तया कम्म खवित्ता सिद्धिं गच्छइ नीरओ ॥ २४॥ जया कम खविचारां सिद्धिं गच्छइ नीरओ। तया लोगमत्थयत्थो सिद्धो हवइ सासश्रो ॥ २५ ॥ सुहसायगस्स समणस्स सायाङ्लगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोअस्स दुलहा सुगइ तारिसगस्स ॥२६॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ५-१ दसवेआलियसुचं तवोगुणपहाणस्ल उज्जुमाइखन्तिसंजमरयस्स । परीसहे जिवंतस्त्र सुखहा सुगइ तारिसगस्स ॥ २७ ॥ पच्छा वि ते पयाया खिप्पं गच्छन्ति अमरभवणाई। जेसि पिओ तवो संजमो य खन्ती यबम्भचेरं च ॥ २८॥ इच्चेयं छज्जीवणिय सम्मद्दिडी सया जए । दुलह लहित्तु सामएणं कम्मुणा न विराहिज्ञासि ॥ २६ ॥ ॥ ति बेमि। ॥ चउत्थं छज्जीवणियज्झयणं समत्तं ॥ ॥ पिसणा नामं पंचममभयणं-पडयो उसमो॥ संपत्त मिक्खकालम्मि असंभन्तो प्रमुच्छियो । इमेण कमजोगेण भत्तपाणं गलए ॥ १ ॥ से गामे वा नयरे वा गोयरग्गगो मुणी । घरे मन्दमणुव्यिग्गा अव्यक्खित्तेण चेयसा ॥२॥ पुरओ जुगमायाए पेहमाणो महिं चरे। वजन्तो बीयहरियाए पाणे य दगमट्टियं ॥ ३॥ . शोवाय विसम स्वाणुं विजलं परिषज्जए । संकमेण न गच्छेज्जा विजमाण परक्कमे ॥४॥ षयडन्ते व से सत्थ पक्खलन्ते व संजए। हिंसेज पाणभूयाई तसे अदुव थावरे ॥ ५॥ तम्हा तेण न गच्छेज्जा संजए सुसमाहिए। सह अम्नेण मग्गेण जयमेव परक्कमे ॥६॥ इङ्गाल छारियं रासिं तुसरासिं च गोमयं । ससरक्खेहिं पाएहिं संजओ तं नइकमे ।। ७ ।। म चरेज वासे वासन्ते महियाए व पडतिए । महावाए व वायंते तिरिच्छसंपाइमेसु वा ॥८॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ५-२ न चरेज वेसासामन्ते बंभचेरवसाणुए । बंभयारिस्स दंतस्स होजा तत्थ विसोत्तिया ।। ६ ।। अणायणे चरंतस्स संसग्गीए अभिक्खयां । होज घयाणं पीला सामरणम्मि य संसओ ॥ १० ॥ तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवढणं । वजए वेससामंतं मुणी एगंतमस्सिए ॥ ११ ॥ साणं सूइयं गाविं दित्तं गोणं हयं गये । संडिभ कलहं जुद्धं दूरओ परिवजए ।। १२ ।। अणुन्नए नावणए अप्पट्टि प्रणाउले । इंदियाई जहाभागं दमइसा मुणी चरे ।। १३ ।। दवद्वस्स न गच्छेज्जा भालमाणे य गोयरे । हसंतो नाभिगच्छेजा कुल उच्चावयं सया ॥ १४ ॥ आलोय थिग्गल दारं सन्धि दमभवणाणि य । चरंतो न विनिझाए संकटारा क्विज्जए ॥ १५ ॥ रन्नो गिहवईणं च रहस्लारक्खियाण य । संकिलेसकरं ठाणं दूर यो परिवज्जए ॥ १६ ॥ पडिकुटकुलं न पविसे मामगं परिवज्जए । अचियतकुलं न पविसे चियत्तं पविसे कुलं ।। १७ ।। साणीपावारपिहियं अप्पणा नावपंगुरे। कवाडे नो पणाल्लेज्जा प्रोग्गहेसि अजाश्या ।। १८ ।। गोयरग्गपविट्ठो वच्चमुत्रां न धारए । प्रोगासं फासुयं नच्चा अणुन्नविय वोलिरे ॥ १६ ॥ नीयदुवारं तमसं कोट्टगं परिवजए । अचक्खुविसनो जत्थ पाणा दुप्पडिलेहगा ॥ २० ॥ ५. वसाणए । २. अणाययणे । ३-याणि । ४. अ । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियसुतं जत्य पुप्फाई बीयाई विप्पा कोट्टए । गोवलितं उल्लं ददहूणं परिवजए ॥ २१ ॥ एलगं दारंग साणं वच्छगं यावि कोट्टए । उल्लंघिया न पविसे विहित्ता व संजए ॥ २२ ॥ असंसतं पलोएज्जा नाइदरावलोयए । उत्फुल्लं न विनिज्झाए नियट्टिज्ज अयपिरो ॥ २३ ॥ भूमिं न गच्छेज्जा गोयरग्गगओ सुखी । कुलरूस भूमिं जाणिता मियं भूमिं परकमे ॥ २४ ॥ सत्थेव पडिले हिज्जा भूमिभागं वियक्खो । सिसाणस्स य वच्चस्त्र संलोगं परिवज्जए ॥ २५ ॥ दगमट्टियआयाणे बीयाणि हरियाणि य । परिव्रजन्तो चिज्जा सव्विन्दियसमाहिप ॥ २६ ॥ तत्थ से चिट्टमाणस्स आहरे पाणभोयणं । प्रियं न गेरिहज्जा, पडिगाहेज कप्पियं ॥ २७ ॥ याहरन्ती सिया तत्थ परिसाडेज भोयणं । दिन्तियं पडियाइक्खे न मे कप्पर तारिसं ॥ २५ ॥ संमदमाणी पाणाणि जीयाणि हरियाणि य । श्रसंजमकरिं नच्चा तारिसं परिवज्जए ॥ २९ ॥ साह निक्खिवित्ताणं सचित्तं घट्टियाणि य । तव समणट्टाए उदर्ग संपगोलिया ॥ ३० ॥ ग्रोगाहइत्वा चलइत्ता हरे पाणभोयणं । दिन्तियं पडियारखे न में कप्पइ तारिखं ।। ३१ ।। अन्य ५-१ पुरे हत्थे दीपू भायण वा । दिन्तियं पडिया इक्खे न मे कष्पइ तारिसं ॥ ३२ ॥ एवं उदउल्ले ससिणिद्धे ससरक्खे मट्टियाऊसे । हरियाले हिङ्गुलुप मणेोसिला जणे लोणे || ३३ ॥ १५ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला गेरुवरिण्य सेडिय सोरट्टियपिट्ठकुक्कुसकर य । उक्किमसंसट्टे संसट्टे चेव बोद्धव्वे ।। ३४ ।। असंसट्टे हत्थे दीए भायल वा । दिज्जमाणं पडिन्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे || ३६ || दोराह तु भुजमााण एगो तत्थ निमंतर | दिज्नमारणं न इच्छेज्जा छन्दे से पडिलेहए || ३७ || दोह तु भुजमाणाणं दो वि तत्थ निमंतए । दिज्जमानं परिच्छेज्जा जं तत्थेसरिये भवे ॥ ३८ ॥ गुव्विणी उन्नत्थं विधिहं पापभोयणं । भुजमाणं विवज्जेज्ज. भुत्तसेसं पडिच्छए ॥ ३६ ॥ सिया व समट्टाए गुग्विणी कालमा सिणी । उट्टिया वा निसीएज्जा निसन्ना वा पुरणुट्टए ॥ ४० ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण कप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न में कप्पइ तारिसं ॥ ४१ ॥ थरागं पिज्जमाणी दारणं वा कुमारियं । त निक्खविश्र रोअंतं श्राहरे पाणभोवणं ॥ ४२ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण कप्पियं । दितिय पडिया इक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४३ ॥ जं भवे भक्तपाणं तु कष्पाप्यस्मि किये | 'दितिय पडियाइखे न मे कष्पइ तारिसं ॥ ४४ कगबारपण पिहियं नीसाए पीढएण वा । लोढे वा वि लेवेण सिलेले व केराइ ।। ४५ ।। तं च उभिदिना दिज्जा समणट्टाए व दावए । दितिथं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४६ ॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज्ज सुरोज्जा वा दाराट्ठा पगडे इमं ॥ ४७ ॥ अभयस ५-१ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ५-१ दसवेआलियसुतं तारिसं भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४८॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा पुराणट्ठा पगडं इमं ॥ ४६॥ तं भवे भत्तपावं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥५०॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा वणिमट्ठा पगडं इमं ॥ ५१॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५२ ॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा समणट्रा पगडं इमं ॥ ५३॥ त भवे भत्तपारणं तु संजयारण आकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५४॥ उद्देसियं कीयगड प्रइकम्मं च पाहडं । अज्झोयरपामिञ्च मीसजायं च वज्जए ॥ ५५ ॥ उग्गम से अ पुच्छेज्जा कस्सट्टा केण वा कडं । सोचा निस्संकियं सुद्धं पडिगाहेज संजए ॥ ५६ ॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। पुष्फेसु होज उम्मीसं बीएसु हरिएमु वा ॥ ५७ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५८ ॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। उदगंमि होज निक्खित्तं उत्तिंगपणगेसु वा ॥ ५६ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संनयाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६० ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ५-१ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। 'प्रगप्पिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च संघट्टिया दए ॥ ३१॥ . तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६२ ॥ एवं उस्सक्किया ओस किया उज्जालिया पज्जालिया निव्वाविया उस्सिचिया निस्सिचिया उव्वत्तिया ओयारिया दए ॥६३। तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितिय पडिवाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६४ ॥ होज कटुं सिलं वा वि इट्टाल वा वि एगया। ठवियं संकमट्राए तं च होज चलाचलं ।। ६५ ।। न तेण भिक्खू गच्छेज्जा दिट्टो तत्थ असंजमो। गम्भीरं झुसिरं चेव सविदियसमाहिए ।। ६६॥ निस्सेशि फलग पीढं उस्स वित्ताणमारुहे। मंचकीलं च पासायं समणट्ठाए व दावए । ६७ ।। दुरूहमाणी पवडेजा हत्थं पार्थ व लूसए । पुढविजीवे वि हिंसेजा जे य त निस्सिया जना॥ ६८ ॥ एयारिसे महादोसे जाणिऊण महेसिणे। तम्हा मालोहडं भिक्ख न पडिगेण्हति संजया ।। ६६ ।। कंद मूलं पलंबं वा आम छिन्नं व सग्निरं । तुंबागं सिंगवेरं च आमग परिवजए ॥ ७० ॥ तहेव सत्तुचुराणाई कोलचुराणाई आयणे । सक्कुलि फाणियं पूयं अन्न वा वि तहाविहं ॥ ७१ ॥ विकायमाणं पसदं रएण परिफासियं । दितिय पडियाइक्खें न कमाइ तारिसं ॥ ७२ ।। १. तेउम्मि । २. जगे। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ५-१ दसवेत्रालियसुत्तं बहुट्ठियं पोग्गल अणिमिसं वा बहुकंटय। अस्वियं तिंदुयं बिल्ल उच्छुखंडं च सिंबलिं ॥ ७३ ।। अप्पे सिया भोयणजाए बहुउज्झियधम्मिए । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ७४॥ तहेवुच्चावयं पारणं अदुवा वारधोपणं । संसेइमं चाउलोदगं अहुणाधोअं विवज्जए । ७५॥ जं जाणेज चिराधोयं भईए दसरमेण वा । पडिपुच्छिऊण सोच्चा वा जं च निस्संकियं भवे ।। ७६ ॥ अजीवं परिणय नचा पडिगाहेज संजए। अह संकियं भवेजा आसाइत्तारण रोयए ।। ७७ ।। थोवमासायट्ठाए हत्थगम्मि दलाहि मे। मा मे अञ्चबिलं पृइं नालं तरहंविणित्तए । ७८ ॥ तं च अचंबिलं पूइं नालं तरहं विणित्तए । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ७६ ।। तं च होज अकामेणं विमणेण पडिच्छियं । तं अप्पणा न पिये नो वि अन्नस्स दावए ॥८०॥ एगंतमवकमित्ता चित्तं पडिलेहिया। जयं परिट्टवेजा परिटुप्प पडिक्कमे ॥ ८१॥ सिया य गोयरंग्गगो इच्छेजा परिभोत्तुअं'। कोट्टगं भित्तिमूलं वा पडिलेहित्ताण फासुयं ॥ ८२ ।। अणुन्नविच मेहाची पडिच्छन्नम्मि संवुडे । हत्थग संपमजित्ता तत्थ अँजिज संजए ।। ८३ ॥ तत्थ से भुंजमाणस्स अट्टियं कराटओ सिया। तणकटुसकरं वा वि अन्नं वा वि तहाविहं ।। ८४ ।। . १-भुजिउं Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला तं उक्ख वित्तु न निक्खिवे आसएण न छडए । हत्थेण तं गर्हणं एतमवक्कमे ॥ ८५ ॥ एगंतमवक्कमित्ता श्रचित्तं पडिलेहिया । जयं परिवेज्जा परिट्टप पडिक्कमे ॥ ८६ ॥ सिया य भिक्खु इच्छेजा सेजमागम्म भोत्तुअं । सपिंडपायमागम्म उडुयं पडिलेहिया ॥ ८७ ॥ विणपण पविसित्ता सगा से गुरुगो मुणी । इरियावहियमायाय आगयो य पडिक्कमे ॥ ८८ ॥ भोएत्ताण नीसेसं श्रइयारं जहक्कमं । गमणागमणे चैव भत्तपाणे य संजए ॥ ८६ ॥ उज्जुपपन्नो अणुविग्गो अव्यक्खिसेरा चेयसा । आलोए गुरुसगासे जं जहा गहियं भवे ॥ ६० ॥ न सम्ममालोइयं होजा पुगि पच्छा व जं कडे । पुणे पडिक्कमे तस्स वोसिट्ठो चिंतर इमं ॥ ६१ ॥ अहो जिरोहिऽसावजा वित्ती साहूण देसिया | मोक्स (हे उस साहुदेहस्स धारणा ॥ ६२ ॥ नमोक्कारेण पारेत्ता करेत्ता जिणसंथवं । सायं पट्टवित्ताणं वीसमेज खां मुणी ॥ ६३ ॥ वसमतो इमं चिंते हियमङ्कं लाभमट्टिओ' । जर मे अग्गहं कुजा साहू होज्जामि तारिओ ॥ ६४ ॥ साहवो तो चियत्तेगं निमंतेज जहक्कमं । जइ तत्थ केइ इच्छेजा तेहिं सद्धिं तु भुंजए ॥ ६५ ॥ अभयण ५-१ अह कोइ न इच्छेज्जा तओ भुंजेज एकत्र । आलोए भायणे साहू जयं अपरिसाडियं ॥ ६६ ॥ १ - मस्ति । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियसुत्तं तित्तगं व कडुयं व कसायं अंबिलं व महुरं लवणं वा । एयलद्धमन्नट्ठपउत्तं महुघयं व भुंजेज संजए ॥ ६७ ॥ असं विरसं वावि सूइयं वा सूइयं । उल्लं वा जइ वा सुक्कं मंथुकुम्मासभोयणं ॥ ९८ ॥ उपपन्नं नाइहीलेजा श्रप्पं वा बहु फासूयं । मुहाल मुहाजीवी भुंजिज्ज । दोसवज्जियं ॥ ६६ ॥ दुल्लहा उ मुहादाई मुहाजीवी विदुलहा । मुहादाई मुहाजीवी दो वि गच्छन्ति सुग्गई ॥ १०० ॥ ॥ त्ति बेमि ॥ || पंचमज्झयणस्स पिंडेसरा ए पढमुद्देस समत्तो ॥ ॥ पंचमममय-त्री उद्देस ॥ पडिग्गहं संलिहित्तारां लेवमायाए संजए । दुग्गंधं वा सुगंधं वा सव्वं भुंजे न छड्डए ॥ २ ॥ सेजा निसीहियाए समावन्नो य गोयरे । अट्ठा भोच्चारणं जइ तेण न संथरे ॥ २ ॥ तओ कारणमुपने भत्तपाणं गवेसए । विहिणा उत्ते इमेणं उत्तरेण य ॥ ३ ॥ काले निक्खमे भिक्खू कालेख य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जित्ता काले कालं समायरे ॥ ४ ॥ काले चरसि भिक्खू कालं न पंडिलेहसि । अप्पाच किलामेसि सन्निवेसं च गरिहसि ॥ ५ ॥ स काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारियं । अलाभ त्ति न सोएज्जा तवो त्ति अहियालए || ६ || अभय ५-२ १. आायावयट्ठा । २१ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ जीवन- श्रेयस्कर - पाठमाला तहेवुश्च्चावया पाला भन्तट्टाए समागया । तंउज्जयं न गच्छिज्जा अयमेव परकमे ॥ ७ ॥ गोरग्गपविट्ठो उ न निसीपज्ज कत्थइ । कहं च न पबंधेज्जा चिट्टित्ताण व संजए ॥ ८ ॥ अगलं फलिहं दारं कवाडं वा वि संजए । अवलंबिया न चिट्ठज्जा गोयरग्गगओ मुणी ॥ ६ ॥ समां माहणं वा वि किविशां वा वरणीमगं । उवसंकमंतं भत्तट्ठा पाणट्टाए व संजए ।। १० ।। तं कमि न पविसे न चिट्ठे चक्खुगोयरे । एगंतमवक्कमित्ता तत्थ चिट्टेज संजय ॥ ११ ॥ वणीमगस्स वा तस्स दायगस्सुभ्यस्त वा । अप्पत्तियं सिया होजा लहुत्तं पवयणस्स वा ।। १२ ।। पडिसेहिए व दिने वा तओ तम्मि नियत्तिए । उवसंक मेज भत्तट्ठा पाट्टाए व संजय ॥ १३ ॥ उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं । अन्नं वा पुप्फसचित्तं तं च संलुंचिया दए । १४ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ १५ ॥ उप्पलं परमं वा वि कुमुयं वा मगदंनियं । अन्नं वा पुष्फल चित्तं तं च संमद्दिया दए ।। १६ ।। तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे न मे कपइ तारिसं ।। १७ ।। सालुयं वा विरालियं कुमुयं उप्पलनालियं । मुगालियं सासवनालियं उच्छुखंडं अनिवुडं ॥१८॥ तरुणगं वा पवाल रुक्खस्स तरागस्स वा । श्रनस्स वा वि हरियस्स ग्रामगं परिवज्जए ॥१९॥ अभयरण ५-२ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ५-२ दसवेआलियसुचे तरुणियं वा छिवाडि श्रामियं भजिय सइं। दितिरां पडियाइकने मे कप्पइ तारिस ॥२०॥ तहा 'कोलमणुस्सिन्नं वेलुयं कासवनालियं । तिलपप्पडगं नीम आमगं परिवज्जए ॥२१॥ तहेव चाउल पिटुं वियडं वा तत्तनिव्वुडं । तिलपिट्टपूइपिरणागं आमगं परिवज्जए ॥२२॥ कविट्ठ माउलिंगं च मूलगं मूलगत्तियं । ग्रामं असत्थपरिमाय मसला विम पत्थए ।। २३ । तहेव फलमंथूणि बीयमथूणि जाणिया । बिहेलमं फ्यिालं च आमगं परिवज्जए ॥ २४ ॥ समुयाणं चरे भिक्खू कुलं उच्चावयं सया । नीयं कुलमइकम्म ऊसढं नाभिधारए ॥२५॥ अदीको वित्तिमेसेज्जा न विसीएज्ज पंडिए । अमुच्छिो भोयणम्मि मायन्मे एसणारए ।। २६ ।। बहुं परघरे अस्थि विविहं खाइमसाइमं । न तत्थ पंडिओ कुप्पे इच्छा दिज्ज परो न वा ।। २७ ।। सयणासणवत्थं वा भत्तपा व संजए । अदितस्त न कुप्पेजा पञ्चक्खे वि य दीसत्रो ।। २८ ।। इत्थियं पुरिसंवा वि डहरं वा महल्लंग। वंदमाणं न जाएजा नो य णं फरुसं वए ।। २६ ।। जे न वंदे न से कुप्पे वंदिओ न समुकसे। पवमन्नेसमाणस्स सामरणमणुचिट्ठइ ॥ ३० ।। सिया एगइरो लद्धं लोमेण विणिगृहइ । मा मेयं दाइयं संतं दठूणं सयमायए ॥ ३१ ।। १ मणस्सिन्नं २ तत्तऽनिव्वुड Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जीक्म-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ५-२ अत्तट्ठागुरुओ लुद्धो बहुं पावं पकुव्वइ । दुत्तोसओ य से होइ निव्वाणं च न गच्छइ ।। ३२ ॥ सिया एगइरो लद्धं विविहं पाणभोयणं । भद्दगं भद्दगं भोच्चा विवरसं विरसमाहरे ।। ३३ ॥ जाणंतु ता इमे समणा आययट्ठी अयं मुणी । संतुट्टो सेवए पंतं लूहवित्ती सुतोसो॥ ३४ ॥ पूयणट्ठा जसोकामी माणसंमाणकामए । बहुं पसवइ पावं मायासल्लं च कुव्वइ ॥ ३५॥ सुरं वा मेरगं वा वि अन्नं वा मज्जग रसं । ससक्खं न पिबे भिक्खू जसं सारक्खमप्पणी ॥ ३६ ।। पियए एगो तेणो न मे कोइ वियाणइ । तस्स पस्सह देसाई नियडिं च सुणेह मे ॥ ३७ ॥ वड्डइ सोंडिया तस्स मायामोसं च भिक्खुणा । अयसो य अनिव्वाणं सययं च असाहुया ।। ३८ ॥ निच्चुविग्गो जहा तेणो अत्तकम्मेहिं दुम्मई । तारिसो मरणते वि नाराहेइ संवरं ॥ ३६ ।। आयरिए नाराहेइ समणे यावि तारिसे । गिहत्था वि णं गरहंति जेण जाति तारिसं ॥ ४०॥ एवं तु अगुणप्पेही गुणाणं च विवज्जो । तारिसो मरणंते वि नाराहेइ संवरं ॥ ४१ ॥ तवं कुव्वइ मेहावी पणीय वज्जए रसं । मज्जप्पमायविरओ तवस्सी अइउक्कसो ॥ ४२ ।। तस्स पस्सह कल्लाणं अगसाहुपूइयं । विउलं अत्थसंजुत्तं कित्तइस्सं सुणेह मे ।। ४३ ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ६ दसवेआलियसुत्त २५ एवं तु 'गुणप्पेही अगुणाणं च विवज्जो । लारिसो मरते वि आराहेइ संघरं ।। ४४ ।। श्रायरिए श्राराहेइ समणे यावि तारिसे । मिहत्था वि णं पूयन्ति जे जाति तारिसं॥४५॥ तवतेणे वइतेणे रूवतेणे य जे नरे । आयारभावतेणे य कुव्यइ देवकिब्बिसं ॥४६॥ लण वि देवत्त उवधन्नो देवकिब्बिसे । तत्थाधि से न याणाइ किं मे किच्चा इमं फलं ॥४७॥ तत्तो वि से चइत्ताणं लब्भिही एलमूअयं । नरय तिरिक्खजोणि वा बोही जत्थ सुदुलहा ॥४८॥ एयं च दोसं दळूण नायपुत्तण भासियं । अणुमायं पि मेहावी मायालोसं विवज्जए ॥४९॥ सिक्खिऊण भिक्खेसणसोहिं संजयाण बुद्धामा सगासे । तत्थ भिक्खु सुप्पणिहिइंदिए तिव्वलज्जमुणवं विहरेज्जासि ॥५०॥ त्ति बेमि॥ ॥ पंचमज्झयणस्स पिंडेसणाए बीअो उद्देसो समत्तो ॥ ॥ महल्लियायार कहा (धम्मत्थकाम) नाम छट्टमझयणं । नाणदसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं । गणिमागमसंपन्नं उज्जाणम्मि समोसढं ॥२॥ रायाणो रायमच्चा य माहणा अदुव खत्तिया। पुच्छन्ति निहुयप्पाणो कहं मे आयारगोयरो ॥२॥ तेसिं सो निहुओ दन्तो सम्वभूयसुहावहो। सिक्खाए सुसमाउत्तो आइक्खइ वियक्खणो ॥३॥ १ स गुण । २, वयतेणे । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्मायण ६ हंदि धम्मत्थकामा निग्गंथाणं सुणेह मे । आयारगोयर भीम सयलं दुरहिट्ठियं ॥४॥ नन्नत्थ परिसं वुत्तं जे लोए परमदुच्चरं । विउलट्ठाणभाइस्स न भूयं न भविस्तइ ॥५॥ सखुड्डगवियत्ताणं वाहियाणं च जे गुणा । अखंडफुडिया कायव्वा तं सुणेह जहा तहा ॥६॥ दस अट्ट य ठाणाई जाइं बालोऽवरज्झइ । तत्थ अरणयरे ठाणे निग्गन्थत्तानो भस्सह ॥७॥ वयछकं कायछकं अकप्पो गिहिभायणं । पलियङ्कनिसेज्जा य सिणाणं सोभवज्जणं ॥८॥ तथिमं पढमं ठाणं महाधीरेण देसियं । अहिंसा निउणा दिवा सव्वभूएसु संजमो ।।९॥ जावंति लोए पाणा तसा अदुव थावरा। ते जाखमजा वा न हणे नो व घायए ।। १० ॥ सव्वजीवा वि इच्छति जीविउंन मरिज्जि। तम्हा पाणवहं घोरं निग्गंथा वज्जयंति यं ॥ ११ ॥ अप्पणट्रा परट्रा वा कोहा वा जइ वा भया। हिंसगं न मुसं बूया नो वि अन्नं वयावए ॥ १२ ॥ मुखावाओ य लोगंमि सव्वसाइहि गरहिनो। अविस्मासो य भूया तम्हा मोसं विवजए ॥ १३ ॥ चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं । दंतसोहणमेत्तं पि ओग्गहंसि अजाइया ।। १४ ।। तं अप्पणा न गेरहंति नो वि गिराहावए परं । अन्नं वा गिरहमाणं पि नाणुजाति संजया ।। १५ ।। अबंभचरियं घोरं पमायं दुरहिट्ठियं । नायरंति मुगी लोए भेयाययणवजिणो ॥ १६ ॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ६ दसवेप्रालियन्सुत्तं मूलमेयमहम्मस्स महादोससमुस्सयं । तम्हा मेहुणसंसग्गं निग्गंथा वजयति णं ॥ १७ ॥ विडमुब्भेइमं लोणं तेल्लं सपि च फाणियं । न ते सन्निहि मिच्छति नायपुत्तवोरया ।। १८ ॥ लोहस्सेस अणुप्फासो मन्ने अन्नयरामवि । जे सिया सन्निहीकामे गिही, पब्वइए न से ॥११ ।। जं पि यत्थं व पायं पा कंबलं पायपुंछ । नं पि संजमलजट्टा धारंति परिहरंति य ।। २० ॥ न सो परिग्गहो वुत्तो नायपुत्तण ताइणा । मुच्छा परिमाहो वुत्तो इइ वुत्तं महेसिणा ॥ २१ ॥ सम्वत्थुवहिणा बुद्धा संरक्खणपरिग्यहे। अवि अप्पणे वि देहमि नायरंति ममाइयं २२॥ अहो निच्चं तवोकम्मं सव्वबुद्ध हिं वरिणयं । जा व लज्जासमा वित्ती एगभत्तं च भोयणं ॥ २३ ॥ संतिमे सुहुमा पाणा तसा अदुव थावरा । जाई राओ अपासंतो कहमेसणियं चरे ॥ २४ ॥ उदउल्ल बीयसंसत्तं पारमा निव्वडिया महिं । दिपा ताई विवज्जेज्जा राओ तत्थ कह चरे ॥ २५ ॥ एयं च दोसं दळूणं नायपुत्तण भासियं । सब्वाहारं न भुजति निग्गंथा राइभोयणं ॥२६॥ पुढविकायं न हिंसंति मणसा वयस कायसा। तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ २७॥ पुढविकायं विहिंसंतो हिंसइ उ तयस्लिए । तसे य विधिहे पाणे चक्खु से य अचक्खुसे ।।२८।। तम्हा एवं वियाणिता दोसं दुग्गइवड्ढणं । पुढविकायसमारंभ जावजीवाए वजए ॥ २६ ।। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ६ आउकायं न हिंसति मणसा वयस कायसा। तिविहेण करणजोए संजया सुसमाहिया ॥ ३० ॥ आउकायं विहिंसंतो हिंसइ उ तयस्सिए । तसे व विविहे पाणे चक्खु से य अचक्खुसे ॥ ३१ ।। तम्हा एयं धियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं। आउकायसमारंभ जावज्जीवाए वज्जए ॥ ३२ ॥ जायतेयं न इच्छंति पावग जसइत्तए । तिक्खमन्नयरं सत्यं सवओ वि दुरासयं ॥ ३३ ।। पाईणं पडिणं वा वि उड्ढं अणुदिसामवि । अहे दाहिणो वा वि दहे उत्सरो वि य ।। ३४ ।। भूयाणमेसमाघारो हव्ववाह न संसो । तं पईवपयावट्ठा संजया किंचि नारभे ॥३५ ।। तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । तेउकायसमारंभ जावजीवाए वजए ॥ ३६ ।। अनिलस्स समारंभं बुद्धा मन्नति तारिसं। सावजबहुल चेय नेय ताईहिं सेवियं ॥ ३७ ।। तालियंटेण पत्तेण साहापिहुयणेण धा। न ते वीइउमिच्छंति वीयावेऊण या परं ।। ३८ ॥ जं पि वत्थं व पायं वा कंबलं पायपुंछणं । न ते वायमुईरंति, जयं परिहरंति य ।। ३६ ।। तम्हा एयं विद्याणित्ता दोसं दुग्गइवटणं । वाउकायसमारंभ जावजीवाए वजए ॥४०॥ वणस्सइं न हिंसंति मणसा वयस कायसा। तिविहेण करणओएण संजया सुसमाहिया ॥ ११ ॥ वणस्सई विहिंसंतो हिंसइ उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खसे ॥ ४२ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ६ दसवेलियसुत्त तम्हा एवं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । वणस्स समारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ ४३ ॥ तसकार्य न हिंसंति मरणला वयस कायसा । तिविहे करण जोपण संजया सुसमाहिया ॥ ४४ ॥ तसकायं विहिंसंतो हिंसइ उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्नुसे ।। ४५ ।। तम्ह। एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । तसकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ ४६ ॥ जाहूं चचारि भोज्जाहूं हसिणाहार माइणि । ताईं तु विवज्जन्तो संजम अणुपालए ||३७|| पिंड सेज्जं च वत्थं च चउत्थं पायमेव य । अकप्पियं न इच्छेजा पडिगाहेज्ज कप्पियं ॥ ४८ ॥ जे नियागं ममायंति कीयमुद्देसियाह । वहं ते समणुजाणंति इइ वृत्तं महेसिणा ॥ ४६ ॥ तम्हा असणपाणाई कीय मुद्देसियाहडे । वज्जयंति ठियप्पाण। निग्गंथा धम्मजीवि ।। ५० ।। कंसेसु कंसपारसु कुंडमोसु वा पुणे । भुंजंतो असणपाणाइ आवरा परिभस्सइ ।। ५१ ।। सीओदगसमारंमे मत्तधोयणछ । जाई छति भूयाई दिट्ठो तत्थ श्रसंजमो ॥ ५२ ॥ पच्छाकम्मै पुरेकम्मं सिया तत्थ न कप्पइ । एयम न अंजति निग्गंथा गिहिभायणे ।। ५३ ।। आसंदीपलिय केसु मंचमा सालएसु वा । अशायरियमज्जाणं श्रासइत्तु सहन्तु वा ।। ५४ ।। नासंदीपलियंसु न निसेज्जा न पीढए । निमथाऽपडिलेहाए बुद्धबुत्तमहिट्टगा || ५| २६ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ६ गंभीरविजया एए पाणा दुष्पडिलेहगा। आसंदीपलियंको य एयमट्ट विवज्जिया ॥५६॥ गोयरग्गपविट्ठस्स निसेज्जा जस्स कप्पइ । इमेरिसमणायारं आवजइ अबोहियं ।। ५७ ॥ धिवत्ती बैभचैरस्स पाणाणं च वहे वहो। वणीमगपडिग्घाओ पडिकोहो अगारिणं ।। ५८ ।। अगुत्ती बंभचेरस्स इत्थीओ वावि संकणं । कुसीलघड्ढणं ठाणं दूरओ परिवजए ॥ ५६ ॥ तिसहमन्नयरागस्स निसेजा जस्स कप्पर । जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणे ॥ ६० ॥ पाहिओ वा अरोगी वा सिणाणं जो उ पत्थए । वुकंतो होइ आयारी, जढो हवइ संजमा ॥ ६१॥ संतिमे सुहमा पाणा घसासु भिलुगासु य । जे उ भिक्खू सिणायंतो वियडेणुप्पलावए । ६२ ॥ तम्हा ते न सिणायंति सीएण उसिणेण वा। जावज्जीवं वयं घोरं असिणाणमहिटुगा ।। ६३ ।। सिणाणं अदुवा कक्कं लोद्धं पउमगाणि य । गायस्सुव्वट्टणट्टाए नायरंति कयाइ वि ॥ ६४॥ नगिणस्स बा वि मुंइंस्स दीहरोमनहसिया। मेहुणा उवसंतस्स किं विभूसाए कारियं ॥ ६५ ॥ विभूसावत्तिय भिक्खू कम्म बंधइ चिक्कणं । संसारसायरे घोरे जैणं पडइ दुरुत्तरे ॥ ६६ ।। विभूसावत्तियं चेय बुद्धा मन्नति तारिसं । सावजबहुल चेय नेय ताईहिं सेवियं ॥ ६७ ॥ खवेति अप्पाणममोहदसिण। तवे रया संजमअजवे गुणे । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अझ ७ दसवेलियसुतं धुणंति पावाई पुरेकडाई नवाई पावाई न ते करेंति ॥ ६८ ॥ सवसंता श्रममा अकिंचणा ३१ सविज्जविज्जाणुगया जसंसि । उपसन्ने विमले व चंदिमा सिद्धिं विमाणाई उवैति ताइणेो ॥ ६६ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ छमहिल्लियायारकहज्झयणं समत्तं ॥ ॥ वक्कसुद्धी नामं सत्तमममयणं । चाहं खलु भासाणं परिसंखाय परागवं । दोराहं तु विषयं सिक्खे दो न भासेज सव्वसा ॥ १ ॥ जा य सच्चा श्रवत्व्वा सच्चामोसा य जा मुसा । जाय बुद्धेहिणारुणा न तं भासेज पन्नवं ॥ २ ॥ असच्चमोसं सञ्चं च अणवज्जमककसं । समुप्पेहमसद्धिं गिरं भासेज पन्नवं ॥ ३ ॥ एयं च अट्टमन्नं वा जं तु नामेइ सासयं । सभासं सच्चमोसं पि तं पि धीरो विवजए ॥ ४ ॥ वितहं पि तहामुत्तिं जं गिरं भासए नरो । तम्हा सो पुट्ठो पावेणं किं पुण जो मुसं वए ॥ ५ ॥ तम्हा गच्छामों वक्खामो श्रमु वा णे भविस्सह । अहं वा णं करिस्सामि एसेो वा णं करिस्सइ ॥ ६ ॥ एवमाइ उ जा भासा पस्सकालम्मि संकिया । संपयामट्टे वा तं पि धीरो विवजए ॥ ७ ॥ अमिय कालम्मि पच्चुत्पन्नमणा गए । जमट्ठे तु न जाणेजा एवमेयं ति नो वए ॥ ८ ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला अम्मय कालम्मि पच्चुत्पन्नमा गए । जत्थ संका भवे जं तु एवमेयं ति नो वए ॥ ६ ॥ अमिय काल पच्चुप्पन्न मला गए । निस्संकियं भवे जं तु एवमेयं ति निद्दिसे ॥ १० ॥ तव फरुसा भासा गुरुभूवघाइणी । सच्चा विसान बत्तव्वा जत्रो पावस्स आगमो ॥ ११ ॥ तव का कारने त्ति पंडगं पंडगे त्ति वा । वाहिये वा वि रोगि प्ति तेणं चोरे त्ति नो वए ।। १२ ।। एएलने श्रट्टे परा जेणुवहम्मद । श्राधारभावदोसन्नू न तं भासेज्ज पन्नवं ॥ १३ ॥ तव होले गोले त्ति सारो वा वसुले त्तिय । दमए दूहए वा विन तं भासेज पनवं ॥ १४ ॥ अजिए पजिए वा वि अम्मा माउसिए त्ति य । पिउसिए भाइज ति धुए नत्तुणिए त्ति य ॥ १५ ॥ हले हले ति श्रन्ने त्ति भट्टे सामिणि गोमिणि । होले गोले वसुले त्ति इत्थियं नेयमालवे ॥ १६ ॥ नामजेण णं बूया इत्थीगोत्तेण वा पुणे । जहारिहम भिज्भि श्रालवेज लवेज वा ॥ १७ ॥ नए पजए वा वि बप्पो चुल्लपिउत्तिय । साउ भाइरोज ति पुत्ते नचुणिय त्तिय ॥ १८ ॥ हे हो हले त्ति अन्ने त्ति भट्टे सामिय गोमिय । होल गोल वसुले त्ति पुरिसं नैवमालवे ॥ १६ ॥ नामधेयां बूया पुरिसगोत्तेण वा पुणे । जहारिहमभिगिज्झ श्रालवेज लवेज वा ॥ २० ॥ १. ने बं ३२ अज्झयण ७ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ७ दसवेत्रालियसुत्तं पंचिन्दियाणं पाणाणं एस इत्थी अयं पुमं । जाव णं न विजाणेजा ताव जाइ त्ति पालवे ॥२१॥ तहेव माणुसं पसुं पक्खि वा घि सरीसवं । थूले पमेइले वज्झे पायमित्ति य नो वए । २२ ।। परिवूढत्ति णं बूया बूया उवचिए त्ति य । संजाए पीणिए वा वि महाकाए त्ति पालवे ॥ २३ ॥ तहेव गाओ दोज्झायो दम्मा गोरहग त्ति य । पाहिमा रहजोग्गत्ति नेवं भासेज पनवं ॥२४॥ जुवं गवे त्ति एवं बूया धेणुं रसदयत्ति य । रहस्से महल्लए वा वि वए संवहणे त्ति य ॥ २५॥ तहेव गंतुमुजाणं पव्वयाणि वणणि य । रुक्खा महल्ल पेहाए नेवं भासेज पन्नवं ॥२६॥ अलं पासायखभातोरणा गिहाण य । फलिहगालनावाणं अलं उदगदोणिणं ॥ २७ ॥ पीढए चंगचेरे य नंगले मइयं सिया। जन्तलट्टी व नाभी वा गंडिया व अल सिया ।। २८ ।। आसणं सयणं जाणं होजा वा किंचुवस्सए । भूगोवघाइणिं भासं नेवं भासेज्ज पनवं ॥ २६ ॥ तहेव गंतुमुजाणं पव्वयाणि वणाणि यः । रुक्खा महल्ल पेहाए एवं भासेज पन्नवं ॥ ३० ॥ जाइमंता इमे रुक्खा दीहवट्टा महालया। पयायसाला विडिमा वए दरिसणित्ति य ॥ ३१ ॥ तहा फलाई पक्काई पायखजाइं नो वए । वेलोइयाइं टालाई वेहिमाई ति नो वए ॥ ३२॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला ३३ ॥ 'असंथा इमे अंबा बहुनिव्वडिमा फला । वएज बहुसंभूया भूयरूवत्ति वा पुणे | ॥ तवसही पक्काओ नीलिया छवी इ य । लाइमा भजिमाओ त्ति पिहुखज्जन्ति नो वए ॥ ३४ ॥ रूढा बहुसंभूया थिरा ऊसढा विय । गब्भिया पसूयाओ ससाराओ त्ति आालवे ॥ ३५ ॥ तव संखडि नचा किच्चे कज्जं ति नो वए । तेगं वा विवज् त्ति सुतित्थे त्ति य आवगा || ३६ || ias संखड बूया परियत्ति ते गं । बहुसमाणि तित्याणि श्रवगारां वियागरे || ३७ ॥ तहान पुराणाओ कायतिज्जन्ति नो वए । नावाहि तारिमाओ त्ति पाणिपेज्जन्ति नो वए ॥ ३८ ॥ बहुवाहडा अगाहा बहुसलिलुप्पिलोदगा । बहुवित्थडेोदगा या वि एवं भासेज्ज पन्नवं ॥ ३६ ॥ तहेव सावज्जं जोगं परस्सट्टाए निट्ठियं । कीरमा ति वा नच्चा सावज्जं नालवे मुखी ॥ ४० ॥ सुकडे त्ति सुपके त्ति सुच्छिन्ने सुहडे मडे । सुनिट्ठिए सुलट्ठे ति सावज्जं वज्जए मुणी ॥ ४१ ॥ पयत्तपक्कति व पक्कमालवे पयत्त छिन्नत्ति व छिन्नमालवे । पयत्तलट्ठत्ति व कैम्महेउयं पहारगाढत्ति व गाढमालवे ॥ ४२ ॥ अझयण ७ सवुक्कसं परग्धं वा उलं नत्थि परिसं । अचकित्वं अत्रियत्तं चैव नो वए ॥ ४३ ॥ १. संघडा २ - निव्वहिमा | Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ७ दसवेत्रालियसुतं सव्वमेयं वइस्सामि संव्वमेयं ति नो वए । अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ एवं भासेज्ज पन्नवं ।। ४४॥ सुक्कीयं वा सुविक्कीयं अकिज्ज किज्जमेव वा। इमं गेराह इमं मुञ्च पणियं नो वियागरे ।। ४५ ।। अप्पग्धे वा महग्घे वा कए वा विक्कए वि वा । पणियट्टे समुप्पन्ने अणवज्जं वियागरे । ४६ ।। तहेवासंजयं धीरो आस एहि करेहि वा। . सव, चिट्ठ, वयाहि त्ति नेवं भासेज्ज पन्नवं ।। ४७ ।। बहवे इमे असाहू लोए वुच्चंति साहुणो । न लवे असाहुं साहु त्ति साहुं साहुत्ति पालवे ॥ ४८ ॥ नाणदंसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं । एवं गुणसमाउत्तं संजयं साहुमालवे ॥ ४६॥ देवाणं मणुयाणं च तिरियाणं च वुग्गहे। अमुयाणं जो होउ मा वा होउ त्ति नो वए ।। ५० ।। वाग्रो वुटुं व सीउण्हं खेम धायं सिवं ति वा । कया णु होज्जा एयाणि मा वा होउ त्ति नो वए ॥ ५१ ॥ तहेव मेहं व णहं व माणवं न देव देव त्ति गिरं वएज्जा। संमुच्छिए उन्नए या पोए वएज्ज वा वुट्ट बलाहय त्ति ॥ ५२ ।। अन्तलिक्ख त्ति ण वूया गुज्झाणुचरिय त्ति य । रिद्धिमंतं नरं दिस्स रिद्धिमंतं ति पालवे ॥ ५३ ।। तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा ओहारिणी जा य परोवघाइणी । Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला 'कोह लोहा भय हाल माणवो न हासमाणो विगिरं वएज्जा ॥ ५४ ॥ सवक्कसुद्धिं समुपेहिया मुखी गिरं च दुटुं परिवज्जए सया । मिथं अट्ठे अणुवीइ भासए सयाण मज्जे लहइ पसंसणं ॥५५॥ भासाए दोसे य गुणे य जाणिया तीसे य दुट्ठे परिवज्जए सया । छसु संजए सामणि सया जए वपज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं ॥ ५६ ॥ परिक्खभासी सुसमाहिईदिए चउकसायावगए अणिस्सिए । स निद्धुणे धुन्नमले पुरेकर्ड अज्झयण द श्राराहए लोगमिां तहा परं ॥ ५७ ॥ ति बेमि ॥ | सत्तमं वक्कसुद्धी अभयणं समत्तं ॥ ॥ श्रायारणिहिनामं ममायणं ॥ आयारपणिहिं लद्धुं जहा कायव्व भिक्खुणा । तं भे उदाहरिस्सामि श्रणुपुवि सुरोह मे ॥ १ ॥ पुढवि - दग - श्रगणि- मारुय - तणरुक्ख-सबीयगा । तसा य पाणा जीव त्ति इइ वुत्तं महेसिणा ||२|| तेसिं अच्छणजोएण निच्चं होयव्वयं सिया । मणसा कायवक्केण एवं भवइ संजए ||३|| पुढविं भित्ति सिलं लेलुं नेव भिन्देन संलिहे । तिविहे करणजोएण संजए सुसमाहिए ॥ ४ ॥ १. कोहलोहभयसा व माणवी । २. धुत्त० । ३ वाऊ | Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियसुत्तं सुद्धपुढवीप न निसीए सरक्खम्मि य असणे । पमजित निसीएजा जाइत्ता जस्स उग्गहं ॥५॥ सीओदगं न सेवेज्जा सिलाघुटुं हिमाणि य । उसिणोदगं तत्तफासुयं पडिगाहेज्ज संजए ||६|| उदउलं पणो कार्य नेव पुंछे न संलिहे । समुप्पेह तहाभूयं नो गं संघट्टए मुणी ॥७॥ इंगालं अगणिं श्रच्चिं अलायं वा सजोइयं । न उंजेज्जा न घट्टेज्जा नो गं निव्वावर मुणी ॥ ८ ॥ तालियंटे पत्तेण साहाए विहुणेण वा । न वीएज्जऽप्पणो कार्य बाहिरं वा वि पोग्गलं ||६| तणरुक्खं न छिंदेज्जा फलं मूलं व कस्सइ । आमगं विविहं बीयं भणसा वि न पत्थर ॥ १० ॥ गहणेसु न चिट्ठेज्जा बीएसु हरिएसु वा । उदगंमि तहा निच्च उत्तिंगपणमेसु वा ॥ १६॥ तसे पाणे न हिंसेज्जा वाया दुव कम्मुणा । उवरओ सव्वभूएसु पासेज्ज विविहं जगं ॥१२॥ श्रट्ट सुहुमाई पेहार जाई जाणित्त संजए । दयाहिगारी भूएस आस चिट्ठ सएहि वा ॥ १३ ॥ कराई अटु सुहुमाई ? जाई पुच्छेज्ज संजए । इमाई ताई मेहावी आइक्खेज्ज वियखणे ॥ १४ ॥ सिहं पुप्फसुमं च पाणुतिंगं तहेव य । पणगं बीयहरियं च अंडसुमं च श्रमं ॥ १५ ॥ एवमेयाणि जाणित्ता सव्वभावेण संजए । अपमन्ते जए निच्च सव्वि दियस माहिए ॥ १६ ॥ धुवं च पडिलेहेज्जा जोगसा पायकम्बलं । सेज्जमुच्चारभूमिं च संथारं अदुवासणं ॥ १७ ॥ अज्झयण द ३७ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला उच्चारं पासवरणं खेलं सिंघाणजल्लियं । फासुयं पडिलेहिता परिद्वावेज्ज संजय ॥ १८ ॥ पविसित् परागारं पाणट्ठा भोयणस्स वा । जयं चिट्ठे मियं भासे न य रूवेसु मणं करे ॥ १६॥ बहुं सुइ करणेहिं बहुं अच्छीहिं पेच्छर । अज्झयण ८ यदि सुयं सव्वं भिक्लू अक्खाउमरिहइ ॥ २० ॥ सुयं वा जइ वा दिट्टु न लवेजोवघाइयं । नय केण उवाए गिहिजोगं समायरे ॥ २१ ॥ निरस निज्जूढं भद्दगं पावगं ति वा । पुट्ठो वा वि श्रपुट्ठो वा लाभालाभं न निद्दिसे || २२ ॥ न य भोयणम्मि गिद्धो चरे उछं अयंपिरो । फासुयं न भुंजेजा कीयमुद्देसियाहडं || २३ ॥ सन्निहिं च न कुव्वेजा श्रणुमायं पि संजए । मुहाजीवी असंबद्ध हवेजा जग निस्सिए ॥ २४ ॥ लूहवित्ती सुट्टे पिच्छे सुहरे सिया । श्रसुरतं न गच्छेज्जा सच्चा जिरा सासणं ॥ २५ ॥ करासोक्खेहिं सहेहिं पेम नाभिनिवेसप । दारुणं कसं फासं कारण अहियासए ॥ २६ ॥ खुहं पिवासं दुस्सेज्ज सीउराहं अरई भयं । हिया से वहिओ देहदुक्खं महाफलं ॥ २७ ॥ अत्थंगयंमि इच्चे पुरत्थाय अगुग्गए । आहारमा इयं सव्वं मणसा वि न पत्थए || २८ ॥ अति अचवले अप्पभासी मियासणे । हवेज्ज उयरे दन्ते थोवं लधुं न खिसए ॥ २६ ॥ न बाहिरं परिभवे अत्ताणं न समुकसे । सुयलाभे न मज्जेज्जा जच्चा तवस्तिबुद्धिए ॥ ३० ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ८ दसवेनालियसुत्तं से जा अजाणं वा कटु आहम्मियं पय । संवरे खिप्पमप्पा बीयं तं न समायरे ॥ ३१ ॥ अणायारं परकमा तेव गृहे न निराहवे। सुई सया वियडभावे असंसत्ते जिइंदिए ॥ ३२ ॥ अमोहं वयणं कुज्जा आयरियस्स महप्पण। तं परिगिज्झ वायाए कम्मुणा उववायए ॥ ३३ ॥ अधुवं जीविय नच्चा सिद्धिमग्गं वियाणिया । विणियट्टेज्ज भोगेसु आउं परिमियमप्पणा ।। ३४।। बलं थामं च पेहाए सद्धमारोग्गमप्पणा । खेतं काल च विन्नाय तहप्पारणं न जुंजए।। ३५ ॥ जरा जाव न पीलेइ वाही जाव न वड्डइ । आविंदिया न हायति ताव धम्म समायरे ॥३६॥ कोहं माणं च मायं च लोभ च पाववडणं । वमे चत्तारि दोसे उ इच्छतो हिय मप्पणो ॥ ३७ ।। कोहो पीइं पणासेइ माणे विणयनासो। माया मित्ताणि नालेइ लोहो सव्वविणासणा ।। ३८ ।। उवसमेण हणे कोहं माणं मद्दवया जिणे । माय चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिणे ॥ ३६॥ कोहोय माणा य अणिग्गहीया माया य लोभो य पवड्डमाणा। चत्तारिएए कसिणा कसाया सिंचंति मूलाइंपुणब्भवस्स।।४०॥ राइणिएमु विणयं पउंजे धुवसील सययं न हावइज्जा। कुम्मो ब्व अल्लीणपलीणगुत्तोपरक्कमेज्जा तवसंजमम्मि ॥४१॥ निदं च न बहु मन्नेज्जा सप्पहासं विवज्जए । मिहो कहाहिं न रमे सज्झायाि रओ सया ॥ ४२ ॥ जोगं च समणधम्मम्मि जुंजे आणलो धुवं । जुत्तो य समणधम्मम्मि अटुं लहइ अणुत्तरं ।। ४३ ।। इह लोगवारत्तहियं जेणं गच्छद सेोरगई। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ८ बहुसुयं पज्जुवासेज्जा पुच्छेजस्थविणिच्छयं ।। ४४ ॥ हत्थं पायं च कायं च पणिहाय जिइंदिए। अल्लीणगुत्तो निसिए सगासे गुरुणा मुणी ॥ ४५ ।। न पक्खो न पुरो नेव किच्चाण पिट्ठओ। न य ऊरं समासेजा चिट्रेजा गुरुणन्तिए ॥४६॥ अपुच्छिो न भासेजा भासमारणस्स अन्तरा। पिट्रिमंसं न खाएज्जा मायामोसं विवज्जए । ४७॥ अप्पत्तियं जेण सिया आसु कुप्पेज्ज वा परो । सव्वा तं न भासेउज भासं अहियगामिणि ॥४८॥ दि, मियं असंदिद्धं पडिपुराणां वियं जिय । अयंपिरमविग्गं भासं निसिर अत्तवं ॥ ४६॥ अायारपन्नतिधरं दिट्ठिवायमहिज्जगं । वायविक्खलियं नच्चा न तं उवहसे मुणी ॥ ५० ॥ नक्खत्तं सुमिणं जोग निमित्तं मन्तभेसजं । गिहिणा तं न आइक्खे भूयाहिगरणं पयं ॥ ५१ ।। अन्नट्ठ पगडं लयणं भएज्जा सयणासणं । उच्चारभूमिसंपन्नं इत्थींपसुविवज्जियं ॥५२॥ विवित्ता य भवे सेज्जा नारीणं न लवे कह । गिहिसंथवं न कुज्जा कुज्जा साहूहिं संथवं ।। ५३ ॥ जहा कुकुडपोयस्स निञ्च कुललो भयं । एवं खु बंभयारिस्स इत्थीविग्गहरो भयं ॥ ५४ ।। चित्तभित्तिं न निझाए नारिं वा सुअलंकियं । भक्खरं पिव दळूणं दिट्टि पडिसमाहरे ॥ ५५ ।। हत्थयायपडिच्छिन्न कराणनासविकप्पियं । अवि वाससई नारि भयारी विवज्जए ।। ५६ ।। विभूसा इत्थिसंसग्गो पणीयरसभोयणं । नरस्सत्तगवेसिस विसं ताल उडं जहा ।। ५७ ।। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ६-१ दसवेत्रालियसुतं ४१ अंगपच्चंगसंठाणं चारुल्लवियपेहियं । इत्थीणं तं न निझाए कामरागविवडणं ।। ५८ ।। विसएसु मणुन्नेसु पेम नाभिनिवेसए । अणिञ्च तेसिं विन्नाय परिणाम पोग्गलाण य ॥४६॥ पोग्गलाण परिमाणं तेसिं नच्चा जहा तहा। विणीयतराहो विहरे सीईभूएण अप्पणा ॥ ६॥ जाए सद्धाए निक्खतो परियायट्ठाणमुत्तमं । तमेव अणुपालेज्जा गुणे आयरियसम्मए ।।६१ ॥ तवं चिम संजमजोगयं च ___ सज्झायजोगं च सया अहिट्ठए । सूरे व सेणाए समत्तमाउहे अलमप्पणा होइ अलं परेसिं ॥ ६२॥ . सज्झायसज्झाणरयस्स ताइणो अपावभावस्स तवेरयस्स । विसुज्झई जसे मल पुरेकडं समीरिय रुप्पमलं व जोइणा ॥ ६३ ॥ से तारिसे दुक्खसहे जिइंदिए सुरण जुत्ते अममे अकिंचणे । विरायई कम्मघणम्मि अवगए कासिणब्भपुडावगमे व चन्दिमे ॥ ६४ ॥ त्ति बेमि ।। ॥ अट्ठमं आमारप्पणिही अज्झयणं समत्तं ॥ ॥विणयसमाही नाम णवममज्झयणं--पढमो उद्देसयो । थंभा व कोहा व मयप्पमाया गुरुस्तगासे विणयं न सिक्खे । ५ जं सि . Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ६-१ सो चेव ऊ तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ ॥ १ ॥ जे यावि मंदित्ति गुरुं विइत्ता डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छ पडिवज्जमाणा करंति प्रासायण ते गुरूरणं ॥२॥ पगईए मन्दा वि भवंति एगे डहरा वि य जे सुयबुद्धोववेया । आयारमंता गुणसुट्ठियप्पा जे हीलिया सि हिरिव भास कुज्जा ॥३॥ जे यावि नाग डहरं ति नच्चा प्रासायए से अहियाय होइ। एवायरियं पि हु हीलयंतो नियच्छइ जाइपहं खु मन्दे । ४ ।। पासीविसो यावि परं सुरुट्ठो किं जीवनासाउ परं नु कुज्जा। आयरियपाया पुण अप्पसन्ना अबोहिआसायण नत्थि मोक्खो ॥५॥ जो पावगं जलियमवकमज्जा प्रासीविसं वा वि हु कोवएज्जा। जो वा विसं खायइ जीवियट्ठी एसोवमाऽऽसायणया गुरूणं ॥६॥ सिया हु से पावय नो डहेज्जा आसीविसो वा कुवित्रो न भक्खे । सिया विसं हालहलं न मारे न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए ॥७॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण ६-१ दसवेलियसुत्तं जो पव्ययं सिरसा भेत्तुमिच्छे सुत्तं व सीहं पडिबोहएज्जा । जो वा दए सत्तिअग्गे पहारं एसोवमाऽऽसायणया गुरू ॥८॥ सिया हुं सीसेण गिरि पि भिंदे सिया हु सीहो कुविओ न भक्खे । सिया न भिंदेज्ज व सत्तिअग्गं न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए ॥ ६ ॥ पायरियपाया पुण अप्पसन्ना अबाहिआसायण नत्थि मोक्खो। तम्हा अणाबाहसुहाभिकंखी गुरुप्पसायाभिमुहो रमेज्जा ॥ १० ॥ जहाहियग्गी जलणं नमसे नाणाहुईमतपयाभिसित्तं । एवायरिय उवचिट्ठएज्जा अगतनाणेवगओवि संतो ॥ ११ ॥ जस्संतिए धम्मपयाई सिक्खे तस्संतिए वेणइयं पउजे । सक्कारए सिरसा पंजलीओ कायग्गिरा भो मणसा य निच्चं ॥ १२ ।। लज्जा-दया-संजम-बंभचेरं कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरू सययमणुसालयंति ते हं गुरू सययं पूययामि ॥ १३ ।। जहा निसंते तवणच्चिमाली पभासइ केवलभारहं तु । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण -२ एवायरिओ सुयसीलबुद्धिए विरायई सुरमज्झे व इंदो ॥ १४ ॥ जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो नक्वत्ततारागणपरिवुडप्पा । खे सोहइ विमले अब्भमुक्के एवं गणी सोहइ भिक्खुमज्झे ॥ १५ ॥ महागरा आयरिया महेसी समाहिजोगे सुयसीलवुद्धिए । संपाघिउकामे अणुत्तराई आराहए तोसए धम्मकामी ॥ १६ ॥ सोच्चाण मेहावि सुभासियाई सुस्सूसए पायरियऽप्पमत्तो। आराहइत्ताण गुरणे अणेगे सो पावई सिद्धिमणुत्तरं ॥ १७ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ णवमअज्झयणस्स विणयसमाहीए पढमो उद्देसो समत्तो॥ ॥णपममझयणं-बीओ उद्देसो॥ मूलाओ खंधष्पभवो दुमस्स खंधाउ पच्छा समुवेति साहा। साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता तो से पुप्फ च फलं रसोय ॥१॥ एवं धम्मस्स विणओ मूलं परमो से मोक्खो। जेण कित्तिं सुयं सिग्धं निस्सेसं चाभिगच्छइ ॥२॥ जे य चंडे मिए थद्ध दुव्वाई नियडी सढे। वुज्झइ से अविणीयप्पा कटुं सोयगय जहा ॥३॥ विणयं पि जो उवाएण चोइओ कुप्पइ नरो। . दिव्वं सो सिरिमेज्जन्ति दंडेण पडिसेहए ॥४॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियसुतं तहेव अघिणीयप्पा उववज्झा हया गया । दीसंति दुहमेहंता अभियोगमुवट्टिया ॥ ५ ॥ तव सुविणीयप्पा उववज्झा हया गया । दीसंति सुहमेहता इडि पत्ता महायसा ॥ ६ ॥ तव श्रविणीयप्पा लोगंसि नरनारिओ । दीसंति दुधमेहंता छाया ते 'विगलिंदिया ॥ ७ ॥ दंडसत्थपरिजुरा असम्भवयहिं य । कण विवन्नच्छंदा खुष्पिवासाइपरिगया ॥ ८ ॥ तहेव सुविणीयप्पा लोगंसि नरनारिओ । दीसंति सुहमेहता इर्दि पत्ता महायसा ॥६॥ तहेव विणीयप्पा देवा जक्वा य गुज्झगा । दीसंति दुहमेहंता अभियोगमुवट्टिया ॥ १० ॥ तव सुविणीयप्पा देवा जक्वा य गुज्झगा । दीसंति सुहमेहंता इर्टिं पत्ता सहायसा ॥ ११ ॥ जे रियउवज्झाय। सुस्सूसावयशंकरा । तेंसिं सिक्का पवड्ढति जलसित्ता इव पायवा ।। १२ ।। पट्टा परट्ठा वा सिप्पा नेउणियणि य । गिहिणो उवभोगट्ठा इहलोगस्स कारणा ॥ १३ ॥ जेण बंधं वह घोरं परियावं च दारुणं । सिक्aमाण नियच्छति जुत्ता ते ललिइंदिया ।। १४ ।। तेवितं गुरुं पूयंति तस्स सिप्पस्स कारणा । सक्कारंति णमंसन्ति तुट्टा निद्देसवत्तिणो ।। १५ ।। किं पुरा जे सुयग्गाही अन्तहिय कामए । आयरिया ऊं वए भिक्खू तम्हा तं नाइवत्तए । १६ ॥ १. विगलितेंदिश्रा अज्झयण् ६-२ ४५ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ६-३ नीय सेज्ज गई ठाणं नीयं च आसणाणि य । नीयं च पाए वंदेजा नीयं कुजा य अंजलिं ।। १७ ।। संघट्टइत्ता कारणं तहा उवहिणामवि । खमेह अवराहं मे वएज न पुणो त्ति य ॥ १८ ॥ दुग्गओ वा पोएणं चोइओ वहा रह। . एवं दुबुद्धि किच्चाणं कुत्तो वुत्तो पकुवइ ॥ १६ ॥ पालवंते लवंते वा न निसेजाए पडिस्सुणे । मोत्तूणं आसणं धीरो सुस्सूसाए पडिस्सुणे ॥२०॥ कालं छंदोवयारं च पडिलेहित्तारण हेउहिं । तेहिं तेहिं उवाएहिं तं तं संपडिवायए ॥ २१ ॥ विवत्ती अविणीयस्स संपत्ती विणियस्स य । जस्सेयं दुहओ नायं सिक्ख से अभिगच्छइ ॥ २४ ॥ जे यावि चण्डे मइइढिगारवे पिसुणे नरे साहस हीणपेसणे । अदिट्टधम्रे विणए अकोविए असंविभागी न हु तस्स मोक्खो ॥ २३ ॥ णिदेसवत्ती पुण जे गुरूणं सुयत्थधम्मा विणयंमि कोविया । तरित्तु ते ओह मिणं दुरुत्तरं खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया॥ २४ ॥त्ति बेमि । णवमअज्झयणम्स विणयसमाहीए बिइअो उद्देसगो समत्तो ॥ ॥ण ममज्झयणं-तइओ उद्देसो ॥ पायरिया ग्गिमिवाहियग्गी सुस्सूसमा पडिजागरिजा । आलोइयं इंगियमेव नच्चा जो छन्दमाराहयई स पुजो ॥१॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६-३ अज्झयण दसवेत्रालियसुतं ७ आयारमट्ठा विणयं पांजे सुस्सूसमाणो परिगिझ वकं । जहोवइटुं अभिकंखमाणो गुरुं तु नासाययई स पुजो ।। २।। राइणिएसु विणयं पउजे डहरा वि य जे परियाय जिट्ठा । नीयत्तणे वट्टइ सञ्चवाई __ ओवायवं वक्ककरे स पुजो ।। ३ ॥ अन्नायउंछं चरई विसुद्धं जवणट्ठया समुयाणं च निञ्च । अलद्धयं नो परिदेवएजा लडु न विकत्थयई स पुजो ॥४॥ संथारसेज्जासणभत्तपाणे अप्पिच्छया अइलाभे वि संते । जो एवमप्पाणभितोसएजा संतोसपाहन्नरए स पुजो ॥ ५॥ .. सका सह प्रासाइ कंटया अओमया उच्छहया नरेणं । प्रणासए जो उ सहेज कंटए वईमए करणसरे स पुज्जो ॥६॥ मुहुत्तदुक्खा उ हवंति कंटया : अश्रोमया ते वि तओ सुउद्धरा। वायादुरुत्ताणि दुरुद्धगणि वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ।। ७ ।। समावयंता वयणाभिघाया करणं गया दुम्मणियं जयति । धम्मो त्ति किच्चा परमग्गसूरे Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अज्झयण ९-३ जिइंदिए जो सहई स पुजो ॥८॥ अवण्णवायं च परंमहस्स पच्चक्खनो पडिगीयं च भासं । पोहारिणिं अप्पियकारिणिं च भासं न भासेज सया स पुजो ॥९॥ अलोलुए अक्कुहए अमाई अपिसुणे यावि अदीणवित्ती। नो भावए नो वि य भावियप्पा अकोउहल्ले य सया स पुज्जो ॥ १० ॥ गुणेहि साहू, अगुणेहिऽसाहू गिराहाहि साहूगुण मुच्चऽसाहू। वियाणिया अप्पगमप्पए , जो रागदोसेहिं समोस पुज्जो ॥ ११ ॥ तहेव डहरं व महल्लग वा इत्थी पुमं पव्वइयं गिहिं वा । नो हीलए नो वि य खिसएजा थंभं च कोहं च चए स पुज्जो ।। १२ ।। जे माणिया सययं माणयंति जत्तेण कन्नं व निवेसयंति । ते माणए माणरिहे तवस्सी जिइंदिए सच्चरए स पुज्जो ।। १३ ॥ तेसिं गुरूणं गुणसागराणं __ सोच्चाण मेहावि सुभासियाइं । चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो चउकसायावगए स पुज्जो ॥१४॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्झयण ९-४ दसवेत्रालियसुत्तं ४६ गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी जिणवयनिउणे' अभिगमकुसले। धुणिय रयमलं पुरेकर्ड भासुरम उलं गई गए ॥१५॥ त्ति बेमि ॥ ॥ णवमअज्झयणस्स विणयसमाहीए तइओ उद्देसो समत्तो ॥ . ॥णवममज्झयणां--चउत्थो उद्देसमो॥ सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खाय-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पराणत्ता । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पएणत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा परणत्ता तं जहा-विणयसमाही, सुयसमाही, तवसमाही, पायारसमाही। विणए सुए तवे य आयारे णिच्च पंडिया । अभिरामयंति अप्पाणं जे भवंति जिइंदिया ॥१॥ चउब्धिहा खलु विणयसमाही भवइ, तं जहा-अणुसासिज्जन्तो सुस्सूसइ, सम्मं संपडिवज्जइ, वेयमाराहयइ, न य भवह अत्तसंपग्गहिए चउत्थं पयं भवइ । भवइ य एत्थ सिलोगोः पेहेइ हियाणुसासणं सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्ठए । न य माणमएण मज्जइ वियणसमाही आययट्टिए ।।२।। चउब्धिहा खलु सुयसमाही भवइ, तं जहा-सुयं मे भविस्तइ त्ति अज्झाइयव्वं भवइ, एगग्गचित्तो भविस्सामि १-मय० । २ वए Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला त्ति अज्झाइयां भवद्द, अप्पारां ठावइस्सामि त्ति अभाइयव्वं भवइ, ठिओ परं ठावइस्समि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ, चउत्थ पयं भवइ । भवइ य एत्थ सिलोगो: ५० नामेगग्गचित्तो य ठिम्रो य ठावइ परं । सुयाणि य अहिज्जित्ता र सुयसमाहिए || ३॥ चविवहा खलु तवसमाही भवइ, तं जहा -नो इहलोगट्टयाए तवम हिट्टेजा, नो परलो गट्टयाए तवमहिद्वेजा, नो कित्तिवरणसद्द सिलोगट्टयाए तवमहिडेजा, नन्नत्थ निज्जरट्टयाए तवमहिजा चउत्थं पयं भवइ । भवइ य एत्थ सिलोगो:विविहगुणतवोरए य निच्च भवइ निरासए निज्जरट्ठिए । तवसा धुणइ पुराणपावगं जुत्तो सया तवसमाहिए || ४ || अज्झयण९-४ चव्विा खलु आयारसमाही भवद्द, तं जहा - नो इहलोगट्टयाए आयाम हिडेजा, नो परलोगट्टयाए श्रायारम हिट्ठेजा नो कित्तिवरण सह सिलोगट्टयाए श्रयारम हिडेजा, नन्नत्थ अरहन्तेहिं हेऊहिं श्रयारमहिंद्वेजा नउत्थं पयं भवइ । भवइ य एत्थ सिलोगो: जिणवयणरए अर्तितणे पडिपुराणाययमाययट्टिए । यारसमाहिसंवुडे भवइ य देते भावसंघ ||५|| अभिगम उरो समाहिश्रो सुविसुद्ध सुसमाहिप्पो । विउलहियं सुहावहं पुणे कुव्वइ सो पखेपण || ६ || Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्झयण १० दसवेालियसुत्तं जाइमरणाउ मुच्चइ इत्थंथं च चएइ सव्वसो। सिद्ध वा भवइ सासए देवो वा अप्परए महिड्ढिए ॥७॥ त्ति बेमि ।। ॥णवमं विणयसमाही अज्झयणं समत्तं ।। ॥ सभिक्खू नाम दसमं अज्झयणं । निक्खम्ममाणाइ अ बुद्धवयणे णिञ्चं चित्तसमाहियो हवेजा। इत्थीण वसं न यावि गच्छे वंतं नो पडियायइ जे स भिक्खू ॥१॥ पुढविंन खणे न खणावए सीअोदगं न पिए न पियावए । अगणिसत्थं जहा सुनिसियं तं न जले न जलावए जे स भिक्खू ॥२॥ अनिलेण न वीएन वीयावर हरियाणि न छिन्दे न छिन्दावए । बीयाणि सया विवजयन्तो सञ्चित्तं नाहारए जे स भिक्खू ॥३॥ वह तसथावराण होइ पुढवीतणकट्ठनिस्सिया।। तम्हा उद्देसियं न भुजे नो वि पए न पयावए जे स भिक्खू ॥४॥ रोइय नायपुत्तवयणे 'अप्पसमे मन्नज छप्पि काए । - १. अत्त०। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला पञ्च य फासे महव्वयाई पञ्चासवसंवरए जे स भिक्खू ॥ ५ ॥ चत्तारि वमे सया कसाए धुवजोगीय हवेज बुद्धवयणे । अहणे निजायरूवरयए गिहिजोगं परिवजए जे स भिक्खू ॥ ६ ॥ सम्मद्दिट्ठी सया अमूढे अस्थि हु नाणे तवे संजमे य । तवसा धुइ पुराणपावगं मणवय काय सुसंकुडे जे स भिक्खू ॥ ७ ॥ तहेव असणं पारागं वा विविदं खाइमसाइमं लभित्ता । होही अट्टो सुए परे घा तं न निहे न निहावर जे स भिक्खू ॥ ८ ॥ तहेव असणं पाणगं वा विविह खाइमसाइमं लभित्ता । अज्झयण १० छंदिय साहम्मियाण भुंजे भोच्या सज्झायरए य जे स भिक्खू ॥ ६ ॥ न य वुग्गहियं कहं कहिजा न 'संजमधुवजोगजुत्ते वसंते जो सहर हु गामकण्टए अक्कोस पहारतजणाओ य । १. संजमे धुवं जोगेण जुत्ते । कुप्पे निहुइदिए पसंते । विहेडए जे स भिक्खू ॥ १० ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयण १० दसवेलियसुतं भयभैरवसद्द सप्पहासे समसुहदुक्खसहे य जे स भिक्नु ॥ ११ ॥ पडिमं पडिवजिया मलाणे नो भीए भयभेरवाई दिस्स । विविध गुणतवोरए य निश्चं न सरीरं चाभिकखइ जे स भिक्खु ॥ १२ ॥ असई वोसट्टचत्त देहे कुठे व हए व लूसिए वा । पुढविसमे मुणी हवेजा अनियाणे को उहले य जे स भिक्खू ॥ १३ ॥ अभिभूय कारण परीसहाई समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं । विइत्त जाइमरणं महब्भयं तवे रए सामणिए जे स भिक्खू ॥ १४ ॥ हत्थसंजए पाय संजए 'वायसंजए संजइंदिए । अज्झप्परए सुसमाहियप्पा सुत्तत्थं च वियागह जे स भिक्खु ।। १५ ।। उवहिम्मि असुछिए अगिद्धे अन्नायउच्छं पुलनिप्पुलाए । safanaसन्निहिश्रो विरए सव्वसंगावगए य जे स भिक्खू || १६ ॥ अलोल भिक्खू न रसेसु गिद्धे उँछ चरे जीविय नाभिकखी । इढिं च सकारण पूयणं च वर ठियप्पा अणिहे जे स भिक्खू ॥ १७ ॥ ५३ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ . जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला न परं वज्जासि अयं कुसीले जेणन्नो कुप्पेज न तं वरजा । जाणिय पंत्तयं पुराणपावं ताणं न समुकसे जे स भिक्खू ॥ १८ ॥ न जाइमत्त न य रूवमत्ते न लाभमन्ते न सुरण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवज्जयंता धम्मज्भाणए य जे स भिक्खू ।। १६ ॥ पवेयर अपयं महामुजी धम्मे ठश्रो ठावयइ परं पि । निक्वम्म वज्जेज्ज कुसील लिंगं न यावि हासंकुह जे स भिक्खू ॥ २० ॥ तं देहवासं असुई असासयं सया चए निच्चहियट्ठियप्पा | छिंदि जाईमरणस्स बंधणं चू० १ उवेइ भिक्खू कुणागमं गई ॥ २१ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ सभिक्खू अज्झणं दसमं समत्तं ॥ || रक्क्का चूलिया पढमा ।। इह खलु भो पव्वइयां उत्पन्न दुक्खेणं संजमे रइसमावनचितेां ओहारगुप्पेहिणा अगोहाइपरां चेव हयरस्सिगयंकुसपोय पडागाभूयाई इमाई हारस ठाणाई सम्म संपडिलेहियव्वाइं भवन्ति । तं जहा हं भेr दुस्समाए दुप्पजीवी ॥ १ ॥ लहुलगा इत्तरिया गिहीरां कामभेागा ॥ २ ॥ भुजो य साइबहुला मगुस्सा ॥ ३ ॥ १. जेणं च - Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चूलिया १ दसवेत्रालियसुतं इमं च मे दुक्खं न चिरकालोवट्ठाई भविस्सइ ॥ ४॥ श्रोमजणपुरकारे ॥५॥ वंतस्स य पडिायणं ॥ ६॥ अहरगइवासोवसंपया ॥७॥ दुल्लमे खलु भो! गिही धम्मे गिहिवासमझे वसंतागं ॥८॥ श्रायके से वहाय होइ ॥९॥ संकप्पे से वहाय होइ ।। १० ।। सोवकेसे गिहिवासे निरुवक्केसे परियाए ॥ ११ ॥ बंधे गिहिवासे मोक्खे परियाए ।। १२ ।। सावज गिहिवासे अणवज्जे परियाए ॥ १३ ॥ बहुसाहारणा गिही काममोगा ॥१४॥ पत्तेयं पुरणपावं ॥ १५ ॥ प्रणिञ्च खलु भो मणुयाण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले ॥१६॥ बहुं च खलु भो ! पावं कम्मं पगडं ॥ १७ ॥ पावाणं च खलु भो कडाणं कम्माणं पुर्दिब दुच्चिरणाणं दुप्पडिकंताण वेयइत्ता मोक्खा; नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा मासइत्ता । अठारसमं पयं भवइ ॥ १८ ॥ भवइ य एत्थ सिलोगोः जया य चयइ धम्म अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुछिए बाले आयई नावबुज्झइ ॥१॥ जया अोहाविओ होइ इंदो वा पडिओ छमं । सम्वधम्मपरिभट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥२॥ जया य वंदिमो होइ पच्छा होह अवंदिमो। देवया व च्चुया ठाणा स पच्छा परितप्पइ ॥ ३ ॥ जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो। राया व रजप-भट्ठो ल पच्छा परितप्पइ ॥ ४॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला जया य मासिमो होइ पच्छा होइ प्रमाणिमो । सेट्ठिव्व कब्बले बूडो स पच्छा परितप्पइ ॥ ५॥ जया य थेर श्री होइ समइकंतजोव्वणा । मच्छोन्वगतं गिलित्ता स पच्छा परितप्पइ ॥ ६ ॥ जया य कुकुडंबस्स कुतत्तीहिं विहम्मइ । हत्थी व बंधणे बद्धो स पच्छा परितप्पइ ॥ ७ ॥ पुतदारपरिगो मोहसंताण संतओ । पंकोनो जहा नागो स पच्छा परितप्पइ ॥ ८ ॥ अज याहं गणी होतो भावियप्पा बहुस्सुओ । जesहं रमतो परियाए सामराणे जिणदेसिए ॥ ९ ॥ देवलोग समाज परियाश्रो महेसिणं । रयागं अरयाणं च महानरयसारिलो ॥ १० ॥ अमरोवमं जाणिय सोक्खमुत्तमं रयार परियार तहारयाणं । निरयोवः जाणिय दुक्खमुत्तमं रमेज तम्हा परियाए पंडिए ॥ ११ ॥ धम्माउ भट्ट सिरिश्रो अवेयं जन्नविज्झायमिवप्यतेयं । हीलाते रा दुव्विहियं कुसीला दादुयं घोरविसं व नागं ॥ १२ ॥ resent असो अकित्ती दुन्नानधेजं च पिहुज सम्मि । हम्म सेविण चूलिया १ चुस्त धम्मा संभावितस् य हे गई ॥ १३ ॥ भुंजित भोगाई पसज्झ चेयसा तहावि कट्टु असंजम बहुं । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चूलिया २ दसवेआलियसुत्तं . ५७ ५७ गई च गच्छे अणभिझियं दुहं __ बोही य से नो सुलभा पुणेोपुणा ।। १४ ॥ इमस्स ता नेरइयस्स जंतुणो दुहोवणीयस्स किलेसवत्तिणो । पलिअोवमं भिजइ सागरोवमं किमंग पुण मज्भ इमं मोदुहं ? ॥ १५ ॥ न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सह असासया भोगपिवास जंतुणो। न चे सरीरेण इमेणऽवेस्सइ अवेस्सई जीवियपजवेण मे ॥ १६ ॥ जस्सेवमप्पा उ हवेज निच्छिओ चएज देहं न उ धम्मसासणं । तं तारिसं नो पयलेन्ति इन्दिया उविन्तवाया व सुदसणं गिरिं ॥ १७ ॥ इच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो आय उवायं विविहं वियाणिया । कापण वाया अदु माणसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिद्विजासि ॥१८॥ त्तिबेमि॥ ॥ रइवक्का पढमा चूलिया समत्ता ॥ ॥ विवित्त चरित्राणामा बीया चूलिया । चूलियं तु पवक्खामि सुयं केवलिभासियं । जं सुणित्तु सपुजाणं धम्मे उप्पजए मई ॥१॥ अणुसोयपट्टिए बहुजणम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं । पडिसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं ॥२॥ अणुसोयसुहा लोगो पडिसोझो पासवो सुविहियाणं । अणुसोयो संसारो पडिसोश्रो तस्स उत्तारो॥३।। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला चूलिया २ तम्हा आयारपरक्कमेण संवरसमाहिबहुलेणं। चरिया गुणा य नियमा य होति साहूण दट्टव्वा ॥४॥ अणिएयवासो समुयाणचरिया __ अन्नायउंछं पइरिक्कया य । अप्पोवही कलह विवज्जणा य विहारचरिया इसिणं पसत्था ॥ ५ ॥ आइएणोमाणविवज्जणा य ओसन्नदिट्टाहडभत्तपाणे । संसट्टकप्पेण चरेज्ज भिक्खू तज्जायसंसट्ठ जई जएज्जा ॥ ६॥ अमज्जमंसासि अमच्छरीया अभिक्खणं निविगइं गया य । अभिक्खणं काउस्सग्गकारी सज्झायजोगे पयओ हवेज्जा ॥ ७ ॥ न पडिन्नवेज्जा सयणासणाई सेज्जं निसेज्ज तह भत्ता । गामे कुले वा नगरे व देसे ___ ममत्तभावं न कहिंचि कुज्जा ।। ८ ।। गिहिणो वेयावडियं न कुजा __ अभिवायणं वंदण पूयणं वा । असंकिलिटेहिं समं वसेजा मुणी चरित्तस्स जो न हाणी ॥६॥ न या लमज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एक्को वि पावाइं विवजयंतो विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो ॥१०॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियसुत्तं संवच्छरं चावि परं पमाणं वीयं च वासं न तहिं वसेजा । सुत्तस्स मग्गेण चरेज भिक्खू सुत्तस्स अत्था जह आणवे ।। ११ ।। जो पुव्वरत्तावररत्तकाले संपेई अपगमप्पए । किं मे कडं किं च मे किच्वसेसं किं सक्कणिज्जं न समायरामि ॥ १२ ॥ किं मे परो पासइ किं च अप्पा किं चाहं खलियं न विवज्जयामि । इश्च्चैव सम्मं अणुपासमाणो । अणायं नो पडिबंध कुज्जा ॥ १३ ॥ जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं चूलिया २ कारण वाया श्रदु माणसेणं । तत्थेव धीरो पडिसाहरेजा आईओ खिप्पमिव क्खीणं ।। १४ ।। जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स धिमओ सप्पुरिसस्स निच्चं । तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी सो जीवई संजमजीविण ॥ १५ ॥ पा खलु सययं रक्खियव्वो सविदिहिं सुसमाहिएहिं । कि जाइपहं उवेइ ५९ सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ ॥ १६ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ बीया चूलिया समत्ता ॥ Page #67 --------------------------------------------------------------------------  Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला - श्रीसुखविपाक सूत्रम् (१) तेणं कालेणं तेणं समए शं रायगिहे रणामं णयरे होत्था, रिद्धिस्थिमियसमिद्धे । गुण सिलए चेइए सुहम्मे अणगारे समोसढे । जंबू जाव पज्जुवासमाणे-एवं वयासी-जइ भंते! समणे भगवया महावीरे जाव संपत्तणं दुह विवागाणं अयम? पराणत्ते, सुहविवागा भन्ते ! समणे भगवया महावीरेणं जाव संपत्त के अटे पराणते ? तए णं से सुहम्मे अरणगारे जंवूअणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरे जाव संपत्ते सुहविवागाणं दस अज्झयणा पराणत्ता तंजहा-सुबाहू',भद्दनंदी य सुजाए य सुवासवे, तहेव जिणदासे', धणवई य महब्बले भद्दनंदी महचन्दे वरदत्ते । जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरे जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पराणत्ता, पढमस्स भन्ते ! अज्झयणमल मुह विवागा सपणे भगवया महावीरेण जाव संपत्त के पट्टे पर गत्ते ? तएशं से सुहम्मे अरणगारे जंबूअरणगारं एवं यासी-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला [अ०१ हत्थिसीसे णाम णयरे होत्था, रिद्धिस्थिमियसमिद्धे । तत्थ | हत्थिसीसस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थाणं पुप्फकरंडए णामं उजाणे होत्था सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे, रम्मे, नंदणवणप्पगासे पासाईप ४ । तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खायतणे होत्था दिव्वे । __ तत्थ ण हथिसीसे णयरे श्रदीणसत्तू नाम राया होत्था। महया हिमवन्त रायवराणो। तस्स णं अदीणसत्तुस्स रराणा धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था । तए णं सा धारिणी देवी अन्नया कयाइ तसि तारिसगंसि वासभव सि सीहं सुमिणे पासति जहा मेहजम्मणं तहा भाणियव्वं । गवरं सुबाहुकुमारे जाव अल मोगसमत्थं यावि जागांति २त्ता अम्मापियरो पंच पासायवडिंसगसयाई करेंति अब्भुग्गयमूसियपहसिए विव भवणं । एवं जहा महब्बलस्स रराणा। गवरं पुप्फचूलामोक्खाश पंचराहं रायवरकराणासया एगदिवसेण पाणिं गेशहान्ति तहेव पंचसो दायोजाव उपि पासायवरगते फुट्टमाण जाव विहरति । ते कालेशां तेषां समएणं समणे भगवं महावीरे समासढे । परिसा निग्गया दीसत्तू जहा कोणिए निग्गए। सुबाहुकुमारे वि जहा जमाली तहा रहेणं निग्गए । जाव धम्मा कहिओ । राया परिसा पडिगया। तए से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट्टतुट्टे उट्टाए उर्दुइ जाव एवं वयासी-सदहामि णं भन्ते ! निग्गंथं पावयणं जाव जहा णं देवाणुपिया अंतिए बहवे राईसरसत्थवाहपभइउ मुंडे भवित्ता आगराओ अणगारियं पव्वइया । नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता आगाराउ अणगारिय पवइत्तए अहं एवं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुब्बयाई सत्तसिक्खावयाई Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्र० १ ] सुखविपाक सूत्रम् दुवालसविंह - मिहिधम्मं पडिवजामि । श्रहासुहं देवाणुपिया ! मा पडिवधं करेह । तएां से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वयाई सत्तसिक्खावयाई पडिवज्जइ २ ता तमेव रहं दुरूहइ २ त्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए । तेां कालेश तेां समपणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे वाली इंदभूई खाने अणगारे जाव एवं वयासी श्रोभन्ते ! सुबाहुकुमारे इट्ठे इरूवे १ कंते कंतरूवे २ पियेपियरूवे ३ मन्ने मणुन्नरूवे ४ मा मणामरूवे ५ सोमे सुभगे पियदसणे सुरूघे; बहुजणस्लवि य ां भंते ! सुबाहुकुमरे इट्ठे इरूवे ५ सोमे जाव सुरू । साहुजणस्सवियां भंते! सुवाहु कुमारे इट्ठे टुरूवे ५ जाव सुरुवे । सुबाहुणा भते ! कुमारेण इमे एयारूवा उराला माणुस्सरिद्धी किराणा लद्धा किरणा पत्ता किराणा अभिसमरणागया ? को वा एस आसी जाव किं नामर वा किं गोत्तए वा किंवा दच्चा किंवा भोच्चा किं वा समायरित्ता कस्स वा तहारूवस्स समरणस्स वातिए एगमवि श्रायरियं धम्मियं सुवयां सोच्चा जेणं इमे एारुवा माणुसरिद्धी लद्धा पत्ता श्रभिसमरणागया । एवं खलु गोयमा ! तेां कालेां तेां समएणं इहेव जंबूहीवे दीवे भारहे वासे हत्थाउरे णामं रायरे रिद्धित्थिमिय समिद्धे वर । तत्थ गं हत्थिाउरे रायरे सुमुहे गामं गाहावई परिवढे दित्त जाव अपरिभूए । तेणं कालेां तेां समएां धम्मघोसे शाम धेरे जाइसंपन्ने जाव पंचहिं समणसाहिं सद्धिं संपरिवुडे पुञ्चाणुपुवि चरमाणे गामाशुगामं दृइज्जमाणे जेणेव हत्थियाउरे गयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ २ ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गि Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला [ श्र० १ महइ २ त्ता संजणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ | तेां कालेां तेां समएणं धम्मघासारखं थेरागं अंतेवासी सुदत्ते णाम अणगारे उराले जाव तेउलेसे मासं मासेां खममाणे विहरइ । तरां सुदत्ते असमारे मासखमणपारण गसि पढमाए पोरिसीए सज्भायं करेइ । जहा गोयम तहेव धम्मघोसं थेरं पुच्छर जाव मागे सुमुहस्स गाहावइस्स हिं श्रणुपट्टे । तएां से सुमुहे गाहावई सुदत्तं श्रणमारं एजमाणं पास २ त्ता हट्ट तुट्ठे आसणाउ अन्भुट्टे २ ता पायबढाउ पचोरहर २ ता पाउयाउ मुरति २त्ता एगलाडियं उत्तरासंग करेइ २ त्ता सुदत्तं अणगारं सत्तट्टपयाई युगच्छइ २ त्ता तिक्खुत्तो श्रायाहिणं पयाहिणं करेइ २ ता वेदइ रामसह २त्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सयहत्थे विउलं असणं पास खाइमं साइमं पडिलाभिस्लामि त्ति कट्टु तुट्ठे पडिला भेमाणे वि तुट्ठे पडिलाभिए ति तुट्टे । ४ तपणं तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धेणं दायगसुद्धे पडिगाहयसुद्धेणं तिदिहेां तिकरणमुद्वेणं सुदत्त अणगारे पडिलाभिए समासे संसारे परितीकए, मस्स उप निबद्धे, गिहंसि य से इमाई पंच दिव्वाई पाउब्भूयाई - तं जहा - वसुहारा बुट्ठा १ दसद्धवराणे कुसुमे निवाइए २ चेलुक्वे कए ३ आहयात्री देवदुदुहीओ ४ अंतरा वियणं आगासंसि अहो दाणं घुट्टे य ५ । तए णं हथिगाउरे लयरे सिंघाडग जाव पसु बहुजतो रामराणस्स एवमाइक्लइ ४ धन्ने देवाणुपिया सुमुहे गाहाबई जाव तं धन्मे देवाणुपिया सुमुहे गाहावई । से सुमुहे गाहावई बहूई वासाई श्राउयं पाले २ ता कालमासे कालं किच्चा इहेच हत्थिसी से रायरेश्रदीएस तर Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०१] सुखविपाक सूत्रम् त्तुरराणो धारिणीप देवीए कुच्छिसि पुत्तत्तए उववरणे । तए णं सा धारिणी देवी सय णिज्जंसि सुत्तजागरा अोहीरमाणी २ तहेव सीहं पासइ । सेसं तं चेव जाव उपि पासायवरगए विहरइ.। तं एवं खलु गोयमा ! सुबाहुणा कुमारे इमे एयारूवा मार्गुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमरणागया। पभू णं भन्ते! सुबाहुकमारे देवाणुपिया अंतिए मुंडे भवित्ता आगाराउ अरणगारियं पध्वात्तए ? हंता पभू। तए शं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ २ त्ता संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरह। ___ तए णं से समणे भगवं महावीरे अराणया कयाइ हत्थिसीसाउणयराउ पुप्फकरंडयाउ उजाणाउ कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खायतणाउ पडिनिक्खमइ २त्ता बहिया जणवयविहार विहरइ । तर ए से सुब हुकुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवा जीवे जाव पडिलामेमाणे विहरइ। तए णं से सुबाहुकुमारे अराणया कयाइ च उदसट्टमुदिपुराणमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता पोसहसाला पमजइ २त्ता उच्चारपासवरणं भूमि पडिलेहइ २त्ता दब्भसंथारगं संथरेइ २त्ता दब्भसंथारगं दुरूहइ २ त्ता अट्टमभत्तं पगिराहइ २ त्ता पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ। तए णं तस्स सुवाहुस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्ल इमे एयारूवे अज्झथिए ५ समुप्पन्न-धराणा णं ते गामागरणगर जाव सन्निवेसा जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ । धन्ना र ते राईसर जाव सस्थवाहपभइउ जे णं समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता आगाराउ अणगारियं पब्वयंति, धराणा ते राईसर Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन- श्रेयस्कर - पाठमाला [ श्र० १ जाव सत्थवाह पभइउ जेसां समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं पडिसुगंति । तं जइ गं समणे भगवं महावीरे पुव्वा पुव्विं चरमाणे जाध गामाणुगामं दूइजमाणे इहमा गच्छेजा जाव विहरेजा तए गं ग्रहं समणहस भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वज्जा । w तएां समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्स कुमारस इमं एयारूवं अज्झत्थियं जाव वियाणित्ता पुव्याणुपुषि चरमाणे जाव गामागमं दूइजमाणे जेणेव हत्थिसीसे रायरे जेणेव पुष्करंडे उज्जाणे जेणेव कयवगमालपियस्स जक्खस्स जक्खायत तेणेव उवागच्छइ २ त्ता ग्रहापडिरूवं उग्गहं उगिरिहन्ता संजमेां तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ । परिसा, राया निग्गया । तए गं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स तं महया जहा पढमं तहां निग्गओ । धम्मो कहिओ परिसा राया पडिगया । तर से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए धर सोच्चा निसम्म हट्ट तुट्टे । जहा मेहो तहा ग्रम्मापियरे पुच्छर । निक्खमणाभिसेओ तहेव जाव अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी । तए रां से सुवाहु अणगारे समस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेरारां अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई श्रहिंजर २ ता बहूहिं चरथम तवोविहाणेहिं अप्पासां भावित्ता बहूई वासाइं सामरणपरियागं पाउणित्ता मासियाव संलेहयाए पाणं सित्ता सहि भत्ताई ग्रवसणाई छेदित्ता आलोय पडिक्कते समाहिपते कालमासे काले किच्चा सोहम्मेकप्पे देवत्ताए aar | से णं तओ देवलोगाओ या उक्खएरणं भवक्खएणं ठिइक्खणं अांतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ २ ता Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० १] सुखविपाक सूत्रम् केवलवोहिं बुज्झिहिइ २ त्ता तहारूवाण थेरारनं अतिए मुंडे भवित्ता जाव पवइस्सइ । से ए लत्थ बहूई वासाई सामरणपरियाग पाउणिहिइ २त्ता आलोइय पडिक्कते समाहिपत्त कालमासे काल किच्चा सणकुमारे कप्पे देवताए उववरणे । से गां तो देवलोगाउ माणुस्सं जाव पवज्जा । बंभलोए । ततो माणुस्सं महासुक्के । ततो माणुस्सं प्राण ए देवे । ततेा माणुस्सं । ततो पारणे । ततो माणुस्सं सव्यसिद्ध । से गं तो अशंतर चयं च इत्ता महाविदेहे वासे जाव अंड जहा दढपइन्ने सिज्झिहित्ति बुझिहित्ति मुञ्चिहिति परिनिबाहिति सव्वदुक्खायामत करेहिति । एवं खलु जंबू ! समणेगां भगवया महावीरेशां जाव संपत्तणं सुहविवागाणं पडमस्स अज्झयणस्स अयम्टे पराणत्ते त्तिबेमि । इइ सुह विवागस्स पढम अज्मय समतं ॥१॥ (२) वितियस्त उक्खेवो । एवं खलु जंबू ! तेण कालेण तेणं समरणं उसमपुरे गाम णयरे थूभकरंडगं उजाणं । धरणे जक्खो । घणवहा राया सरस्सई देवी । सुमिणदसणं, कहणं, जम्प्र, बालत्तणं, कल ओ य जोवणे पाणिग हरणं, दाओ पासादा य भोगा य जहा सुवाहुस्त णवरं भद्दनंदी कुमारे । सिरीदेवी पामोक्खा पंचसया। सामिस्स समोसरणं । सावगधम्म । पुवभव पुच्छा। महाविदेह वासे पुंडरिगिणि नगरीए विजए कुमारे जुगबाह लिस्थयरे पडिलाभिए माणुस्लाउए निवडू इह उववशयो । रुसं जहा सुबाहुस्स जाव महाविदेहेवासे सिभिहिति बुझिहिति मुञ्चिहिति परिनिवाहिति सम्वदुक्खाणमंतं करेहिति । एवं खलु जंबू ! समणेषां भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं सुहविवायाणं बितियस्स अज्झयगरस अथम? पणत्त त्तिभि । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला [अ०१ __ इइ सुह विवागस्स बीय अज्झयणं समत्त ॥२॥ (३) तइयस्त उक्खेवओ। वीरपुरे णाम णयरे । मणेारमे उजाणे वीरकण्हे जक्खे, मित्त राया सिरीदेवी सुजाए कुमारे । वलसिले पामोक्ख गां पंचसयाकन्ना। सामी समोसरिए । पुन्वभव पुच्छा । उसुयारे पयरे उसुदत्ते गाहावई पुप्फदंते अरणगारे पडिलामिए मणुस्साउए निबद्ध इह उववरणे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिति ५।। इइ सुहविवागस्स तइयं अज्झयणं समत्तं ।। ३॥ (४) चउत्थस्स उक्खेवरो। विजयपुरे णयरे । गंदणवणे उजाणे असोगो जक्खो । वासवदत्ते राया । कराह सिरी देवी । सुवासवे कुमारे । भद्दा पामोक्खाणं पंचसया जाव पुत्वभव पुच्छा कोसंबी गयरी । धणपालोराया। वेसमणभद्दे अणगारे पडिलाभिए इह उववरणे जाब सिद्धे । इइ सुह विवागस चउत्थं अज्झयणं समत्तं ॥४॥ (५) पंचमस्स उक्खेवो । सोगंधियाणयरी नीलासेोगे उज्जाणे सुकालो जक्खो । अपडिहय राया सुकराहादेवी महचंदे कुमारे । तस्स अरहदत्ता भारिया। जिणदासा पुत्तो। तित्थवरागमणं जिणदासो पुवभव पुच्छा । मज्झमिया नयरी मेहरहे राया । सुधम्म अणमारे पडिलाभिए जाव सिद्ध । . इइ सुहविवागस्स पंचम अज्झयणं समत्तं ॥ ५॥ . (६) छट्ठस्स उक्खेवओ। कणगपुरे णयरे सेयासोये उजाणे। वीरभद्दो जक्खो। पियचंदे राया। सुभद्दादेवी। वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरीदेवी पामोक्खा पंचसया । तित्थयरागमणं । धणवई जुवरायपुत्त जाव पुवभव पुच्छा । मणिव Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखविपाक सूत्रम् ] [९ इया णयरी। मित्ते राया संभूइ विजए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्ध ॥ ६॥ इइ सुहविवागस्स छठें अज्झयण समत्तं ।।६।। (७) सत्तमस्स उक्खेवो । महापुरे णयरे । रत्तासोगे “उजाणे । रत्तपाउ जक्खो । बले राया सुभदादेवी। महाबले कुमारे । रत्तवई पामोक्खाणं पंचसया । तित्थयरागमणं जाव पुवभवं पुच्छा । मणिपुरे पयरे । णागदत्त गाहावई । इंददत्त अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे । इइ सुहविवागस्स सत्तमं अज्झयणं समत्तं ॥ ७ ॥ (८) अट्टमस्स उक्खेवयो। सुघोसे णयरे। देवरमणे उजाणे। वीरसेणो जक्खो। अज्जुणा राया। रत्तवई देवी। भद्दनंदी कुमारे । सिरीदेवी पामोक्खाणं पंचसया जाव पुव्वभवं पुच्छा। महाघोसे णयरे। धम्मघोसे गाहावई । धम्मसीहे अणगारे । पडिलाभिए जाव सिद्ध । इइ सुह विवागस्स अट्ठमं अपझयणं समत्तं ॥८॥ (६) नवमस्स उक्खेवो । चंपा णयरी । पुण्णभद्दे उजाणे पुण्णभद्दो जक्खो । दत्त राया । रत्तवईदेवी । महचन्दे कुमारे जुवराया। सिरीकन्ता पामोक्खाणं पंचसया जाव पुव्वभवं पुच्छा । तिगिच्छा णयरी । जियसत्तुराया धम्मवीरिए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। इइ सुहविवागस्स नवम अज्झयण समत्तं ।। ६ ॥ (१०) जइ णंभन्ते ! दसमस्स उक्खेवो । एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समए साइए णाम णयरे होत्था । उत्तरकुरु Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला उज्जाणे पासामिउ जक्खो मितनंदी राया । सिरीकन्ता देवी । वरदत्ते कुमारे। वीरसेणा पामोक्खाणं पंचदेवी सया । तित्थयरागमणं सावगधम्मं पुव्वभवं पुच्छा । सयदुवारे रायरे । विमलवाहणे राया | धम्मरुई अणगारे पडिलाभिए मगुस्साउप निबद्धे इह उववरणे । सेसं जहा सुबाहुस्स चिंता जाव पवजा कप्पंतरिए जाव सव्वट्टसिद्धे । तत्र महाविदेह जहा दढपणे जाव सिजिहिति ५ । एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स मट्ठे पण्णत्ते सेव भन्ते २ तिबेमि । इइ सुहविवागस्स दसमं श्रज्झयणं समरां । विवागसुयस्स दो सुयखंधा दुहविवागे य सुहविवागे य । तत्थ दुहविवागे दस अज्झयणा एक्कासरगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जन्ति । एवं सुहविवागे वि सेसं जहा आयारस्स ॥ १० ॥ ॥ इति सुखविपाकसूत्रम् ॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उववाई सूत्र ॥ २ ॥ ॥४ ॥ (अन्तिम बावीस गाथाएँ) केहि पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्ठिया ? । केहि बोंदि चइत्ता णं, कत्थ गंतूण सिज्झइ ॥१॥ अलोरो पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया। इहसे 'दि चइत्ता , तत्थ गंतूण सिज्झइ जाणं तु इह भवं चयंतस्स चरिमसमयंमि । आसी य पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स ॥३॥ दीहं वा हस्सं वा जं चरिमभवे हवेज संठा। ततो तिभागहीणं सिद्धाणेगाहणा भणिया तिणि सया तेत्तीसा धणुत्तिभागो य होइ बोधव्वा । एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया चत्तारि य रयणीओ रयपितिभागूणिया य बोधव्वा । एसा खलु सिद्धा मज्झिमोगाहणा भणिया ॥६॥ एक्का य होइ रयणी साहिया अंगुलाइ अट्ठ भवे । एसा खलु सिद्धाणं जहरणोगाहणा भणिया ॥७॥ ओगाहणाए सिद्धा भवतिभागेण होइ परिहीणा। संठाणमणित्थथं जरामरण विप्पमुक्काणं जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ प्रांता भवक्खयविमुक्का। अरणोएणसमोगाढा पुट्ठा सव्वे य लोगंते Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला फुसइ अणते सिद्ध सबपएसेहि णियमसो सिद्धो । ते वि असंखेजगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा ॥१०॥ अलरीरा जीवघशा उवउत्ता दंसणे य णाणे य । सागारमणागारं लक्खरामेयं तु सिद्धारणं केवलणागुवउत्ता जारांति सव्वभावगुणभाये। पासंति सवओ खलु केवलदिटिअरांताहि ॥१५ वि अस्थि माणुसाणं तं सोक्ख रणवि य सतदेव ज सिद्धाणं सोक्ख अव्वाबाहं उवगया १३ ॥ ज देवाणं सोक्ख सव्वद्धापिडियं अशंतगुण ण य पावइ मुत्तिसुहं ताहि वग्गवग्गृहि ॥१४॥ सिद्धस्ल सुहा रासी सम्बद्धापिंडिगो जइ हवेजों सोगंतवग्गभइयो सव्वागाले ण माएजा वि० ॥१५॥ जह णाम कोई मिच्छो गरगुणे बहुविहे सिषांतो। ण चएइ परिकहेउ उवमाए तहिं असंतीए ने ॥ १६ ॥ इय सिद्धाणं सोक्ख अवमं णत्थि तस्स ओवम्म । किंचि विसेसेणेत्तो ओवम्ममिणं सुरणह वोच्छ ॥१७॥ जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोचूण भोयणं कोई । तरहाछुहाविमुको अच्छेज जहा अमियतित्तो ॥१८॥ इय सव्वकालतित्ता अतुल निव्वाणमुवगया सिद्धा। साप्सयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥१६॥ सिद्धत्ति य बुद्धति य पारगयत्ति य परंपरगयत्ति । उम्मुककम्मकवया अजरामरा असंगा य ॥२०॥ णिच्छिण्णसम्बदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुका। अव्वाबाहं सुक्ख अणुहोति सासयं सिद्धा ॥२१॥ अतुलसुहसागरगया अव्वाबाह अवम पत्ता। सव्वमणागयमद्धं चिटुंति सुहं पत्ता ॥२२॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ सूत्रकृताङ्ग सूत्रे वीरस्तुत्याख्यं (सुच्छिस्सुणं) षष्टमध्ययनं ॥ पुच्छिस्सु र समणा माहणाय, अगारिणो थपरतित्थिाय । से केइ णेगंतहियधम्ममाहु, अणेलिसं साहु मिक्खयाए ॥१॥ कहं च णा कह दंसण से, सीलं कहं नास्यस्स आसि?। जाणालि भिक्खु जहातहेणं, अहासुयं : जहा णिसंतं ॥२॥ खेयन्नए से कुसले-महेसी, आणतनाणी अणंतदंसी। जसंसिणो चक्खुपहे ठियस्स, जाणाहि धम्माधिइंच पेहि ॥३॥ उड्ढं अहे यं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा । से चिणिच्चेहि समिक्ख पन्ने, दीवे व धम्म लमियं उदाहु ॥४॥ से सव्वदंसी अभिभूयनाणी, णिरामगंधे घिइमं ठियप्पा । अणुत्तरे सव्वजगलि विजं, गंथा अईए अभ अणाऊ ॥५॥ से भूइपरणे अणिए अचारी, अोहंतरे धीरे तचक्खू । अगुत्तरं तपाइ सुरिए वा, वइरोयणिन्दे न म पगाले ॥६॥ अनुत्तरं धामिर्ण जिशाण, रणेया मणी व आसुपन्ने । इंदेव देवास माणुभाने, सहस्तरोया दि.. यां विसिट्टे । से पन्नया अक्लयसागरे क्षामहोदी का । अनपारे । अरणाविले वा अकसाइ मुके, सक व देवबई जुइमं ॥८। से वीरिए पडिपुन्नवीरिए, सुदसणे वा : सव्वसेट्टे । सुरालए वा सि मुदागरे से, विरायए णेग गोववेए । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला सयं सहस्साण उ जोयणाणं, तिकंडगे पंडगवेजयंते । से जोयणे णवणवहसहस्से, उड्डुस्सितो हेट सहस्समेगं॥१०॥ पुढे णमे चिट्ठइ भूमिवट्ठिए, ज सूरिया अणुपरिवयंति । से हेमवन्ने बहुनंदणे य, जंसि रनिं वेदयंति महिंदा ॥११॥ से पव्वए सहमहप्पगाले, विरायइ कंचणमट्ठवन्ने। अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे, गिरीवरे से जलिएव भोमे ।।१२।। महीए मज्झमि ठिए णगिंदे, पन्नायते सूरिए सुद्धलेसे । एवं सिरीए उ स भूरिवन्ने, मणेरमे जोयइ अच्चिमाली ।।१३।। सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्ल, पवुच्चई महतो पव्वयस्स । एतोवमे समणे नायपुत्ते, जाइजसोदसणनाणसीले ॥१४|| गिरीवरे वा निसहाऽऽययाणं, रुयए व सेटे वलयायताणं । तओवमे से जगभूइपन्ने मुणीण मज्झे तमुदाहु पन्ने ॥१५॥ अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं झियाइ। सुसुक्कसुक्कं अपगंडसुकं, संखिंदुएगंतवदातसुकं ॥१६॥ अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता। सिद्धिं गए साइमणंतपत्ते, नाणेण सीलेण य ईसणेण ॥१७॥ रुक्खेसु णाए जह सामली वा, जंसिं रइं वेदयंति सुवन्ना । वणेसु वा णंदणमाहु सेहूं, नाणेण सीलेण य भूतिपन्ने ॥१८|| थणियं व सद्दाण अणुत्तरे उ, चन्दो व ताराण महाणुभावे । गंधेसु वा चन्दणमाहु सेटुं, एवं मुणीणं अपडिन्नमाहु ॥१९॥ जहा सयंभू उदहीण सेट्टे, नागेसु वा धरणिंदमाहु सेतु। खोपोदए वा रसवेजयंते, तवोवहाणे मुणीवेजयते ॥२०॥ हत्थीसु एरावणमाहु नाए, सीहो मिगाणं सलिलाण गङ्गा । पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो, निव्वाणवादीणिह नायपुत्ते ।।२१|| जोहेसु नाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु । खत्तीण सेटे जह दंतवक्के, इसीण सेटे तह वद्धमाणे ॥२२॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुच्छिरसुणं] दाणाण सेटुं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवजं वयंति । तवेसु वा उत्तम बंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ॥२३॥ ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुहम्मा व सभाण सेट्ठा । निव्वाणसेट्ठा जह सवधम्मा,न नायपुत्ता परमत्थिनाणी ॥२४॥ पुढोवमे धुणइ विगयगेही, न सण्णिहिं कुम्वइ आसुपन्ने । तरिउ समुदं च महाभवोघं, अभयंकरे वीर अणंतचक्खू॥२५॥ कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं चउत्थं अज्झत्यदोसा। एयाणि वंता अरहा महेसी, ण कुव्वा पाव ण कारवेइ ॥२६।। किरियाकिरिय वेणइयाणुवाय, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाएं । से सव्ववायं इइ वेयइत्ता, उवट्टिए संजमदीहरायं ॥२७॥ से वारिया इत्थी सराइभत्त, उवहाणवं दुक्खखयट्टयाए । लोगं विदित्ता प्रारं परं च, सव्वं पभू वारिय सधवारं ॥२८॥ सोचा य धम्मं अरहंतभासियं समाहियं अट्ठपदोवसुद्धं । तंसदहाणा य जणा प्रणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्संति॥२९॥ त्ति बेमि॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोक्षार्गनामकं एकादशाध्ययनम् कयरे मागे अक्खाए, महाणे मईमया ! जं भग्गं उज्जु पावित्ता ओहं तरइ दुत्तरं ॥१॥ तं मग्गं गुत्तरं सुद्धं सव्वदुक्खविमोक्खां । ___ जाणासि जहा भिक्खू, तंणो बूहि महामुणी ॥२॥ जइ णो के ह पुच्छिजा, देवा अदुव माणुसा। तेरितु कयरं मग्गं, प्राइक्खेज? कहाहि णो॥३॥ जह णो देइ पुच्छिजा, देवा अदुव माणुसा । तेरिमं पडिसाहिज्जा, मग्गसारं सुणेह मे ॥४॥ अणुपुब्वेण महाघोरं कासवेण पवेश्यं । जमायाय इओ पुवं, समुहं ववहारिणो ॥५॥ अतरिंसु तरंतेगे, तरिस्संति अणागया । तं सोचा पडिवक्खामि, जंतवो तं सुणेह मे ॥६॥ पुढवी जीवा पुढो सत्ता, आउजीवातहाऽगणी । वाउजीवा पुढो सत्ता, तणरुक्खा सबीयगा ।।७।। अहावर तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया । एयावर जीवकाए, णावरे कोइ विजई ॥८।। सव्वाहिं अणुजुत्तीहिं, मइमं पडिलेहिया । सब्जे अकंत दुक्खाय, अश्रो सम्वेन हिंसया ॥९॥ एयं खु गाणिणे सारं, जं न हिंसइ किंचणं । अहिंसासमयं चेव, एतावंतं वियाणिया ॥१०॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोक्षमार्गाध्ययनम् ] [ १७ उड्ढं अहे य तिरियं, जे केइ तसथावरा । सव्वत्थ विरइं विजा, संति निव्वाणमाहियं ॥११॥ पभू दोसे निराकिया, ण विरुज्भेज केराई । मणसा वयसा चैव, कायसा चेव अंतसो ॥१२॥ संबुडे से महापन्ने, धीरे दत्तेसणं चरे । एसणास मिए णिश्चं, वज्जयंते अणेसणं ॥ १३॥ भूयाइं च समारंभ, तमुद्दिस्सा य जं कडं । तारिसं तु न गिरहेजा, अन्नपाणं सुसंजय ॥ १४॥ पूइकम्मं न सेविजा एस धम्मे वुसीमओ । जं किंचि अभिकंखेज्जा, सव्वसो तं न कप्पर ॥ १५ ॥ हतं णाणुजाणेजा, आयगुत्ते जिइंदिए । ठाणाई संति सड्ढीगं, गामेसु नगरेसु वा ॥१६॥ तह गिरं समारम्भ, अत्थि पुराणंति णो वए । हवा गत्थि पुरांति, एवमेयं महष्भयं ॥ १७॥ दाट्टया य जे पाणा, हम्मंति तस - थावरा । तेसिं सारखट्टाए, तम्हा अस्थि त्ति णो वए ॥ १८ ॥ जेसिं तं उवकपंति, अन्नपाणं, तहाविहं । तेसिं लाभंतरायं ति, तम्हा स्थित्ति णो वए ॥ १९ ॥ जे य दाणं पसंसंति, वहमिच्छति पाणि । जे य णं पडि सेहंति, वित्तिच्छेयं करंति ते ||२०|| दुहओवि ते णभासंति, श्रत्थि वा नत्थि वा पुणो । श्रयं रयस्स हेच्या गं निव्वाणं पाउांति ते ॥२१॥ निव्वाणं परमं बुद्धा, राक्खत्ताण व चंदिमा । तम्हा सयाजए दंते, निव्वाणं संधए मुणी ||२२|| वुज्झमाणारा पाणाां किच्चन्ताण सकम्मुणा । घाई साहु तं दीवं, पतिट्ठेसा पवुच्चई ||२३|| Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला आयगुप्ते सया दन्ते, भिन्नसोए अणासवे । जे धम्मं सुमखाइ, पडिपुन्नमणे लिसं ||२४|| तमेव विजाणन्ता, बुद्धा बुद्धमारिणो । बुद्धामोति य मन्नता, अंत एते समाहिए ||२५|| ते य बीयोदगं चेव तमुद्दिस्सा य जं कडं । भोचा भारणं झियायंति, श्रखेयन्नाऽसमाहिया ||२६|| जहा ढंका य कंकाय, कुलला मग्गुका सिही । मच्छेणं झियायंति, झाणं ते कलुसाहमं ॥२७॥ एवं तु समणा एगे, मिच्छद्दिट्ठी अणारिया । विसएस भियायंति, कंका वा कलुसाहमा ||२८|| सुद्धं मग्गं विराहित्ता, इहमेगे उ दुम्मई । उम्मग्गगया दुक्खं, घायमेसंति तं तहा ||२६|| जहा आसाविणि नावं जाइअंधो दुरूहिया | इच्छई पारमागंतुं, संतरा य विसीय ॥ ३० ॥ एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्ठी श्रणारिया । सोयं कसिगमावना, आगंतारो महब्भयं ॥३१॥ इमं च धम्ममायाय, कासवेण पवेदितं । तरे सोयं महाघोरं, अत्तत्ताए परिव्वर ||३२|| विरए गामधम्मेहिं. जे केई जगई जगा । तेसिं तुवमायाए, थामं कुव्वं परिव्वए ॥३३॥ श्रमाणं च मायं च तं परिन्नाय पंडिए । सव्वमेयं गिरा किच्चा, शिवारां संधर मुणी ॥ ३४ ॥ संघ साहुधम्मंत्र, पावधम्मं गिराकरे | वहाणवीरिए भिक्खू, कोहं माणं ण पत्थर ||३५|| जे य बुद्धा श्रतिता, जे य बुद्धा अणागया । संति तेसिं पट्टणं, भूयाएं जगई जहा ||३६| Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोक्षमार्गाध्ययनम् ] [१६ अष्ट वयमावन्नं, फासा उच्चावया फुसे। तेसु विणिहराणेजा, वारण व महागिरी ॥३७॥ संवुडे से महापन्ने, धीरे दत्तेसणं चरे । निव्वुडे कालमाखी, एवं-यं) केवलिणो मयं ॥३८॥ ॥ इति मोक्षमार्गनामकं एकादशध्ययनम् ॥ HIRIT LINKHIYAHINDI MITHSItJI Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ उत्तरयण-सुतं ॥ विययं पढमं भयं संजोगा विप्यमुक्कस्त, अणगारस्त भिक्खुणो । विण्यं पाउ करिस्सा मि, आपुवि सुरोह मे ॥ १ ॥ आणानिद्देसकरे, गुरूणमुववायकारए । इंडियागार संपन्न, से विणीपत्ति वुच्चइ ||२॥ श्राणाऽनिद्देस करे, गुरूणमणुववायकारए । पडिणीए असंबुद्धे. विणीए ति च ॥ ३ ॥ जहा सुणी पूइकराणी, निक्कसिजर सव्वसो । एवं दुस्सीलपडिणीए, मुहरी निक्कसिजइ ॥४॥ कणकुण्डगं चइत्ताणं, विट्ठ भुजइ सूयरे । एवं सील चइत्ताणं, दुस्सीले रमइ मिए ॥५॥ सुणिया भावं सास्स, सूयरस्स नरस्स य । विए ठवेज अप्पाणमिच्छन्तो हियमप्पणी || ६ || तम्हा विषय मेसिज्जा, सीलं पडिल भेजश्र । 'बुद्धपुत्ते नियागट्ठी, न निक्कसिजर करहुई ||७ १. बुडवुत्त० । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] निसन्ते सियाऽमुहरी बुद्धा अन्तिए सया । श्रट्टजुत्ताणि सिक्खिज्जा, निरट्ठाणि उ वज्रए ॥८॥ सासि न कुपिज्जा, खंतिं सेविज्ज पण्डिए । खुड्डेहिं सह संसग्गि, हासं कीडं च वज्जए ॥६॥ माय चण्डालियं कासी, बहुयं मा य आलवे । काले य अहिज्जित्ता, तम्रो झाइज्ज एगगो ||१०|| आहच्च चण्डालियं कट्टु, न निरहविज 'कया वि । कडं कडे त्ति भासेजा, अकडं नो कडे त्तिय ॥ ११॥ मा गलियस्सेव कसं, वयणमिच्छे पुणे पुणेो । कसं व दमाइराणे, पावगं परिवज्जए ॥१२॥ " [ २१ अणासवा थूलवया कुर्सीला, मिउंपि चण्डं प्रकरिन्ति सीसा । चित्ताणुया लहु दक्खोवधेया, पसाय ते हु दुरासयपि ॥१३॥ नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए । कोहं असच्च कुवेज्जा, धारेज्जा पियमप्पियं ॥ १४ ॥ अप्पा चैव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुहमो । अप्पा दन्तो सुही होइ, असि लोए परत्थ य ||१५|| वरं मे अप्पा दन्तो, संजमेण तवेण य । माहं परेहि दम्मंतो, बंधणेहिंवहेहि य ||१६|| पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कस्मुरणा । आवी वा जइ वा रहस्से, नेव कुज्जा कयाइ वि ॥ १७॥ न पक्खन पुरओ, नेव किच्चारा पिओ । न जुंजे ऊरुणा ऊरुं, सयणे नो पडिस्सुगे ॥ १८ ॥ १. हुई । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] नेव पल्हत्थियं कुज्जा, पक्खपिण्डं च संजए । पाए पसारिए वावि, न चिट्ठे गुरुणन्ति ॥ १६ ॥ [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला रिएहिं वाहित्तो, तुसिणीओ न कयाइवि । 'पसायपेही नियागट्ठी, उवचिट्ठे गुरुं सया ||२०|| लवन्ते लवन्ते वा न, निसीएज्ज कयाइ वि । चइऊणमासणं धीरो, जो जत्तं पडिस्सुणे ॥२१॥ आस ग न पुच्छेज्जा, नेव सेज्जागओ 'कया इवि । श्रागमुक्कुडु सन्तो, पुच्छेज्जा पंजलीउडो ||२२|| एवं विणयजुत्तस्स, सूतं अत्थं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्ल, वागरिज्ज जहासुयं ||२३|| मुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणि वए । भासादोसं परिहरे, मायं च वज्जए सया ॥ २४॥ न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं, न निरटुं न मम्मयं । अप्पट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सन्तरेण वा ॥२५॥ समरे | रेसु, सन्धीसु य महापहे । 3 एगो एगत्थिए सर्द्धि, नेव चिट्ठे न संलवे ॥२६॥ जं मे बुद्धाऽणुसासन्ति, सीए फरुसेण वा । मम लाहो ति पेहाए, पयश्रो तं पडिस्सु ॥२७॥ असासणमोवायं, दुक्कडस्स य चोयणं । हियं तं मरणइ पराणे, वेसं होइ साहुणेो ॥ २८ ॥ हियं विगयभया बुद्धा, फरुसपि श्रणुसासरां । वेस्सं तं होइ मूढाणं, खन्ति सोहिकरं पयं ॥२६॥ आसणे उवचिट्ठेज्जा, अणुच्च कुक्कु थिरे । अट्ठाई निरुट्टाई, निसीएज्जण्यकुक्कुए ॥ ३०॥ १. पसायट्ठी । २. कया । ३. गिहसंधिसु श्र महापहेसु । ४. फरूसमप्पणुसासणं । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] [२३ कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिकसे । अकालं च विवज्जित्ता, काले कालं समायरे ॥३१॥ परिवाडीए न चिट्ठज्जा, भिक्खू दत्तेसणं चरे । पडिरूवेण एसित्ता, मियं कालेण भक्खए ॥३२॥ नाइदूरमणासन्ने, नऽग्नेसिं चक्खुफासओ। एगो चिटेज 'भत्तटुं, लघित्ता तं नऽइक्कमे ॥३३।। नाइउञ्च न नीए वा, नासन्ने नाइदूरओ । फासुयं परकडं पिएंड, पडिगाहेज संजए ॥३४॥ अप्पपाणेऽपबीयम्मि, पडिच्छन्नम्मि संवुडे । समयं संजए भुजे, जयं अपरिसाडियं ॥३५॥ सुकडित्ति सुपक्किति, सुच्छिन्ने सुहडे मडे । सुणिट्ठिए सुलट्ठिति, सावज्जं वज्जए मुणी ॥३६॥ रमए पण्डिए सासं, हयं भदं व वाहए। बाल सम्मइ सासंतो, गलियस्सं व वाहए ॥३७॥ खडुया मे चवेडा मे, अकोसा य वहा य मे । कल्लाणमणुसासन्तो, पावदिट्ठित्ति मन्नइ ॥३८।। पुत्तो मे भाय नाइ त्ति, साहू कल्लाण मन्नई। पावदिठिउ अप्पाणं, सासंदासि त्ति मन्नइ ॥३६॥ न कोवए आयरिय, अप्पाणंपिन कोवए । बुद्धोवघाई न सिया न सिया तोत्तगवेसए ॥४०॥ आयरियं कुवियं नञ्चा, पत्तिएण पसायए। विज्झवेज्ज पंजलीउडा, वएज्ज न पुणेात्ति य ॥४१॥ धम्मज्जियं च ववहार, बुद्धहायरियं सया। तमायरंतो ववहारं, गरहं नाभिगच्छइ ॥४२॥ १. भत्तट्ठा । २. खडु जुयाहिं चवेडाहिं अक्कोसेहिं वहेहिं य । ३. दासंव। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला मणोगयं वक्तगयं, जाणित्तायरियस्स उ । तं परिगिज्झ पायाए, कम्मुणा उववायए ॥४३॥ वित्ते अचोइए निञ्च, 'खिप्पं हवइ सुचोइए। जहोवइटुं सुकाय, किच्चाई कुबई सया ॥४४॥ नचा नमइ मेहावी, लोए कित्ती से जायए। हवई किच्चाणं सरणं, भूयाणं जगई जहा ॥१५॥ पुज्जा जस्स पसीयंति, संबुद्धा पुव्वसंथुया। पसन्ना लाभहस्संति, विउल अट्टियं सुयं ॥४६॥ स पुज्जसत्थे सुविणीयसंसए, 'मोरूई चिटई कम्मसंपया । तवोसमायारिसमाहिसंवुडे, . महज्जुई पंच वयाइं पालिया ॥४७॥ स देवगंधव्वमणुस्सपूइए, चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं । सिद्ध वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्ढीए ॥४८॥ त्ति बेमि ॥ विणयसुयं नाम पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥अह दुइ परिसहज्झयणं ॥ सुयं मे पाउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु बावीसं परीसहा लमणे भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया । जे भिक्खू तोचा नच्चा जिचा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्ययंतो पुट्ठोलो विनिहन्नेजा। कयरे ते सा बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महा१. पसन्ने थाम करे। २. मणिच्छियं संपयमुत्तमं गया। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ २५ वीरेां कासवेणं पवेश्या, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयतो पुट्ठो नो विनिहन्नेजा ? इमे ते खलु बावीस परीसहा समरोगं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयं तो पुट्ठो नो विनिहन्नेजा; तंजहा दिगिछापरीस हे १ पिवासापरीस हे २ सीयपरीसह ३ उसिणपरीस हे ४ दसमसयपरीसहे ५ अचेलपरीस हे ६ अइपरीस हे ७ इत्थी परीस हे ८ चरिया परीस हे निसीहियापरीस हे १० सेज परीस हे ११ अक्को सपरिस हे १२ वहपरीसहे १३ जायणापरीसहे १४ अलाभपरीस हे १५ रोगपरीस हे १६ तणफासपरीसहे १७ जल्लपरीसहे १८ सक्कारपुरक्कारपरीस हे १६ पन्नापरीसहे २० अन्नाणपरीसहे २१ दंसणपरीस हे २२ । परीसहाणं पविभत्ती, कासवेगं पवेइया | तं भे उदाहरिस्सामि, आपुवि सुरोह मे ||१|| 'दिगिंछापरिगए देहे, तवस्सी भिक्खू धावमं । न छिंदे न छिंदावर, न पए न पयावर || २ || कालीपव्वंगसंकासे, किसे धमणिसंतए । मायने असणपाणस्स, अदीरामणसो चरे ॥३॥ तओ पुट्ठो पिवासाए, दोगुच्छी लजसंजए । सीओदगं न सेविजा, वियडस्सेसणं चरे ॥ ४ ॥ छिन्नावासु पंथेसु, आउरे सुपिवासिए / परिसुकमुहाऽदीणे, तं तितिक्खे परीवहं ||५|| चरतं विरयं लूहं, सीयं फुसइ एगया । नाइल मुणी गच्छे, सोच्चारां जिणसासणं ||६|| १. दिगिंछापरिया वेणं । २. सव्वतो य परिव्वए । ३. विद्दन्निज्जा पावदिट्ठी बिन | Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] न मे निवारणं त्थि, छवित्तारां न विज्जइ । अहं तु ari सेवामि, इइ भिक्खू न चिंतए ||७|| उपिरियणं, परिदाहेण तजिए । सु वा परियावे. सायं तो परिदेवए ||८| उहाहितत्तो मेहावी, सिणारां नो वि पत्थए । गायं नो परिसिं चेजा, न वीरजा य अप्पयं ||९|| पुट्ठो य दंसमलए हिं, समरे व महामुणी । नागो संगमसीसेवा, सूरो अभिहणे परं ||१०|| न संतसेन वारेजा, मां पि न पत्रोसए । उवेहे न हणे पाणे, अंजंते मंससोणियं ॥ ११ ॥ परिजुराणेहि वत्थेहिं, होक्खामि त्ति अचेलए । अदुवा सचेलए होक्खं, इइ भिक्खू न चिंतए ||१२|| एगयाऽचेलए होइ, सचेले वि एगया । एयं धम्मं हियं नच्चा, नाणी तो परिदेवए ||१३|| गामाणुगामं रीयंत, अणगारं किंचणं । अरई अणुप्पवेसेजा, तं तितिक्खे परीसहूं ||१४|| अहं पिट्ट किया, विरए श्रायर किए। धम्मारामे निरारम्भे, उवसंते मुणी चरे ॥ १५ ॥ संगो एस मणूसा, जाओ लोगम्मि इत्थिओ | नो ताहिं विणिहम्मेजा, चरेजत्तगवेसए ॥१७॥ एग एव चरे लाटे, अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए || १८ || [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला " लमाणे चरे भिक्खू नेव कुजा परिग्गहं । असंसत्तो गिहत्थेहिं अपि परिव्व ॥ १९ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगओ । कुक्कुओ निसीएजा, न य वित्तासए परं ||२०|| Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २७ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ] तत्थ से चिट्ठमारास, उवसग्गाभिधारए । संकाभीओ न गच्छेजा, उट्ठित्ता अन्नमासणं ॥ २१ ॥ उच्चावयाहिं सेजाहिं, तबस्सी भिक्खु थामवं । नाइवे विहन्निज्जा, पावदिट्ठी विहन्नई ||२२|| पइरिक्कुवस्सयं लद्धुं, कल्लाणमदुवा पावयं । किमेराई करिस्सइ, एवं तत्थऽहियासए | २३ | अक्कोसेजा परे भिक्खु, न तेसिं पडिसंजले । सरसो होइ बाला, तम्हा भिक्खु न संजले ||२४|| सोच्च फरुसा भासा, दारुणा गामकश्टगा । तुमि उवेहेजा, न ताओ मणसीकरे ||२५|| हो न संजले भिक्खु, मपि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा, भिक्खू धम्मं विचिंतए ||२६|| सम संजयं दंतं, हणिज । कोइ कत्थई । नत्थि जीवस्स नासुत्ति, एवं पेहेज संजए ||२७|| दुक्करं खलु भो निश्च्च, अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ, नत्थि किंचि जाइयं ||२८|| गोयरग्गपविट्ठस्स पाणी नो सुप्पसारए 1 सेवासुति, इइ भिक्खून चिंतए ||२६|| परेस घास मेसेजा, मोयणे परिणिट्टिए । 'द्धे पिण्डे अद्धे वा, नाणुतप्पेज्ज पंडिए ||३०|| अजेवाहं न लब्भामि, श्रवि लाभो सुए सिया । जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं न तज्जए ॥ ३१ ॥ नकचा उप्पइयं दुक्खं, वेयाए दुहट्टिए । अदीणो थावर पन्न, पुट्ठो तत्थऽहियासप ||३२|| १. ण तं पेहे साहुवं । २. लद्ध पिंडे श्राहरिज्जा अलद्ध नाणुतप्पए । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ [जीवन-श्रेयस्कर -पाठमाली तेइच्छं नाभिनंदेजा संचिक्खत्तगवेसए । एवं खु तस्स सामरणं, जं न कुजा न कारवे ॥३३॥ अचलगस्स लूहस्स, संजयस्स तवस्सिणो । तणेसु सयमाणस्स, हुजा गायविराहणा ॥३४॥ आयवस्स निवाएण, अउला हवइ वेयणा । एवं नच्चा न सेवंति, तंतुजं तणतजिया ॥३॥ किलिन्नगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा । प्रिंसु वा परियावेण, सायं नो परिदेवए ॥३६।। वेएज्जा निज्जरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरभेउत्ति, जलं कारण धारए ॥३७॥ अभिवायणमब्भुटा, सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताई पडिसेवन्ति, न तेसिं पीहए मुणी ॥३८ । अणुक्कसाई अप्पिच्छे अन्नाएसी अलोलुए। रसेसु नाणुगिज्झेज्जा, नाणुतप्पेज्ज पनवं ॥३९।। से नूरणं मए पुव्वं, कम्माऽणाणफला कडा। जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्ठो केणइ करहुई ॥४०॥ अह पच्छा उइज्जन्ति, कम्माऽणाणफला कडा। एवमस्सासि अप्पाणं, नच्चा कम्मविवागयं ॥४॥ निरट्टगम्मि विरो, मेहुणाओ सुसंवुडो। जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कल्लाणपावगं ॥४२॥ तवोवहाणमादाय, पडिमं पडिवजओ। एवं पि विहरो मे, छउमं न नियट्टइ ॥४३॥ नत्थि नू परे लोए, इड्ढी वावि तवस्सियो । अदुवा वंचिओमित्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥४४॥ प्रभू जिणा अस्थि जिणा, अदुवावि भविस्सह । मुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खू न चिंतए ॥४॥ ... Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] एए परीसहा सव्वे, कासवेण पवेइया । जे भिक्खू न विहन्नेज्जा, पुट्टो केराइ कराहु ई ॥४६॥ न्ति बेमि ॥ || दुइ ॥ श्रह तइ परिसहज्झयणं समत्तं ॥ २॥ चाउरंगिज्जं श्रज्भयां || [ २९ चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जन्तुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं ॥१॥ समावन्नाण संसारे, नाणागोत्तासु जाइल | कम्मा नागाविहा कट्टु, पुढो विस्संभिया पया ॥२॥ एगया देवलोपसु, नरपसु वि एगया एगया आसुरं कार्य, अहाकम्मेहिं गच्छ ॥३॥ एगया खत्तिओ होइ, तो चण्डालवुक्कसो । तो की डपयंगा य, तत्र कुन्थु पिवीलिया ॥४॥ एवमावट्टजोणीसु, पाणिणो कम्म किलिला । न निविजन्ति संसारे, सव्वट्ठेसु व खनिया ||५|| कम्मसंगेहिं संमूढा, दुक्खिया बहुवेयणा । माणुसासु जोणीसु, विणिहम्मैन्ति पाणिणो ॥ ६ ॥ कम्माणं तु पहाणार, आणुपुत्री कयाइ उ । जीवा सोहिमणुपत्ता, आययंति मणुम्सयं ॥७॥ माणुस्सं विग्गहं लधुं, सुई धम्मस्स दुलहा । जं सोच्चा पडिवजन्ति, तवं खंतिमहिंसये ॥८॥ श्रहश्च सवणं लद्धुं सद्धा परमदुल्लहा सोच्चा ने उयं मग्गं, बहवे परिभस्सइ ||९|| # सुइं च लद्धुं सद्धं च, वीरियं पुण दुल्लहं । बहवे रोयमाणावि, नो य गं पडिवजय ॥ १०॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०] [ जीवन - श्रेयस्कार- पाठमाला माणुसत्तमि आयाओ, जो धम्मं सोच्च सद्दहे । तवस्सी वीरियं लधुं, संबुडे निद्धुणे रयं ॥ ११ ॥ सोही उज्जुयभूयम्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ । निव्वाणं परमं जाइ, घयसित्तिव्व पावए ||१२|| fafia कम्मुणो हेउ, जसं संचिणु खंतिए । सरीरं पाढवं हिच्चा, उड्ढं पक्कमए दिसं ॥ १३ ॥ विसालसेहिं सीलेहिं, जक्खा उत्तरंउत्तरा । महासुका व दिप्ता, मन्नंता अपुच्चयं ॥ १४ ॥ " पिया देवकामागं, कामरूवविउविणो । उड़ढं कप्पे चिठ्ठेति, पुव्वावाससया बहु ॥१५॥ तत्थ ठिच्चा जहाठाणं, जक्खा उक्खये चुया । उति माणुस जोणिं, से दसंगे भिजायए ॥ १६ ॥ वित्तं वत्युं हिरराणं च पलवो दासपोरुसं । चत्तारि कामखंधाणि तत्थ से उववज्जइ ॥ १७॥ मित्तवं नाइवं होइ, उच्चागोए य वण्णवं । अपायके महापन्ने, अभिजाए जसो बल्ले ॥१८॥ भुच्चा माणुस्सए भोर, अप्पाडरूवे अहाउयं । पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे, केवलं बोहि बुझिया ॥ १९ ॥ चउरंग दुल्लहं 'नच्चा, संजमं पडिवजिया । तवसा घुयकम्मंसे, सिद्धे हवइ सासए ॥ २०॥ न्ति बेमि | तइ चाउरंगिज्जं अज्यां समत्तं ॥ ॥ चत्थं असंखयं प्रभयणं ॥ असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । १. मच्चा । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [३१ एवं विवाणाहि जणे पमत्ते. 'किन्नु विहिंसा अजया गहिति ॥१॥ जे पावकम्मेहिं धणं माणूसा, ___ समाययंती अमई गहाय । पहाय ते पासपयट्ठिए नरे, वेगणुपद्धा नरयं उविति ॥२॥ तेणे जहा संधिमुहे गहीए, सकम्मुणा किञ्चह पावकारी । एवं पया पेञ्च इहं च लोए, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि ॥३॥ संसारमावन्न परस्त अट्ठा, साहारणं जं च करेइ कम्मं । कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले, न बंधवा बंधवयं उर्विति ॥४॥ वित्तण ताणं न लभे पमत्ते, इममि लोए अदुवा परस्थ । दीवप्पणट्टेव अशंतमोहे, नेयाउयं दद्रुमदठुमेव ॥५॥ सुत्तेसु ावी पडिबुद्धजीवी, न वीससे पंडिय आसुपरणे । घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं, . • भारंडपक्खीव चरेऽपमत्ते ॥६॥ चरे पयाइं परिसंकमाणो, जं किंचि पासं इह मन्नमाणो। . Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला लामंत जीविय पच्छा परिन्नाय छंदनिगोहेण उवेइ वूह इत्ता, मलावधंसी ॥७॥ मोक्खं, आसे जहा सिक्खियवम्मधारी । पुव्वाइं वासाई चरण्पमत्ते, तम्हा मुगी खिप्पमुवेइ मुखं ॥ ८ ॥ स पुत्रमेवं न लभेज पच्छा, एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले श्राउयम्मि, कालोवणीए सरीरस्स भए ॥ ॥ विप्पं न स विवेगमेडं, तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समिच्च लोयं समया महेसी, errerrat चरऽप्पमत्ते ||१०|| मुहुं हुं मोहगुणे जयंतं, अगरूवा समां फासा फुसन्ति असमंजसं च, चरंत | न तेस भिक्लू मसा पउस्से ||११|| मन्दाय फासा बहुलोहणिजा, तहप्पग| रेसु मणं न कुजा । रक्खज्ज कोहं विणएज्ज माणं, मायं न सेवेज पहेज्ज लोहं ५१२ || जे संजया तुच्छ परप्पवाई, ते पिज्जदोसा गया परज्झा | एए हम्मे ति दुगुंछमाणो, *खे गुणे जाव सरीरभेउ || १३|| ति प्रेमि । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] ॥ श्रह काममरणिज्जं पञ्चमं श्रज्भयणं ॥ अण्णवंसि महोहंसि, एगे 'तिण्णे दुरुत्तरं । तत्थ एगे महापन्ने, इमं परहमुदाहरे || १॥ सन्तिमे य दुवे ठाणा, अक्वाया मरणन्तिया । अकाममरणं चेव, सकाममरणं तहा ॥२॥ बालागं तु श्रकामं तु, मरणं असई भवे ! पण्डियाणं सकामं तु, उक्कोसेरा सहं भवे ॥३॥ तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसियं । कामगिद्धे जहा बाले, भिसं कूराइं कुव्वई ||४|| जे गिद्धे कामभोगे, एगे कूडाय गच्छई । न मे दिट्ठे परे लोए, चक्खुदिट्ठा ड्रमा रई ||५|| हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया । को जाइ परे लोप, अत्थि वा नत्थि वा पुणो ॥ ६॥ जण सद्धिं होक्खामि, हइ बाले पगब्भई । कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जई ॥७॥ तत्र से दण्डं समारभई, तसे थावरेसु य । अट्ठाए य अणट्टाए, भूयगामं विहिंसई ||९|| हिंसे बाले मुसाबाई, माइल्ले पिसुणे सढे । भुजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयं ति मन्नई ||९|| कायला वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु । दुहओ मलं संचिणइ, सिसुणागुव्व मट्टियं ॥ १० ॥ तो पुट्ठो यंकेणं, गिलाणो परितप्यई । पमीओ परलोगस्स, कम्मारगुप्पेहि अप्पणो ॥ ११॥ सुया मे नरए ठाणा, असीलाणं च जा गई । बालागं क्रूरकम्मारणं, पगाढा जत्थ वेयणा ||१२|| १. सरइ । [ ३३. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला तत्थोषवाइयं ठाणं, जहा मे तमगुस्सुयं । प्रहाकम्मेहिं गच्छन्तो, सो पच्छा परितप्पइ ।।१३।। जहा सागडिओ जाणं, समं हिचा महापहं । विसमं मग्गमोइण्णो, अक्खे भगाम्मि सोयई ॥१४॥ एवं धम्मं विउक्कम्प, अहम्म पडिवजिया। बाले मच्चुमुहं पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयई ।।१५।। तो से मरणन्तम्मि, बाले संतसई भया। अकाममरणं मरइ, धुत्ते व कलिणा जिए ॥१६।। एयं प्रकाममरण, बालाणं तु पवेइथं ।। इत्तो सकाममरणं, पण्डियाणं सुणेह मे ॥२७॥ मरणं पि सपुराणा, जहा मेयमणुस्सुयं । विप्पसरणमणाघायं, संजयाण वुसीमओ ॥१८॥ न इमं सव्वेसु भिक्खूसु, न इम सब्वेसुगारिसु । नाणासीला अगारत्या, विसमसीला य भिक्खुणो ॥१६॥ सन्ति एगेहिं भिक्खूहि, गारत्था संजमुत्तरा। गारत्थेहि य सम्वेहि, साहवो संजमुत्तरा ॥२०॥ . चीराजिणं नगिणिणं, जड़ी संधाडिमुण्डि । एयाणि वि न तायंति, दुस्सीलं परियागयं ॥२१॥ पिंडोलएव दुस्सीले, नरगाओ न मुच्चइ । मिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मा दिवं ।।२२।। अगारिसामाइयंगाणि, सड्ढी कारण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं, एगरायं न हावए ।॥२३॥ एवं सिक्वासमावन्ने, गिहवासे वि सुब्बए। ... मुच्चइ छविपवाओ, गच्छे जखमलोगयं ॥२४॥ अह जे संवुडे भिक्खू , दोएहं अन्नयरे सिया। सव्वदुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिड्ढीए ॥२५॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] ||२६|| उत्तराई विमोहाई, जुई मन्ताणुपुव्वसो । समाइराई जक्खेहिं, आवासाई जसंसि दहा मिन्ता, समिद्धा कामरूविणो । अहुणोववन्नसंकासा, भुजो अश्चिमालिप्पभा ||२७|| ताणि ठाणाणि गच्छति, सिक्खित्ता संजमं तथं । भिव. ए वा गिहित्थे वा, [ ३५ जे संति परिनिव्बुडा ||२८|| तेसिं सोचा सपुज्जाणं, संजयाण बुसीमओ । न संतसंति मरते, सीलवन्ता बहुस्सुया ||२६|| तुलिया विसेसमादाय, दयाधम्मस्स खंतिए । विपसीएज मेहावी, तहाभूषण अप्पणा ॥ ३० ॥ तओ काले अभिप्पेए, सड़ढी तालिसमंतिए । विपज्ज लोमहरिसं, मेयं देहस्स कंखए ||३१|| ह कालम्मि संपत्ते, श्राघायाय समुम्सयं । सकाममरणं भरइ, तिराहमनगरं मुणी ॥ ३२ ॥ त्ति बेमि | इ अकाममर णिज्जं पंचमं अज्झयणं समत्तं ||५|| || अह खुङागनियठिज्जं छह अज्झणं ॥ जावन्तऽ विजापुरिसा, सव्वे ते दुक्बसंभवा । लुप्यन्ति बहुसो मूढा, संसारपि श्रांत ॥१॥ समिक्ख परिडए तम्हा, पासजाइपहे बहू । अपणा सच्चमेसेजा; मितिं भूपसु कप्पए ||२|| माया पिया राहुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाए, लुप्पंतस्स सकम्मुरणा ||३|| Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला एयमटुं सपेहाए, पासे समियदसणे । छिन्द गिद्धिं सिणेहं च, न कंखे पुव्वसंथवं ॥४॥ गवासं मणिकुण्डलं, पसवो दासपोरुसं। सव्वमेयं चइत्ता काम रूवीभविस्ससि ॥५॥ (थावरं जंगम चेव धणं धन्न उवक्खरं । पञ्चमाणस्स कम्मेहिं नालं दुक्खाउ मोयणे।) अज्झत्थं सव्वओ सव्वं, दिस्स पाणे पियायए । न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराओ उवरए ॥६॥ प्रादाणं नरयं दिस्स, नायएज तणामवि। दोगुञ्छी अप्पणो पाए, दिन्नं भुंजेज भोयणं ॥७॥ इहमेगे उ मन्नति, अपञ्चक्खाय पावगं । पायरियं विदित्ता णं, सव्वदुक्खा विमुच्चए ॥८॥ भयंता अकरेन्ता य, बन्धमोक्खपइण्णिणो। पायावीरियमेत्तेण, समासासेंति अप्पयं ।।६॥ न चित्ता तायए भासा, कुओ विजाणुसासणं । विसन्ना पावकम्मेहि, बाला पंडियमाणिणो ॥१०॥ जे केइ सरीरे सत्ता, वरणे रूवे य सव्वसो। मणसा कायवकेणं, सब्वे ते दुक्खसंभवा ॥११॥ भावना दीहमद्धाणं, संसारम्मि अतए । तम्हा सव्वदिसं पस्स, अप्पमत्तो परिव्वए ॥१२॥ बहिया उड्ढमादाय, नावकंखे कयाइ वि । पुवकम्मक्खयट्ठाए, इमं देहं समुद्धरे ॥१३।। 'विविश्च कम्मुणो हेडं, कालखी परिव्वए । माय पिंडस्स पाणस्स, कडं लभ्रूण भक्खए ॥१४॥ १. विगिंच । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] सन्निहिं च न कुवेजा, लेवमायाए संजः। पक्खीपत्तं समादाय, निरवेक्खो परिवार ॥१५॥ एसणासमित्रो लज्जू, गामे अणियो सरे । अप्पमत्तो पमत्त हिं, पिण्डवायं गवेसए । १६।। एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदसी अगुत्तरनाणदसणधरे अरहा नायपुत्त भगवं वेसालिए वियालिए । ति बेमि ॥ ॥ इइ खुड्डागनियंठिज्ज छठें अज्झयणं समत्तं ॥५॥ ॥अह एलइज्ज सत्तमं अज्झयणं । जहाएसं समुद्दिस्स, कोह पोसेज एलयं । ओयणं जवसं देज, पोसेन्जावि सयंगणे ॥१॥ तओ से पुढे परिवूढे, जायमेए महोदरे। पीणिए विउले देहे, अाएसं परिकंखए ॥२।। जाव न एइ आएसे, ताव जीवह से दुयो । अह पत्तम्मि आएसे, सीसं छेतूण भुजा ॥३॥ जहा से खलु उरब्मे, आएसाए समीहिर । एवं बाले अहम्मिटे, ईहई नरयाउय ।।४॥ हिंसे बाले मुसावाई, अद्धाणंसि विलोवर । अन्नदत्तहरे तेणे, माई के नु हरे सढे ॥५॥ इत्थीविसयगिद्धे य, महारंभपरिग्गहे। भुंजमाणे सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे ॥६॥ अयकक्करभोई य, तुंडिल्ल चियलोहिए। पाउयं नरए कंखे, जहाएसं व एलए १७।। पासणं सयणं जाणं, वित्तं कामे य भुंजिया । दुस्साहडं धणं हिश्चा, बहु संचिणिया रवं ॥८॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] तओ कम्मगुरु जंतू, पच्चुष्पन्नपरायणे । wear गयापसे, मरणंतम्मि सोयह ॥६॥ त उपरिक्खीणे, चुयदेहा विहिंसगा । [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला मुरीयं दिसं बाला, गच्छति अवसा तमं ॥१०॥ जहा कागिणिए हेउ, सहस्सं हारए नरो । अपत्थं अम्बगं भोच्चा, राया रजं तु हारए ॥११॥ एवं माणुसगा कामा, देवकाप्राण अंतिए । सहस्स गुणिया भुज्जो, श्राउं कामा य दिग्विया ॥ १२ ॥ अगवासानउया, जा सा पनवो ठिई । जाणि जयंति दुम्मेहा, ऊणे वासस्याउए || १३|| अहाय तिनि वणिया, मूलं घेत्तूण निग्गया । एगोऽत्थ लहर लाभं एगो मूले गओ || १४ || एगो मूलं पि हारिता, आगओ तत्थ वाणि I मूलच्छे जीवाणं नरगतिरिक्खत्तरां धुवं ॥ १६ ॥ दुहओ गई बालस्स, आवईवहमूलिया । देवत्तं माणुसत्तं च, जं जिए लोलयासढे ||१७|| तो जिए सई दोह, दुविहं दुग्गइं गए । दुल्लहा तस्स उम्प्रग्गा, श्रद्धाए सुचिरादवि ॥१८॥ एवं जियं सपेहाए, तुलिया बालं च पण्डियं । मूलियं ते पवेसन्ति, माणुसिं जोणिमेन्ति जे ||१९|| मायाहिं सिक्खाहिं, जे नरा गिहिसुव्वया । उत माणूस जोणि, कम्पसच्चा हु पाणि| ||२०|| जे सिं तु विडला सिक्खा, मूलियं ते श्रइच्छिया । सीलवन्ता सविसेसा, श्रदीणा जंति देवयं ॥ २१ ॥ एवमदीवं भिक्खू, श्रगारिं च वियाणिया । कहर जिश्वमेलिक्खं, जिच्चमाणे न संविदे ||२२|| Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [३६ जहा कुसग्गे उदगं, समुद्देण समं मिणे । एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अंतिए ॥२३॥ कुसग्गमेत्ता इमे कामा, सन्निरुद्धम्मि पाउए । कस्स हेउं पुराफाउं, जोगक्खेमं न संविदे ॥२४॥ इह कामाणियट्टस्स, अत्तट्टे अवरज्झइ । सोच्या नेयाउयं मग्गं, जे भुजो परिभस्सई ॥२५॥ इह कामणियट्टस्स, अत्तट्टे नावरज्झई । पूइदेहनिरोहे. भवे देवित्ति मे सुयं ॥२६॥ . इड्ढी जुई जसो वरणा, अाउं सुहमणुत्तरं । . भुजो जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उववज्जइ ॥२७॥ बालस्स पस्स बालसं, अहम्म पडिवजिया। चिच्चा धम्म अहम्मिटे, नरए उववज्जइ ॥२८॥ धीरस्स पस्स धीरतं, 'सव्वधम्माणुवत्तिणा। चिच्चा अधम्मं धम्मिटे, देवेसु उववजइ ॥२६॥ तुलियाण बालभावं, अबालं चेव पण्डिए। ... चइऊण बालभावं. अबाल सेवए मुणी ॥३०॥ त्ति बेमि ॥ एलयज्झयणं समत्तं ॥७॥ ॥ अह काविलियं अट्ठमं अज्झयणं ।। अधुवे असासयम्मि, संसारम्मि दुक्खपउराए । किं नाम होज्ज तं कमायं जेणाहं दुग्गइं न गच्छेजा ॥१॥ विजहितु पुबसंजोय, नलिणेहं कहिंचि कुवेजा। १. सञ्च । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . असिणेडसिणेहकरेहि, दोसपओसेहि मुच्चए भिक्खू ।।२।। तो नाणदसणसमग्गो, हियनिस्सेसाए सव्वजीवाणं । तेसिं विमोक्खणट्ठाए, . भासह मुणिवरो विगयमोहो ॥३॥ सव्वं गंथं कलहं च, विपजहे तहाविहं भिक्खू । सब्वेसु कामजाएसु, पासमाणो न लिप्पइ ताई ॥४॥ भोगामिसदोसविसन्ने, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे। बाले य मंदिए मूढे, बज्झइ मच्छिया व खेलम्मि ॥५।। दुप्परिच्चया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरीसेहिं । अह संति सुव्वया साहू, जे तरंति अतरं वणिया वा ॥६॥ समणा मु एगे वयमाणा, पाणवह मिया अयाणन्ता । मन्दा निरयं गच्छंति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ॥७॥ न हुगणवहं अणुजाणे, मुञ्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । १. विवजस्थे । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] एवारिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साहुधम्प्रो पनतो ॥८॥ पाणे य नाइवाएजा, से समीइ ति वुञ्चइ ताई । तओ से पावयं कम्मं, निजाइ उदगं व थलाओ ॥ ६ ॥ जगनिस्सिएहिं भूएहिं, तसना मेहिं थावरेहिं च । नो तेसिमारभे दंड, मणसा वयसा कायसा चैव ॥ १०॥ सुद्धेसाओ नच्चा, तत्थ ठवेज भिक्खू अप्पारां । जायाए घास मेसेज्जा, रसगिद्धे न सिया भिक्खाए ॥११॥ पन्ताणि चैव सेवेज्जा. सीय पिंड पुराणकुम्मासं । अदु बुक्कसं पुलागं वा, जवणट्टाए निसेवए मधुं ॥१२॥ जे लक्खणं च सुविणं च, अङ्गविज्जं च जे पउंजंति । न हु ते समणा वुञ्चति, एवं आयरिएहिं खायं ||१३|| समाहिजोएहिं । उववजंति श्रसुरे काए ॥१४॥ इह जीवियं श्रयिमेत्ता, भट्ठा ते कामभोगरसगिद्धा, [ ४ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला तत्तो वि य उचट्टित्ता, संसारं बहु अणुपरियडति । बहुकम्मलैव लित्तणं, बोही होइ सुदुलहा तेसिं ||१५|| सिपि जो इमं लोयं, पडिपुरां दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से, ss दुप्पूरए इमे आया || १६ || जहा लाहा तहा लोहे, लाहा लोहा पवडइ | दोमासकयं कज्जे, कोडी विन निट्टियं ॥ १७॥ नो रक्खसी गिज्झेजा, isaच्छा ऽगचित्तासु । जाश्रो पुरिसं पलोभित्ता, खेल्लुंति जहा व दासेहिं || १८ || नारीसु नोवगिज्भेज्जा, इत्थी विष्पजहेज्ज अणगारे | धम्मं च पेसलं नच्चा, तत्थ ठवेज्ज भिक्कू वा ॥ १६ ॥ इ एस धम् अक्खाए, कविलेणंच विसुद्ध पन्नेां । तरिहिंति जे उ काहिंति, तेहिं श्राराहिया दुवे लोगा ॥ २०॥ ति बेमि || ॥ काविलीयं श्रयं यणं समत्तं ।। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] ॥ अह नवमं नमिपन्यज्जा अज्झयणं ।। चइऊण देवलोगाओ, उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसन्तमोह णिज्जो, सरइ पोराणियं जाई ।।१।। जाई सरितु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवित्तु रज्जे, अभिणिक्खमइ नमी राया ॥२॥ से देवलोगसरिसे, अन्तेउरवरगो वरे भोए । भुंजितु नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयइ ।।३।। मिहिलं सपुरजणवयं, बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिक्खन्तो एगन्तमहिड्ढीओ भयवं ॥४॥ कोलाहलगसंभूयं, प्रासी मिहिलाए पव्वयन्तमि । तइया रायरिसिमि, नमिमि अभिणिक्खमंतंमि ॥५॥ अब्भुट्टियं रायरिसिं, पव्वजाठम्णमुत्तमं । सको माहणरूवेण, इमं वयणमब्यवी ॥६॥ किराणु भो अज्ज मिहिलाए, कोलाहलगसंकुला। 'सुवन्ति दारुणा सद्दा, पासाएसु गिहेसु य ॥७॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बधी ॥८॥ मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे। पत्तपुप्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥९|| वारण हीरमाणम्मि, चेइयम्मि मणोरमे । दुहिया असरणा अत्ता, एए कंदंति भो! खगा ॥१०॥ एयमट्ट निसामित्ता, हेऊकारणचोइयो। तओ नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥११॥ १. सुच्च०। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला एस अग्गी य वाऊ य, एयं उज्झह मंदिरं । भयवं अन्तेउरं ते, कीस नावपेक्खह ॥१२॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी ॥१३॥ सुहं वसामो जीवामो, जेसि मो नत्थि किंचणं । मिहिलाए डज्झमाणीए, न मे उज्झइ किंचणं ॥२४॥ चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो। पियं न विज्जए किंचि, अप्पियं पि न विज्जए ॥१५॥ बहुं खु मुणियो भदं, अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वो विप्पमुक्कस्स, एगन्तमणुपस्सो ॥१६॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइअो। तओ नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥१७॥ पागारं कार इत्ता, गोपुरट्टालगाणि य । उस्सूलगसयग्धीओ, तो गच्छसि खत्तिया ! ॥१८॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइयो। तो नमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी ॥१६।। सद्ध नगरं किच्चा, तवसंवरमग्गलं । खंतिं निउणपागारं, तिगुत्तं दुप्पधसयं ।।२०।। धणुं परक्कम किच्चा, जीवं च इरियं सया। धिइं च केयणं किच्चा, सञ्चण पलिमन्थए ।।२१।। तवनारायजुत्तेणं, भित्तूरणं कम्मकंचुयं । मुणी विगयसंगामो, भवाओ परिमुच्चए ॥२२॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥२३॥ पासाए कारइत्ताणं, वद्धमाणगिहाणि य । बालग्गपोइयाओ य, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥२४॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [४५ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी ॥२॥ संसयं खलु सो कुणइ, जो मग्गे कुणइ घरं । जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा, नत्थ कुव्वेज्ज सासयं ॥२६॥ एयमढें निसामित्ता, हेऊकारणचोइ अो । तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥२७॥ प्रामोसे लोमहारे य, गंठिभेए य तकरे । नगरस्स खेमं काऊणं, तो गच्छसि खत्तिया! ॥२८॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइयो । तो नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी ॥२६॥ असई तु मणुस्ले हिं, मिच्छा दंडो पउंजए । अकारिणोऽत्थ बज्झंति, मुश्चए कारओ जणो ॥३०॥ एयमटुं निसामित्ता. हेऊकारणचोइयो। तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्यवी ॥३॥ जे केइ पत्थिवा तुझं, नानमंति नराहिवा! वसे ते ठावइत्ताणं, तो गच्छसि खत्तिया ! ॥३२॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइयो । तो नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥३३॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पा, एस से परमो जो ॥३४॥ अप्पाणमेव जुज्झाहि, कि ते जुज्मेण बज्भो । अप्पणा चेव अप्पाणं, जइत्ता सुहमेहए ॥३५॥ पंचिंदियाणि कोहं, माणं मायं तहेव लोहं च । दुजयं चेव अप्पाणां, सव्वं अप्पे जिए जियं ॥३६॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥३७॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . जइत्ता विउले जन्ने, भोइत्ता समणमाहणे । दच्चा भोच्चा य जिट्ठा य, तो गच्छसि खत्तिया ! ॥३व एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमी गयरिसी, देविंदं इणमब्बवी ।।३।। जो सहस्सं सहस्सा, मासे मासे गवं दए । तस्स वि संजमो सेयो, अदिन्तस्स वि किंचणं ॥४०॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइ अो। तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्ववी ॥४१॥ घोरासमं चइत्ता, अन्नं पत्थेसि आसमं । इहेव पोसहरो, भवाहि मणुयाहिवा! ॥४२॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी ॥४३।। मासे मासे तु जो बालो, कुसग्गेण तु भुंजए । न सो सुक्खायधम्मस्ल, कलं अग्घइ सोलसिं ॥४४॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥४॥ हिरगणं सुवरण मणिमुत्तं कंसं दूसं च वाहणं । कोसं वड्डावइत्ताणं, तो गच्छसि खत्तिया !॥४६॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी ॥४७॥ सुवरणरुप्पम्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया । नरस्स लुखस्स न तेहि किंचि, इच्छा हु आगाससमा अतिया ॥४८।। पुढवी साली जवा चेव, हिरराणं पसुभिस्सह । पडिपुराणं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे ॥४९॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [४७ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तो नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥५०॥ . अच्छेरयमन्भुयए, भोए चयसि पत्थिवा। असन्ते कामे पत्थेसि, संकप्पेण विहनसि ॥५१॥ एयमढें निसामिका, हेऊकारणचोइश्रो। तओ नमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी ॥५२॥ सलं कामा विसं कामा, कामा श्रासीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा, अकामा जति दोग्गइं ॥५३।। अहे वयंति कोहेणं. मारणेणं अहमा गई । माया गइ पडिग्घाश्रो, लोहाओ दुहओ भयं ॥५४॥ अवउझिऊण माहणरूवं, विउविऊण इन्दत्तं । चन्दइ अभित्थुणन्तो, इमाहि महुराहिं वग्गूहि ॥५५॥ अहो ते निजिओ कोहो, अहो माणा पराजिओ। अहो निरकिया माया, अहो लोहो वसीको ॥५६।। अहो ते अजवं साहु, अहो ते साहु महवं । अहो ते उत्तमा खन्ती, अहो ते मुत्ति उत्तमा ।।५७॥ इह सि उत्तमो भन्ते, 'पेच्चा होहिसि उत्तमो। लोगुसमुत्तमं ठाणं, सिद्धिं गच्छसि नीरओ ॥५८।। एवं अभित्थुरांतो, रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए । पयाहिणं करेन्तो, पुणे पुणे वन्दए सक्को ।।५६॥ तो वंदिऊण पाए, चक्कंकुसलक्खणे मुणिघरस्स। आगासेणुप्पइओ, ललियचवलकुंडलतिरीडी ।।६०॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइयो । चइऊण गेहं च वेदेही,सामण्ण पज्जुवट्ठिओ ॥६॥ १. पच्छा । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला एवं करेंति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा। विणियति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसि ॥६॥ त्ति बेमि ॥ नमिपव्वज्जा समत्ता ॥ ॥ अह दुमपत्तय दसम अज्झयण ॥ दुमपत्तए पंडुरए हा, निवडइ राइगणाण अञ्चए । एवं मणुयाण जीवियं, समय गोयम ! मा पमायए ।।१॥ कुसग्गे जह ओसबिन्दुए, थोवं चिट्टइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीविय, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२॥ इह इत्तरियम्मि अाउए, जीवियए बहुपञ्चवायए । विहुणाहि रयं पुरे कडं, समयं गायम ! मा पमायए ॥३॥ दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। गाढा य विवाग कम्मुणो, समय गोयम ! मा पमयए ॥४॥ पुढ विकायमइगओ, उक्कोमं जीवो उ संवसे । कालं............ 'संखाईय समयं गोयप ! मा पमायए ॥५॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र 1 उक्कायमइगो, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईय, समयं गोयम ! मा पमायए || ६॥ ते उक्काय मइगो, उक्कोसं जीवो उ संवसे । [ ४६ कालं संखाईये, समयं गोयम ! मा पमायए ||७|| वाक्काय मइगो, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईये, समयं गायम ! मा पमायए ||८|| वणस्सइकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालमरणन्त दुरन्तयं, समयं गोयम ! मा पमायए ||९|| बेइ दियकायमइगओ, उक्कोसं जीवों उ संवसे । कालं संखिजसन्नियं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१०॥ तेइंदिकायम गश्रो, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिजसंन्नियं, समय गोयम ! मा पमायए ।। ११॥ चउरिंदियकाय मइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला - कालं संखिजसनियं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१२॥ पंचिंदियकायमइगो, उकोसं जीवो उ संबसे। लत्तटुभवगहणे, समयं गोयम! मा पमायए ॥१३॥ देवे नेरइए य अइगो , उक्कोसं जीवो उ संवसे । इक्केवभवगहणे, समयं गोयम ! मा पमायए ।।१४।। एवं भवसंसारे, संसरई सुहासुहेहि कम्मे हिं । जीवो पमायबहुलो, समय गोयम ! मा पमायए ॥१५॥ लण वि माणुसत्तणं, आरिअत्तं पुणरावि दुल्लहं । बहवे दसुया मिलक्खुया, समयं गोयम ! मा पमायए ।।१६।। लक्ष्ण वि पारियत्तणं, - अहीणपंचेंदियया हु दुल्लहा । विगलिंदियया हु दीसई, समयं गोयम! मा पमायए ॥१७॥ अहीणपंचेंदियत्तं पि से लहे, उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिसेवए जणे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१८।। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [५१ लखूण वि उत्तम सुई, ___ सद्दहणा पुणरावि दुलहा । मिच्छत्तनिसेवए जणे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१६॥ धम्मं पि हु सद्दहन्तया, दुल्लहया कारण फासया। इह कामगुणेहि मुच्छिया, समयं गायम ! मा पमायए ॥२०॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवंति ते । से सोयबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२१॥ परिजरह ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवंति ते । से चक्खुबले य हायई, समयं गायम ! मा पमायए ॥२२॥ परिजूरइ ते सरीरयं, - केसा पण्डुरया हवंसि ते । से घाणबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२३॥ परिजूरइ ते सरीरय, ___ केसा पण्डुरया हवंति ते । से जिब्भवले य हायई, समयं गायम ! मा पमायए ॥२४॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पगडुरया हवंति ते । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला से फासबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२५॥ परिजूरइ ते सरीरयं. . केसा पण्डुरया हवंति ते । से सव्वबले य हायई, . समय गोयम ! मा पमायए ॥२६॥ अरई गण्डं विसूइया, श्रायंका विविहा फुसंति ते । विहडइ विद्धंसइ ते सरीरयं, समय गायम ! मा पमायए ॥२७।। वोच्छिन्द सिणेहमप्पणी, .. कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवजिए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२८॥ चिचाण धरणं च भारियं, पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वन्तं पुणो वि आइए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२९॥ अवउझिय मित्तबन्धवं, विउल चेव धणोहसंचयं । मा तं बिइयं गवेसए, . समयं गोयम ! मा पमायए ॥३०॥ न हु जिणे अज दिस्सई, - बहुमए दिस्सइ मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥३१॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [ ५३ अवसोहिथ कण्टगापहं, अोइराणा सि पहं महालय गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं गायम ! मा पमायए ॥३२॥ अबले जह भारवाहए, मा मग्णे विसमेऽवगाहिया । पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गायम ! मा पमायए ॥३३।। तिण्णा हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिटुसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम ! मा पमायए॥३४॥ अकलेवरसेणिं उस्सिया, सिद्धिं गोयम ! लोयं गच्छसि! खेमं च सिवं अणुत्तरं, समय गोयम ! मा पमायए । ३५।। बुद्धे परिनिव्वुडे चरे, गामगए नगरे व संजए । संतिमग्गं च वूहए, . समय गायम ! मा पमायए ॥३६॥ बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहियमपोवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया, सिद्धिगई गए गोयमे ॥३७॥ त्ति बेमि । ॥ इअ दुमपत्तयं समत्तं ॥१०॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला ॥ अह बहुस्सुयपुज्जं णाम एगारसं अज्झयणं ।। संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणे। आयारं पाउकरिस्सामि, आणुपुब्बिं सुणेह मे ॥१॥ जे यावि होइ निबिजे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे। अभिक्खणं उल्लवइ, अविणीए अबहुस्सए ।।२।। अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भइ । थम्भा कोहा पाएणं, रोगेणालस्सएण य ।।३।। अह अट्टहिं ठाणेहिं, सिक्खासीलि त्ति वुच्चइ । अहस्सिरे सया दन्ते, न य मम्ममुदाहरे ॥४॥ नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए । अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीलि त्ति वुश्चइ ॥५॥ अह चोद्दसहि ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चई सो उ, निव्वाचन गच्छई ॥६॥ अभिक्खणं कोही हवह, पबन्धं च पकुव्वई । मेत्तिजमाणो वमइ, सुयं लक्ष्ण मजह । ७॥ अवि पावपरिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुप्पइ । सुप्पियस्लावि मित्तस्स, रहे भासइ पावयं ॥८॥ पइराणवाई दुहिले, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे । असंविभागी अवियत्ते, अविणीए त्ति वुश्चइ ॥९॥ अह पन्नरसहिं ठाणेहिं, सुविणीए त्ति वुच्चइ । नीयावत्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥१०॥ अप्पं च अहिक्खिवइ, पवन्धं च न कुब्वइ । मेत्तिजमाणे भयइ, सुयं लद्धं न मजइ ।।११।। १. मोहा। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [५५ न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पइ । अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासइ ॥१२॥ कलहडमरवजिए बुद्धे अभिजाइगे। हिरिमं पडिसंलीणे, सुविणीए त्ति वुच्चइ ॥१३॥ वसे गुरुकुले निश्चं, जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियवाई, से सिक्खं लद्धमरिहइ ॥१४॥ जहा संखम्मि पयं, निहियं दुहओ वि विरायइ । एवं बहुस्सुए भिक्खू , धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥१५॥ जहा से कम्बोया, अाइराणे कन्थए सिया। श्रासे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥१६॥ जहाइराणसमारूढे, सूरे दढपरक्कमे । उभो नन्दिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सुए ।।१७।। जहा करेणुपरिकिराणे, कुंजरे सट्रिहायणे। बलवंते अप्पडिहए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥१८'। जहा से तिक्खसिंगे, जायखन्धे विरायइ । वसहे जहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥१६॥ जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे, एवं हवह बहुस्सुए ॥२०॥ जहा से वासुदेवे, संखचक्कगयाधरे । अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२।। जहा से चाउरन्ते, चकवट्टीमहिड्ढिए। चोद्दसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२२।। जहा से सहस्सक्खे, वजपाणी पुरन्दरे । सके देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२३॥ जहा से तिमिरविद्धंसे, उचिट्ठन्ते दिवायरे । जलन्ते इव तेएण, एवं हवइ बहुम्लुए ॥२४॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला जहा से उडुवई चन्दे, नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुराणे पुराणमासिए, एवं हवइ बहुस्सुर ॥२५॥ जहा से समाइया, कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधनपडिपुराणे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२६॥ जहा सा दुमाण पवरा, जवू नाम सुदसणा । अणाढियस्स देवस्स, एवं हवह बहुस्सुए ॥२७॥ जहा सा नईण एवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा, एवं हवइ बहुस्सए ॥२८॥ जहा से नगारण पवरे, समहं मन्दरे गिरी। नाणेासहिपजलिए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२६॥ जहा से सयंभुरमणे, उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुराणे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥३०॥ समुद्दगंभीरसमा दुरासया, अचकिया केणइ दुप्पहंसया । सुयस्स पुराणा विउलस्स ताइणा, खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया ॥३॥ तम्हा सुयमहिटिजा, उत्तमट्टगवेसए। जेणप्पाणं परं चेव, सिद्धिं संपाउणेजासि ॥३२॥ त्ति बेमि ॥ बहुम्सुयपुज्ज समत्तं ॥११॥ ॥ अह हरिएसिज्ज बारहं अज्झयणं । सोवागकुलसंभूत्रो, गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएसबलो नाम. प्रासी भिक्खू जिइन्दि प्रो ।।१।। इरिएसणभासाए, उच्चारसमिईसु य । जो माया निक्लेरे, मंजसो लुसमाहियो ॥२॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] [५७ मणगुत्तो, वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिो । भिक्खट्ठा बम्भइजम्मि, जन्नवाडमुवट्टिो ॥३॥ तं पासिऊरणं एजन्तं, तवेण परिसोसियं । पन्तोवहिउवगरणं, उवहसन्ति प्रणारिया ॥४॥ जाइमयपडिथद्धा, हिंसगा अजिइन्दिया । अबम्भचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी ।।५।। कयरे आगछइ दित्तरूवे ? काले विगराले फोकनासे । ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकरसं परिहरिय कण्ठे ॥६॥ कयरे तुम इय अदंसणिज्जे ? काए व पालाइहमागप्रोसि ? ओमचेलया पंसुपिसाभूया, गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओ सि ॥७॥ जक्खे तहिं तिन्दुयरुक्खवासी, अणुकम्पो तस्स महामुणिस्स। पच्छायइत्ता नियगं सरीरं , . इमाइं वयणाइमुदाहरित्था ॥८॥ समणो अहं संजो, बम्भयारी, विरो धणपयणपरिग्गहाओ। पर पवित्तस्स उ भिवावकाले, अन्नस्स अट्ठा इहमागप्रोमि ॥९॥ वियरिजइ खज्जइ भुजइ य, अन्नं पभूयं भवयाणमेयं । • जाणाहि मे जायणजीचिणु त्ति, . सेसावसेसं लहउ तवस्ती ॥१०॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला उवक्खडे भोयण माहणारां, अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्खं । न ऊ वयं एरिसमन्नपाणं, दाह । मु तुझं किमिहं टिओ सि ॥११॥ थलेसु बीयाइ ववन्ति कालगा, तहेव निन्नेसु य श्राससाए । एयाए सद्धाए दलाह मज्झ, राह पुराणमिगं खु खित्तं ॥ १२ ॥ खेत्ताणि अम्हं विइयाणि लोए, जहिं पकिराणा विरुहन्ति पुराणा । जे माहणा जाइविज्जोववेया, ताई तु खित्ता सुपेसलाई ||१३|| कोहोय माणो य वहो य जेसिं, मोसं दत्तं च परिग्गहं च । ते माहणा जाइविजा विहीगा, ताई तु खित्ताइ सुपावयाई ||१४|| तुम्मेत्थ भो भारधरा गिराणं. अटुं न जाणेह हिज वेए । उच्चावयाई मुणिणो चरन्ति, ताई तु खेत्ताइ सुपेसलाई ||१५|| अभावयाणं पडिकुलभासी, प्रभास से किं नु सगासि म्हं । वि एवं विणस्सउ अन्नपाणं, नदाहामु तुमं नियण्ठा ! ॥१६॥ समिईहि मज्झं सुसमाहियस्स, गुत्तीहि गुत्तस्स जिइन्दियरस । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] जर मे न दाहित्थ श्रहेसणिजं, किमज जन्नाग लहित्थ लाई ||१७| के इत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वा सह खण्डिएहिं । एयं खु दण्डे 'फलएण इन्ता, कण्ठमि घे तूण खलेज जो गं ॥ १८ ॥ अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता, उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा । दण्डेहि वित्ते हि कसेहि चेव, [ ५६ समागया तं इसि तालयन्ति ॥ १९ ॥ रन्नो तहिं कोसलियस्य धूया, भद्दत्ति नामेरा अणिन्दियंगी । तं पासिया संजयहम्ममाणं, कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ ॥ २० ॥ देवाभिगेण निश्रोइए, दिन्ना मुरन्ना मणसा न भाया । मरिन्ददेविन्द भिवन्दिए, जे म्हि वंता इसिणा स एसो ॥ २१ ॥ एसो इ सो उग्गतवो महत्पा जिइन्दिओ संजश्रो बम्भयारी । जो मे तया नेच्छइ दिजमाणि, पिउला सयं कोस लिएण रना ||२२|| मह जसो एस महाणुभागो, घोर घोरपरक्कमो य । १. फले । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला मा एयं हीलेह अहीलणिजं, मा सव्वे तेएण मे निदहेजा ॥२३॥ एयाइं तीसे वयणाइ सोच्चा, पत्तीइ भद्दाइ सुभासियाई । इसिस्स वेयावडियट्ठयाए, जक्खा कुमारे विणिवारयन्ति ॥२४॥ ते घोररूवा ठिय अन्तलिक्खे, असुरा तहिं तं जणं तालयन्ति । ते भिन्नदेहे रूहिरं वमन्ते, पासित्तु भद्दा इणमाहु भुजो ॥२५॥ गिरिं नहेहिं खणह, अयं दंतेहिं खायह । जायतेयं पाएहि हणह, जे भिक्ष अवमन्नह ॥२६॥ आसीविसो उग्गतवो महेसी, घोरव्यओ घोरपरकम्रो य । अगणिं व पक्खन्द पयंगसेणा, जे भिक्खुयं भत्तकाले वहेह ॥२७॥ सीसेण एयं सरणं उवेह, समागया सव्वजणेण तुब्भे । जह इच्छह जीवियं वा धणं वा, लोगपि एसो कुविओ डहेजा ॥२८॥ अवहेडियपिट्टिसउत्तमंगे, पसारिया बाहु अकम्मचेटे । निब्भेरियच्छे रुहिरं वमन्ते, उद्धमुहे निग्गयजीहनेत्ते ।।२९।। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ते पासिया खण्डियकट्टभूए, विमणो विसरणो अह माहणो सो । इसिं पसाएइ सभारियाओ, हीलं च निन्दं च खमाह भन्ते ! ॥३०॥ बालेहि मूढेहि अयाणएहिं, जं हीलिया तस्स खमाह भन्ते ! महप्पसाया इसिणो हवन्ति, न हु मुणी कोवपरा हवन्ति ॥३१॥ पुचि च इसिंह च अणागयं च, मणप्पओसो न मे अत्थि कोइ । जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति, . तम्हा हु एए निहया कुमारा ॥३२।। अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा, तुझ न वि कुप्पह भूइपन्ना। . तुभं तु पाए सरणं उवेमा, समागया सव्वजणेण अम्हे ॥३३॥ अच्चमु ते महाभाग, न ते किंचि न अच्चिमो। भुंजाहि सालिमं कूर, नाणा-वंजण-संजुयं ॥३४॥ इमं च मे अस्थि पभूयमन्नं, ' तं भुजसु अम्ह अणुग्गहट्टा । वाढं ति पडिच्छह भत्तपाणं, मासस्स ऊ पारणए महप्पा ॥३॥ तहियं गन्धोदयपुष्फवासं, दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला पहयाओ दुन्दुहीओ सुरेहिं, आगासे अहो दाणं च घुटुं ॥ ३६ ॥ सक्खं खुदीसह तवो विसेसो, न दीसइ जाइविसेस कोई । सोवागपुत्तं हरिएससाहु, जस्सेरिसा इड्ढि महाणुभागा ॥३७॥ किं माहणा जोइसमारभन्ता, उदरण सोहिं बहिया विमग्गह । जं मग्गहा बाहिरियं विसेोहिं, न तं सुदिट्टु कुसला वयन्ति ||३८|| कुसं च जूर्व तणकटुमरिंग, सायं च पायं उदगं फुलन्ता । पाणाइ भूयाइ विहेडंयन्ता, भुजो वि मन्दा पगरेह पावं ॥ ३९ ॥ कहं चरे भिक्खु ! वयं जयामो, पावाइ कमाइ पुणोल्लयामो । क्वाहि से संजय ! जक्खपूइया, कहं सुजटुं कुसला वयन्ति ||४०|| छजीवक ए असमारभन्ता, मोसं दत्तं च सेवमाणा । परिग्गदं इत्थिओ माणमायं, एयं परिन्नाय चरंति दंता ||४१|| सुसंवुडा पंचहिं संवरेहि, इह जीवियं प्रणवकंखमाणा । वोसटुकाया सुइचत्तदेहा, महाजयं जयइ जन्नसि ॥४२॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [६३ के ते जोई के व ते जोइठाणो? का ते सुया किंच ते कारिसंगं? एहा य ते कयरा सन्ति भिक्खू ? कयरेण होमेण हुणासि जोई ? ॥४३।। तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्मेहा संजमजोगसन्ती, होमं हुणामि इसिणं पसत्थं ॥४४॥ के ते हरए के य ते सन्तितित्थे ? कहिं सिणाओ व रयं जहासि ? आइक्ख णे संजय ! जक्खपूइया, ___ इच्छामो नाउं भवो सगासे ॥४५।। धम्मे हरए बम्भे सन्तितित्थे, अणाविले अत्तपसन्नलेसे । जहिं सिणाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइभूओ पजहामि दोसं ॥४६|| एयं सिणाणं कुसलेहि दिटुं, महासिणाणं इसिणं पसत्थं । जहि सिणाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तम ठाणं पत्त ॥४७॥ त्ति बेमि ॥ हरिएसिज्जं समत्तं ॥१२॥ ॥ अह चित्तसम्भूइज्जं तेरहमं अज्झयणं । जाईपराजिओ खलु, कासि नियाणं तु हथिणपुरम्मि । चुलणीए बम्भदत्तो, उववन्नो परमगुम्माश्रो ॥१॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] कम्पिल्ले सम्भूश्रो, चित्तो पुरा जाओ पुरिमतालम्मि | सेहिकुलम्मि विसाले, धम्मं सोऊण पव्व ॥ २॥ कम्पिलम्य नयरे, समागया दो वि चित्तसम्भूया | सुहदुक्ख फलविचारां, कहेन्ति ते एकमेकस्स ||३|| चक्कट्टी महिड़ीओ, बम्भदत्तो महायसो । भायरं बहुमा, इमं वयणमवब्वी ||४|| सीमु भायरा दोवि, अन्नमन्नवसारणुगा । अन्नमन्नमणुरत्ता, अन्नमन्नहिए सि ॥५॥ दासा दसरा यासी, मिया कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीराए, सोवागा कासिभूमिए ||६|| देवाय देवलोम्मि, असि अम्हे महिडिडया | इमानो छुट्टिया जाई, अन्न भन्नेश जा विणा ||७| कम्मा नियाणपयडा, तुमे राय ! विचिन्तिया । तेसिं फलविवागेण, विप्पओग मुवागया॥८॥ सञ्च्च सोय पगडा, कम्मा मए पुरा कडा । ते अज परिभुंजामो, किं नु चित्तेवि से तहा ? ॥६॥ सव्वं सुचिराणं सफलं नराणं, कडा कम्माण न मोक्ख अस्थि । अत्थेहि कामेष्टिय उत्तमेहिं, [ जीवन श्रेयस्कर - पाठमाला महत्थरूवा - आया ममं पुराणफलोववेए ||१०|| जाहि संभूय ! महाणुभागं, महिदियं पुराणफलोववेयं । चित्तं पि जागाहि तहेव राय, इड्ढी जुई तस्स वियव्यभूषा ॥ ११ ॥ वयष्पभूया, गाहागुगीया नरसंघमझे । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [६५ - - जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया, इहं जयंते समणो मिजाओ ॥१२॥ उञ्चोयए महु कके य बम्भे, पवेइया पावसहा य रम्मा। इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं, पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥१३॥ नहेहि गीएहि य वाइए हिं, नारीजणाहिं परिवारयन्तो । भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिखू ! मम रोयई पव्वजा हुदुक्खं ॥१४॥ तं पुवनेहेण कयाणुराग, नराहिवं कामगुणेसु गिर्छ । धम्मस्सिो तस्स हियाणुपेही, चित्तो इमं वयणमुदाहरित्था ॥१॥ सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नर्से विडम्बियं । सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ॥१६॥ बालाभिरामेसु दुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणेमु रायं ! विरत्तकामाण तवोधणारा, ज भिक्खु सीलगुणे रयारणं ॥१७॥ नरिंद ! जाई अहमा नराणं, सोवागजाई दुहो गया। जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा, वसीय सोवागनिवेसणेसु ॥१८॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . तीसे य जाईइ उ पावियाए, वुच्छामु सोवागनिवेसणेसु । सवस्स लोगस्स दुगंछणि जा, इहं तु कम्माइ पुरे कडाई ॥१६॥ सो दाणिसिं राय ! महाणुभागो, महिड्ढिओ पुराणफलोववेओ। चइत्त भोगाइ असासयाई, श्रादाणहेउं अभिणिक्खमाहि ॥२०॥ इह जीविए राय ! असासयम्मि, धणियं तु पुराणाइ अकुबमाण । से सोयइ मच्चुमुहोवणीए, धम्म अकाऊण परंसि लोए ॥२१॥ जहेह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले । न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मंसहरा भवन्ति ॥२२॥ न तस्स दुक्ख विभयन्ति नाइओ, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एक्को सयं पञ्चणुहोइ दुक्खं, कत्तारमेवं अणुजाइ कम्मं ॥२३॥ चिच्चा दुपयं च चउप्पयं च, खेत्तं गिहंधणधन्नं च सव्वं । सकम्मबीओ अवसो पयाइ, . परं भवं सुंदरपावगं वा ॥२४॥ तं एक्कग तुच्छसरीरगं से, चिईसय दहिय उ पावगेणं । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [६७ भजाय पुत्तावि य नायओ य, दायारमन्नं अणुसंकमन्ति ॥२५॥ उवणिजई जीवियमप्यमायं, वर जरा हरइ नरस्स रायं ! पंचालराया ! वयणं सुणाहि, मा कासि कम्माइ महालयाई ॥२६॥ अहं पि जाणामि जहेह साहू, जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा हवन्ति, जे दुजया अजो अम्हारिसेहिं ॥२७॥ हस्थिणपुरम्मि चित्ता, दळूणं नरवई महिड्ढियं । कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुहं कडं ॥२८॥ तस्स मे अपडिकन्तस्ल, इमं एयारिसं फलं । जाणमाणो वि जं धम्म, ___ कामभोगेसु मुच्छिो ॥२९॥ नागो जहा पंकजलावसनो, दटुं थलं नाभिसमेह तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो॥३०॥ अञ्चइ कालो तूरन्ति राइओ, नयावि भोगापुरिसाण निचा। उविश्च भोगा पुरिसं चयन्ति, दुमं जहा खीणफलं व पाखी ॥३१॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो, _ 'अज्जाइ कम्माइ करेहि रायं ! धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकम्पी, तो होहिसि देवो इअो विउब्बी ॥३२॥ न तुझ भोगे चाऊण बुद्धी, गिद्धो सि प्रारभ्भपरिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं ! आमन्तिओसि ॥३३॥ पंचालराया वि य धम्भदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं । अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥३४॥ चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो, उदग्गचारित्ततवो महेसी। अणुत्तरं संजमं पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गो ॥३५॥ त्ति बेमि ॥ चित्तसम्भूइज्ज समत्तं ॥ ॥ अह उसुयारिज्जं चोदहमं अज्झयणं ॥ देवा भवित्ताण पुरे भवम्मि, केइ चुया एगविमाणवासी। पुरे पुराणे उसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] निविएणसंसारभया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवना ।।२।। पुमत्तमागम्म कुमार दो वि, पुरोहिओतस्स जसा य पत्ती। विसालकित्ती य तहोसुयारो, रायत्थ देवी कमलावई य ॥३॥ जाईजरामच्चुभयाभिभूया, बहिं विहाराभिनिविट्ठचित्ता । संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दळूण ते कामगुणे विरत्ता ॥४॥ पियपुत्तगा दुन्नि वि माहणस्स, ___ सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरितु पोराणिय तत्थ जाई. तहा सुचिराग तवसंजमं च ॥५॥ ते कामभोगेसु असजमाणा, माणुस्सएसु जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकंखी अभिजायसढा, तायं उवागम्म इमं उदाहु ॥६॥ असासयं दठु इमं विहारं, बहुअन्तरायं न य दीहमाउं । तम्हा गिहिंसि न रइं लहामो, आमन्तयामो चरिस्सामु मोणं ॥७॥ अह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं, तवस्स वाघायकरं वयासी। इमं वयं वेयवित्रो वयन्ति, जहा न होई असुयाण लोगो ॥८॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अहिज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्त परिटुप्प गिहंसि जाया। भोच्चाण भोए सह इत्थियाहिं. आरएणगा होह मुणी पसत्था ॥६॥ सोयग्गिणा आयगुणिन्धणेणं, मोहाणिला पजलणाहिएणं । संतत्तभावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा वहुं च ॥१०॥ पुरोहियं तं कमसोऽणुणन्तं, निमंतयन्तं च सुप धणेणं । जहक्कम कामगुणेहि चेव, कुमारगा ते पसमिक्ख वकं ॥११॥ वेया अहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं । जाया य पुत्ता न हवन्ति ताणं, को णाम ते अणुमन्नेज एयं ॥१२॥ खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसुक्खा । संसारमोक्खस्त विपक्खभूया, खाणी अणस्थाण उ कामभोगा ॥२३॥ परिव्वयन्ते अणियत्तकामे, - अहो य राओ परितप्पमाणे । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, ___ पप्पोति मच्चु पुरिले जरं च ॥१४॥ इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि , इमं च मे किच्च इमं अकिञ्चं । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] तं एवमेयं लालप्यमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पनाओ ||१५|| धरणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कामगुणा पगामा । तवं कप तप्प जस्स लोगो, तं सव्वसाहीणमिमेव तुब्भं ॥ १६ ॥ धणेण किं धम्मधुराहिगारे, सणेण वा कामगुणेहि चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी, बहिंविहारा] अभिगम्म भिक्खं ॥ १७॥ जहा य अग्गी अरणी असन्तो, खीरे घयं तेलमहातिलेसु । एमेव जाया सरीरंसि सत्ता, संमुच्छर नःसइ नावचिट्टे ॥१८॥ नो इन्दियग्गेज्म श्रमुत्तभावा, अमुत्तभावा विय होइ निश्चयो । [ ७१ अज्झत्थ हेडं निययस्स बन्धो, संसारहेउं च वयन्ति बन्धं ||१६|| जहा वयं धम्मं अजाण माणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । श्ररुज्भमाणा परिरक्खयन्ता, अभायम्पि मोहा हिं तं नेव भुज्जो वि समायरामो ||२०|| लोगम्मि, सव्वश्र परिवारिए पडन्ती हिं, गिहंसि न रहूं लभे । ॥२१॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला केण अब्भाहओ लोगो ? केण वा परिवारियो ? का वा अमोहा वुत्ता ? जाया चिन्तावरो हुमि ॥२२॥ मच्चुणाऽभाहओ लोगो, जराए परिवारियो । अमोहा रयणी वुत्ता , एवं ताय ! विजाणह ॥२३।। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ । अहम्म कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ ॥२४॥ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ । धम्म च कुणप्राणस्स, सफला जन्ति राइओ ॥२५॥ एगओ संवसित्ताणं, दुहओ सम्मत्तसंजुया । पच्छा जाया गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले ॥२६॥ जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽथि पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि, ___ सो हु कंखे सुए सिया ॥२७॥ अज्जेव धम्म पडिवजयामो, . जहिं पवना न पुणब्भवामो। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र]. . [७३ अणागय नेव य अस्थि किंची, ____सद्धाखम णो विणइत्तु रागं ॥२८॥ पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो, वासिट्टि ! भिक्खायरियाइ कालो। साहाहि रुक्खो लहए समाहिं, छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणुं ॥२६॥ पंखाविहूणोव्व जहेव पक्खी, भिश्चबिहूणोव्वरणे नरिन्दो। विवन्नसारो घणिओव्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहा अहंपि ॥३०॥ सुसंभिया कामगुणे इमे ते, संपिण्डिया अग्गरसप्पभूया। भुंजामु ता कामगुणे पगाम, पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं॥३१॥ भुत्तारसामोह !जहाहणे वओ, न जीवियठ्ठा पजहामि भोए । लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं । संचिक्खमाणो चरिस्लामि मोणं ॥३२॥ मा हू तुम सोयरियाण सम्भरे, __ अण्णो व हंसोपडिसोत्तगामी। भुंजाहि भोगाइ मए समारणं, ___ दुक्खं खुभिक्खायरियाविहारो ॥३३।। जहा य भोई तणुयं भुयंगो, निम्मोयणि हिच्च पलेइ मुत्तो । एमेए जाया पयहन्ति भोए, ते हं कहं नाणुगमिस्समेको ? ॥३४॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला छिन्दिनु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाए । घोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खाचरियं चरन्ति ॥३५।। नहेव कुंचा सम इक्कमन्ता. तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा। पलेन्ति पुत्ता य पई य मज्झं, ते हं कह नाणुगमिस्समेक्का ? ॥३६॥ पुरोहियं तं ससुयं सदारं, सोचाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुडुम्बसारं विउलुत्तम च, रायं अभिक्ख समुवाय देवी ॥३७॥ चन्तासी पुरिसो राय ! न सो होई पसंसिश्रो । माहणेण परिच्चत्तं, धणं आदाउमिच्छसि ॥३८॥ सव्वं जगं जा तुहं, सव्वं वावि धणं भवे । सव्वं पि ते अपजत्त, __ नेव ताणाय तं तव ॥३॥ मरिहिसि राय ! जया तयावा, मणेारमे कामगुणे पहाय । एको हु धम्मो नरदेव! ताणं, न विजई अन्नमिहेह किंचि ॥४०॥ नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा, संताणछिन्ना चरिस्सामि माग । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [७५ अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा, परिग्गहारम्भनियत्तदोसा ॥४१॥ दवग्गिणा जहा रराणे, उज्झमाणेस जन्तुस। अन्ने सत्ता पमोयन्ति. रागद्दोसवसं गया ॥४२॥ एवमेव वयं मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया । उज्झमाणं न बुज्झामा, रागद्दोसग्गिणा जग ।।४।। मोगे भाचा वमित्ता य, लहुभूयविहारिणे । आमोयमाणा गच्छन्ति, दिया कामकमा इव ॥४४॥ इमे य बद्धा फंदति, मम हत्थऽजमागया। वयं च सत्ता कामेसु, भविस्सामो जहा इमे ॥४५।। सामिसं कुललं दिस्स, बज्झमाणं निरामिसं । आमिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामि निरामिसा ॥४६॥ गिद्धोवमा उ नच्चारणं, कामे संसारवड्ढणे । उरगो सुवरणपासेब, संकमाणो तणुं चरे ॥४७॥ नागोग्य बन्ध छित्ता, अप्पणो वसहि वए । एयं पत्थं महारायं, उस्सुयारि त्ति मे सुयं ॥४८॥ चइत्ता विउल रजं, कामभोगे य दुच्चए । निधिसया निरामिसा, निन्नेहा निप्परिग्गहा ॥४९॥ सम्मं धम्म वियाणित्ता, चिच्चा कामगुणे वरे। तवं पगिज्झहक्खायं, घोरं घोरपरकमा ।।५०॥ एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा । जम्ममच्चुभ उब्धिग्गा, दुक्खस्सन्तगवेसिणो ॥५१॥ सासणे विगयमोहा, पुब्धि भावणभाविया । अचिरेणेव कालेणं, दुक्खस्सन्तमुवागया ॥५२।। राया सह देवीए, माहणो य पुरोहिो । माहणी दारगा चैव, सब्वे ते परिनिव्वुडे ॥५३॥त्ति बेमि।। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] ॥ अह सभिक्खू पंचदहं अभयणं ॥ मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्मं, सहिए उज्जुकडे निय। छिने । संथवं जहिज कामकामे, [ जीवन श्रेयस्कर - पाठमाला अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥१॥ ओवरयं चरेज लाढे, विगए वेयवियायर क्खिए । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी जे, अक्कोसवहं विइत्तु धीरे, श्रव्वग्गमणे कहिचि नमुच्छिएस भिक्खू ||२|| मुणी चरे लाढे निश्चमायगुत्ते । संपहिले, जे सिगं श्रहियासप स भिक्खू ॥३॥ १. सक्किय । पन्तं सयणासां भइत्ता, सीरहं विवि च दंसमसगं । अवग्गमणे श्रसंपहिले, जे कसिणं डियासए स भिक्खू ||४|| नो 'सक्करमिच्छई न पूयं, नो वि य वन्दरागं कुत्रो पसंसं ? से संजय सुव्वर तवस्सी, सहिए आयगवेसएस भिक्खू ॥५॥ जेण पुरण जहाह जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छइ । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] [७७ नरनारिं पजहे सया तवस्ती, न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥६॥ छिम्नं सरं मोमन्तलिक्ख, . . सुमिणं लक्खणदण्डवत्थुविजं । अंगवियारं सरस्स विजयं, जे विजाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥७॥ मन्तं मूलं विविहं वेजचिन्तं, वमणविरेयणधूमणेत्तसिणाणं । पाउरे सरणं तिगिच्छियं च, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ।।८।। खत्तियगणउग्गरायपुत्ता, माहणभाई य विधिहा य सिप्पिणी। नो तेसिं वयइ सिलोगपूयं , __ तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ॥६॥ गिहिण जे पव्वइएण दिट्ठा, अप्पव्वइएण व संथुगा हविजा। तेसिं इहलोइयफलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥१०॥ सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइम परेसिं । · अदए पडिसेहिए नियएठे, . जे तत्थ न पउस्सइ स भिक्खू ॥११॥ जं किं चि आहारपाणगं', विविहं खाइमसाइमं परेसिं लर्छ । १. पाणजायं Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला जो तं तिविहेण नाणुकम्पे, ___ मणवयकायसुसंवुडे स भिक्खू ॥१२॥ आयामगं चेव जवोदणं च, - सीयं सोवीरजवोदगं च । नो हीलए पिण्डं नीरसं तु, पन्तकुलाइं परिव्वए स भिक्खू ॥१३॥ सहा विविहा भवन्ति लोए, दिव्या माणुस्सगा तिरिच्छा। भीमा भयभेरवा उराला, सोचा न बिहिजइ स भिक्खू॥१४॥ वादं विविहं समिच्च लोप, सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, __उवसन्ते अविहेडए स भिक्खू ।।१५।। असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते जिइन्दिए सव्वो विप्पमुक्के । अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी, चिञ्चा गिह एगचरे स भिक्खू ॥१६॥ ॥ इअ सभिक्खुयं समत्तं ॥ १५ ॥ ॥ अह बम्मचेरसमाहिठाणा णामं सोलसमं अज्झयणं ।। सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नता, जे भिक्खु सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ ७ कयरे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस वम्भचेरठाणा पन्नता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अपमन्ते विहरेजा तंजहा: विवित्ताई सयणासगाई 'सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे । नो इत्थीपसुपरडगसंसत्ताई सयणासगाई सेवित्ता हवह से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाहः- निग्गन्थस्य खलु इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्य बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुष्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीलका लिये वा रोगायकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताई सयमा सगाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे ।। १ नो इत्थी कहं कहित्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह- निग्गन्थस्म खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायंक हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा ना इत्थी कहं कहेज्जा ||२|| नो इत्थी सद्धिं सन्नि सेज्जा गए विहरित्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कह मिति चे ? आयरियाह- निग्गन्धस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्नि सेज्जागयस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा व समुप्यजिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, 9. सेविना 1 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ το ० ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ता धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज गए विहरेज्जा ||३|| नो इत्थी इन्दिया मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निज्म इत्ता हवर से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाहनिग्गन्धस्स खलु इत्थी इन्द्रियाई मणोहराई अलोएमाणस्स निज्झायमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विगच्छा वा समुप्पजिज्जा, भेदं व लभेज्जा, उम्मायं वा पाणिज्जा, दीह कालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताश्री धम्मा भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थी इन्दियाई मोहराई मनोरमाई आलोएज्जा निज्झाएज्जा ||४|| नो इत्थीणं कुङ्कुन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा भित्तन्तरंसि वा कूइयसद्दं वा रुइयसद्दं वा गीयसद्दं वा हसियसद्दं वा थणियस वा कन्दियसद्दं वा विलवियसद्दं वा सुणित्ता हवा से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह निग्गन्थम्स खलु इत्थी कुन्तरंसि व दूसन्तरंसि भित्तन्तरंसि व कृइयसदं वा रुइयसद्दं वा गीयसद्दं वा हसियसद्दं वा थणियसद्दं वा कन्दियस वा विलवियसद्दं वा सुणेमाणस्य बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा विइगिच्छा व समुप्पज्जिज्जा, भेदं व लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंक हवेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थी कुडुन्तरंसि वा दूसन्तांसि भित्तन्तरंसि वा वा कृइयसद्दं वा रुदयसद्दं वा गीयसदं वा हसियसर्द वा थणियसद्दं वा कन्दियसदं वा सुणेमाणे विहरेज्जा ॥५॥ नो निग्गन्थे पञ्चयं पञ्चकीलियं असरिता दवइ से Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] . [८१ निग्गन्थे। तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु पुव्यरय पुव्वकीलियं अणुसरमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा व विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं व लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्तानो धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे पुव्वरयं पुयकीलियं अणुसरेज्जा ॥६॥ न पणीयं 'अाहारं आहरित्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? पायरियाह-निग्गन्थस्स खलु पणीयं आहारं आहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीह कालियं घा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु ना निग्गन्थे पणीयं आहारं आहारेज्जा ॥७॥ नो अइमायाए पाणभोयणं श्राहारेत्ता हवइ से निग्गंन्थे । तं कह मिति चे ? आयरियाह-निग्गंथस्य खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीलकालियं व रोगायकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे अइमायाए पाणभोयणं आहारेज्जा ।।८।। नो विभूसागुवाई हवइ ले निग्गन्थे। तं कह मिति चे? आयरियाह-विभूसावत्तिए विभूसियसरीरे इत्थिजणस्य अभिलसणिज्जे हवइ तओ ण इत्थिजणे अभिलसिज्जमाणस्स बम्भ १. पाणभोयणं । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला चेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्माय वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्तानो धम्मायो भसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे विभूसाणुवाई हविज्जा ॥६॥ __ नो सद्दरूवरसगन्धफासाणुवाई हवइ से निग्गन्थे। त कहमिति चे? प्रायरियाह-निग्गन्थस्स खलु सहरूवगन्धफासाणुवाईस बंभचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेदं वा लज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालिय वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्तानो धम्माश्रो, भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे सद्दरूवरसगन्धफासागुवाइ भवेज्जा । दसमे बम्भचेरसमाहिठाणे हवइ ॥१०॥ भवन्ति इत्थ सिलोगा तंजहा जं विवित्तमणाइएणं, रहियं इत्थिजणेण य । बम्भचेरस्स रक्खट्टा, आलयं तु निसेवए ॥१॥ मणपल्हाय जगणी, कामरागविवड्डणी । बम्भचेररो भिक्खू , थीक हं तु विवजए ॥२॥ समं च संथव श्रीहि, संकहं च अभिक्खगां । बम्भचेररमो भिक, निच्चस्तो परिवजए ॥३|| अंगपञ्चगसंठाणं, चारुल्लवियपेहियं । बम्भचेररओ थीणं, चक्खुगिज्झं विवजए ॥४॥ कूइयं रुइयं गीयं, हसिय थणियकन्दियं । बम्भचेररो थीणं, सोयगेज्झं विवजए ॥५॥ हासं किडे रई दप्पं, सहसावित्तासियाणि य । वम्भचेररो थीगं, नाणुचिन्ते कयाइ वि ॥६।। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] [८३ पणीय भत्तपाणं तु, खिप्पं मयविवड्ढणं । यम्भवेररो भिवू , निच्चसा परिवजए ॥७॥ धम्मलद्धं मियं काले, जत्तत्थं पणिहाणवं । नाइमत्त तु भुजेजा, बम्भचेररो तया ॥८॥ विभूसं परिवजेजा, सरीरपरिमण्डणं । बम्भचेररओ भिक्खू , सिंगारत्थं न धारए ॥६॥ सद्दे रूवे य गन्धे य, रसे फासे तहेव य । पंच विहे कामगुणे, निच्चसा परिवजए ॥१०॥ आलओ थीजणाइराणो, थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारी, तासिं इन्दियदरिसणं ॥११॥ कृइयं रुइयं गीयं, हासभुत्तासियाणि य । पणीयं भत्तपाणं च, अइमायं पाणभोयणं ॥१२।। गत भूसणमिटुं च, कामभोगा य दुजया। नरस्सत्तगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ॥१३।। दुजए कामभोगे य, निचसो परिवजए । संकटाणाणि सव्वाणि, वज्जेजा पणिहाणवं ॥१४॥ धम्माराम चरे भिक्खू , धिइमं धम्मसारही। धम्मारामरते दन्ते, बम्भचेरसमाहिए ॥१५॥ देवदाणवगन्धब्वा, जक्खरक्खसकिन्नरा । बम्भयारिं नमंसन्ति, दुकरं जे करन्ति तं ॥१६॥ एस धम्मे धुवे निच्चे, सासए जिण देखिए। सिद्धा सिज्झन्ति चाणेण, सिज्झिस्सन्ति तहावरे ॥१७॥ ॥ बम्भचेरसमाहिठाणा समत्ता ।। ॥ अह पावसमणिज्जं सत्तदहं अज्झयणं ।। जे केइ उ पव्वइए नियंठे, __धम्म सुणित्ता विणओववन्ने । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला सुदुल्लहं लहिउं बोहिलाभं, विहरेज पच्छा य जहा सुहं तु ||१|| सेज्जा दढा पाउर मि अस्थि, उपज्जई भो तहेव पाउं । जाणामि जं वट्टइ आउसु त्ति, किं नाम काह। मि सुए भन्ते ! ||२|| जे केई पव्वइए, निद्दासीले पगामसो | भोच्च पिच्चा सुहं सुवइ, पावसमणि त्ति वुच्चइ ||३|| श्रयरियउवज्झाएहि, सुयं विषयं च गाहिए । ते चैव खिंसई बाले, पावसमणि त्ति वुच्चइ ||४|| आयरियउवज्झायाणं, सम्मं न पडितप डिपूयप थद्धे पावसमणि त्ति वृच्चइ ॥५॥ सम्मद्दमाणे पाणाणि, बीयाणि हरियाणि य । असंजए संजयमन्नमाणे, पावसमणि त्ति वुश्च्चइ ||६|| संथारं फलगं पीढं, निसेजं पायकम्बलं । अप्पमजियमारुहइ, पावसमणि त्ति कुच्चइ ॥७॥ दवदवस्स चरई, पमत्ते य अभिक्खणं । उल्लंघणेय चण्डे य, पावसमणि त्ति बुच्चइ ||८|| पडिलेहेइ पमत्ते, अवउज्झइ पायकम्बलं । पडिले हाणा उत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चइ || || पडिले हेइ पत्ते, से किंचि हु निसामिया । गुरुं परिभावर निश्च, पावसमणि त्ति वुश्च्चइ ॥ १०॥ बहुमाई पमुहरी, थद्धे लुद्धे श्रणिग्गहे | संविभागी 'श्रचियत्ते, पावसमणि त्ति वुच्च ॥ ११ ॥ १. वियत्त । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीउत्तराध्ययन सूत्र ] विवादं च उदीरेइ, ग्रहम्मे अत्तपन्नहा । वुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चइ ||१२|| श्रथिरासणे कुक्कुइए, जत्थ तत्थ निसीयइ । आसणम्मि अणा उत्त, पावसमणि त्ति वुच्चइ ॥१३॥ ससरक्खपाए सुवइ, सेजं न पडिलेहइ | संधारणा उत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चइ | १४ || दुद्धदही विगई श्रो, आहारेइ अभिक्खणं । रए य तवोकम्मे, पावसमणि त्ति वुञ्चइ ॥ १५॥ अत्यन्तम्मिय सूरम्मि, आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ, पावसमणि त्ति वुश्च ॥ १६ ॥ आयरियपरिच्चाई, परपासण्ड सेवए । गागांगणिए दुब्भूए, पावसमणि त्ति वुच्चइ ||१७|| सयं गेहं परिच्चज, परगेहंसि वावरे । निमित्तेराय ववहरइ, पावसमणि त्ति वुश्चइ ॥ १८ ॥ सन्नाइपिण्डं जेमेइ, नेच्छई सामुदाणियं । गिहिनिसेज च वाहेइ, पावसमणि त्ति वुञ्चइ ||१९|| प्यारिसे पंचकुसीलसुंबडे, रूवंधरे मुणिपवराण हेट्टिमे । अयंसि लोए विसमेव गरहिए, न से इहं नेव परत्थ लोए ||२०|| जे वज्जए एए या उ दोसे, से सुवए होइ मुर्गाण मज्भे । अयंसि लोए अमयं व पूइए, [ =५ आराहए लोग मिगं तहा परं ॥ २९ ॥ त्ति बेमि । || पावसमणिज्जं समत्तं ॥ १७॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला ॥ अह संजइज्ज अढारहमं अज्झयणं ।। कम्पिल्ले नयरे राया, उदिएणबलवाहणे । नामेणं संजए नाम, मिगव्वं उवणिग्गए ॥१॥ हयाणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव य । पायताणीए महया, सव्वओ परिवारिए ॥२॥ मिए छुहित्ता हयगयो, कम्पिल्लुज्जाणकेसरे । भीए सन्ते मिए तत्थ, वहेइ रसमुच्छिए । ३॥ अह केसरम्मि उज्जाणे, अरणगारे तवोधणे । सज्झायज्झाणसंजुत्ते, धम्मज्झा झियायइ ॥४॥ अप्फोवमराडवम्मि, झायइ क्ववियासवे। तस्सागए मिए पासं, वहेइ से नराहिवे ।।५।। अह आसगओ राया, खिप्पमागम्म सो तहिं । हए मिए उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासइ ॥६॥ अह राया तत्थ संभन्तो, अणगारो मणाहओ। मए उ मन्दपुराणे, रसगिद्धेण घंतुणा ॥७॥ आसं विसजइत्ता, अणगारस्त सो निवो। विणएण वन्दए पाए, भगवं ! एत्थ मे खमे ॥८॥ अह मोणेण सो भगवं, अणगारे झाणमस्सिए । रायाणं न पडिमन्तेइ, तो राया भयदुओ ॥१०॥ संजो अहमम्मीति, भगवं ! वाहराहि मे । कुद्धे तेएण अणगारे, उहेज नरकोडिओ ॥१०।। अभओ पत्थिवा ! तुम्भं, अभयदाया भवाहि य । अणिच्चे जीवलोगंमि, किं हिंसाए पसजसि ? ॥११।। जया सव्वं परिचज, गंतव्वमवसस्स ते । अणिच्चे जीवलोगंमि, किं रजंमि पसजसि ? ॥१२॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] जीवियं चैव रूवं च, विज्जुसंपायचंचलं । जत्थ तं मुज्झसि राय ! देच्चत्थं नावबुज्झसे ॥१३॥ दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बन्धवा | जीवन्त मरणुजीवन्ति, मयं नारणुवयन्ति य ॥ १४॥ नीहरंति मयं पुत्ता, पियरं परमदुक्खिया । पियरो वि तहा पुत्ते, बन्धू राय ! तवं चरे ॥ १५ ॥ तो तेज्जिए दव्वे, दारे य परिरक्खिए ! कीलन्तिऽन्ने नरा रायं ! हट्टतुटुमलंकिया ||१६|| तेणावि जं कयं कम्मे, सुहं व जइ वा दुहं । कम्मुणा तेरा संजुत्तो, गच्छई उ परं भवं ॥ १७ ॥ सोऊण तरस सो धम्मं, अणगारस्स अन्तिए । महया संवेगनिव्वेयं, समावन्नो नराहिवो ||१८|| संजओ चइउं रजं, निक्खन्तो जिणसासणे । गद्दभालिस्स भगवओ, अणगारस्स अन्ति ॥ १९ ॥ चिच्चा रटुं पव्वइए, खत्तिए परिभासइ । जहा ते दीसइ रूवं, पसन्नं ते तहा मणो ||२०|| किं नामे किं गोते कस्लट्ठाए व माहणे । कहं पडियरस बुद्धे, कहं विणीपत्ति वुच्चसि ? ॥ २१ ॥ संजओ नाम नामेां, तहा गत्तिण गोयमो ? गद्दभाली ममायरिया, विज्जाचरणपारगा ||२२|| किरियं किरियं विषयं अन्नाणं च महामुणी । एएहिं चउहिं ठाणेहिं, मेयन्जे किं पभासइ ||२३|| इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिणिव्वुए । विज्जाच रणसंपन्ने, सच्च सच्चपरक्कमे ||२४|| पडन्ति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो । दिव्वं च गां गच्छन्ति चरित्ता धम्ममारियं ||२५|| } [ ८७ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला मायावुइयमेयं तु मुसा भासा निरत्थिया। संजममाणे वि अहं, वसामि इरियामि य ॥२६॥ सव्वेए विइया मज्झं, मिच्छादिट्ठी प्रणारिया । विज्जमाणे परे लोए, सम्म जाणामि अपगं ॥२७॥ अहमासि महापाणे, जुइमं वरिससरोवमे । जा सा पालिमहागली, दिवा वरिससोवमा ॥२८!! से चुए बम्भलोगाओ, माणुस्सं भवमागए। अप्पणो य परेसिं च, अाउं जाणे जहा तहा ।।२९॥ नाणारुइं च छन्दं च, परिवज्जेज्ज संजए । अणट्टा जे य सव्वत्था, इइ विज्जामणुसंचरे ॥३०॥ पडिकमामि पसिणार, परमंतेहिं वा पुणेो । अहो उठ्ठिए अहोरायं, इइ विज्जा तवं चरे ॥३१॥ जं च मे पुच्छसी काले, समं सुद्धण चेयसा । ताई पाउकरे बुद्धे तं नाणं जिणसासणे ॥३२॥ किरियं च रोयइ धीरे, अकिरियं परिवजए । दिट्टीए दिट्ठिसम्पन्न, धम्मं चरसु दुच्चरं ।।३३॥ एयं पुरणपयं सोचा, अत्थधम्मोवसोहियं । भरहो वि भारहं वासं, चिच्चा कामाइ पव्वए।॥३४।। लगरो वि सागरन्तं, भरहवासं नराहिवो। इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाइ परिनिव्वुडे ।।३।। चइत्ता भारहं वासं, चकवट्टी महिडिढयो। पव्वजमब्भुवगो, मघवं नाम महाजसे। ॥३६॥ सकुयारो पणुस्सिन्दो, चक्कवट्टी महिढिो । पुत्तं रजे ठवेऊणं, सो वि राया तवं चरे ॥३७।। चइत्ता भारहं वासं चकवट्टी महिड्ढिओ। सन्ती सन्ति करे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥३८॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] इक्खागर (यवसभा, कुन्धू नाम नरीसरे । । विषखायकित्ती भगवं, 'पत्तो गइमगुत्तरं ॥३६॥ सागरन्तं चइत्ताणं, भरहं नरवरीसरो । अ य अयं पत्तो, पत्तो गइमणुत्तरं ||४०|| चइत्ता भारहं वासं, इत्ता बलवाहणं । चइत्ता उत्तमे भोए, महापउमे तवं चरे ॥४१॥ एगच्छतं पसाहित्ता, महिं माणनिसूरणो । हरिसेगा मरणुस्सिन्दो, पत्तो गइमरणुत्तरं ॥४२|| अन्नि राय सहस्सेहिं, सुपरिच्चाई दमं चरे । जयनामो जिक्खायं, पत्तो गरमगुत्तरं ||४३|| दसराणरज मुदियं, चइत्ताणं मुणी चरे । दसरणमद्दो निक्खन्तो, सक्खं सक्केण चोइ श्री ||४४|| नमी नमेइ अप्पा, सक्खं सक्केण चोइ श्री । चइऊण गेहं वद्ददेही, सामराणे पज्जुवट्टिश्र ॥४५॥ करकण्डू कलिंगेसु, पंचालेस य दुम्मुहा । नमी राया विदेहेसु, गन्धारेसु य नग्गई ||४६|| एए नरिन्दवसभा, निक्खन्ता जिणसासणे । पुत रजे ठवेऊणं, सामराणे पज्जुवट्टिया || ४७|| सोवीररायवसभो, चइत्ताण मुणी चरे । उदायण पव्वइओ, पत्तो गरमगुत्तरं ॥४८॥ तहेव कासिया, वि सेओ सच्चपरक्कमे । कामभोगे परिच्चज्ज, पहणे कम्ममहावणं ||४९ || · [ ८९ 3 तव विजओ राया, अणट्टा कित्ति पव्वए । रज्जं तु गुणसमिद्धं, पयहित्तु महाजसेो ॥ ५०|| १. मुक्खंगो अगुत्तरं । २. चक्कत्री महिडियो । ३. श्रगट्ठा० । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० ] [ जीवन श्रेयस्कर - पाठमाला तवग्गं तवं किच्चा, अव्वक्खित्तेरा चेयसा । महब्बलो रायरिसी, आदाय सिरसो सिरिं ॥५१॥ कहं धीरा ऊहिं, उम्मत्तो व महिं चरे ? एए विसेसमादाय, सूग दढपरक्कमा ॥५२॥ अच्चन्तनियाणखमा, सच्चा मे भासिया वई । अतरिंसु तरन्तेगे, तरिस्सन्ति अगागया ॥ ५३॥ कहिं धीरे ऊहिं श्रत्ताणं परियावसे । सव्वसंग चिनिम्मुक्के, सिद्धे भवइ नीरए || ५४ | | त्ति बेमि || || संजइज्जं समत्तं ॥ १८ ॥ || मियापुत्तीयं एगूणवीसइमं समत्तं ॥ सुग्गीवे नयरे रम्मे, कारणगुज्जारा सोहिए । राया जलभद्दित्ति, मिया तस्सग्गनाहिसी ॥ १ ॥ तेसिं पुत्ते वलसिरी, मियापुत्ते ति विस्सुए । अम्मापिऊ दइए, जुवराया दमीसरे ॥२॥ नन्द सो उपासाए, कीलए सह इत्थिहिं । देवो दोगुन्दागो चेव, निश्च्चं मुइयमाणसो ||३|| मरियकोट्टिमतले पासायालोयराट्ठिओ । लोह नगरस्स, चउक्कतियचच्चरे ||४|| अह तत्थ इच्छन्तं, पासइ समणसंजयं । तवनियम संजमधरं, सीलदढं गुणश्रागरं ॥ ५॥ तं पेह मियापुत्ते, दिडीए अणिमिसाए उ । कहिं ने रूवं, दिव्वं मए पुरा ||६|| साहुस्स दरिसर तस्स, ग्रज्भवसाराम्मि सोहणे । मोहं गयस्स सन्तस्स, जाइसरणं समुत्पन्नं !! ७|| , Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र 1 ( देवलोग संतो माणुसं भवमागओ । सन्निना समुपने जाई सरह पुराणियं ॥ ) जाईसरणे समुपपन्ने, मियापुत्ते महिड्दिए । सरइ पोराणियं जाई, सामराणं च पुरा कथं ॥८॥ विसएहि अरज्जन्तो, रज्जन्तो संजमंमि य । अम्मापियरमुवागम्म, इमं वयणमन्त्रवी ॥९॥ सुयाणि मे पंच महव्वयाणि, नरएसुदुक्खं च तिरिक्खजोणिसु । मिरिकामो मि महण्यवाश्रो, [ ९१२ अगुजारह पञ्चइस्तामि अम्मो ! ॥१०॥ अम्ताय ! मए भोगा, भुत्ता विफलोवमा पच्छा कडुयविवागा, अणुबन्धदुहावहा ॥ ११ ॥ इमं सरीरं अणिच्चं, असुइं असुइसंभवं । असासयावासमिणं, दुक्खकेसारा भायां ||१२|| असासए सरीरंमि, रई नोवलभामहं | पच्छा पुरा व चयव्त्रे, फेणबुब्बुयसन्निभे ।। १३ ॥ माणुसत्ते सारंमि, वाहीरोगाण आलए । जरामरणघत्थमि, खपि न रमामहं ||१४|| जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगाणि मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसन्ति जन्तुणो ॥ २७५॥ खेत्तं वत्युं हिरणं च पुत्तदारं च बन्धवा | चरत्ताणं इमं देहं गन्तव्वमवसस्स मे ॥ १६ ॥ जहा किम्पागफल, परिणामो न सुन्दरो । एवं भुत्ता भोगाणं, परिणामो न सुन्दरो ॥ १७ ॥ अद्धा जो महंतं तु, अप्पा हेओ पवजइ । गच्छन्तो सो दुही होइ, छुहात रहाए पीडिओ || १८ || " Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] [ जीवन-श्रेयस्कर पाठमाला एवं धम्मं अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो दुही होइ, वाहीरेरोगेहिं पीडिओ ॥ १६ ॥ श्रद्धा जो महंतं तु, सपात्र पवज्जइ । गच्छन्तो सो सुही हो, छुहात रहा विवज्जिश्रो ||२०|| एवं धम्मं पि काऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सही होइ, अपकम्मे अवेयणे ||२१|| जहा गेहे पतिसम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू । सारभराष्ट्राणि नीणेइ, असारं श्रवउज्झइ ||२२|| एवं लोए पन्तिम्मि, जराए मरणेस व । अप्पा तारइस्लामि, तुम्भेहिं असुमनिधो ॥२३॥ तं विन्तम्मा षिय, सामराणं पुरा ! दुच्चरं । गुणणं तु सहस्लाई, धारेयव्वाई 'भिक्खुणा ||२४|| समया सव्वभूपसु सत्तुभित्ते वा जगे । पाणाश्वाय विरई, जावजीवाए दुक्करं ||२५|| निच्चकालप्पमत्तेणं, मुसावायविवज्जरां । भासियव्वं हियं सच्चं निश्चा उत्तेगं दुक्करं ||२६|| दन्तसोहम इस्स, श्रदत्तस्स विवज्जणं । अणवज्जेसणिजस्स, गिरहणा श्रवि दुक्करं ||२७|| विरई अबम्भचेरस्स, कामभोगरसन्नुणा । उग्गं महव्वयं बम्भं, धारेयव्वं सुदुक्करं ||२८|| धणधन्नपेसवग्गेसु, परिग्गहविवजणं । सव्वारम्भपरिचाओ, निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥ २९ ॥ चविहे व आहारे, राईभोयणवजणा । सन्निहीसंच चेव, वज्जेयव्वो सुदुक्करं ॥३०॥ " १. भिक्खुणी । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] [६३ छुहा तराहा य सीउराहं, दंसमस अवेयणा। अक्कोसा दुक्खसेजा य, तणफासा जल्लमेव य ॥३२॥ तालणा तजणा चेव, वहबन्धपरीसहा । दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ॥३२॥ कावोया जा इमा वित्ती, केसलोबो य दारुणो । दुक्खं बम्भव्वयं घोरं, धारेउ य 'महप्पणो ॥३३।। सुहोइओ तुमं पुत्ता, ! सुकुमालो सुमजिओ। न हुसि पभू तुमं पुत्ता, सामरणमणुपालियं ॥३४॥ जाघजीवमविस्सामो, गुणाणं तु महब्भरो। गुरु उलोहमारुव, जो पुत्ता होइ दुवहो ॥३५॥ पागासे गंगसोउव, पडिसोउव्व दुत्तरो । बाहाहिं सागरा चेव, तरियव्वो गुणोदही ।।३।। वालुया कवले चेव, निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेष, दुक्करं चरित्रं तवो ॥३७॥ अहीवेगन्तदिट्ठीए, चरित्ते पुत्त ! दुक्करे। जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्करं ॥३८ । जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करा । तहा दुकरं करेउं जे, तारुरणे समणत्तणं ।।३९।। जहा दुक्खं भरेउं जे, होइ वायस्स कोत्थलो। तहा दुक्खं करेउं जे, कीवेणं खमणत्तणं ॥४०॥ जहा तुलाए तोलेउ, दुक्करो मन्दरो गिरी । तहा निहुयनीसंकं, दुक्करं समणत्तणं ॥४१॥ जहा भुयाहि तरिउ, दुक्करं रयणायरो। तहा अणुवसन्तेणं, दुक्करं दमसागरो ॥४२।। १. अमहप्पणो । २-या। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४] जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला भुज माणुस्सए भोगे, पंचलक्खणए तुमं । भुत्तभोगी तओ जाया ! पच्छा धम्म चरिस्ससि ॥४३॥ सो बेइ अम्मापियरो, एवमेयं जहा फुडं । इह लोए निपिवासस्स, नत्थि किंचिवि दुक्करं ॥४४॥ सारीरमाणसा चेव, वेयणाओ अनन्तसो। मए सोढाओ भीमाअो, असई दुक्खभयाणि य ॥४५॥ जरामरणकन्तारे, चाउरन्ते भयागरे । मए सोढाणि भीमाणि, जम्माणि मरणाणि य ||४६।। जह इहं अगणी उरहो, पत्तोऽणन्तगुणो तहि । नरएसु वेयणा उराहा, अस्साया वेइया मए ॥४७॥ जहा इहं इमं सीयं, एत्तोऽणन्तगुणे तहिं ।। नरएसु वेयणा सीया, अस्साया वेइया मए ॥४॥ कन्दन्तो कंदुकुम्भीसु, उहपाओ अहोसिरे । हुयासणे जलन्तम्मि, पक्कपुवो अणन्तसो ॥४६॥ महादवग्गिसंकासे, मरुमि वइरबालुए । कदम्बवालुयाए य, दडपुन्वो अणन्तसो ॥५०॥ रसन्तो कन्दुकुम्भीसु, उड्ढे बद्धो अबन्धवो। करवत्तकरकयाईहिं, छिन्नपुवो अणन्तसो ॥५१॥ अइतिक्खकण्टगाइएणे, तुंगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पालबद्धणं, कड्ढोकड्डाहिँ दुक्करं ॥५२।। महाजन्तेसु उच्छू वा, पारसन्तो सुभेरवं । पीलियो मि सकम्मेहि, पावकम्मो अतसो ॥५३॥ कूवन्तो कोलसुणएहिं, सामेहिं सबलेहि य । पाडिओ फालिओ छिन्नो, विष्फुरन्तो अणेगसो ॥५४|| Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [६५ असीहि अयसिवराणाहिं, भल्लेहिं पट्टिसेहि य । छिनो भिन्नो विभिन्नो य, 'ओइराणा पावकम्मुणा ॥५५।। अवसो लोहरहे जुत्तो, जलन्ते समिलाजुए। चोइओ तोत्तजुत्तेहिं, रोज्झो वा जह पाडिओ ॥५६।। हुयासणे जलन्तम्मि, चियासु महिसो विव । दड्ढो पको य अवसो, पावकम्मेहि पाविओ ॥५७॥ वला संडासतुण्डेहिं, लोहतुण्डेहिं पक्खिहिं । विलुत्तो विलवंतोऽहं, ढंकगिद्धेहिऽणन्तसो ॥५८॥ तराहाकिलन्तो धावन्तो, पत्तो वेयरणिं नदि । जल पाहंति चिन्तन्तो, खुरधाराहिं विवाइओ ।।५९॥ उराहाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडन्तेहिं, छिन्नपुवो अणेगसो ॥६०|| मुग्गरेहिं मुसंढीहिं, सूलेहिं मुसलेहिं य । गयासंभग्गगत्तहिं, पत्तं दुक्खं अणन्तसो ॥६॥ खुरेहिं तिक्खधाराहिं, छुरियाहिं कप्पणीहि य । कप्पिो फालिओ छिन्नो, उक्वित्तो य अणेगसो ॥६॥ पासेहिं कूडजाले हिं, मित्रो वा अवसो अहं । वाहिओ बद्धरूद्धो य, बहुसा चेव विवाइअो ॥६३॥ गलेहिं मगरजालेहिं, मच्छो वा अवसो अहं । उल्लिओ फालियो गहिओ, मारिणो य अणन्तसो ॥६॥ विदंसएहि जालेहिं, लेप्पाहिं सउणेा विव । गहिओ लग्गो बद्धो य, मारिओ य अणन्तसे ॥६५।। कुहाडफरसुमाई हिं, वहईहिं दुमो विव । कुट्टिो फालिओ छिन्नो, तच्छिओ य अणन्तसो ॥६६।। १. उपवनो । २. विवसो। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला चवेडमुट्ठिमाईहिं कुमारेहि, अयं पिव । ताडिओ कुट्टिो भिन्नो, चुरिणो य अणन्तसो ॥१७॥ तत्ताइं तम्बलोहाइं, तउयाइं सीसयाणि य । पाइओ कलकलन्ताइं, पारसंतो सुमेरवं ॥६८।। तुहं पियाई मंसाइं, खण्डाइं सालगाणि य । खाविश्रो मि समंसाई, अग्गिवरणाइऽणेगसे ॥६६॥ तुहं पिया सुरा सीहू, मेरो य महूणि य । पाइअो मि जलन्तीओ, वसाओ रुहिराणि य ॥७०|| निश्च भीएण तत्थेण, दुहिएण वहिएण य । परमा दुहसंबद्धा, वेयणा वेइया मए ॥७१।। तिव्वचण्डप्पगाढाओ, घोरात्रो अइदुस्सहा । महब्भयाओ भीमाओ, नरएसु वेइया मए ।७२॥ जारिसा माणुसे लोए, ताया ! दीसन्ति वेयणा । एत्तो अणन्तगुणिया, नरएसु दुक्खवेयणा ॥७३॥ सव्वभवेसु अस्साया, वेयणा वेश्या मए । निमेसन्तरमित्तं पि, जे साता नत्थि वेयणा ॥७४॥ तं बिन्तऽम्मापियरो, छन्देणं पुत्त ! पव्वया। नवरं पुण सामरणे, दुक्खं निप्पडिकम्मया ॥७५।। सो बेइ अम्मापियरो ! एवमेयं जहा फुडं । पडिकम्मं को कुणइ, अरण्णे मियपक्खिणं ॥७६।। एगब्भूए परराणे व, जहा उ चरइ मिगे। एवं धम्मं चरिस्सामि, संजमेण तवेण य ७७॥ जया मिगस्स आयको, महारराणंमि जायइ । अच्छंतं रुक्खमूलंमि, को णं ताहे तिगिच्छई ।।७८।। को वा से ओसहं देइ, को वा से पुच्छइ सुहं ? को से भत्तं च पागां वा, आहरित पणामए ? ।।७।। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [६७ जया से सुही होइ, तया गच्छइ गोयरं। भत्तपाणस्स अट्टाए, वल्लराणि सराणि य ॥८॥ खाइत्ता पाणियं पाउं, वल्लरेहिं सरेहि य । भिगचारियं चरित्ता गां, गच्छइ मिगचारियं ॥८॥ एवं समुट्टिओ भिकावू , एवमेव 'अणेगए । मिगचारियं चरित्ता , उडं पकमई दिसं ।।८२॥ जहा मिए एग अरणेगचारी, अणेगवासे धुवगोयरे य । एवं मुणी गोयरियं पविटे, नो हीलए नो वि य खिसएन्जा ॥३॥ मिगचारियं चरिस्लामि, एवं पुत्ता ! जहासुहं । अम्मापिऊहिऽणुनायो, जहाइ उवहिं तो ।।४।। मियचारियं चरिस्सामि, सव्यदुक्खविमोक्खणिं । तुब्भेहिं अब्भणुन्नाओ, गच्छ पुत्त! जहासुहं ।।८।। एवं सो अम्मापियरो. अणुमाणित्ताण बहुविहं । ममत्तं छिन्दइ ताहे, महानागो व्व कंचुयं ।।८६।। इड्ढी वित्तं च मित्ते य, पुत्तदारं च नायो । रेणुयं व पडे लग्गं, निधुणित्ताण निग्गओ ॥८॥ पंचमहव्वयजुत्तो पंच समिनो तिगुत्तिगुत्तो य । सब्भिन्तरवाहिरए तवोकम्मंसि उज्जुश्रो ॥८।। निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो। समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य ॥८९।। लाभालामे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो निन्दापसंसामु, तहा माणावमाणो ॥६०।। १. अणिएयणे । २: अम्ब ! ऽणुनायो Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाटमाला . गारवेसुं कसाएसुं, दण्डमल्लभएतु य । नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो श्रबन्धणो ॥६॥ अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सियो । वासीचन्दणकप्पो य, असणे असणे तहा ॥६२।। अप्पसत्येहिं दारे हिं, सव्वश्रो पिहियासवे । अझप्पज्झाणजोगेहिं, पसत्थदमसासणे ॥६३।। एवं नाणेण चरणेण, दसणेण तवेला य।। भावणाहिं य सुद्धाहिं, सम्नं भावितु अप्पयं ॥६॥ बहुयाणि उ वासाणि, सामराणमणुपालिया। मासिएण उ भत्तेण, सिद्धिं पत्तो प्रस्तुसरं ॥६५॥ एवं करन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा । विणिअट्टन्ति भोगेसु, मियापुत्ते जहारिसी ॥१६॥ महाप्पभावस्स महाजसस्स, मियाइपुत्तस्स निसम्प भासियं । तवप्पहाणं चरियं च उत्तम, गइप्पहाणं च तिलोगविस्सुतं ॥७॥ वियाणिया दुक्ख विवद्ध धणं, ममत्तवन्धं च महाभयावहं । सुहावहं धम्प्रधुरं अणुत्ता, __ धारेज निव्वाणगुणावहं महं ।।६८|| ॥मियापुत्तीयं समत्तं ॥१६॥ ॥अह महानियंठिज्जं वीसइमं अज्झयणं । सिद्धारण नमो किचा, संजया च भावो । अत्थधम्मगई तचं अणुसद्धिं सुह मे ॥१॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र] पभूयरयणे। राया, सेणिो मगहाहिवो । विहारजत्तं निजाओ, मण्डिकुञ्छिसि चेहए ॥२॥ नाणादुमलयात्रा, नाणापक्खिनिसेवियं । नाणाकुसुमसंछन्नं उजाणं नन्दणोवमं ॥३॥ नत्थ सो पासइ साहुं संजयं सुसमाहियं । निसनं रक्खमूलम्प्रि, सुकुमालं सुहोइयं ।।४।। तत्य हवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए । अञ्चन्तपरमो पासी, अउलो रूवविम्हो ॥५॥ अहो वराणो अदो रूवं, अहो अजस्स सोमया । अहो खन्डी अहो मुत्ती, अहो भोगे असंगया ॥६॥ तस्स पाए उ वन्दित्ता,काऊण य पयाहि । नाइदूरमरणासन्ने, पंजली पडिपुच्छइ ॥७।। तरुणो सि अजो ! पव्वइयो, भोगकालम्मि संजया। उवट्टिो सि सामरणे, एयम8 सुणेमि ता ॥८॥ अणाहोमि महाराय, नाहो मज्झ न विजइ । अणुकम्पगं सुहिं वावि, कंचि नाभिसमेमहं ॥६॥ तो सो पहसियो राया, सेणिो मगहाहियो। एवं ते इढिमन्तस्स, कहं नाहो न विजद ।।१०।। होमि नाहो भयंता, भोगे भुंजाहि संजया ! मित्तनाइपरिवुडे माणुस्सं खु सुदुल्लहं ॥११।। अप्पणा वि अणाहा सि, सेणिया ! मगहाहिवा ! अप्पणा अणाहो सन्तो, कहं नाहो भविस्ससि ? ॥१२॥ एवं वुत्तो नरिन्दो सो, सुसंभन्तो सुविम्हिओ। वय अस्सुयपुव्ध, साहुणा विम्हयन्निो ॥१३॥ १. नाहि तुमे महं । २. कस्स । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अस्सा हत्थी मणुस्ला मे, पुरं अन्तेउरं च मे । भुंजामि माणुसे भोगे, आणा इस्सरियं च मे ।।१४।। एरिसे सम्पयग्गम्मि, सव्वकामसमप्पिए । कहं प्रणाहो भवइ, मा हु भन्ते ! मुसं वए ।।१५।। न तुम जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं च पत्थिवा! जहा अलाहो भवइ, सणाहो वा नराहिवा ॥१६।। सुणेह मे महाराय, अव्यक्खित्तेण चेयसा । जहा अणाहो भंवई, जहा मेअ पवत्तियं ॥१७॥ कोसम्बी नाम नयरी, पुराणपुरभेयणी। . तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूयधणसंचओ ॥१८॥ पढमे वए महाराय, अउला मे अच्छिवेयणा। अहोत्था विउलो दाहो, सब्वगत्तेसु पंस्थिवा ॥१६।। सत्थे जहा परमतिक्खं, सरीरविवरंतरे । 'आवीलिज गरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥२०॥ तियं मे अन्तरिच्छं च, उत्तमंगं च पीडइ । इन्दासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥२१।। उट्टिया मे आयरिया, विजामन्ततिगिच्छया। अधीया सत्थकुसला, मन्तमूलविसारया ॥२२।। ते मे तिगिच्छं कुव्वन्ति, चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥२३॥ पिया मे सव्वसारंपि, दिजाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ प्रणाहया ॥२४॥ माया य मे महाराय, पुत्तसोगदुहट्टिया। न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ असाहया ॥२५॥ १. पविसिज्ज । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] भामरो मे महाराय, सगाजेट्टक गिट्ठगा । न दुक्ख विमोयन्ति, एसा मज्झ अगाहया ||२६|| भइणीओ मे महागय, सगा जेट्टकणिट्टगा । मय दुक्खा विमोयम्ति, एसा मज्झ अणाया ||२७|| भारिया मे महाराय, अणुरत्ता ग्रणुव्वया । अंसुपुराणेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंगइ ||२८|| अन्नं पाच रहाणं च गन्धमल्लविलेवरणं । मए नायमणायं वा स्वा वाला जोबसुंजइ ॥२६॥ खपि मे महाराय, पासाओ वि न फिट्टइ । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ असाहया ॥ ३० ॥ तओ है एवमाहंसु, दुक्खमाहु पुणे पुणेो । वेणा अणुभवि से, संसारम्मि अन्तए ||३१|| सई च जइ मुच्चंजा, वेणा विउस्लाइ । खन्तो दन्तो निरारम्भो, पव्वए अणगारियं ||३२|| एवं च चिन्तइत्ताणं, पत्तो मि नराहिवा । परियत्तन्ती राईए, वेयणा से खयं गया ||३३|| तओ कल्ले पभायमि, श्रापुच्छित्ताण बन्धवे । खन्तो दन्तो निरारम्भो, पव्वइओऽणगारियं ||३४|| ततो हं नाहो जाओ, अपणो य परस्त य । सव्वेसिं चेव भूयारां, तसाग थावराण य ||३५|| अप्पा नई वेयरणी, ग्रप्पा मे क्रूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दां वां ||३६|| श्रपा कत्ता विकत्ता य, दुहास य सुहारा य । अप्पा मित्तममित्तं च दुष्पट्टियसुपट्टिश्रो ||३७|| " इमा हु अन्ना वि अणाहया निवा, तमेगचित्तो निहुओ सुहि । [ १०९ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला नियराठधम्म लहियामा वि जहा, सीयन्ति एगे बहुकायर। नरा ।।३।। जो पव्वइत्ताण महव्वयाई, ___ सम्मं च नो फासयइ पमाया । अनिग्गहप्ता य रसेसु गिद्धे, न मूलो छिन्नइ बन्ध से ॥३६।। आउत्तया जस्स न अस्थि काइ, इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाण निक्खेवदुगंछणाए, न 'धीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥४०॥ चिरं पि से मुण्डरुई भवित्ता, अथिरव्वए तवनियमेहि भट्ठे । चिरं पि अप्पणा किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए ॥४१॥ पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे, अयन्तिए कूडकहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ हु जाणएसु ॥४२॥ कुसीललिंगं इह धारइत्ता, इसिज्झयं जीविय चूहइत्ता। असंजए संजयलप्पमाणो, विणिघायमागच्छइ से चिरंपि ॥४३।। विसं तु पीयं जह कालकृडं, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । १. वीर० Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ] एसो वि धम्मो विसओववन्नो, हाइ वेयाल इवाविवन्नो ॥४४॥ जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे, निमित्त कोऊहलसंगगाढे । कुहेड विजासवदारजीवी, न गच्छई सरणं तम्मि काले ||४५ || तमंतमेणेत्र उ से असीले, सया दुही विपरियासुवेइ । संधावई नरगतिरिक्खजोणिं मोरां विराहित्तु असाहुरूवे ||४६|| उद्देसियं कीयगडं नियागं, न मुंबई किंचि णेस णिजं अग्गी विवा सव्यभक्खी भवित्ता, [ १०३ इत्तो चुए गच्छइ कट्टु पावें ||४७|| न तं श्ररी कंठछेत्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरपया । से नाहि मच्चुमुहं तु पत्ते, पच्छाभितावेण दयाविण ॥४८॥ निरट्टिया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तमट्ठे विवज्जासमेइ । इमे वि से नत्थि परे वि लोए, दुहि वि से भिज्जइ तत्थ लोप ॥ ४६ ॥ हा छन्दकुसीलरूवे, एमेव भग्गं विराहेतु जिरणुत्तमाणं । कुररी विद्या भोगरसाणुगिद्धा, निरसोया परियासमेइ ॥५०॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला सोच्चाण मेहावि ! सुभासियं इम, अणुसासणं नाणगुणाववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं, महानियस्ठाण वए पहेण २१।। चरित्तमायारगुणन्निए तओ, अशुत्तरं संजम पालियारमं । निरासवे संखवियाण कम्म, उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं । ५२।। एवुग्गदन्ते वि महातवोधणे, महामुणी महापइन्ने महायसे । महानियण्ठिजमिणं महासुयं, से काहए महया वित्थरेणं ॥५३।। तुट्ठो य सेणियो राया, इणमुदाहु कयंजली। अणाहत्तं जहाभूयं, सुठ मे उवदंसियं ॥५४।। तुज्झं सुलद्धं खु मणुस्सजम्म, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी । तुब्भे सणाहा य सबन्धवा य, जंभे ठिया मग्गि जिणुत्तमाणां ॥५५॥ तं सि नाहो अणाहाणं, __ सव्वभूयाण संजया । खामेमि ते महाभाग, ___ इच्छामि अणुसासिङ ॥५६॥ पुच्छिऊण मए तुम्भं, . ... . कारण विग्यो उ जो कत्रो । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] निमन्तिया [ १०५ य भोगेहिं, तं सव्वं मरिसेहि मे ॥५७॥ एवं थुणित्ताण स रायसीहो, अणगारसीहं परमाइ भत्तिए । सओरोहो सपरियणो सबन्धवो, धम्मापुरत्तो विमलेरा चेयसा ॥५८॥ ऊस सियमकुवो, काऊ‍ य पयाहिणं । अभिवन्दिऊण सिरसा, अश्याओ नराहिवो ॥५९॥ इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य । इव विप्पमुको, विहग विहरs सुहं विगयमोहो ॥ ६० ॥ त्ति बेमि || महानियंठिज्जं समत्तं ॥ ॥ श्रह समुहपालीयं एगवीसइमं अभयणं ॥ चम्पाए पालिए नाम, सावए श्रासि वाणिए । महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महन्वणो ॥ १ ॥ निग्गन्थे पावणे, सावए से वि कोविए । पोपण ववहरन्ते, पिण्डं नगरमा गए ||२|| पिहुण्डे ववहरन्तस्स, वाणिश्रो देइ धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ ॥ ३॥ अह पालियस्स घरिणि, समुद्दम्मि पसवइ । अह बालए तहिं जाए, समुद्दपालि त्ति नामए || ४ || खेमेण आगए चम्पं, साविए वाणिए घरं । संवई तस्स घरे, दारए से सुहोइए || ५ || Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] वावत्तरी कलाओ य, सिक्खई नीइकोचिए । जोवणेण य संपन्न, सुरूवे पियदंसणे ||६|| तस्स रुववई भजं, पिया आणेइ रुविणिं । पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दओ जहा ॥७॥ अह अनया क्याई, पासायलोयणे टिओ । वज्झमण्डणसोभागं, वज्झं पासइ बज्भगं ॥८॥ तं पासिऊण संवेगं', समुद्दपालो इणमब्बवी । [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला होsसुहाग कम्मा, निजारां पावगं इमं ॥ ९ ॥ संबुद्ध सो तहिं भगवं, परमसंवेगमा गओ । आपुच्छम्मापियरो, पव्वए अणगारियं ॥१०॥ जहित्तु संगं च महाकिलेसं, महन्तमोहं कसिणं भयावहं । परिया धम्मं चभिराय रजा, वयाणि सीलाणि परीस हे य ॥ ११॥ श्रहिंससच्चं च श्रतेागं च, ततो य बम् अपरिग्गहं च । पडिवजिया पंचमहव्वयाणि, १. संविगो ! चरिज धम्मं जिण दे सियं विऊ ||१२|| सव्वेहिं भूपहिं दयानुकंपी, खन्तिक्खमे संजयबम्भयारी । सावज्जजोगं परिवज्जयन्तो, चरिज भिक्खू सुसमाहिइन्दिप ||१३|| काले कालं विहरेज्ज रट्ठे, बलावलं जाणिय अप्पा य । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र 1 सीहो व सहेण न संतसेज्ज', वयजोग सुच्चा न असम्भमाहु ||१४|| उवेहमाणो उ परिव्वइज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खइज्जा । न सव्व सव्वत्थ ऽभिरोयइज्जा, न यावि पूयं गरहं च संजय ॥ १५ ॥ माणवेहिं, अगच्छन्दाइह जे भाव भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिव्वा मरगुस्सा अदुवा तिरिडंडा ||१६|| परीसहा दुव्विसहा अरोगे, संपगरेइ भिक्खू । [ १०७ सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू, संगमसीसे इव नागराया ॥ १७॥ सीओसिणा दंसमला य फासा, आर्यका विविहा फुसन्ति देहं । कुक्कु तत्थऽहिया सहेज्जा, रयाइ खेविज्ज पुरे कयाई ॥ १८ ॥ पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो । मेरुव वारण अकम्पमाणो, परीसहे आयगुत्ते सहेजा ॥ १६ ॥ प्रणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पूयं गरहं च संजए । स उज्जुभावं पडिवज, संजय, निव्वाणमग्गं विरए उवेह ||२०|| Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अरइरइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणवं । परमपए हिं चिट्ठई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥२३॥ विवित्तलयणाइ भएज ताई, निरोवलेवाइ असंथडाइं । इसीहि चिरणाइ महायसेहि, कारण फासेज परीसहाई ॥२२॥ सन्नाणनाणोवगए महेसी, असुस्तरं चरिसं बम्मसंचयं । अणुसरे नाणधरे जसंसी, . प्रोभासई सूरिए वऽन्तलिक्खे ।।२३।। दुविहं खबेउण य पुराणपावं, निरंगणे सव्वो विप्पमुक्के । तरित्ता समुदं व महाभवोहं, __ समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥२४॥ त्ति बेमि ॥ समुद्दपालियं समत्तं ॥ ॥ अह रहनेमिज्जं बावीसइमं अज्झयणं ॥ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्ढिए । वसुदेवु त्ति नामेणं, रायलक्खणसंजुए ॥१॥ तस्स भजा दुवे श्रासी, रोहिणी देवई तहा । तासिं दोरहं दुवे पुत्ता, इट्टा रामकेसवा ॥२॥ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्ढिए । समुदविजय नामं, रायलक्खणसंजुए ।।३।। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ] तस्स भज्जा सिवा नाम, तीसे पुत्तो महायसेो । भगवं रिट्टनेमित्ति, लोगनाहे दमीसरे ||४|| Hrsagaमिनामो उ, लक्खणस्सर संजु । अट्टसहस्सल क्खण्धरो, गोयमो कालगच्छवी ||५|| वज़रिसहसंघयणेो, समचउरंसेो भसोयरे । तस्स रायमईकन्नं, भज्जे जायइ केसवो ॥६॥ ग्रह सा रायवरकन्ना, सुसीला चारुपेहणी । सव्वलक्ख संपना, विज्जुसायामणिप्रभा ||७|| अहाह जणओ तीसे, वासुदेवं महिढिवं । इहागच्छउकुमारी, ना से कर्म ददामिऽहं ||८|| सव्वो सही हिं रहविओ, कयकोउथ मंगलो । दिग्वजुयल परिहिश्रो, श्राभरणेहिं विभूसिओ ||६|| मत्तं च गन्धहत्थि, वासुदेवस्स जेडुगं । श्ररूढो साहए श्रहियं, सिरे चूडामणि जहा ॥ १०॥ अह ऊसिएण छत्तेरा, चामराहि य साहिए । दसारचक्केण य सो, सव्वओ परिवारि ॥ ११ ॥ चउरंगिणीए सेखाए, रइयाए जहकमं । तुरिया सन्निनाण, दिव्वेगं गगणं फुसे ||१२|| एयारिसाए इड्दिए, जुत्तीए उत्तमाइ य । नियगाश्रो भवणाश्रो, निजाओ वहिंगवो ||१३|| ग्रह से तत्थ निज्जन्तो, दिस्स पाणे भयद्दुए । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धे सुदुक्खि ॥ १४॥ जीवयन्तं तु सम्पत्त, मंसट्टा भक्खियव्यए । पासित्ता से महापन्ने, सारहिं इणमब्बवी ॥ १५ ॥ [ १०६ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सब्वे सुहेसिसेा । वाढेहिं पंजरे हिं च, सन्निरूद्धा य अच्छहिं ! || १६ || Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अह सारही तो भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो । तुज्झं विवाहकजम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ॥१७।। सोऊण तस्स वयां, बहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापन्नो, साणुकोसे जिए हिलो ॥१८।। जइ मज्झ कारणा एए, हम्मन्ति सुबहू जिया। न मे एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई ॥१९॥ सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महासयो। आभरमाणि य सवाणि, सारहिस्स पण मए ॥२०॥ मणपरिणामे य कए, देवा य जहोइयं समोइण्णा । सव्विढिीइ सपरिसा, निक्खमणं तस्स काउं जे ॥२१॥ देवमगुस्सपरिवुडो, सीयारयणं तो समारूढो । निक्खमिय वारगाओ, रेवयम्मि ठिो भगवं ॥२२।। उजाणं संपत्तो, ओइराणो उत्तमाउ सीयारो। साहस्सीइपरिवुडो, अह निक्खमइ उ चित्ताहिं ॥२३॥ अह से सुगन्धगन्धीए, तुरियं मउअकुंचिए । सयमेव लुचई केसे, पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ।।२४। वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसं जिइन्दियं । इच्छियमणोरहं तुरियं, पावसु तं दमीसरा! ॥२५॥ नाणेगां दंसणे च, चरित्तेण तहेव य। खंतीए मुनीए, वड्डमाणोभवाहि य ॥२६॥ एवं ते रामकेसवा, दसाग य बहू जणा। अरिटुणेमि वन्दित्ता, अभिगया वारगापुरिं ॥२७॥ सोऊण रायकन्ना, पव्यजं सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणन्दा, सोगेण उ समुच्छिया ॥२८॥ राईमई विचिन्तेइ, धिरत्थु मम जीवियं । जाऽहं तेण परिच्चत्ता, सेयं पव्वइउं मम ॥२९॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] | अह सा भमरसन्निभे, कुश्चफणगसाहिए | सयमेव लुंचइ केसे, धिइमंती ववस्सिया ॥ ३० ॥ वासुदेवो य णं भराइ, लुत्तकेसं जिइन्द्रियं । संसारसागरं घोरं, तर कन्ते लहुं लहुं ॥ ३१ ॥ सापव्वइया सन्ती, पव्वावेसी तहिं बहुं । सयां परियां चेव, सीलवन्ता बहुस्सुया ||३२|| गिरिरेवतयं जन्ती, वासेणुल्ला उ अन्तरा । वासन्ते अन्धयारम्मि, अन्तो लयणस्स सा ठिया ||३३|| चीवराई विसारन्ती, जहा जायत्ति पासिया । रहने मि भग्गचित्तो, पच्छा दिट्ठो य तीइ वि ||३४|| मीयाय सा तहिं दट्टु, एगन्ते संजयं तयं । बाहाहिं काउ संगोप्फं, वेवमाणी निसीयई ||३५|| अह से वि रायपुत्तो, समुद्दविजयंग भीयं पवेवियं दरुं, इमं वक्कं उदाहरे ||३६|| रहने मी अहं भद्दे !, सुरूवे ! चारुभासिणी ! | ममं भयाहि सुयणु, न ते पीला भविस्सइ ||३७|| हिता भुंजिमा भए, माणुस्सं खु सुदुल्लहं । भुक्तभोगी पुणे पच्छा, जिणमग्गं चरिस्सिमे ||३८|| दडुण रहनेमिं तं भग्गुजोयपराजियं । रायमई असम्भन्ता, अप्पाणं संवरे तहिं ||३९|| छाह सा रायवरकन्ना, सुट्टिया नियमव्वए । जाई कुलं च सील च ! रक्खमाणी तयं वए ॥४०॥ जइ स रूवेण वेसमणो, ललिएनलकूबरो । तहा वि ते न इच्छामि, जइ सि सक्खं पुरंदरो ॥ ४१ ॥ ( पक्खंदे जलिअं जोई, धूमकेउं दुरासयं । नेच्छन्ति वतयं भोक्तुं कुले जाया गंधणा ॥ ) [ १११ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला १९२ ] धिरत्थु तेजसोकाभी, जो तं जीवियकारणा । वन्तं इच्छसि आवेउं, सेयं ते मरणं भवे ॥ ४२ ॥ अहं च भोगरायस्स, तं च सि अन्धगवरिहण | मा कुले गंधणा होमो, संजमं निहुओ चर ||४३|| जइ तं काहिसि भवं, जा जा दच्छसि नारियो । वायाइद्धो व हढो, अश्रिया भविस्ससि ||४४ || गोवालो भण्डवालो वा जहा तद्दव्यणिस्सरो । एवं अणिस्सरो तं पि सामणस्त्र भविस्ससि ॥४५॥ ( कोहं मागं निगिण्हित्ता, मायं लोभं च सव्वसा । इंदियाई वसे काउं, श्राणं उवसंहरे ॥ ) तीसे सो वयणं सोच्च', संययाए सभासियं अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ ||४६ || मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिए । सामराणां मिश्चलं फासे, जावज्जीवं दढव्वओ ||४७|| उग्गं तवं चरिताणं, जाया दुरिण वि केवली । सव्वं कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ॥ ४८ ॥ | एवं करेति संबुद्ध, परिडया पवियक्त्रणा । विणियन्ति भोगे, जहा सो पुरिसोत्तमा ||४९ || त्ति बेमि ॥ रहनेमिज्ज समत्तं ॥ केसिगोयमिज्जं तेवीस मं श्रयणं ॥ ॥ जिणे पासित्ति नामेणं, अरहा लोगपूइओ । संबुद्धाय सव्वन्नू, धम्म तित्थय रे जिणे ||१|| १. लोयविस्सुए ! । सञ्चन्तु सव्वसीय धम्मतित्थरसदेसर | 3 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] तस्स लोग पदीवस्स, ग्रासि सीसे महायसे । केसी कुमारसम्मो, विजाचरणपारगे ||२|| ओहिना सुए बुद्धे, सीससंघसमाउले । गामाशुगामं रीयन्ते, सावत्थि 'पुरमागए ॥३॥ तिन्दुयं नाम उज्जाणं, तम्मि नगरमण्डले । फातुए सिज्जसंधारे, तत्थ वासमुवागए ॥४॥ अह तेणेव काले धम्मतित्ययरे जिणे । भगवं वद्धमाणि त्ति, सव्वलोगम्मि विस्सुए ||५|| तस्स लोग पदीवस्स श्रसि सीसे महायसे । भगवं गोयमे नामं, विज्ञाचरणपारए ||६|| बारसंगविऊ बुद्धे, सीससंघसमाउले | गामाशुगामं रीयन्ते, से वि सावत्थिमागए ||७|| कोट्टगं नाम उज्जाणं, तम्मि नगर मण्डले । फासुए सिजसंधारे, तत्थ वासमुवागए ||८|| केसी कुमारसमणे, गोयसे य महायसे । उभओ वितत्थ विहरिंसु श्रल्लीणा सुसमाहिया ॥ ॥ उभो सीससंघाणं, संजयाणं तवस्सिरणं । तत्थ चिन्ता समुपपन्ना, गुणवंताण ताइणं ॥ १० ॥ केरिसो वा इमो धम्मो, इमो धम्मो व केरिसो ? आयारधम्मपणिही, इमा वा सा व केरिसी ? ॥ ११ ॥ चाउजामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ । मिश्र वद्धमाण, पासेस य महामुनी ॥१२॥ अचेलओ य जो धम्मो, जो इमो सन्तरुत्तरो । एगजपवन्ना, विसेसे किं नु कारणं ? ||१३|| १ नगरिमा गए । [ ११३ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४] जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला ॥१५॥ अह ते तत्थ सीसाणं, विन्नाय पक्तिक्कियं । समागमे कयमई, उभओ के सिगोयमा ||१४|| गोयमे पडिरुवन्नू, सीससंघसमाउले । जेटुं कुलमवेक्खन्तो, हिन्दुयं वणमाग केसी कुमारसमणे, गोयमं दिस्समागयं । पडिरूवं पडिवत्ति, सम्मं संपडिवजइ ||१६|| पलाल फासूयं तत्थ, पंचमं कुसतणाणि य । गोयमस्स मिसेजाए, खिष्पं संपणामए ॥१७॥ केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे । उभो निसराणा सोहन्ति, चन्द्रसूरसमप्पभा || १८ || समागया बहु तत्थ, पासण्डा कोउया मिया' । गहत्था अगाओ, साहस्सीओ समागया ॥ १६ ॥ देवदाणवमन्धव्वा, जक्खरक्खस किन्नरा | दिस्सा च भूयाणं, ग्रासी तत्थ समागमो ||२०|| पुच्छामि ते महाभाग ! केसी गोयममब्बवी | तओ केसिंबुवंतंतु, गोयमो इणमब्बवी ||२१|| पुच्छ भन्ते ! जहिच्छं ते, केसिं गोयममब्बवी । तो केसी अन्नाए, गोयमं इणमब्बवी ||२२|| चाउजामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ । देसि वज्रमाणे, पासेण य महामुनी ॥ २३ ॥ | एगकजपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं ? धम्मे दुविहे मेहावी, कहं विष्पचओ न ते ? ||२४|| तो केसिं बुवन्तं तु, गोयमो इणमब्बवी । पन्ना समिक्ख धम्मं तत्तं तत्तविणिच्छियं ||२५|| १. गासिया । २. गोमो के सिमची । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [११५ पुरिमा उज्जुजडा उ, वंकजडा य पच्छिमा । मज्झिमा उज्जुपन्ना उ, तेण धम्मे दुहा कए ॥२६॥ पुरिमाणं दुबिसुन्झो उ, चरिमा दुरणुगलो। कप्पो मज्झिमगाणं तु, सुविसुज्झो सुपालश्रो ॥२७॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसोसज्झं, तं मे कहसु गायमा ! ॥२८॥ अचेल य जो धम्मो, जो इमो लम्तरुत्तरो। देसियो वद्ध माणेण, पासेण य महाजसा ॥२६॥ एगकजपवन्ना यां, विसेसे किं नु कारण। लिंगे दुविहे मेहावी, कहं विपञ्चओ न ते ? ॥३०॥ केसिमेवं बुवाणं तु, गोयमो इणमब्बवी । विन्नाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छियं ।।३१।। पच्चयत्थं च लोगस्स, नाणाविह विगप्पणं । जत्तत्थं गहणत्थं च, लोगे लिंगपओयण ॥३२॥ अह भवे पइन्ना उ, मोक्ख सब्भूयसाहणा । नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं चेव निच्छए ।॥३३॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमे । अन्नो वि संसो मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥३४॥ अणेगाणं सहस्साणं, मझे चिट्ठसि गोयमा ! ते य ते अभिगच्छन्ति, कहं ते निजिया तुमे ? ॥३५।। एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । दसहा उ जिणित्ताणं, सबसत्तू जिणामहं ॥३६॥ सत्तू य इइ के वुसे ? केसी गोयममव्बवी । तो केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बी ॥३७॥ एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इन्दियाणि य । ते जिणुत्तु जहानायं, विहगमि अहं मुणी ॥३८॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला. साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ||३६|| दीसन्ति बहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुभूओ, कहं तं विहरसि मुणी ? ॥४०॥ ते पासे सव्वसो चित्ता निहन्तृण उवायो । मुक्कपासो लहुब्भूओ, विहरामि श्रहं सुखी ॥ ४१ ॥ पासा य इद्द के वृत्ता ? केसी गोयममध्वी । सिमेवं बुवतं तु, गोयमो इस मब्वी ||१२|| रागदोसादओ तिव्वा, नेहपासा भयंकरा | ते छिन्दित्ता जहानायं, विहरामि जहक्कमं ॥ ४३ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसग्रो इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ||४४|| अन्तोहिययसंभूया, लया चिट्ठइ गोयमा । फलेइ विभक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं ? ॥ ४५ ॥ तं लयं सव्वसो छित्ता, उद्धरिता समूल्यिं । विहरामि जहानार्य, मुक्को मि विसभक्खणं ॥ ४६ ॥ लया य इइ का वृत्ता ? केसी गोयममव्यवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ||४७|| भवतराहा लया कुत्ता, भीमा भीमफलोदया । 'तमुद्धिच्चा जहानायं, विहरामि जहा सुहं ॥४८॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्न व संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ४६ ॥ संपजलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा ! जे हन्ति सरीरत्था, कहं विज्भाविया तुमे ? ॥ ५० ॥ १. तमुच्छित्ता । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] महामेहप्पसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिंचामि सययं 'तेउं, सित्ता नो व डहन्ति मे ॥ ५१ ॥ अग्गी य इइ के वृत्ता ? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवन्तं तु गोयमो इणमव्यवी ॥ ५२॥ कसाया श्रग्गिणो वुत्ता, सुयसीलतवो जलं । सुयधाराभिहया सन्ता, भिन्ना हु न डहन्ति मे || ५३ || साहु गोयम पन्ना ते ! छिन्नो मे संसओ इमे । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! || ५४ ॥ अयं साहसिओ भीमो, दुट्टस्लो परिधावई । जंसि गोयम ! श्रारूढो, कहं तेरा न हीरसि ? ॥ ५५ ॥ पधावन्तं निगिरहामि, सुयरस्सीसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवजइ ॥ ५६|| आसे य इइ के कुत्ते ? केसी गोयममब्बषी । केसिमेवं बुवंतंतु, गोयमो इणमब्बवी ॥५७॥ मणो साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावइ । तं सम्मं तु निगिरहामि, धम्म सिक्खाइ कन्थगं ॥ ५८ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ५९ ॥ कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं नासन्ति जन्तुणो । श्रद्धा कह वट्टन्ते, तं न नाससि गोयमा ? || ६० || जे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपट्टिया । ते सव्वे वेश्या मज्जं, तो न नस्सामहं मुखी ॥ ६१ ॥ [ ११७ मग्गे य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ६२॥ १. देहं । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला कुष्पवयणपासण्डी, सव्वे उम्मग्गपट्टिया । सम्मग्गं तु जिराक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे ॥६३॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ||६४ || महा उदगवेगेण, बुज्झमाणाण पाणिगं । सरणं गई पट्टा य, दीव के मन्नसि मुणी ? ||६५ || श्रत्थि एगो महादीवो, वारिमज्भे महालो । महा उद्गवेगस्स, गई तत्थ न विजइ || ६६ । दीवे य इइ के बुत्ते ? केसी गोयमब्बवी । के सिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ||६७ || जरामरणवेगेां, बुज्झमाणाण पाणियां | धम्म दीवो पट्टा य, गई सरणमुत्तमं ॥ ६८ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झे, तं मे कहसु गोयमा || ६ || वंसि महोहंसि, नावा विपरिधाव | जैसि गोयम ! श्रारूढो, कहं पारं गमिस्स सि ? ॥ ७० ॥ जाउ अस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी || ७१ || नावा य इइ का वृत्ता ? केसी गोयममब्बवी । सिमेवं बुवतं तु, गोयमो इणमब्बवी ||७२|| सरीरमाहुनाव त्ति, जीवो वुच्चइ नाविनो । संसारो वो कुत्तो, जं तरंति महेसिगो || ७३ || साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! ||७४ || अन्धयारे तमे घोरे, चिट्ठन्ति पाणि को करिस्सर उज्जोयं ? सव्वलोयम्मि पाणि ॥ ७५ ॥ बहू । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [११९ । उग्गओ विमलो भाणू, सव्यलोयफ्भंकरो। सो करिस्सइ उजोय, सव्वलायम्मि पाणिणं ॥७६।। भाणू य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ।।७।। उग्गओ खीणसंसारो, सम्वन्नू जिणभक्खरो। सो करिस्सइ उजोयं, सव्वलोयम्मि पाणिणं ।।७।। साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसो इमो। अन्नो वि संसो मज्झं, तं मे कहसु गोयमा !॥७॥ सारीरमाणसे दुक्खे, वज्झमाणाण पाणिणं । खेम सिवमणावाहं, ठाणं किं मन्नसे मुणी ? ॥८॥ अस्थि एगं धुवं ठाणं, लोगग्गम्मि दुरारुहं । जत्य नत्थि जरा मच्चू , वाहिणो वेयणा तहा ।।८१॥ ठाणे य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्यवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ।।२।। निव्वाणं ति प्रवाहं ति, सिद्धी लोगग्गमेव य । खेमं सिवं अणाबाह, जं चरंति महेसिणो ८३|| तं ठाणं सासयं वासं, लोयग्गम्मि दुरारुहं । जं संपत्ता न सोयन्ति, भवोहन्तकर। मुणी ॥८॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। नमो ते संसयातीत ! सव्वसुत्तमहोयही ।।८।। एवं तु संसए छिन्ने ! केसी घोरपरक्कमे । अभिवन्दित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं ॥८६॥ पंचमहव्वयधम्मं, पडिवजइ भावओ। पुरिमस्स पच्छिमम्मि, मग्गे तत्थ सुहावहे ।।८७॥ केसीगोयमत्रो निच्चं, तम्मि आसि समागमे । सुयसीललमुकरितो. महत्थत्थविणिच्छ पो ।।८।। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] तोसिया परिसा सव्वा, सम्मगं समुवट्ठिया | संयुया ते पसीयंतु, भयवं केसिगोयमे ॥ ८९ ॥ ॥ केसिगोयमिज्जं समत्त ॥ २३ ॥ ॥ श्रह समिश्र णाम चउवीसइमं श्रयणं ॥ [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला श्रपवणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य । पंचेवय समिईओ, तओ गुत्तीउ हिया ॥ १ ॥ इरियाभासेसणादाणे, उच्चारे समिई इय । मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अङ्कुमा ॥२॥ एयाओ समिईओ, समासेण वियाहिया । दुवालसंग जिराक्खायं, मायं जत्थ उ पवयां ||३|| आलम्ब काले, मग्गेण जयगाइ य । चउकारण परिसद्धं, संजय इरियं रिए ||४|| तत्थ आलम्बणं नाणं, दंसणं चरणं तहा । काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवजिए ||५|| Gorओ खेत्त चेव, कालओ भावओ तहा । जया चउत्रिहा वृत्ता, तं मे कित्तयओ सुख ||६|| दवणे चक्खुसा पेहे, जुगमित्तं च खेत्तओ । काल जाव रीइजा, उवउत्ते य भावओ ||७|| इन्दियत्थे विवजित्ता, सज्झायं चेव पञ्चहा । तम्मुत्ती तप्पुरकारे, उवउत्ते रियं रिए ॥८॥ कोहे माय मायाए, लोभे य उवउत्तया । हासे भर मोहरिए, विकहासु तहेव य ॥९॥ या अ ठाणाई, परिवजित संजय । सावज्जं मियं काले, भासं भासिज पन्नवं ॥ १० ॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१२१ गवेसणाए गहणे य, परिभोगेसणा य जा। श्राहारोवहिसेजाए, एए तिन्नि विसोहए ॥११॥ उग्गमुप्पाय पढमे, बीए सोहेज पसरणं । परिभोयम्मि चउकं, विसोहेज जयं जई ॥१२॥ ओहोवहोवग्गहियं, भण्डगं दुविहं मुणी । गिरहन्तो निक्खिवन्तो या, पउंजेज इमं विहिं ॥१३॥ चक्खुसा पडिलेहित्ता,पमज्जेज जयं जई। प्रायए निक्लिवेज्जा वा, दह प्रो वि समिए सया॥१४॥ उञ्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवहिं देहं, अन्नं वावि तहाविहं ॥१५॥ अणावायमसंलोए, अणावाए चेव होइ संलोए। आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ॥१६॥ अणावायमसंलोए, परस्साणुवघाइए । समे अज्झसिरे वावि, अचिरकालकयम्मि य ॥१७।। वित्थिरणे दूरमोगाढे, नासन्ने बिलवजिए । तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥१८।। एगाओ पंच समिईओ, समासेण वियाहिया। इत्तो य नओ गुत्तीरो, वोच्छामि अणुपुत्वसो ॥१६॥ सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असञ्चमासा य, मणगुत्ती चउब्धिहा ॥२०॥ संरम्भसमारम्भे, प्रारम्भे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तिज जयं जई ॥२१॥ सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असञ्चमोसा य, वइगुत्ती चउविहा ॥२२॥ संरम्भसमारम्भे, प्रारम्भे य तहेव य। . वयं पचत्तमा तु, नियत्तिज जय जई ॥२३॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघणपल्लंघणे, इन्दियाण य झुंजणे ॥२४॥ संरम्भसमारम्मे, प्रारम्भम्मि तहेव य । कायं पवत्तमातु, नियत्तिज जयं जई ॥२५॥ एयाओ पञ्च समिईओ, चरणस्स य पवसणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सव्वसो ॥२६॥ एसा पवयणमाया, जे सम्मं आयरे मुणी । सो खिप्पं सव्वसंसारा, विष्पमुच्चइ पण्डिए ।।२७।त्ति बेमि ॥ समिईओ समत्तानो ॥ ॥ अह जन्नइज्ज पंचवीसइमं अज्झयणं ।। माहणकुलसंभूत्रो, आसि विप्पो महायसो। जायाई जमजन्नम्मि, जयघोसि त्ति नामो ॥१॥ इन्दियग्गामनिग्गाही, मग्गगामी महामुणी। गामाणुगाम रीयन्ते, पत्तो वाणारसिं पुरि।॥२॥ वाणारसीए बहिया, उजाणम्मि मणेरमे । फासुए सेजसंथारे, तत्थ वासमुवागए ॥३॥ अह तेणेव कालेणं, पुरीए तत्थ माहणे । विजयघोसि त्ति नामेण, जन्नं जयह वेयवी ॥४॥ अह से तत्थ अणगारे, मासक्खमणपारणे । विजयघोसस्स जन्नम्मि, भिक्खमट्ठा उवट्टिए ॥५॥ समुवट्टियं तहिं सन्त, जायगो पडिसेहए । न हु दाहामि ते भिक्खं, भिक ! जायाहि अन्नो ॥६॥ जे य वेयविऊ विप्पा, जन्नद्रा य जै दिया। जोइसंगविऊ जे घ, जे य धम्माण पारगा ॥७॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१२३ जे समन्था समुद्धत्तुं, परमप्पारणमेव य । तेसिं अन्न मिणं देयं, भो भिक्खू ! सव्वकामियं ॥८॥ सो तत्थ एव पडिसिद्धो, जायगेण महामुणी । न वि रुट्ठो न वि तुट्ठो, उत्तमट्ठगवेसओ ॥६॥ नन्नटुं पाणहेउं वा, नवि निव्वाहणाय वा । तेसिं विमोक्खणट्टाए, इमं बयणमब्बवी ॥१०॥ नवि जाप सि बेयमुहं, नवि अन्नाण जं मुहं । नक्षत्ताण मुहं जं च, जं च धम्शण वा मुह ॥११॥ जे समत्था समुद्धत्तुं, परमप्पासामेव य । न ते बुमं वियाणालि, अह जाणासि तो भण ॥१२॥ तस्सक्खेवपमुक्खं तु, अचयन्तो तहिं दिओ। सपरिसो पंजली होउं, पुच्छई तं महामुणिं ॥१३॥ वेयासां च मुहं बूहि, बूहि जन्नाण जं मुहं । नक्खताण मुहं बूहि, बूहि धम्माण वा मुहं ॥१४॥ जे समत्था समुद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य । एयं मे संसयं सव्वं, साहू । कहसु पुच्छिो ॥१५॥ अग्गिहुत्तमुहा वेया, जन्नट्ठी वेयसा मुहं । नक्खत्ताण मुहं चन्दो, धम्माणं कासवो मुहं ॥१६॥ जहा चन्दं गहाईया, चिन्ति पंजलीउडा। वन्दमाणा नमसन्ता, उत्तम मणहारिणो ।।१७। अजाणगा जन्नवाई, विजामाहणसंपया । गूढा सज्झायतवसा, भासच्छन्ना इवग्गिणो ॥१८॥ जो लोए बम्मणो वुत्तो, अग्गी वा महिओ जहा। सया कुसलसंदिटुं, तं वयं बूम माहणं ॥१६॥ जो न सजइ आगन्तुं, पव्वयन्तो न सोयइ । रमइ अजवयणम्मि, तं वयं वूम माहां ॥२०॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला. जायरूवं जहामटुं, निद्धन्तमलपावगं । रागदोसभयाईयं, तं वयं बूम माहणं ॥२१॥ तवस्सियं किसं दन्तं अवचियमंससोणियं । सुव्वयं पत्तनिव्वाणं, तं वयं बूम माहणं ॥२२॥ तसपाणे वियाणेत्ता, संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेण, तं वयं बूम माहणं ॥२॥ कोहा वा जवा हासा, लोहा वा जइ वा भया । मुसं न वयइ जो उ, तं वयं बूम माहणं ।।२४।। चित्तमन्तमचित्तं वा, अप्पं या जइ वा बहुं। न गिराहइ अदत्तं जो, तं वयं बूम माहणं ॥२५॥ दिव्वमाणुस्सतेरिच्छे जो न सेवइ मेहुणं । मणसा कायवक्केणं, तं वयं बूम माहणं ॥२६॥ जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा । एवं अलित्तो कामेहिं, तं वयं बूम माह ॥२७॥ अलोलुयं मुहाजीवि, अणगारं अकिंचणं । असंसत्तं गिहत्थेसु, तं वयं बूम माहणं ॥२८॥ जहिता पुव्वसंजोगं, नाइसंगे य बन्धवे । जो न सजइ 'एएखें, तं वयं बूम माहणं ॥२९॥ पसुबन्धा सव्ववेया य, जटुं च पावकम्मुणा। न तं तायन्ति दुस्लील, कम्माणि बलवन्ति हि ॥३०॥ न वि मुण्डिपण समो, न ओंकारेण बम्भण।। न मुणी रगणवासेणं, कुसचीरेण न तावसो ॥३१॥ समयाए समणो होइ बम्भचेरेण बम्भो । नाणेण उ मुगी होइ, तण होइ तावसो ॥३२॥ १. भोगेसु । २.-ह। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ] [ १२५ " कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तियो । वइस्लो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुखा ॥ ३३ ॥ एए पाउकरे बुद्धे, जेहिं होइ सिगाय ओ | सव्वकम्मविणिम्मुक्कं तं वयं बूम माहणं ||३४|| एवं गुणसमाउत्ता, जे भवन्ति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य || ३५॥ एवं तु संसए छिन्ने, विजय घोसे य माहणे । समुदाय तओ तं तु, जयघोषं महामुणिं ॥३६॥ तुट्टे य विजयघोसे, इणमुदाहु कथंजली | माहणतं जहाभूयं, सुठु मे उवदंसियं ||३७|| तुब्भे जइया जन्नाणं तुब्भे वेगविऊ विऊ । जो संगविऊ तुब्भे, तुब्भे धम्माण पारगा ॥ ३८ ॥ तुब्भे समत्था उद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य । तमगुग्गहं करेहऽम्हं भिक्खेणं भिक्खुउत्तमा ॥३६॥ न कज्जं मज्झ भिक्खेणं, खिष्पं निक्खमसु दिया ! मा भमिहिसि भयावट्टे, घोरे संसारसागरे ॥४०॥ उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पइ | भोगी भइ संसारे, अभोगी विप्पमुश्च ॥४१॥ उलो सुक्को य दो छढा, गोलया मट्टियामया । दो वि श्रावडिया कुड्डे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गइ ||४२ || एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्कगोलए ॥४३॥ एवं से विजय से, जयघोसस्स अन्तिए । अणगारस्स निक्खन्तो, धम्मं सच्चा अणुत्तरं ||४४|| खवित्ता पुव्वकम्माई, संजमेण तवेण य । जय घोसविजय घोसा, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ||४५|| ति बेमि Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] ॥ श्रह सामावारी गाम छव्वीसइमं अज्झयणं ॥ सामायारिं पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं । जं चरितारा निग्गन्था, तिरणा संसारसागरं ||१|| पढमा आवस्सिया नामं, विइया य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा ॥२॥ पंचमी छन्दणा नामं, इच्छाकारो य छुट्टओ । सत्तमो मिच्छकारो य, तहकारो य अट्टमो ॥३॥ श्रब्भुट्टां च नवमं, दसमा उवसंपदा । एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेइया ||४|| गमणे आवस्सियं कुज्जा, ठाणे कुज्जा निसीहियं । आपुच्छां सयंकरणे, परकरणे पडिपुच्छरां ||५|| छन्दरणा दव्वजाएणं इच्छाकारो य सारणे । मिच्छाकारो य निन्दार, तहक्कारो पडिस्सुए ॥६॥ अब्भुट्टा गुरूपूया, अच्छणे उवसंपदा । एवं दुपंच संजुत्ता, सामायारी पवेइया ||७| पुव्विलम्मि चउभाए, आइञ्चमि समुट्टिए । भण्डयं पडिले हित्ता, वन्दित्ता य तओ गुरुं |८|| पुच्छिज्जा पंजलीउडो, किं कायव्वं मए इह | इच्छं निओइउं भन्ते ! वेयावच्चे व सज्झाए ||९|| duraa निउत्ते, कायव्वं गिलाय श्रो । सज्झाए वा निउशेण, सव्वदुक्खविमोक्खणे ||१०|| दिवसस्स चउरो भागे, कुजा भिक्खू वियक्खणो । तो उत्तरगुणे कुजा, दिराभागेसु च उसु वि ॥ ११ ॥ तश्रो पढमं पोरिसिं सज्झायं, बीयं झाणं भियायई । तयार भिक्खायरियं, पुणो चउत्थीइ सज्झायें ||१२|| [ जीवन श्रेयस्कर - पाठमाला " Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] आसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया । चित्तासोसु मासेसु, तिप्पया हवइ पोरिसी ||१३|| अंगुलं सत्तरन्ते, पक्खेां च दुअंगुलं । वड्डर हाय वावि, मासेां चउरंगुलं ॥ १४ ॥ आसाढ बहुलपक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवइसाहेसु य, 'बोद्धव्वा ओमरत्ताश्रो ॥१५॥ जेट्ठामूले आसाढसावणे, छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा । अहिं बिइयतियंमि, तइए दस अहिं चउत्थे ||१६|| रति पि चउरो भागे, भिक्खू कुजा वियक्खणो । तो उत्तरगुणे कुज्जा, राइभाएसु चउसु वि ॥१७॥ पढमं पोरिसिं सज्झायं, बीयं भाणं झियायई । तइयाए निद्दमे। क्खं तु, चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ||१८|| जं नेइ जया रक्तिं, नक्खत्तं तम्मि नहचउब्भाए । संपत्ते विरमेजा, सज्झायं पत्रोसकालम्मि ||१९|| तमेव य नक्खत्ते, गयणच उब्भागसावसेसम्म । वेरत्तिर्यपि काल, पडिलेहित्ता मुणी कुजा ||२०|| विलुम्म चउभाए, पडिले हित्तारा भण्डयं । गुरुं वन्दित्तु सज्झायं कुजा दुक्खविमोक्खणिं ॥ २१ ॥ पोरिसीए चउब्भाए, वन्दित्ताण तो गुरुं । अपडिक्कमित्ता कालस्स, भायणं पडिलेहए ॥ २२ ॥ मुहपोतिं पडिलेहित्ता, पडिलेहिज गोच्छगं । गोच्छगलइयंगुलियो, वत्थाइं पडिलेहए ||२३|| उ थिरं अतुरियं, पुव्वं ता वत्थमेव पडिले हे । तो बिइयं पप्फोडे, तइयं च पुणो पमजिजा ||२४|| १. नायव्वा । [ १२७ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अणच्चावियं अवलियं, अणाणुवन्धिनमोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा, पाणीपाणिविसोहणं । २५॥ प्रारभडा सम्प्रद्दा, वजेयवा य मोसली तइया । पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्टी ॥२६॥ पसिढिलपलम्बलोला, एगा मोसा अणेगरूवधुणा । कुणइ पमाणिपमाय, संकियगणणोवगं कुजा ॥२७॥ अणूणाइरित्तपडिलेहा, अविवञ्चासा तहेव य । पढम पयं पसत्थं, सेसाणि य अप्पसत्थाई ॥२८॥ पडिलेहणं कुणन्तो, मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा । देह व पश्चक्खाणं, वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥२६॥ पुढवी आउक्काए, तेऊ-वाऊ-वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणापमत्तो, छराह पि विराहो होइ ॥३०॥ पुढवी आउकाए, तेऊ वाऊ वणस्सइ-तसा । पडिलेहणााउत्तो, छरहं संरक्खो होइ ।।३।। तइयाए पोरिसीए, भत्तं पाणं गवेसए । छराहं अन्नयरागम्मि, कारणम्मि समुट्ठिए ॥३२॥ वेयणवेयावश्चे, इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिन्ताए ॥३३॥ निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थी वि न करेज छंहिं चेव । ठाणेहिं उ इमेहिं, अणइक्कमणाइ से होइ ॥३४|| आर्यके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउं, सरीर वोच्छेयणट्ठाए ॥३५॥ अवसेसं भंडगं गिज्झ, चक्खुमा पडिलेहए । परमद्धजेोयणाओ, विहार विहरण मुणी ॥३६।। घउत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं तो कुजा, सम्वभावविभावणं ॥३७॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] [१२९ पोरिसीए चउभाए, वन्दित्ताण तओ गुरुं । पडिक्कमित्ता कालस्म, सेजं तु पडिलेहए ॥३८॥ पासवणुच्चारभूमि च, पडिलेहिज्ज जयं जई । काउस्सगं तो कुज्जा, सब दुक्खविमोक्खणं ॥३९॥ देवसियं च अइयारं, चिन्तिज्जा अणुपुव्वसो। नाणे य दंसणे चेव, चरित्तम्मि तहेव य ॥४०॥ .. पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तो गुरुं । देवसिय तु अइयारं, आलोएज जहक्कम्मं ॥४१॥ पडिकमिनु निस्सल्लो, वन्दित्ताण तो गुरुं।.. काउस्सग्गं तो कुजा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥४२।। 'पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तो गुरुं । थुइमंगलं च काऊण, काल संपडिलेहए ॥४३॥ पढमं पोरिसिं सज्झाय, वितिय झा झियायई । तस्याए निद्दमोक्खं तु, सज्झायं तु चउत्थिए ॥४४॥ पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहिया। सज्झायं तु तो कुजा, अबोहन्तो असंजए ॥४५॥ पोरिसीए चउब्भाए, वन्दिऊण तओ गुरुं । पडिक्कमित्तु कालस्स, कालं तु पडिलेहए ॥४६॥ आगए कायवुसग्गे, सव्वदुक्ख विमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुजा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥४७॥ राइयं च अइयारं, चिन्तिज अणुपुव्वसो। नामि दंसमि य, चरित्तंमि तवंमि य ॥४८।। पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । गइयं तु अइयारं, आलोएज जहक्कम ॥४६॥ १. सिद्धाणंसंथवं किच्चा। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला पडिकमिन निस्सल्लो, वन्दित्ताण तो गुरुं । काउस्सग्गं तो कुजा, सचदुक्ख विमुक्खणं ।।५।। किं तवं पडिवजामि, एवं तत्थ विचिन्तए । काउस्सग्गं तु पारित्ता, 'बन्दए य तमो गुरुं ॥५१॥ पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तो गुरुं । तवं तु पडिवजेजा, कुजा सिद्धाण संथवं ॥५२।। एसा सामायारी, समासेण वियाहिया। अं चरित्ता बहू जीवा, तिराणा संसारसागरं ॥५३॥ ॥सामायारी समत्ता ॥२६॥ ॥ अह खलंकिज्ज सत्तवीसइमं अज्झयणं ।। थेरे गणहरे गग्गे, मुणी आसि विसारए । आइएणे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंधए ॥१॥ वहणे वह माणस्स, कंतारं अइवत्तए । जोगे वह माणस्स, संसारो अइवत्तए ॥२॥ खलुंके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्सइ । असमाहिं य वेएइ, तोत्तो से य भजइ ॥३॥ एगं उसइ पुच्छम्मि, एगं विन्धइ ऽभिक्खणं । एगो भंजइ समिल, एगो उपहपट्रिो ॥४॥ एगो पडरपासे, निवेखाइ निवज्जइ । उक्कुद्दइ उप्फिडइ, सढे बालगवी वए ॥५॥ माई मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छइ पडिप्पई। मयलक्खेण चिट्टइ, वेगेण य पहावइ ॥६॥ छिन्नाले छिन्दइ सिल्लिं, दुद्दन्तो भंजए जुगं । खेत्रि य सुस्सुयाइत्ता, उज्जहित्ता पलायए ॥७॥ १. करिजा जिणसंथवं । ॥५॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ] [ १३२ खलुंका जारिसा जोज्जा, दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजा स्म्मि, भजंति धिइदुब्बला ||८|| इड्ढीगारविए एगे, एगेऽत्थ रसगारवे । सायागार विए एगे, पगे सुचिर कोहणे ॥६॥ भिक्खालसिए एगे, एगे ओमाणभीरुए थद्धे एगं श्रणुसासम्मि, हेऊहिं कारणेहि य ॥१०॥ सो वि अन्तरभा सिल्लो, दोसमेव पकुत्र्वइ । आयरियाणं तु वयणं, पडिकुलेइऽभिक्ख ||११|| न सा ममं वियागाइ, न य सा मज्झ दाहिइ । निग्गया होहिइ मन्ने, साहू अन्नोत्थ वश्व ||१२|| पेसिया पलिउंचन्ति, ते परियन्ति समन्तग्रो । रायविट्ठि च मन्नन्ता, करेन्ति भिउडिं मुहे ||१३|| वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेहि पोसिया । जायपक्खा जहा हंसा, पक्कमंति दिसो दिसिं ॥१४ अह सारही विचिन्तेइ, खलुंकेहिं समागओ । किं मज्झ दुसीसेहिं, अप्पा मे अवसीयइ ||१५|| जारिसा मम सीसाओ, तारिसा गलिगद्दहा । गलिगद्द हे जहित्ताणं, दढं पगिरहद्द तवं ||१६|| मिउमद्दवसंपन्नो, गम्भीरो सुसमाहिओ । विहरइ महिं महपा, सील भूएग अप्पणा ||१७|| ॥ खलं किज्जं समत्त ॥ २७॥ ॥ अह मोक्खमग्गगई गामं अट्ठावीसइमं अभयणं ॥ मोक्खमग्गगइं तच्च, सुरोह जिराभासियं । चउकारण संजुत्तं, नागदंसणलक्खां ॥१॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा । एस मग्गुति पन्नत्तो, जिरोहिं वरदं सिहिं ॥ २॥ नाणं च दंसणं चैव, चरितं च तवो तहा । एयं मग्गमगुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गइं || ३ || तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं श्रभिनिबोहियं । ओहिनाणं तु तइयं, मणनाणं च केवलं ||४|| एयं पंचविहं नाणं, दव्वाण य गुणाण य । पजवाण य सव्वेसिं, नाणं नाणीहि देखियं ॥ ५ ॥ गुणाणमासओ दव्वं, एगदव्यस्सिया गुणा । लक्खणं पजवाणं तु उभश्रो अस्सिया भवे ॥६॥ धम्मो अहम्मो अगासं, कालो पुग्गलजन्तवो । एस लोगो ति पन्नत्तो, जिरोहिं वरदं सिहिं ॥७॥ धम्मो अहम्मो आगासं, दव्वं इक्किकमा हियं । अणन्ताणि यदव्वाणि, कालो पुग्गलजन्तवो ॥८॥ गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्खणे । । भायणं सव्वदव्वाणं, नहं श्रोगाहलक्खणं ॥ ६ ॥ वत्तणालक्खणे काला, जीवो उवओगलक्खणे | नाणेणं दंसणेणं च, सुहेण य दुहेरा य ॥१०॥ नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा । वीरियं अवओोगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ॥ ११ ॥ सद्दन्धयार- उजोओ पहा छायातवे इ वा । वण्णरसगन्धफासा, पुग्गलाण तु लक्खणं ॥ १२ ॥ एगत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागाय, पंजवारां तु लक्ख ||१३|| जीवाजीवा य बन्धय, पुरागं पावासवो तहा । संवरो निज्जरा मोक्खो, सन्तेय तहिया नव ॥ १४ ॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] तहियाणां तु भावाणं, सब्भावे उवएसणं । भावेगां सद्दहन्तस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥१५॥ निसग्गुवएसरुई, आणरुई सुत्तबीयरुइमेव । अभिगमवित्थाररुई, किरिया-संखेव-धम्मरुई ॥१६॥ भूयत्थेणाहिगया, जीवाजीवा य पुराणपावं च । सहसम्मइयासवसंवरो य रोएइ उ निस्सग्गो ॥१७॥ जो जिणदिटे भावे, चउबिहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नह त्ति य, स निसग्गरुइ त्ति मायव्वो ॥१८।। एए चेव उ भावे, उवइट्टे जो परेण सद्दहइ । छ उमत्येण जिणेण व, उवएसरुइ ति नायवो ॥१९।। रागो दोसो मोहो, अन्ना जस्स अवगयं होइ । प्राणाए रोयंतो, सो खलु प्राणारुई नामं ॥२०॥ जो सुत्तमहिजन्तो सुपण प्रोगाहइ उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण वा, सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो ॥२१|| एगेण अणेगाइ, पयाइ जो पसरइ उ सम्मत्ते । उदएव्य तेल्लबिन्दू , सो बीयरुइ त्ति नायव्वा ।।२२।। सो होइ अभिगमरुई, सुयनारा जेण अत्थओ दिटुं । एकारल अंगाई, पइराणगं दिट्ठिवाअो य ।।२३।। दव्वाण सव्वभावा, सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा । सव्वाहि नयविहीहिं य, वित्थाररुइ त्ति नायव्वो ॥२४॥ दसणनाणचरित्ते, तवविणए सब्वस मिइगुत्तीसु । जो किरियाभावई, सो खलु किरियारुई नाम ॥२५॥ अणभिग्गहियकुदिट्ठी, संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो। अविसारओ पवयणे, अणभिग्गहिरो य सेसेसु ॥२६।। जो अत्थिकायधम्म, सुयधम्म खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिणाभिहिय, सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥२७॥ । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला परमत्थसंथवो वा, सुदिट्टपरमत्थसेवणा वा वि । वावन्नकुदंसणवजणा, य सम्मत्तसद्दहणा ॥२८।। नन्थि चरित्तं सम्मत्तविहूण, दंसणे उ भइयत्वं । सम्मत्तचरित्ताई, जुगवं पुव्वं व समत्तं ।।२६॥ नादंसणिस्स नारा, नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा । अगुणिस्स नथि मक्खिो , नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥३०॥ निस्संकिय-निकंखिय निवितिगिच्छ अमूढदिट्टी य । उववृहथिरीकरणे, वच्छल्ल-पभावणे अट्ट ।।३१।। सामाइयत्थ पढमं, छेप्रोवट्ठावरणं भवे विइयं । परिहारविसुद्धीयं, सुहुमं तह संपरायं च ।।३।। अकसायमहक्खायं, छउमत्थस्स जिणस्स वा । एयं चयरित्तकरं, चारित् होइ अाहियं ॥३३॥ तवो य दुविहो वुत्तो, बाहिरब्भन्तरो तहा। बाहिरो छविहो वुत्तो, एवमभतरो तवो ॥३४॥ नाणेण जाणइ भावे, दंसणेण य सद्दहे । चरित्तेण निगिराहाइ, तवेण परिसुज्झइ ॥३५।। खवित्ता पुवकम्माई, संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमन्ति महेसिणो ॥३६॥ त्ति बेमि ॥ मोक्खमग्गगई समत्तं ॥२८॥ ॥ अह सम्मत्तपरक्कम एगूणतीसइमं अज्झयणं ।। सुयं मे पाउसं ! तेणं भगवया एवमक्खाय-इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नाम अज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवे पवेइए, जं सम्मं सहहित्ता पत्तात्ता रोयइत्ता Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ १३५ फासिता पाइत्ता तीरिता कित्तइत्ता सोहइत्ता श्रराहित्ता आणाए अणुपालइत्ता बहवे जीवा सिज्झन्ति बुज्झन्ति मुञ्चन्ति परिनिन्ति सञ्चदुक्खाणमन्तं करेन्ति । तस्सां अयमट्ठे एवमाहिज्जइ, तंजहाः संवेगे१ निव्वेए २ धम्मसद्धा ३गुरुसाहम्मियसुस्सूसण्या४ आलोयणया ५ निन्दाया ६ गरिहगया ७ सामाइए ८ चउव्वीसत्थवे वन्दए १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पश्चक्खाणे १३ थवथुईमंगले १४ कालपडिलेडण्या १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावण्या १७ सज्झाए १८ वायणया १६ पडिपुच्छण्या २० पडियट्टया २१ अणुप्पेहा २२ धम्मका २३ सुयस्स आराहण्या २४ एगग्गमणसंनिवेसण्या २५ संजमे २६ तवे २७ वोदाणे २८ सुहसाए २६ पडिबद्धया ३० विवित्तसयणासरासेवण्या ३१ विणियट्टण्या ३२ संभोग पश्चक्खाणे ३३ उवहिपच्चक्खाणे ३४ आहारपच्चक्खाणे ३५ कलाय पञ्चक्खाणे ३६ जोगपञ्चकखाणे ३७ सरीरपच्चक्खाणे ३८ सहायपञ्चक्खाणे ३६ भत्तपच्चक्खाणे ४० सम्भावपश्चक्खाणे ४९ पडिरूवण्या ४२ वेगावच्चे ४३ सव्वगुणसंपरणया ४४ वीयरागया ४५ खन्ती ४६ मुत्ती ४७ मद्दवे ४८ अजवे ४९ भावसच्चे ५० करणसच्चे ५१ जोगसच्च ५२ मणगुत्तया ५३ वयगुच्या ५४ कायगुत्तया ५५. मणसमाधारणया ५६ वयसमाधारणया ५७ कायसमाधारगया५८ नाणसंपन्नया५६ दंसणसंपन्नया६० चरित्तसंपन्नया६१ सोइंद्रियनिग्गहे ६२ चक्विन्द्रियनिग्गहे ६३ धाणिन्दियनिग्गहे ६४ जिम्भिन्दियनिग्गहे ६५ फासिन्दियनिग्गहे ६६ कोहविजए ६७ माणविजए ६८ मायाविजए ६६ लोहविजए ७० पेज दोस मिच्छा दंसणविजय ७१ सेलेसी ७२ कम्मया ||७३|| संवेगेां भन्ते ! जीवे किं जरायइ ? संवेगेां श्रणुत्तरं धम्म Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला सद्धं जणयइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेग हव्यमागच्छइ । अणन्ताणुबन्धिकोहमाणमायालोमे खवेइ। नवं च कम्मं न बन्धइ । तप्पच्चद्दयं च णं मिच्छत्तविसोहिं काऊण दसणाराहए भवइ । ईसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणेणं ' सिझइ । सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइकमइ ॥१।। निव्वेएवं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? निवेणं दिव्यमाणुसतेरिच्छएसु कामभोगेसु निब्वेयं हव्यमागच्छइ, सव्वविसएसु विरजइ । सम्वविसएसु विरजमाणे प्रारम्भपरिच्चायं करेइ । आरम्भपरिचायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिन्दइ, सिद्धिमग्गं पडिवन्न य भवइ ।।२।। धम्मसद्धाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? धम्सद्धाए णं सायासोक्खेसु रज्जमाणे विरज्जइ । आगारधम्मं च णं चयइ। अणगारिए णं जीवे सारीग्माणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणसंजोगाईणं वोच्छेयं करेइ अव्वाबाहं च णं सुहं निव्वत्तेइ ॥३॥ गुरूसाहाम्मियसुस्सूसणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणवइ ? गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए विणयपडिवत्तिं जण्यइ । विणयपडिवन्ने य एवं जीवे अणञ्चासायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्स देवदुग्गईअो निरुम्भइ । वराणसंजलणभत्तिबहुमाणयाए मणुस्सदेवगईओ निबन्धइ, सिद्धिं सोग्गइंच विसोहेइ । पसत्थाई च णं विणयमूलाई सव्वकजाई साहेइ अन्ने य बहवे जीचे विणिइत्ता भवइ ॥४॥ __१. सिज्झन्ति, बुज्झन्ति, मुच्चन्ति, परिनिध्यायन्ति, सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । २. श्रारंभपरिग्गहपरि० । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१३७ आलोयणाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? आलोयणाए णं मायानियाण मिच्छादसणसल्ला मोक्खमग्गविग्घाणं अणंतसंसारबन्धणा' उद्धरणं करेइ । उज्जुभावं च जणयइ। उज्जुभावपडिवन्ने य जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेयं च न बन्धइ । पुव्वबद्धं च णं निजरेइ ॥५॥ निन्दणयाए र भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? निन्दणयाए णं पच्छाणुतावं जणयइ । पच्छाणुतावेणं विरजमाणे करणगुणसेटिं पडिवजा । करणगुणसेढीपडिवन्ने य एवं अणगारे मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ ॥६॥ गरहणयाए णं भंते! जीवे कि जणयइ ? गरहणयाए अपुरकारं जणयइ । अपुरकारगए णं जीवे अप्पसत्थेहिंतो जोगेहिंतो नियत्तेइ, पसत्थे य पडिवजइ । पसत्थजोगपडिवन्ने य एं अरणगारे अणन्तघाइपज्जवे खवेइ ॥७॥ सामाइए भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? समाइए सावज्जजोगविरइंजण्यइ ॥८॥ च उबीसत्थएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ । चउन्बीसत्थएवं दंसणविसोहिं जणयइ ॥६।। वन्दणए भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वन्दणएणं नीयागोयं कम्मं खवेइ । उच्चागोयं कम्म निबन्धइ । सोहग्गं च णं अपडिहयं प्राणाफलं निव्वत्तेइ । दाहिणभावं च णं जणयइ ॥१०॥ पडिकमणे भन्ते ! जीने किं जणयइ ? पडिकमणे 1-वद्धणाम् । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला घयछिदाणि पिहेइ । पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते 'सुप्पणिहिं दिए विहरइ ॥११॥ काउसग्गेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? काउसग्गेणं तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छिते य जीवे निव्वुयहियए अोहरियभरुव्व भारवहे पसत्यज्झाणोवगए सुहं सुहेणं विहरइ ॥१२॥ ___ पञ्चक्खाणेणं भन्ते! जीवे किं जणयइ ? पञ्चक्खाणेणं आसवदाराई निरुम्भइ । पञ्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ । इच्छानिरोहं गए य एवं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतराहे सीइभूए विहरइ ॥१३॥ ___ थवथुइमंगलेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? थ० नाणदंसणचरित्तबोहिलाभं जणयह । नाणदंसणचरित्तबोहिलाभसंपन्ने य णं जीवे अन्तकिरियं कप्पविमाणोववत्तिगं पाराहणं पाराहेइ ॥१४॥ कालपडिलेहणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? का० णाणावरणिजं कम्मं खवेइ ॥१५।। पायच्छित्तकरणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? पा० पावविस्रोहिं जणयइ, निरइयारे वावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवजमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ, आयारं च आयारफलं च पाराहेइ ॥१६॥ खमावणयाए र भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? ख० पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावमुबगए य सनपाणभूय १. सुष्पाणिहिर । २. घरका । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ १३९ जीवसत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ । मित्तीभावमुवगए य जीवे भावविसोहिं काऊ निब्भए भवइ ||१७|| सज्झाएण भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? स० गाणावर णिजं कम्मं खवेइ ||१८|| वायणाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वा० निजरं जमयइ । सुयस्ल य अणुसज्जणार अणासायणाए वट्टए । सुयस्स अणुसजणार असायलाए वट्टमाणे तित्थधम्मं श्रवलम्बइ । तित्थधम्मं अवलम्बमाणे महानिन्नरे महापजवसाणे भवद्द १६ पडिपुच्छयाए भन्ते ! जीवे किं ण्यइ ? प० सुतत्थतदुभयाइं विसोहेइ । कखामोह णिज्जं कम्मं वोच्छिन्दइ ॥२०॥ परिट्टयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? प० वंजगाई जणयइ, वंजणलद्धिं च उप्पाएइ ॥२१॥ अणुहार भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? अ० श्राउयवज्जाश्रो सत्तकम्मपगडीओ धणियबन्धणबद्धाओ सिढिलबन्धणबद्धाओ करेइ । दीहका लट्ठियाओ हस्सकालठियाओ पकरेइ | तिव्वाणुभावाओ मन्दाणुभावाश्रो पकरेइ । ( बहुपसग्गाओ अपपपसग्गाओ पकरेइ ) आउयं च णं कम्मं सिया बन्धइ, सिया नो बन्धइ | असाय वेय णिज्जं च गं कम्मं नो भुजो २ उवचिणइ । अणाइयं च गं भगवदग्गं दीहमद्धं चाउरन्तं संसारकन्तारं खिप्पामेव वीइवयइ ||२२|| धम्म हा गं भन्ने ! जीवे किं जणयइ ? ध० कम्मनिज्जरं जग्यइ ! धमकहाए गं पवयणं पभावेइ । पवयणपभावेशां जीवे श्रागमेस्स भदत्ताए कम्मं निबन्धइ ||२३|| सुयस्त राहण्यए गं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? सु० Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . अन्नाणं खवेइ न य संकिलिस्लइ ॥२४॥ एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? ए० चित्तनिरोहं करेइ ।।२५॥ संजमए भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? स० अणराहयत्तं अणयइ ॥२६॥ ... तवेणं भन्ते ! जीके किं जणयह ? तवेगां वोदाणं जणयह ॥२७॥ ... वोदाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वो० अकिरियंजणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिझइ, बुज्झइ मुञ्चइ, परिनिव्वायइ, सव्वदुक्खाण मन्तं करेइ ॥२८॥ सुहसाएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? सु० अणुस्सुयत्तं जणयइ । अणुस्सुयाए र जीवे अणुकम्पए अणुब्भडे विगयसोगे चरित्तमोहणिजे कम्मं खवेइ ॥२६॥ - अप्पडिबद्धयाए र भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? अनिस्संगत्तं जणयइ । निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य रात्रो य असजमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहर इ ॥३०॥ ..विवित्तसयणासणयाए भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वि० चरित्तगुत्तिं जणयइ । चरित्तगुत्ते य णं जीवे विवित्ताहारे दढचरित्ते एगन्तरए मोक्खभावपडिवन्ने अट्टविहकम्मगंठिं निजरेइ ॥३१॥ विनियट्टणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वि० पावकम्माणं अकरणयाए अभुटेइ। पुधबद्धाण य निजरणयाए Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] पावं नियत्तेइ । तओ पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइवयइ ।।३।। संभोगपञ्चक्वालोणं भन्ते ! जीवे किं जपयइ ? सं० आलम्बणाई खवेइ । निरालम्बणस्य य आययट्रिया योगा भवन्ति । सएणं लाभेशं संतुस्सइ, परलाभं नो प्रासादेइ, परलाभं नो तकेइ, नो पीहेइ, नो पत्थेइ, नो अभिलसह । परलाभं अणासाएमाणे अतकेमाणे अपीहमाणे अपत्थेमाणे अभिलसमाणे दुच्चं सुहसेजं उवसंपजित्ता णं विहरइ ॥३३।। __ उवहिपच्चक्खाणेशं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? उ० अपलिमन्थं जणयइ । निरुवहिए णं जीवे निकंखी उवहिमन्तरेण य न संकिलिस्सइ ॥३४।। आहारपच्चक्खाणे भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? प्रा० जीवियासंसप्पोगं वोच्छिन्दइ। जीवियासंसप्पओगं घोच्छिन्दित्ता जीवे आहारमन्तरेणं न संकिलिस्सइ ॥३५॥ कसायपञ्चकखाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ । क० वीयरागभाव जणयइ । वीयरागभायपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ॥३६॥ जोगपच्चक्खाणे भन्ते ! जीवे किं जरण्यइ । जो० अजोगत्तं जणयइ । अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ, पुत्वबद्धं निजरेइ ॥३७॥ सरीरपञ्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? स० सिद्धा-- इसयगुणकित्तणं निव्वत्तेह । सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ ॥३८॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाल. सहायपच्चक्खाणेण भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? स० एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए य शं जीवे एगत्तं भावेमाणे अप्पसद्दे, अप्पझंझे, अप्पकलहे. अप्पकसाप, अप्पतुमंतुमे, संजमबहुले, संवर बहुले, समाहिए यावि भवइ ।।३९॥ भत्तपञ्चक्खाणेण भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? भ० प्रणेगाई भवसयाई निरुम्भइ ॥४०॥ __ सब्भावपञ्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? स० अनियहि जणयइ । अनियट्टिपडिवन्ने य अगारे चत्तारि केवलीकम्मसे खवेइ तंजहा-वेयणिजं आउय नाम गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ जाव सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ॥४॥ पडिरूवयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? प० लाघवियं जणयइ । लघुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसथलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिजरूवे अप्पडिलेहे जिइन्दिए विउलतवसमिइसमनागए यावि भवइ ॥४२॥ वेयावञ्चणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वे० तित्थयरनामगोतं कम्मं निबन्धइ ॥४३॥ सव्वगुणसंपन्नयाए भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? स० अपुणरावत्तिं जणयइ । अपुणरावत्तिं पत्तए य र जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ।।४४॥ वीयरागयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वी० नेहाणुबन्धणाणि तण्हाणुबन्धणाणि य वोच्छिन्दइ, मणुन्नामणुन्नेसु सद्दफरिसरूवरसगन्धेसु' चेव विरजइ ॥४५॥ १-सु सचित्ताचित्तमीसएसु। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१४३ खन्तीए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? खन्तीए परीसहे जिणइ ॥४६॥ मुत्तीए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? मु. अकिंचणं जण्यइ । अकिंचणे य जीवे अत्थलोला पुरिसाणं अपत्थणिज्जो भवइ ॥४॥ अजग्याए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? अ० काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । अविसंवायणसंपन्नयाए रणं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ॥४८॥ मद्दवयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? म० अणुस्सियत्तं जणयइ । अणुस्सियत्तेण जीवे मिउमदवसंपन्ने अट्ट मयट्ठाणाई निट्ठावेइ ।।४।। भावसञ्चणं भन्ते ! जोवे किं जणयइ ? भा० भावविसोहिं जणयइ । भावविसोहिए वट्टमाणे जीवे अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुढेइ । अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्टित्ता परलोगधम्मस्स पाराहए भवइ ॥५०॥ करणसच्चेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ । क० करणसत्ति जणयइ । करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहा वाई तहा कारी यावि भवइ ॥५१॥ जोगसच्चेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ । जो० जोगं विसोहेइ ॥५२॥ मणुगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? म. जीवे एग्गं जणबह । एगग्गचित्त जोत्रे मणगुत्ते संजमाराहए भइ ॥५३॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला, वयगुत्तयाएं णं भन्ते ! जीवे किं जरण्यइ ? व० निव्वियारत्तं जणय | निव्विारे गं जीवे बइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि विहर || ५४|| कायगुत्ता गं भन्ने ! जीवे किं जणयइ ? का० संवरं जय | संवरणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहंकरेइ ||२५|| मणसमाहारण्याए गं भन्ते ! जीवे किं जण्यइ ? म० एगग्गं जइ । एगग्गं जणइत्ता नागपजवे जयइ | नागपजत्रे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निजरेइ || ५६ ॥ वयसमाहारण्याए भंते ! जीवे किं जरण्यइ ? व० वयसाहारणदंसणपत्रे विसोहेइ । वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहित्ता सुलहवोहियत्तं नित्र्वत्तेर, दुल्लहबोहियत्तं निजरे ||२७|| कायसमाहारण्याए गं भन्ते ! जीवे किं जरण्यइ ? का० चरित्पज्जवे विसोइ । चरित्तपजवे विसोहित्ता ग्रहखायचरितं विसोहे । अहक्लायचरितं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिfrosis, सखारामन्तं करेइ ||५८ || नाणसंपन्नया एं भन्ते ! जीवे किं जणय ? ना० जीवे सव्वभावाहिगसं जणयइ | नाणसंपन्ने जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विस्तइ । जहासूई सत्ता पडिया न दिस्सर | तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विएस्सइ || नाविण्यतवचरितजोगे संपाउण्ड, ससमय पर समयविसार व संवाणिजे भव ॥५९॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ १४५ - " दंसणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? दं० भवमिच्छत्तयां करेइ परं न विज्झायइ । परं अविज्झाएमाणे अणुत्तरेणं नागदंसणेणं अपागं संजोएमाणे सम्मं भावेमाणे विहरइ || ६०॥ चरित संपन्नयाए गं भंते! जीवे किं जणयइ ? च० सेलेसीभावं जणय | सेलेसिं पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खत्रेइ । तओ पच्छा सिज्झर, बुज्झर, मुश्वर, परिनिव्वाइ, सव्वदुकखाणमन्तं करेइ ॥ ६१ ॥ सोइन्द्रियनिग्गहे भंते! जीवे किं जणयइ १ सो० मणुनामरणुन्नेसु सद्देसु रागदोस निग्गहं जणयइ, तप्पञ्चइये कम्मै च गं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निजरेइ ||६२|| चक्खिन्दियनिग्ग हेां भंते! जीवे किं जणयइ ? च० मरणुनामन्नेसु रूत्रेसु रागदोसनिग्गदं जणयइ, तप्पञ्चइयं च गं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निजरेइ || ६३|| घाणिन्द्रियनिग्गणं भंते ! जीवे किं जणय ? घा० मणुनामरणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पश्चइयं च गं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निजरेइ || ६४॥ जिब्भिन्दियनिग्गणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? जि० मरणुनामणुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गदं जणयइ, तप्पच्चइयं च गं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निजरेई || ६५॥ फासिन्दियनिग्गणं भंते ! जीवे किं जयइ ? फा० मणुनामणुन्ने फासेसु रागदोसनिग्गहं जणय, तपश्चइयं चणं कम्मं न बन्धर, पुव्वबद्धं च निजरेंइ || ६६|| Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] [ जीवन- श्रेयस्कर - पाठमाला कोहविजय भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? को० खन्ति जणयइ, कोहवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥ ६७॥ मा विजय भंते! जीवे किं जरण्यइ ? मा० मद्दवं जणयइ, मारावे णिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुत्र्वबद्धं च निजरे ॥ ६८ ॥ मायाविजय भन्ते ! जीवे किं जरणयइ ? मा० श्रज्जवं जणयइ, मायावेयणिज कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निजरेइ ॥ ६६ ॥ लोभविजपणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? लो० संतोसं जग, लोभवेणिजं कम्मं न बन्धइ, पुञ्वबद्धं च निजरेइ ७०. पिजदोस मिच्छादंसणविजय भन्ते ! जीवे किं जरण्यइ ? पि० नागदंसणचरित्ताराहण्यार अम्भु । श्रट्टविहस्स कम्मस्स कम्प्रगण्ठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुवीए अट्ठावीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ पञ्चविहं नाणावर - णिज्जं, नवविहं दंसणावर णिज्जं, पंचविहं श्रन्तराइयं. एए तिनि विकम्मंसे जुगवं खवेइ । तओ पच्छा अणुत्तरं कसियां पडिपुराणं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभावं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ । जाव सजोगी भवइ, ताव ईरियावहियं कम्मं निबन्धर सुहफरिसं दुसमय ठिइयं । तं पढमसमए बद्ध, बिइयसमए वेइयं, तइयसमए निज्जिरणं, तं बद्धं पुट्ठे उदीरियं वैश्यं निज्जिरगं सेयाले य कम्मं यावि भवइ ७१. अहाउयं पालइत्ता अन्तोमुहुत्तद्धावसेसाए जोग निरोह करेमाणे सुम किरियं अपपडिवाई सुक्कज्भाणं भायमाणे तप्पढमयाए म जोगं निरुंभइ, वयजोगं निरंभइ, कायजोगं निरुपणनिरोह करे इ, ईसि पंचहरु चारणाए Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ १४७ य णं णगारे समुच्छिन्न किरियं अनियट्टि सुक्कज्भागं झियायमाणे वेय णिज्जं श्राउयं नामं गोत्तं च एए चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ ||७२' | त ओरालियतेयकम्माई सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुलमा गई उड्ढं एगसमएणं श्रविग्गणं तत्थ गन्ता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुज्झइ जाव अंत करेइ ॥७३॥ एस खलु सम्मत्तपरक्कम्मस्स अज्झयणस्स अट्ठे सम भगवया महावीरेणं श्राघविए, पन्नविए, परूविए, दंसिए, निदसिए उवदं सिए ||७४ || ति बेमि || ॥ सम्मत्तपरक्कमे समते ॥ २६ ॥ ॥ ग्रह तवमग्गं तीसइमं श्रयणं ॥ जहा उ पावगं कम्मं, रागदोससमजिये । खवे तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुख ||१|| पाणिवहमुसावाया श्रदत्तमेहुणपरिग्गहा विरश्री । राईभयविरो, जीवो भवइ श्रणासवो ||२|| पंचसमिश्र तिगुत्तो, अकसाओ जिरन्दिश्रो । अगारवो य निस्सल्लो, जीवो होइ अणासवो ॥३॥ एएसिं तु विवच्चासे, रागदोलसमज्जियं । खवेइ उ जहा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुख | ४|| जहा महातलायरस, संनिरुद्धे जलागमे । उस्चिगाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे ||५|| एवं तु संजय साव, पावकम्म निरासवे । raकोडीसंचियं कम्मं, तवसा निजरिज्जइ ||६|| Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरब्भन्तरो तहा । बाहिरो छविहो वुत्तो, एवमन्भन्तरो तवो ॥७॥ अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रसपरिच्चायो । कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ।८।। इत्तरियमरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिया सावकंखा, निरवकंखा उ विजिया ॥ll जो सो इत्तरियतवो, सो समारोण छविहो। सेढितवो पयरतवो, घणा य तह होइ वग्गो य ।।१०।। तत्तो य वग्गवग्गो, पंचमा छट्टो पइराणतयो । मणइच्छियचित्तत्थो, नायवो होइ इत्तरियो ॥११।। जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया । सवियारमवियारा, कायचिटुं पई भवे ।।१२।। अहवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमनीहारी, आहारच्छेओ दोसु वि ॥१३॥ प्रोमोयरणं पंचहा, समासेण वियाहिये । दव्वश्रो खेत्तकालेण, भावेणं पजवेहि य ॥१४॥ जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे । जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दव्वेण ऊ भवे ॥१५।। गामे नगरे तह रायहाणिनिगमे य आगरे पल्ली। खेडे कब्बडदोणमुहगट्टणम डम्बसंवाहे ॥१६॥ आसमपए विहारे, निवेसे समयघोसे य । थलिलेणाखन्धा, से संबद्धकोट्टे य ॥१७॥ वाडेसु य रत्थासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पइ उ एवमाई, एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥१८॥ पेडा य अद्धपेडा, गोमुत्तिपयंगवीहिया चेव । सम्बुक्कावट्टाययगन्तुंपञ्चागया छट्ठा ॥१६॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ १४९ दिवसस पोरुसी, चउरपि उ जत्तिओ भवे कालो । एवं चरमाणो खलु कालोमागं मुणेयव्वं ॥ २० ॥ हवा तइयाए पोरिसीप, ऊणाइ घास मेसन्तो । चउभागूणाए वा, एवं काले ऊ भवे ॥ २१ ॥ इत्थी वा पुरिसोवा, अलंकिओ वा नलै किओ वावि । अन्नयरवयत्थो वा, अन्नयरेणं व वत्थेणं ||२२|| अन्नण विसेसेणं, वराणेणं भावमणुमुयन्ते उ । एवं चरमाणो खलु, भावोमाणं मुणेयव्वं ॥२३॥ दव्वे खेत्ते काले भावम्भि य आहिया उ जे भावा । एएहि ओमचरओ, पजवचरओ भवे भिक्खू ||२४|| विहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेत्र एसणा । अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्खायरियमाहिया ||२५|| खीर दहिसपमाई, पणीयं पाणभोयां । परिवजणं रसागं तु, भणियं रसविवज्जणं ॥ २६ ॥ ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिजन्ति, कायकिलेसं तमाहियं ||२७|| एगन्तमणावाए, इत्थीपसु विवज्जिए । सयणास सेवण्या, विवित्तसयणासगं ||२८|| एसो बाहिरंगतवो, समासेण वियाहिओ । अभिन्तरं तवं एत्तो, बुच्छा मि श्रणुपुव्वसो ॥२६॥ पायच्छिरां विणश्रो त्रेयावचं तहेव सज्भाश्रो । भागां च विउग्गो, एसो अब्भिन्तरो तवो ||३०|| आलोयारिहाईये, पायच्छित्तं तु दसविदं । जं भिक्खू वहई सम्मं, पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३१ ॥ भुट्टारां अंजलिकरणं, तहेवासणदायां । गुरुभत्तिभावसुस्सुसा, विणओ एस वियाहिओ ||३२|| " Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला १५० ] आयरियमाईए, वेयावच्चमि दलविहे | सेवणं जहाथामं, वेयावच्चं तमाहियं । ३३॥ वायला पुच्छ्रेरणा चेव, तहेव परियट्टा । अप्पेह। धम्म कहा, सज्झाओ पञ्चद्दा भवे ||३४|| अरुद्दाणि वजित्ता, झाएजा सुसमाहिए । धम्मसुक्काई भाणाई, झाणं तं तु बुहा वए ॥ ३५ ॥ सयणासगठाणे वा जे उ भिक्खू न वावरे | कायस्स विउस्सगो, छट्टो सो परिकित्तिओ || ३६ || एवं तवं तु दुविहं, जे सम्मं आयरे मुणी । सोखि संसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिश्रो ||३७|| ति बेमि ॥ तवमग्गं समत्तं ॥३०॥ ॥ अह चरणवही नामं एगतीसइमं अभयणं ॥ चरणविहिं पवक्खामि, जीवरस उ सुहावहं । जं चरिता बहू जीवा, तिरणा संसारसागरं ॥१॥ एगओ विरइं कुजा, एगो य पवत्तणं । असंजमे नियति च, संजमे य पवत्तां ॥२॥ रागदो य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्त भई निच्चं, से न अच्छर्इ मण्डले ||३|| दण्डाणं भारवाणं च, सल्लाां च तियं तियं । जे भिक्स चयइ निच्च, से न अच्छइ मण्डले ||४|| दिव्य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खु सहई निच्चं, से न अच्छर मण्डले ||५|| विगहा कसा सन्नाणं झाणाणं च दुयं तहा । जे भिक्खू वजई नियं से न अच्छर मण्डले || ६ || Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१५१ . वएसु इन्दियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्यू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥७॥ लेसासु छसु काए छके आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छह मण्डले ॥८॥ पिण्डोग्गहपडिमासु, भयट्ठाणेसु सत्तसु।। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छा मण्डले ॥६॥ मदेसु बम्भगुत्तीसु, भिक्खुधम्मम्मि दसविहे। जे भिक्वू जयई निञ्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥१०॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निञ्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥११॥ किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निश्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥१२॥ गाहासोलसएहि, तहा असंजम्मि य । जे भिक्खू जयई निञ्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥१३॥ बम्भम्मि नायज्झयणेसु, ठाणेसु य ऽसमाहिए । जे भिक्खू जयई निञ्चं, से न अच्छइ मण्डले । १४॥ एगवीसाए सबले, बावीसाए परीसहे । जे भिक्बू जयई निञ्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥१५॥ तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु अ जे भिक्वू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥१६॥ पणुवीसभावणासु, उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥१७॥ अणगारगुणेहिं च, पगप्पम्मि तहेव य । जे भिक्खू जयई निञ्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥१८॥ पावसुयपसंगेसु, मोहठाणेसु चेव य । जे भिकाबू जयई निच्चं, से न अच्छद मण्डले ।।१६।। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला. सिद्धाइगुणजोगेसु, तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छइ मण्डले ॥२०॥ इय एएसु ठाणेसु, जे भिक जयई सया। खिप्पं सो सम्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिओ।।२१|| त्ति बेमि ॥ चरणविही समत्ता ॥३१॥ ॥ अह पमायट्ठाणं बत्तीसइमं अज्झयणं ॥ अञ्चन्तकालस्स समूलगस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तंभासओ मे पडिपुराणचित्ता, सुणेह एगन्तहियं हियत्थं ॥१॥ नाणस्त 'सव्वस्स पगासणाए, अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥२॥ तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा। सज्झायएगन्तनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिन्तणया धिई य ॥३॥ आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धि निकेय मिच्छेन्ज विवेगजोग्गं, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥४॥ न वा लभेजा निउणं सहाय गुणाहियं वा गुणो समं वा । १. सन्चस्स । .... Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र]. [ १५३. एगो विपावाइ 'विवज्जयंतो, विहरेज कामेसु असजमाणो ॥५॥ जहा य अंडप्पभवा बलागा, ..... अण्डं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तराहा, .... मोहं च तण्हाययणं वयन्ति ॥६॥ रागो य दोसो वि य कम्मबीय, . कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति । कम्मं च जाइमरणस्स मूलं, ..... दुक्खं च जाईमरणं वयन्ति ॥७॥ दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हो जस्स न होह तरहा। तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, ....... लोहो हो जस्स न किंचणाई ॥८॥ रागं च दोसं च तहेव मोहं, उद्धत्तुकामेण समूलजाल । जे जे उवाया पडिवजियव्वा, .. ते कित्तइस्सामि अहाणुपुद्धि ॥६॥ रसा पगाम न निसेवियव्वा, पाय रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति, दुमं जहा साउफल व पक्खी ॥१०॥ जहा दवग्गी पउरिन्धणे वणे, ___ समारुओ नोवसमं उवेह । १. प्रणायरंतो । २. हुसेवि० । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला एविन्दियग्गी व पगामभोइणो, न बम्भयारिस्सहियाय कस्सई || ११|| विवित्तसेजासणजन्तियाणं, ओमासणाणं दमिइन्दियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराओ वाहिरिवोसहेहिं ॥ १२ ॥ जहा विरलावसहस्त मूले, न मूलगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्भे, न बम्भयारिस्स खमो निवासो ||१३|| न रूवलावरणविलासहासं, न जंपियं इंगियपेहियं वा । इत्थीण चिरांसि निवेसहसा, दडुं ववस्से समणे तवस्सी || १४ || असणं चेव श्रपत्थणं च, श्रचिन्तरां चैव कित्तणं च । इत्थीजणस्सारियज्भाणजुग्गं, हियं सया बम्भवए रयाणं ||१५|| कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहा वि एगन्तहियं ति नच्चा, विवित्तवासो मुणिणं पत्थो ||१६|| मोक्खाभिकखिस्स उ माणवरुस, संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । मेवारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहिस्थिओ बालमणोहसओ ॥१७॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१५५ एए य संगे समइक्कमित्ता, सुहुत्तरा चेव भवन्ति सेसा। जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गङ्गासमाणा ॥१८॥ कामारणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं, सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स। जं काइयं माणसियं च किंचि, तस्सन्तगं गच्छइ वीयरागो ॥१९॥ जहा य किम्यागफला मणोरमा, रोण वराणेण य भुजमाणा । ते खुइए जीविए पश्चमाखा, . एओवमा कामगुणा विवागे ॥२०॥ जे इंदियारणं विसया मणुन्ना, न तेसु भावं निसिरे कयाह । न यामणुनेसु मणं पि कुजा, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥२१॥ चक्षुस्स रूवं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समोय जो तेसु स वीयरागो ॥२२॥ रूवस्स चक्खं गहणं वयन्ति, ___ चक्खुस्स रूवं गहणं वयन्ति। रागस्स हेउं समणुनमाहु, दोसस्स हेउं अमणुनमाहु ॥२३॥ रवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से घिणासं। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६] [जीवन-श्रेयस्कर- पाठमाला. - रागाउरे से जह वा पयंगे; आलोयलोले समुवेह मच्चुं ॥२४॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किञ्चि रूवं अवरज्झइ से ॥२५।। एगन्तरत्ते रुहरंसि रूवे, अतालिसे से कुणई पत्रोसं। दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥२६॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसह ऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे ॥२७॥ रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए विओगे य कहं सुहं से, सम्भोगकाले य अतित्तलामे ? ॥२८॥ रूवे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभावित प्राययई अदत्तं ॥२९॥ तरहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, . रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तस्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥३०॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] मोसस्स पच्छा य पुरत्थो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते । एवं श्रदत्ताणि समाययन्तो, रूवे अतित्तो दुहि रूवाणुरत्तस्स नरस्त एवं, अणिस्सो ||२१|| कत्तो सुहं होज कयाइ किश्चि । तत्थोवभोगे वि किलेस दुक्खं, निव्वत्तई जस्स करण दुषखं ||३२|| पमेव रूवम्मि गश्रो पत्रसं, उar दुक्खोहपरंपराश्रो । पट्ठचित्तोय चिणाइ कम्मं, जं से पुणे। होइ दुहं विवागे ||३३|| रूवे विरतो मणुओ विसोगा, । एएण दुक्खोहपरंपरे न लिप्पर भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ||३४|| सोयस्स सई गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मरणुन्नमाहु | तं दो सहेउं अमणुन्नमाहु, सद्दस्स सायं गहणं वयन्ति, [ १५७ समोय जो तेसु स वीयरागो ||३५|| सोयरस सद्दं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, . सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिब्वं, दोस्स हेउं अमरणुन्नमाहु ||३६|| अकालियं पावर से विणासं । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला. रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे, सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्छु ||३७|| जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, सिक्ख से उ उवेइ दुक्खं । दुहन्तदोसेण सपण जन्तू, न किञ्चि सो अवरज्झई से ||३८|| एगन्तरते रुद्ररंसि तद्दे, अतालिसे से कुराई पोसं । दुक्लम्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेल मणी विरागो ||३|| सद्दाणुगासाणुगए य नीबे, चराचरे हिंसइऽणेगरूत्रे चित्तेहि ते परितावे वाले, पीलेइ अट्टगुरु किलिट्टे ॥४०॥ सहा वाण परिग्गहेण, उपाय रक्खणसन्निश्रोगे । ar विश्रोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतितलामे ||४१ || सद्दे श्रतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्ठदोसे दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥४२॥ तरहाभिभूयस् अदत्तहारिणो, सहे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वड्डर लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच से ||४३|| Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउतराध्ययन सूत्र ] मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पोगकाले यदुही दुरन्ते । एवं श्रदत्ताणि समाययन्तो, सद्दे तितो दुहि सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? तत्थोवभोगे वि किले सदुक्खं, निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ||२५|| एमेव सद्दम्मि गओ पोसं, उas दुक्खोह परंपराओ | पट्टचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विधागे ॥४६॥ सहे विरतो मो विसोगा, [ १५९ अणिस्सो ||४४|| एएस दुक्खोह परंपरेण | न लिप्पर भवमज्मे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥४७॥ घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | श्रमणुन्नमाहु, तं दोस समय ओ तेसु स वीथरागेो ॥ ४८ ॥ गन्धरस घाणं गहणं वयन्ति, प्राणस्स गधे गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समरणुन्नमाहु गन्धेस जो गिद्धिमवेइ तिव्वं, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥४६॥ अकालिये पावर से विणासं । Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला रागाउरे ओसहगन्धगिद्ध, सप्पे विलाओ विव निक्खमंते ।।५०।। जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, ___ तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सपण जन्तू, न किंचि गन्धं अवरज्झई से ॥५१॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि गन्धे, अतालिसे से कुणई पोसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, __ न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥५२॥ गन्धाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे ॥५३।। गन्धाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ? ॥५४॥ गन्धे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवे तुहिँ । अतुढिदोसेण दुही परस्स. लोभाविले आययई अदत्तं ॥५५॥ तराहाभिभूयस्स अदत्तहारिणा. गन्धे अतित्सस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, मस्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥५६।। Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं श्रदत्ताणि समाययन्तो, गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ||५७ || गन्धाणुरत्तस्स नरस्स एवं, [ १६१ कुत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? तत्थभोगे व किलेस दुक्खं, निव्वत्तई जस्ल करण दुक्खं ॥ ५८ ॥ एमेव गन्धम्म गो पत्रसं, उवे पट्टचित्तो य चिणाइ कम्मं, दुक्खोहपरंपराश्रो । जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ५६ ॥ गन्धे विरतो मणुत्रो विसोगो, एए‍ दुक्खोहपरंपरेण | न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो, जलेर वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिब्भाए रसं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउ श्रम सुन्नमाहु. समोय जो तेसु स वीयरागो ॥ ६१ ॥ रसस्स जिन्भं गहणं वयंति, जिन्भाए रसं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समरणुन्नमाहु. दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥६२॥ रसे जो गिद्धिमुत्रेइ तिव्वं, अकालियं पावर से विणासं । Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला रागाउरे वडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥६३॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि रसं अवरज्झई से ॥६४॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि रसे, अतालिसे से कुणई पत्रोसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥६५।। रसाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले, पीलेइ अत्तट्टगुरू किलिटे ॥६६।। रसाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए विप्रोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ? ॥६७।। रसे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्द्धि। . अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥६८।। तरहाभिभूयस्स अदत्तहारिणा, रसे अदत्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढा लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥६६॥ . Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१६३ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥७॥ रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं, __कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ७१॥ एमेव रसम्मि गओ पओसं, उवेह दृक्खोहपरंपराओ । पदुट्ठचित्तो य चिणा कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥७२। रसे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥७३|| कायस्स फासं गहरणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुनमाहु, समो य जो तेसु सायरागो ॥७४|| फासस्स कायं गहणं वयन्ति, ___ कायस्स फासं गहणं वयन्ति । रागरस हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं श्रमणुनमाहु ॥७॥ फासेसु जो गिद्धिमुवेह तिव्वं, अकालियं पावर से विणासं । Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला रागाउरे सीयजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे विवन्ने ।।७६॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि फासं अवरज्झई से ॥७॥ एगन्तरत्ते रुइरंमि फासे, अतालिसे से कुणई पत्रोसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।।८।। फासाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेहि अत्तगुरू किलिट्टे ॥७॥ फासाणुवा एण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ॥८॥ फासे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहूिँ । अतुट्ठिदासेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥८१॥ तराहाभिभूयस्स अदत्तहारिणा, फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डा लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से॥८॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पोगकाले यदुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, फासे अतित्तो दुहिओ श्रणिस्सो | ८३ ॥ फासागुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं ह ज कयाइ किंचि ? तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निव्वतई जस्स करण दुक्खं ॥ ८४ ॥ एमेव फासम्म गओ पओसं, [ १६५ उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्टचितोय चिणाइ कम्मं, जं से पुणे हाइ दुहं विवागे ॥८५॥ फासे विरतो मनो विलोगो, पण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्भे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ८६ ॥ मणस्स भावं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | तं दोसहेउं श्रम णुन्नमाहु, समोय जो तेसुस वीयरागो ॥८७॥ भावस्स मां गहां वयन्ति, मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन माहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ||८|| भावे जो गिद्धमुवेर तिब्वं, अकालियं पावर से विणासं । Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला रागाउरे कामगुणेसु गिछे, करेणुमग्गावहिए गजे वा ॥ ८९ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्बे, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सरण जन्तू, न किंचि भावं श्रवरभई से||१०|| एगन्तरते रुइरंसि भावे, तालिसे से कुणई पोसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्यई तेरा मुखी विरागेो ॥ ९१ ॥ भावाणुगासा गए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्ते हि ते परिता वेइ बाले. पीलेहि अत्तट्टगुरु किलिट्टे ॥ ९२ ॥ भावाणुवारण परिग्ग हेग, उपायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ? ॥ ६३ ॥ भावे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेद तुट्ठि । तुट्ठदोसे दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ||१४|| तरहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । माय मुसं वड्डर लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चाई से || १५|| Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] मोसस्स पच्छाय पुरत्थश्रो य, पोगकाले य दुही दुरन्ते । एवं श्रदत्ताणि समाययन्तो, भावे तित्तो दुहि भावाणुरत्तस्स नरम्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? तत्थ भोगे वि किलेस दुक्खं, निव्वतई जस्स कपण दुक्खं ॥ ६७ ॥ एमेव भावम्मि गो पत्रसं, ras पट्टचित्तो य चिणाइ कम्मं, दुक्खाह परंपराओ । जं से पुणो होइ दुहं विवागे ||१८|| भावे विरतो मरणुओ विलोगो, एरण दुक्खोहपरंपरेण । अणिस्सो || ६ || [ १६७ न लिप्पई भवमज्हतो, जसे वा पोक्खरिणः पलासं ॥ ६६॥ एविन्दियत्थाय मरणस्स अस्था, दुक्खरस हेउं मणुयस्स रागिणो । ते व थोवं पि कयाद दुक्खं, न वीयर गस्स करेन्ति किंचि ।। १०० ।। न कामभोगा समयं उयोति, न यावि भोगा विगईं उवेन्ति । जेतप्पओसी य परिग्गही य, कोहं च माणं च तहेव माय, सो तेसु मोहा विगई उवे ॥ १०१ ॥ लोहं दुर्गुच्छं अरई रई च । Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला हासं भयं सोगपुमित्थित्रेयं, नपुंसवेयं विविहे य भावे ॥ १०२ ॥ आवजई एवमणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अन् य एयप्रभवे विसेसे, कारुणदीणे हिरिमे वइस्से ॥१०३॥ कष्पं न इच्छिज सहाय लिच्छू, पच्छा णुतावे न तवप्पभावं । एवं वियारे अमियम्पयारे, अवजइ इन्दियचोरवसे ||१०४|| तओ से जायन्ति पयणाई, निमज्जिडं मोहमहराणवम्मि । सुहेसिणो, दुक्खविणोयडा श तप्पच्चये उज़मए य रागी ॥ १०५ ॥ विरजमारास ये इन्दियत्था, सद्दाइया न तस्स सव्वें वि मरणुन्नयें व‍ तावइयप्पगारा । तहेव जं निव्वत्तयंती श्रमरपुन्नयं वा ॥ १०६ || एवं ससंकष्पविकपणासुं, संजायई समयमुवट्टियस्स | अत्थे य संकपयओ तओ से, vetre कामगुणेषु तरहा ||१०७ || स वीयरागो कयसव्यकिश्च्चो. खवेइ नाणावर खणेां । समावरेइ, जं चन्तराय: पकरेइ कम्मं ॥ १०८ ॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] .. [१६६ सव्वं तओ जाणइ पासए य, अमोहणे होइ निरन्तराए । प्रणासवे झाणसमाहिजुत्ते, आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ॥१०९॥ सोतस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को, जं वाहई सययं जन्तुमेयं । दीहामयं विप्पमुक्को पसत्थो, तो होइ अञ्चन्तसुही कयत्थो॥११०।। अणाइकालप्पभवस्स एसो, सव्वस्त दुक्खस्स पमोक्खमग्गो। वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता, कमेण अञ्चन्तसुही भवन्ति ॥१११॥ त्ति बेमि ॥ पमायट्टाणं समत्तं ॥३२॥ ॥ अह कम्मप्पयडी णाम तेत्तीसइमं अज्झयणं ॥ अटुं कम्माई वोच्छामि, आणुपुचि ज हक्कम । जेहिं बद्धो अयं जीवो, संसारे परिवइ ॥१॥ नाणस्सावरणिज्जं, सणावरणं तहा।.. वेयणिजं तहा मोहं, अाउकम्मं तहेव य ॥२॥ नामकम्मं च गोयं च, अन्तरायं तहेव य । एवमेयाइ कम्माइं, अट्टेव उ समासओ ॥३॥ नाणावरणं पञ्चविहं, सुयं आभिणिबोहियं । ओहिनाणं च तइयं, मगनाणं च केवलं ॥४॥ निद्दा तहेव पयला, निहानिद्दा पयलपयला य । तत्तो य थीणगिद्धी उ.पंचना होइनायव्वा ॥५॥ १. परिवत्तए। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला चमचक्खू श्रोहिस्स, दंसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविगप्पं, नायव्वं दंसणावरणं ||६|| वेणीपि यदुविहं, सायमसायं च श्राहियं । सायस्स उ बहू भेया, एमेव असायस्ल वि ||७|| मोहणिजंपि च दुवेहं, दंसणे चरणे तहा । दंसणे तिविहं वृत्तं चरणे दुविहं भवे ॥८॥ सम्मत्तं वेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य । एयाओ तिनि पयडीओ, मोहणिजस्स दंसणे ॥६॥ चरितमोहणं कम्मं, दुविहं तु वियाहियं । कसायमोहणिजं तु, नोकलायं तहेव य ||१०|| सोलसहिए, कम्मं तु कसायजं । 3 सत्तविहं नवविहं वा, कम्मं च नोकसायजं ॥ ११ ॥ नेरइयतिरिक्खाउं, मणुस्साउं तहेव य । देवाउयं चउत्थं तु, ग्राउकम्मं चउच्विहं ॥ | १ | नामकम्मं तु दुविहं, सुहमसुहं च ग्राहियं । सुभस्स उ बहू भेया, एमेव असुहस्स वि ॥ १३ ॥ १७० ] गोयं कम्मं दुविहं, उच्चं नीयं च आहियं । उच्चं विहं होइ, एवं नीयं पि श्रहिये ||१४|| दाणे लाभे य भोगे ए, उवभोगे वीरिए तहा । पञ्चविन्तराय, समाजेल विग्राहियं ॥ १५॥ एयाओ मूल पगडीओ, उत्तराओ य श्राहिया । पसग्गं खेत्तकाले य, भावं च उत्तरं सुख ||१६|| सवसिं चेत्र कम्माणं, पपसग्गमणन्तगं । गठियसत्ता ईयं, अन्तो सिद्धारा श्राहियं ॥ १७ ॥ १. ठि (प) सत्तालाइ । Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१७१ सबजीवाण कम्मं तु, संगहे छद्दिसागयं । सब्वेसु वि पएसेसु, सव्वं सब्वेण बद्धगं ॥१८॥ उदहीसरिसनामा, तीसई कोडिकोडिअो । उक्कोसिया ठिई होइ, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया।।१९।। आवरणिजाण दुरहंपि, वेयणिजे तहेव य । अन्तराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया ॥२०॥ उदहीसरिसनामार, सत्तर कोडिकोडियो। मोहणिजस्स उक्कोसा, अंतोमुहत्तं जहनिया ।।२१।। तेत्तीस सागरोवमा, उकोसेण वियाहिया। ठिई उ आउकम्पस्स, अन्तोमुहत्तं जहनिया ॥२२॥ उदहीसरिसनामारणं, वीसई कोडिकोडिओ। नामगोत्ता उक्कोसा, अट्ठमुहुत्ता जहनिया ॥२३॥ सिद्धाणणन्तभागो य, अणुभागा हवन्ति उ । सव्वेसु वि पएसग्गं, सव्वजीवेसु इच्छियं ॥२४॥ तम्हा एएसि कम्मा अणुभागा वियाणिया। एए सि संवरे चेव, खवणे य जए बुहो ।।२५।। त्ति बेमि ॥ कम्मप्पयडी समत्ता ॥३३॥ ॥ अह लेलज्झयणं चीत्तीसइमं अज्झयणं ।। लेसज्झयणं पवक्खामि, आणुपुब्धि जहकम । छण्हंपि कम्मलेसाणं, अणुभावे सुणेह मे ॥१॥ नामाइं वरणरसगन्धफासपरिणामलक्खर । ठाणं ठिई गई चाउ, लेसा तु सुणेह मे ॥२॥ किण्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाई तु जह कम ॥३।। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला जीमूयनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा । खंजंजणनयणनिभा, किराहलेसा उ वगणो ॥४॥ नीलासोगसंकासा, चासपिच्छसम्प्पभा। . वेरुलियनिद्धसंकासा, नीललेला उ वराणो ॥५।। अयसीपुप्फसंकासा, कोइलच्छदसन्निभा। पारेवयगीवनिभा, काऊलेसा उ वरणभो ॥६॥ हिंगुलयधाउसंकासा. तरुणाइच्चसन्निभा। सुयतुण्डपईवनिभा, ते उलेसा उ वरणग्रो ॥७॥ हरियालभेयसंकासा, हलिहाभेयसमप्पभा'। सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वराणो | संखंककुन्दसकासा, खीरपूरसमप्पभा । रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वरणग्रो ॥९।। कडुयतुम्बगरसो, निम्बरसो कडुयरोहिणिर सो वा । एत्तो वि अणन्तगुणा, रसो य किण्हाए नायव्यो ॥१०॥ जह तिकडुयस्स य रसो, तिक्खो जह हथिपिप्पलीए वा। एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ नीलाए नायवो ॥११॥ जह तरुणअम्बगरसो, तुवरकविठ्ठस्स वावि जारिसरो। एसो वि अणन्तगुणो, - रसो उ काऊण नायव्वो ॥१२।। जह १. हलिहाभेदसनिभा। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] [ १७३ जह परिणयम्बगरसो, __ पक्ककविठुस्स वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ तेऊण नायव्यो ।।१३।। वरवारुणीए व रसो, . विविहाण व पासवाण जारिसत्रो। महुमेरयस्स व रसो, पत्तो पम्हाए परए ॥१४॥ खज्जूरमुद्दियरसो, खीररसो खंडसकररसो वा । एत्तो वि अतगुणो, र सो उ सुक्काए नायव्वो ॥१५॥ जह गोमडस्स गंधो सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स । एत्तो वि अांतगुणो, लेसाणं अप्पसत्था ॥१६॥ जह सुरहिकुसुमगंधो, गंधवासाण पिस्समाणाणं । एत्तो वि अांतगुणो, पसत्थलेसाण तिराहं पि ॥१७॥ जह करगयस्स फासो, गोजिमाए य सागपत्ताणं । एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥१८॥ जह बूरस्स व फासो, नवीयस्त व सिरीसकुसुमार। एत्तो वि अांतगुणो, पसत्थलेसाण तिराहंपि ॥१६॥ तिविहो व नवविहो वा, सत्तावीसइविहेकसीनो वा। दुसरो तेयालो वा, लेसा होइ परिणामो ॥२०॥ पंचासवप्पवत्तो, तीहि अगुत्तो छK अविरओ य । तिव्वारंभपरिणओ, खुद्दो साहसिओ नरो॥२१|| निद्धन्धसपरिणामो, निस्संसो अजि इन्दिो । एयजोगसमाउत्तो, किराहलेसं तु परिणमे ॥२२॥ इस्साअमरिसश्रतवो, अविजया अहीरिया। गिद्धी पोसे य सढे, पमत्ते रसलोलुए ॥२३॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला (सायगवेसए य) आरम्भाओ अविरो, खुद्दो साहस्सिो नरो एयजोगसमाउत्तो, नीललेसं तु परिणमे ॥२४॥ वंके वकसमायारे, नियड्डिले अणुज्जुए । पलिउंचगोवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए ॥२५॥ उप्फालगदुट्टवाई य, तेणे यावि य मच्छरी । एयजोगसमाउत्तो, काऊलेसंत परिणमे ॥२६।। नीयाधित्ती अचवले. अमाई अकुऊहले । विणीयविणए दन्ते, जोगवं उवहाणवं । २७॥ पियधम्मे दढधम्मेऽवजभीरू हिएलए। एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु परिणमे ॥२८॥ पयणुकोहमाणे य, मायालोमे य पयणुए । पसन्तचित्ते दन्तप्पा, जोगवं उवहाणवं ||२९॥ तहा पयणुलाई य, उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो, पम्हलेसं तु परिणमे ॥३०॥ अट्टमहाणि वजित्ता, धम्मसुक्काणि झायए । पसन्तचित्ते दन्तप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिसु ।।३१।। सरागे वीयरागे वा, उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमे ।।३।। अखिजाणासप्पिणीण, उस्सपिणीण जे समया। संखाईया लोगा, लेसाण हवन्ति ठाणाई ॥३३॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसा सागरा मुहुत्तहिया। उकोसा होइ ठिई, नायव्या किरहले लाए ॥३४॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंखभागमभहिया । उक्कोसा होई ठिई, नायव्वा नीललेसाए ।।३।। मुहुत्तद्धं तु जेहन्ना, तिराणुदही पलियमसंखभागमभहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा का उलेसाए ॥३६।। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१७५ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोराणुदही पलियमसंखभागमभहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेउलेसाए । ३७।। मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति य सागरा मुहुत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ॥३८|| मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्या सुकलेसाए ॥३६॥ एसा खलु लेसाणं, अोहेण ठिई उ वरिणया होइ । चउमु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिई तु वोच्छामि ॥४०॥ दस वाससहस्लाई, काऊए ठिई जहनिया होइ । तिराणुदही पलिग्रोवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥४॥ तिगणुदही पलिग्रोवममसंखभागो जहन्नण नीलठिई। दस उदही पलिओवमअसंखभागं च उकोसा ॥४२॥ दसउदही पलिअोवमासंखभागं जहनिया होइ। तेत्तीससागराइं उक्कोसा, होइ किरहार लेसाए ॥४३। एला नेरइयाणां, लेसाण ठिई उ वरिणया होइ । तेण परं वोच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं ॥४४|| . अन्तोमुत्तमद्धं, लेसाण ठिई जहिं जहिं जाउ। तिरियाण नराणां वा, वजित्ता केवलं लेसं । ४५।। मुहुत्तद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुव्वकोडीओ। नवहि वरिसेहि ऊणा, नायव्या सुक्कले माप ॥४६॥ एसा तिरियनराणां, लेसारण ठिई उ वरिणया होइ । तेण परं वोच्छामि, लेलाण ठिई उ देवाणं ॥४७॥ दस वाससहस्साई, किरहाए ठिई जहनिया होइ। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६] [जीवन-श्रयस्कर-पाठमाला पलियमसंखिजइमो, उक्कोसो होइ किण्हाए ॥४८।। जा किराहाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नणं नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसा ॥४६॥ जा नीलाए ठिई खलु, उकोसा सा उ समयमभहिया। जहन्न काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ।।५०।। तेण परं वोच्छा मि, तेऊलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवइवाणमन्तरजोइसवेमाणियाणं च ॥५१॥ पलिअोवमं जहन्ना, उकोसा सागर। उ दुन्नहिा । पलियमसंखेजेगां, होइ भागेण तेऊए ।।५।। दसवाससहस्साई, हेऊर ठिई जहनिया होइ । दुन्नुदही पलि प्रोवम असंखभागं च उक्कोसा ॥५३॥ जा तेऊए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नणं पम्हाए, दस उ मुहुत्ताहियाइ उक्कोसा ॥५४॥ जा पम्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्ने सुक्काए, तेत्तीसमुहुत्तमभहिया ॥५५।। किरहा नीला काऊ, तिन्नि वि एयानो अहम्मलेसानो । एयाहिं तिहि वि जीवो, दुग्गइ उववजह ॥५६।। तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसायो। एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववजह ॥५७।। Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउतराध्ययन सूत्र ] लेसाहिं सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उवाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ||५८ || साहिं सम्वाहिं, चरिमे समयं मि परिण्याहिं तु । न हु कस्सइ उवत्राओ, परे भवे होइ जीवस्स ॥ ५६ ॥ अन्तमुहुत्तति गर, अन्तमुहुत्तग्मि सेसए चेव । स हि परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥ ६० ॥ तम्हा यासि लेसागं, अणुभावं वियाणिया । अपसत्याओ वजित्ता, पलत्थाओऽ हिट्ठिए मुणी ॥ ६१ ॥ त्ति बेमि || सज्यं समत्तं ||३४|| ॥ श्रगारिज्जं ग्राम पंचतीसइमं अभयं ॥ सुरोह मे एगग्गमणा, मग्गं 'बुद्धे हि देसियं । जमायरन्तो भिक्खू, दुक्खान्तकरे भवे ॥१॥ गिहबासं परिच्चज, पवज्जामस्सिए मुखी । इमे संगे विया जि, जेहिं सज्जन्ति माणवा ||२|| तहेव हिंसं अलियं, चोजं ग्रवम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभ च, संजत्रो परिवजए ॥३॥ मणोहरं चित्तघरं, मल्ल धूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोयं, मणसावि न पत्थर ||४|| इन्दियाणि भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराई निवारेउं, कामरागविवडणे ||५|| सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कओ । पइरिक्के परकडे वा, वासं तत्थाभिरोयए ॥ ६ ॥ फासुभि अणावा, इत्थी हिं अभिदुए। तत्थ संकपए वासं, भिक्खू परमसंजए ||७| १. सन्दे० । O [ १७७ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला न सयं गिहाई कुबिजा, णेव अन्नेहिं कारए । गिहकम्प्रसमारम्भे, भूयाणं दिस्सए वहो ।८।। तसाणं थावराणं च, सुहुमाणं बादराण य । तम्हा गिहसमारम्भ, संजओ परिवजए ॥९॥ तहेव भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयट्टाए, न पए न पयावए ॥१०॥ जलधननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्टनिस्सिया । हम्मन्ति भत्तपाणे मु, तम्हा भिक्खू न पयावए ॥११॥ विप्लप्पे सम्बो धारे, वहुपाणि विणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ॥१२॥ हिरराणां जायरूवं च, मणसा वि न पत्थए । समले ठुकंचणे भिक्खू , विरए कयविक्कए ॥१३॥ किणन्तो कइओ होइ, विक्किणन्तो य वाणिओ। कयविक्कयम्मि वट्टन्तो, भिकवू न भवइ तारिसो ॥१४॥ भिक्खियव्वं न केयव्वं, भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा । कयविकओ महादोसो, भिक्खावित्ती सुहावहा ॥१५॥ समुयाणं उछमेसिज्जा, जहासुत्तमणिन्दियं । लाभालाभरिम संतुट्टे, पिण्डवायं चरे मुणी ।।१६।। अलोले न रसे गिद्धे, जिब्भादन्ते अमुच्छिए । न रसट्टाए | जजा, जवणट्ठाए महामुणी ॥१७॥ अच्च रयणं चेव, वन्द पूयणं तहा । इड्डीसकारसम्माणं, मणसा वि न पत्थए ॥१८॥ सुकमाणं झियाएजा, अणियाणे अकिंचणे । वोसट्टकाए विहरेजा, जाव कालस्स पजत्रो ॥१९।। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] [१७६ निज्जूहिऊण आहारं, कालधम्मे उवट्ठिए । जहिऊण माणुसं बोन्दि, पहू दुक्खा विमुच्चई ।।२०।। निम्नमे निरहंकारे, वीयरागो अणासवो। संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिणिव्वुए ॥२१।। त्ति बेमि । ॥ अणगारज्झयणं समत्तं ॥३५॥ ।। अह जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं ।। जीवाजीवविभत्तिं मे, सुणेहेगमणा इओ। जं जाणि ऊरण भिक्खू , सम्मं जयइ संजमे ॥१॥ जीवा चैव अजीवा य, एस लोए वियाहिए। " अजीवदेसमागासे, अलोगे से वियाहिए ॥२॥ दव्यत्रो खेत्तो चेव, कालओ भावओ तहा । परूवणा तेसिं भवे, जीवाणमजीवाण य ॥३॥ रूविणो चेव रूवी य, अजीवा दुविहा भवे । अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणो य चउबिहा ॥४॥ धम्मत्थिकाए तद्देसे, तप्पएसे य पाहिए । अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए ॥५॥ आगासे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए । अद्धासमए चेव. अरूवी दसहा भवे ॥६।। धम्माधम्मे य दो चेव, लोग मित्ता वियाहिया । लोगालोगे य ागासे, समए समयखेत्तिए ॥७॥ धम्माधम्मागासा, तिन्निवि एए प्रणाइया । अपज्जवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिए ।।८।। समएवि सन्तई पप्प, एवमेव वियाहिया । श्राएसं पप्प साईए, सपजवसिएवि य ॥६।। १. चइऊण । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८५० ] खन्धा य खन्धदेसा य, तप्पएसा तहेव य । परमाणु य बोधव्वा, रूविणेो य चच्चिहा ||१०|| एगत्तेण पुहत्तेणं, खन्धा य परमाणु य । लोएगदेसे लोए य. भइयव्वा ते उ खेत्तओं ॥११॥ ( सुहमा सबलोगस्ति लोगदे से य वायां । ) इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउब्विहं ||१२|| संतई पप्प तेऽणाई, अध्यजवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसिया विय ॥१३॥ असंखकालमुक्कसं, एक्को समग्र जहन्नयं । जीवाण य रूवीण, ठिई एसा वियाहिया ||१४|| अन्तकालमुक्को, एक्को समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, अन्तरेयं विग्राहिये ||१५|| वरण गन्धओ चेव, रसओ फासओ तहा । ठाणओ य विन्नेओ, परिणामो तेसि पंचहा ||१६|| वरणओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । किण्हा नीला य लोहिया, हलिद्दा सुक्किला तहा ॥ १७ ॥ गन्धश्रो परिणाया जे उ, दुविहा ते वियाहिया । सुभिगन्धपरिलामा, दुब्भिगन्धा तहेव य ॥१॥ रसओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा ॥ १९ ॥ फासओ परिणया जे उ, अट्टहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउआ चैत्र, गरुया लहुआ तहा ॥२०॥ सीया उरहा य निद्वा य, तहा लुक्खा य आहिया । इय फासपरिणय एए, पुग्गला समुदाहिया ||२१|| संठाओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । परिमंडला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया ॥ २२ ॥ [ जीवन श्रेयस्कर - पाठमाला - Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] वराणो जे भवे किरहे, भइए से उ गन्धश्रो। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥२३॥ . वरणो जे भवे नीले, भइप से उ गन्धओ। रसो फासओ चेव, भइए संठाणोवि य ॥२४॥ वराणो लोहिए जे उ, भइए से उ गन्धो । रसओ फासो चेव भइए संठाणओवि य ।।२।। वरणवो पीयए जे उ, भइए से उ गन्धरो। रसो फासो चेव, भइए संठाणश्रोवि य ॥२६॥ वराणओ सुक्किले जे उ, भइए से उ गन्धो । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य । २७॥ गन्धो जे भवे सुब्भी, भइए से उ वराणो । रसओ फासो चेव, भइए संठाणोवि य ॥२८॥ गन्धओ जे भवे दुपी, भइए से उ वराणो । रसो फासओ चेव, भइए संठाणोवि य ॥२६॥ रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वराणओ। गन्धो रसो चेव. भइए संठाणोवि य ॥३०॥ रसो कडुए जे उ, भइए से उ वरणओ। गन्धो फासो बेव, भइए संठाणोवि य ॥३१॥ रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वरणभो । गन्धओ फासो चेव, भइए संठाणोवि य ॥३२॥ रसओ अम्बिले जे उ, भइए से उ वरखो। गन्धो फासो चेव, भइए संठाणोषि य ।।३३।। रसओ महुरए जे उ, भइए से उ चरणओ। गन्धओ फासो बेव, भइए संठाण मोवि य Hश्॥ फासो कक्खडे जे उ, भइए से उ बराणो। गन्धणे रसओ चेष, भइए संठाण मोवि य ॥३५॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला १८२] फासओ मउए जे उ, भइए से उ वरणओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणोवि य ||३६|| फासओ गुरूए जे उ, भइए से उ वरणश्रो । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणविओ य || ३७॥ फासओ लहुए जे उ, भइए से उ वराणओ । गन्धओ रसओ चैव, भइर संठाणवि य ||३८|| फासए सीए जे उ, भइए से उ वरणओ । गन्धओ रसओ चैव भइए संठा ओवि य || ३६ || फासो उहए जे उ. भइए से उ वराणओ । गन्धग्रो रसओ चैव, भइए संठाणओवि य ||४०|| फासो निद्धए जे उ, भइए से उ वरणओ । गन्धो रस चेव, भइए संठाणओविय ॥ ४१ ॥ फासत्रो लुक्खए जे उ, भइए से उ वरणओ । गन्धओ रस चेव, भइए संठाणोवि य |२|| परिमण्डलसंठाणे, भइए से उवरण । गन्धश्रो रसओ चेव, भइए फासओवि य । ४३ || ठाणओ भवे वट्टे, भइए से उ वरणओ । गन्धो रसओ चेव, भइए फासोविय ॥ ४४ ॥ संठा भवे तसे, भइए से उ वरणओ । गन्धो रसश्रो चेव, भइए फालओवि य ||४५ || संठाय चउरंसे, भइए से उ वरणश्रो । गन्धको रस चेव, भइए फासोविय ॥४६॥ जे आययसंठाणे, भइए से उ वरण । गन्धओ रस चेव, भइए फासओवि य ॥४७॥ एसा जीवविभत्ती, समासे वियाहिया । छत्तो जीवविभक्ति, बुच्छामि श्रणुपुव्वसो ||४८|| Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र [१८३ संसारस्था य सिद्धा य, दुविहा जीवा वियाहिया । सिद्धा णेगविहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ॥४६॥ इत्थीपुरिससिद्धा य. तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य ।।५०/ उक्कोसोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाइ य । उड्ढे अहे य तिरियं च, समुद्दम्मि जलम्मि य ।।५१॥ दस य नपुंसएसु, वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिझइ ॥५२॥ चत्तारि य गिह लिंगे, अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण अट्ठसय, समएणेगेण सिज्झइ । ५३।। उक्कोसोगाहणाए य, सिज्झन्ते जुगवं दुवे । चत्तारि जहन्नाए 'मज्झे अठ्ठत्तरं सयं ॥५४।। चउरुड्ढलोए य दुवे समुद्दे. तओ जले वीसमहे तहेव य । सयं च अछुत्तरं तिरियलोद, समएणेगेण सिज्झइ धुवं ।।५५॥ कहिं पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्टिया? कहिं बोन्दि, चइत्ता ? कत्थ गन्तूण सिज्झई ? ॥५६।। अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्टिा । इहं वोन्दि चइत्ताणं, तत्थ गन्तूण सिज्झइ ।।५७।' बारसहिं जोयणेहिं, सबट्टस्सुवरिं भवे । ईसिपब्भारनामा उ, पुढवी छत्तसंठिया ।।५८॥ पणयालसयसहस्सा, जोयणा तु प्रायया। तावइयं चेव वित्थिराणा, तिगुणो साहिय परिरओ ॥५६॥ १. जवमज्झे । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अट्ठजोयणबाहल्ला, सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायन्ती चरिमन्ते, मच्छिगताउ तणुययरी ॥६॥ अज्जुणसुवरणगमई, सा पुढवी निम्नला सहावेण । उत्ताणगच्छत्तगसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं ॥६॥ संखंककुंदसंकासा, पण्डुग निम्मला सुहा । सीयाए जोयणे तत्तो. लोयन्तो उ वियाहियो ॥६॥ जोयणस्स उ जो तत्थ, कोसो उपरिमो भवे । तस्स कोसस्स छन्भाए, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥६३।। तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगग्गमित्र पइट्ठिया । भवपवंचओ मुक्का, सिद्धिं वरगई गया ॥६॥ उस्सेहो जस्स जो होइ, भवम्मि चरिममित्र उ। तिभागहीणा तत्तो य, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥६॥ एगण साईया, अपजवसियावि य । पुहत्तण श्रणाइया, अपजवसियावि य ।।६६।। अरूविणो जीवघणा, नाणदंसणसन्निया । अउल सुहं संपत्ता, उवमा जस्ल नत्थि उ ।।६७॥ लोगेगदेसे ते सत्रे, नाणदसणसन्निया। संसारपारनिस्थिराणा, सिद्धिं वरगई गया ॥६८। संसारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं ॥६६॥ पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई। इच्चेए थावग तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥७॥ दुविहा उ पुढवीजीवा, सुहमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता, एवमेए दुहा पुणे ॥७१॥ .. Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] बायरा जे उपजत्ता, दुविहा ते वियाहिया । सराहा खरा य बोधव्वा, सराहा सत्तविहा तहिं ॥ ७२ ॥ किरहा नीला य रुहिरा य, हलिद्दा सुक्किला तहा । परडुपरागमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा ॥७३॥ " पुढची य सक्करा वालुया य, उवले सिला य लोणूसे । अय-तम्ब तय-सीलग, हरियाले [ १८५ रुप-पुराणे यवहरे य ||७४ || हिंगुलप • मणासिला सासगंजण - पवाले । अब्भपडलब्भवालुय, पायरकाए मणिविहाणे ॥७५॥ गोमेजए य रुयगे, अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय-मसारगल्ले, भुयमोयग - इन्दनीले य ॥७६॥ चन्दण गेरुय हंसगब्भे, पुल ए सोगन्धि य बोधव्वे । चन्दण्पहवेरु लिए, जलकन्ते सुरंकन्ते य ॥७७॥ एए खरपुढवी, भैया छत्तीसमाहिया । एग विमनात्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया ॥ ७८ ॥ हुमाय सव्वलोम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥७६॥ संतई पप्पाईया, अपजवसियावि य । ठिडं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ ८०॥ बावीस सहरसाई, वासाणुक्कोसिया भवे आउठिई पुढवीणं, अन्तोमुहुरां जहन्निया ॥ ८१ ॥ असंखकाल मु+कोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । काय लिई पुढवी, तं कार्यं तु प्रमुचओ ॥८२॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला. अणन्त कालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, पुढ विजीवाण अन्तरं । ८३।। एएसिं वराणो चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥८॥ दुविहा पाउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पजत्तमपजत्ता, एवमेव दुहा पुणो । ८५ बायरा जे उ पजत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से य, हरतरणू महिया हिमे ॥८६।। एगविहमणाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया । सुहमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा।।८।। संतई पप्पडणाईया, अपजवसियावि । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥८८|| सत्तेव सहस्साई, वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई पाऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥८६॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहनयं । कायठिई आऊ, तं कायं तु अमुंवो ॥३०॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, आऊजीवाण अन्तरं ।।६।। एएसिं वरणओ चेव, गन्धो रसफासो। संठाणादेसमो वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१२॥ दुविहा वरणस्सईजीवा, सुहमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता, एवमेव दुहा पुणो ||९३॥ बायरा जे उ पजत्ता, दुविहा ते वियाहिया । साहारण सरीरा य, पत्तेगा य तहेव य॥६४|| पत्तेगसरीरामोऽणेगहा, ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा ।।५।। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउतराध्ययन सूत्र ] वलया 'पव्वगा कुहुणा, जलरुहा श्रसही तहा । हरिबकाया बोधव्वा पत्तेगा इह श्राहिया ||१६|| साहार सरीरोऽगहा, ते पकित्तिया । आलुर मूलर चेव, सिंगबेरे तहेव य ॥७॥ हिरिली सिरिली सस्सिरिली, जावई केयकन्दली । पलण्डुलसरणकन्दे य, कन्दली य कहुव्वर ॥ ६८|| लोहिणी थी हूय, कुहगा य तहेव य । कराहे य वज्जकन्दे य, कन्दे सूरणए तहा ||६|| अस्करणीय बोधव्वा, सीहकरणी तहेव य । मुसुरढी य ह लिद्दा य, रोगह। एवमाश्रो ॥ १०० ॥ एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्लोगम्पि, लोगदेसे य बायरा ||११|| संतई पप गाईया, अजबसियावि य । ठि पडुश्च साईया, सपजावसियावि य ॥१०२॥ दस चेव सहस्लाई, कसाणुकोसिया भवे । वफई आउं तु श्रन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १०३ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुतं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं, तं कार्य तु श्रमुचओ ॥ १०४॥ | असंखकालमुकोर्स, अन्तोमुहुतं जहन्नयं । विजढम्म सए काए, पणगजीवाण अन्तरं ॥ १०५ ॥ | एसिं वरण चेव, गन्धओ रसफासश्रो । ठाणास वावि, विहाणाई सहस्सो ॥ १०६ ॥ [ १८७ इथे थावरा तिविहा, समासेण वियाहिया । इत्तो उ तसे तिविहे, वुच्छामि श्रणुपुव्वसो ॥१०७॥ १. पव्वज्जा । Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला तेऊ वाऊ य बोधव्वा, उराला य तसा तहा। इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं आए सुणेह मे ॥१०८॥ दुविहा तेउजीवा उ, सुहमा बायगतहा। पजतमपजत्ता, एवमेए दुहा पुणा ।।१०९॥ बायरा जे उ पजत्ताऽणेगहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगणी, अच्चिजाला तहेव य ॥११०॥ उक्का विज्जू य बोधव्वा रोगहा एवमायो । एगविहमणाणत्ता, सुहुधा ते वियाहिया ॥१११॥ सुहमा सनलोगम्नि, लोगदेसे य वायरा । इत्तो कालविभाग तु, तेसिं वुच्छ चउविहं ॥११२॥ संतई पप्पागाईया, छपज्जयसियाविय। ठिइ पडुच्च साइया समजवसियावि य ॥११३॥ तिराणेव आहारत्ता, उक्कोसेण वियादिया। आउठिई तेऊरणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥११॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई तेऊ, तं काय तु अमुचो ॥११५।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, तेऊजीवाण अन्तरं ॥११६॥ एएसिं वरण श्रो चेव, गन्धो रसफासो। संठाणदेसो वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥११७।। दुविहा वाउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता, एवमेए दुहा पुणे। ।।११८॥ बायरा जे उ पजत्ता, पञ्चहा ते पकित्तिया । उक्कलिया मण्डलिया, घणगुजा सुद्धवाया य ॥११६।। संवट्टगवाये य, णेगहा एवमाययो । एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ।।१२०॥ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्र ] [१८९ सुहुमा सबलोगम्मि, लोग देसे य बायरा । इत्तो कालविभाग तु, तेसिं वुच्छं चउविहं ॥१२१॥ सन्तई पप्पणाईया, अपजवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥१२२॥ तिराणेव सहस्साइं, वासाणुकोसिया भवे । पाउठिई वाऊणं, अन्त मुहुत्तं जहनिया ॥१२३।। असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई वाऊणं, तं कायं तु अमुंचनो ॥१२४॥ अणन्तकालमुकोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, वाऊजीवाण अन्तरं ॥१२५।। एएसिं वरण ओ चेव, गन्धो रसफासो । संठाणदेसयो वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१२६॥ उराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया । बेइन्दिया-तेइन्दिया-चउरो पंचिन्दिया तहा ॥१२७॥ बेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तपम जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥१२८॥ किमिणो सोङ्गला चेव, अलसा माइवाहया । वासीमुहा य सिप्पिया, संखा संखणगा तहा ॥१२६।। पल्लोयाणुल्लया चेव, तहेव य वराडगा। जलुगा जालगा चेव, चन्दणा य तहेव य ॥१३०।। इह बेइन्दिया एएऽणेगहा एवमायो । लोगेगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया ॥१३१।। संतई पप्पणाइया अपजवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥१३२॥ वासाइं बारसा चेव, उक्कोसेण विवाहिया। बेइन्दिय आउठिई अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥१३३।। Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९] _ [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला संखिजकालमुक्कोसं, अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । बेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुचो ॥१३४।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं, अन्तरं च विया हियं ।।१३५॥ एएसिं वरणग्रो चेव, गन्धओ रस फास प्रो। संठाणादेस प्रो वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१३६।। तेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपजत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥१३७।। कुन्थुपिवीलिउडुसा, उकलुद्देहिया तहा । तणहारकट्ठहारा य, मालुगा पत्तहारगा ॥१३८।। कप्पासट्टिमिंज। य, तिंदुगा तउसमिंजगा। सदावरी य गुम्मी य, बोधव्वा इन्दगाइया ॥१३६।। इन्दगोवगमाईया णेगहा एवमायओ। लोगेगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया ॥१४०।। संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य । टिइं पडुश्च साईया, सपजवसियावि य ॥१४१॥ एगूण पराणहारत्ता, उक्कोसेण वियाहिया। तेइन्दिय पाउटिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥१४२॥ संखिजकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकाठिई, तं कायं तु अमुचो ॥१४३।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमु हुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं, अंतरं तु वियाहियं ॥१४४|| एएसिं वराणो चेव, गन्धो रसफासो । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१४५।। चउरिन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पजत्तमजत्ता, तेसिं मेए सुणेह मे ॥१४६।। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९६ श्रीउत्तराराध्ययन सूत्र ] अन्धिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीडपयंगे य, ढिकुणे कंकणे तहा || १४७ || कुक्कुडे सिंगिरीडी य, नन्दायत्ते य विच्छुए । डोले भिंगीरीडी य, विरिली अच्छिवेह || १४८ || अच्छिले माहए अच्छरोडए, विचित् चित्रापत्तए 1 उहिंजलिया जलकारी य नया 'तन्तवय इया इय चउरिन्दिया एए, रोगहा एवमायो । 'लोगेग देसे ते सब्वे, न सव्वत्थ वियाहिया || १५० || संतई पप्पाईया, अपज्जवसिया विय । ठिरं पडुच्च साईया, सपज्जवसिय । विय ॥१५२॥ छच्चैव मासाऊ, उक्को सेण वियाहिया । चाउरिन्दिय आउठिई, अन्तोमुहुतं जहनिया ॥ १५२ ॥ संखिजकालमुक्कसं, श्रन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकाय लिई, तं कार्यं तु प्रभुचओ ।। १५३ ।। प्रणन्तकालमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ १५४ || एएसिं वरणश्रो चेव, गन्धओ रसफास संठाण देवावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१५५॥ पंचिन्दिया उ जे जीवा, चउव्हिा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया || १५६ || रइया सत्तविहा, पुढवीसु सत्सु भवे । रयणाभसक्काराभा, वालुयाभा य आहिया ॥ १५७ ॥ । १. तंत्र त्रगाइया । २. लोगस्स उगा देखम्ति तेलवे परिवित्तिमा ! ॥१४९॥ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . पंकामा धूमाभा, तमा तमतमा तहा। इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥१५८।। लोगस्स एगदेस मिल, ते सव्वे उ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु, वोच्छ तेसिं च उविहं ॥१५॥ संतई पप्पाऽणाईया, अपज्जवसियावि य। .. टिइं पडुच्च साइया, सपजव सियावि य ॥१६० । सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥१६॥ तिराणेव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए जहन्न, एगं तु सागरोवमं ॥१६२।। सत्तेव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । नइयाए जहन्नणं, तिराणेव सागरोवमा ॥१६३।। दस सागरोवमा ऊ, उक्कोसेण विवाहिया । चउत्थीए जहन्ने. सत्तेव सागरोवमा ॥१६४॥ सत्तरस सागरा ऊ, उक्कोलेण वियाहिया। पंचमाए जहन्ने, दस वेव सागरोवमा ॥१६५।। बावीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया। छट्ठीए जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ।।१६६॥ तेत्तीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहन्नशां, बावीसं सागरोवमा ।।१६७॥ जा चेव य पाउठिई, नेरइया वियाहिया। सा तेसिं कायठिई, जहन्नुकोसिया भवे ।।१६८।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्पि सए काए, नेरइयाणं तु अन्तरं ॥१६॥ एएसिं वराणा यो चेव, गन्धो रसफासओ। - संठाणादेसरो वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१७०॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउतराध्ययन सूत्र ] पंचिन्दियतिरिक्खाओ, दुविहा संमुच्छतिरिक्खाओ, गब्भवक्कन्तिया दुहि ते भवेतिविहा, जलयरा थलयरा तहा । नहरा य बोधव्वा, तेसिं भेए सुह मे ॥ १७२ ॥ मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुंसुमारा य बोधव्वा, पंचहा जलयराहिया || १७३ || लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया | एतो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ १७४॥ संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया विय । ठिइं पडुच्च साईया, सपजवसिया विय ॥ १७५ ॥ एगा य पुव्वकोडी, उक्कोसेण वियाहिया । उठिई जलयराणं, अन्तोमुहुरां जहन्निया ॥ १७६ ॥ पुव्त्रकोडिहरां तु, उक्कोसेण वियाहिया । कायटिई जलयराणं श्रन्तोमुडुतं जहन्नयं ॥ १७७ || अणन्तकालमुक्कसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्म सकाए, जलयराणं तु अन्तरं ॥ १७८ ॥ ( एएसिं वरण चैव गन्धओ रसफासो । संठा व विहाणाई सहस्सओ ॥ ) चउपयाय परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । च उपया चउविहा उ, ते मे कित्तयत्रो सुरण ॥ १७६ ॥ एगखुरा दुखुरा चेव, गण्डीश्य सहप्पया । हयमाइ गोण माइगयं माइसी हमाइणेो ॥ १८०॥ " ते वियाहिया । [ १६३ तहा ।।१७१।। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला भुओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई गहिमाई य, एकेकाणेगहा भवे ॥१८१॥ लोएगदेसे ते सत्रे, न सम्वत्थ वियाहिया। एत्तो कालविभाग तु, वोच्छं तेसिं च उविहं ॥१८२।। संतई पप्प ऽणाईया, अपज वसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥१८॥ पलिअोवमाइं तिगिण उ, उक्को मेण विवाहिया । आउठिई थलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥१८॥ पलिओवमाइं तिगिण उ, उक्को सेण वियाहिया । काय ठिई थलयराणं अन्तोमुहत्तं जहनिया ॥१८५॥ कालमणन्त मुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, थलयराणं तु अन्तरं ॥१८६।। चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया । विययपक्खी य बोधवा, पक्विणो य चउबिहा ॥१८॥ लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वोच्छ तेसिं चउबिहं ॥१८८।। संतई पप्प ऽणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसिय वि य ॥१८९।। पलिअोवमस्स भागो, असंखेजइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥१६०॥ असंखभाग पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिया । पुषकोडीपुहत्तेणं, अन्तोमुहत्तं जहनिया ॥१६१॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र 1 [१६५ कायठिई खहयराणं, अन्तरे तेसिमे भवे । अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥१९२।। एएसिं वरण श्रो चेच, गन्ध ओरसफासो । संठाणादेसो घावि, विहाणाई सहस्ससो॥१६३॥ मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयो सुण । संमुच्छिमा य मणुया, गब्भवकन्तिया तहा ।।१९४॥ गम्भवकन्तिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया। कम्मश्रकम्मभूमा य, अन्तरद्दीवया तहा ॥१९॥ पन्नरस तीसविहा, भेया अटवीसइं। संखा उ कमसो तेसिं, इइ एसा वियाहिया ॥१६६।। संमुच्छिमाण एसेव, मेरो होइ वियाहिो। लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे वि वियाहिया ।. १६७॥ संतई पप्प ऽणाइया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥१९८।। पलिग्रोवमाइ तिरिणवि, उक्कोसेण वियाहिया । आउट्टिई मणुयाणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥१९६॥ पलिअोवमाइं तिरिण उ, उक्कोसेण वियाहिया। पुवकोडिपुहत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥२००। कायठिई मणुया, अन्तरं तेसिमं भवे । अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥२०१॥ एएसिं वरणओ चेव, गन्धो रसफासो । संठाणादेसमो वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥२०२।। देवा चउब्विहा वुत्ता, ते मे कित्तयो सुण । भोमिजवाणमन्तरजोइसवेमाणिया तहा ॥२०३॥ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला दसहा उ भवणवासी, अट्टहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ।।२०४॥ असुरा नागसुवण्णा, विज्जू अग्गी वियाहिया । दीवोदहिदिसा वाया, थणिया भवणवारिणे ॥२०५।। पिसायभूया जक्खा य, रवखसा किन्नरा किंपुरिसा । महोरगा य गन्धब्बा, अट्टविहा वाणमन्तरा ॥२०६॥ चन्दा सूरा य नक्वत्ता, गहा तारगणा तहा । 'ठिया विचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया ॥२०७॥ वेमाणिया उ जे देवा,दुविहा ते वियाहिया। कप्पोवगा य बोधवा, कपपईया तहेव य ॥२०॥ कप्पोवगा बारसहा, सोहम्मीसा गा तहा। सकुमारमाहिन्द। बम्भलोगा य लन्तगा ॥२०६॥ महासुक्का सहस्सारा, पाणया पाणया तहा, प्रारणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ॥२१०॥ कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया। गेविजगाणुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं ॥२११॥ १. दिसा । Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] | १९७ हेट्ठिमाहेट्टिपा चेव, हेट्ठिपामज्झिमा तहा । हेट्ठिमाउवरिमा चेव, मज्झिमाहेट्ठिपा तहा ॥२१२॥ मज्झिमामज्झिमा चेव, मज्झिमाउवरिमा तहा। उवरिमाहेटिमा चेव, उवरिमामज्झिमा तहा ॥२१३॥ उवरिमाउवरिमा चेव, इय गेविजगा सुरा । विजया वेजयन्ता य, जयन्ता अपराजिया ॥२१४॥ सव्वत्थसिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इय वेमाणिया एपडणेगहा एवमायो ॥२१॥ लोगस्स एगदेसम्मि, ते सधेवि वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउम्विहं ॥२१६॥ संतई पप्प ऽणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडुच्च साइया, सपजवसियावि य ॥२१७॥ साहियं सागरं एक उक्कोण ठिई भवे । भोमेजाणं जहन्त्रेणं, दसवाससहस्सिया ॥२१८।। (पलिअोवम दो ऊणा उक्कोसेण वियाहिया। असुरिन्दवज्जेताण जहन्ना दससहस्सगा॥) पलिओवममेगं तु, उक्कोसेण ठिई भधे । वन्तराणं जहननेणं, दसवाससहस्सिया ॥२१॥ पलिओवममेगं तु, वासलक्खेण साहियं । पलि ग्रोवमट्ठभागो, जोइसेसु जहन्निया ॥२२०॥ दो चेव सागराइं, उक्कोसेण वियाहिया। सोहम्मम्मि जहन्ने, एगं च पलिग्रोवमं ॥२२१॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया। ईसाणम्मि जहन्नेणं, साहियं पलिअोवमं ॥२२२॥ सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेण ठिई भवे । सणंकुमारे जहन्नेणं, दुन्नि उ सागरोवमा ॥२२३।। साहिया सागरा सत्त, उक्कोसेणं ठिई भवे । माहिन्दम्मि जहन्ोणं, साहिया दुन्नि सागरा ॥२२४॥ दस चेव सागगई, उक्कोसेण ठिई भवे । बम्भलोए जहणं सत्त ऊ सागरोवमा ॥२२५।। चउदलसागराइं, उक्कोसे ण ठई भवे । लन्तगम्मि जहन्नेणं, दस उ सागरोवमा ॥२२६॥ सत्तरससागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहनेणं, चोद्दस सागरोवमा ॥२७॥ अट्ठारस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहणं, सत्तरस सागरोवमा ॥२२८।। सागरा अउणवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । प्राणयम्मि जहन्मेणं, अट्ठ रस सागरोवमा ।।२२९॥ वीसं तु सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्पि जहणं, सागरा अउणवीसई ॥२३०॥ सागरा इक्कवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । भारणम्मि जहन्मेणं, वीसई सागरोवमा ॥२३॥ बावीसं सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । अच्चुयम्मि जहन्नेण, सागरा इकवीसई ॥२३२।। तेवीससागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । पढ मम्मि जहन्नेण, बावीसं सागरोवा ॥२३३॥ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१६६ चउघीसं सागार इं, उक्कोसेण ठिई भवे । बिइयनि जहन्नेण, तेवीसं सागरोवमा ॥२३४॥ पणवीस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । तायमि जहन्नेण, चउवीस सागरोवमा ॥२३॥ छवीसं सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । चउत्थम्मि जहन्नेण, सागरा पणुवीसई ॥२३६।। सागरा सतवीस तु, उक्कोसेण ठिई भवे । पश्चमम्पि जहनो, सागरा उ छवीसई ॥२३७।। सागरा अट्टवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । छट्टम्मि जहन्यां , सागरा सत्तबीसई ॥२३८।। सागर। अउणती सं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । सत्तमम्मि जहणं, सागरा अट्टवीसई ॥२३॥ तीसं तु सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । अट्टमम्मि जहन्मेणं, सागरा अउणतीसई ॥२४०॥ सागरा इकतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । नवमम्मि जहननेणं, तीसई सागरोवमा ॥२४१।। तेत्तीसा सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । चउसुंपि विजयाईसु, जहणेकतीसई ॥२४२॥ अजहन्नमणुकीस, तेत्तीसं सागरोवमा । महाविमाणे सबढे, ठिई एसा वियाहिया ॥२४३॥ जा चेव उ आउठिई, देवाणं तु वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहन्नमुक्कोसिया भवे ॥२४४॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं। विजढम्मि सए काए, देवाणं हुज अन्तरं ॥२४५॥ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २००] [जीनन-श्रेयस्कर-पाठमाला एएसिं वरणओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसो वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥२४६।। ( अणन्तकालमुक्कोसं वासपुहुत्तं जहन्नगं । आणयाई कप्पाण गेविजाणं तु अन्तरं ॥ संखिजसागरुक्कोसं वासपुहुत्तं जहन्नगं । अणुत्तराण य देवाणं अन्तरं तु वियाहिया ) संसारत्था य सिद्धा य, इय जीवा विवाहिया । रूविणे। चेवऽरूवी य, अजीवा दुविह वि य ॥२४७॥ इय जीवमजीवे य, सोच्चा सद्दहिऊण य । सवनयाणमणुमए, रमेज संजमे मुणी ॥२४॥ तओ बहूणि वासाणि, सामण्णमणुपालिय । इमेण कमजोगेण, अप्पाणं संलिहे मुगी ॥२४९॥ बारसेव उ वासाइं, संलेहुकोसिया भवे । संवरच्छरमज्झिमिया, छम्मासा य जहन्निया ॥२५०॥ पढमे वासचउक्कम्मि, विगई-निज्जूहणं करे। बिईए वासचउकम्मि, विवित्तं तु तवं चरे ॥२५१॥ एगन्तरमायाम, कटु संवच्छरे दुवे। तओ संवच्छरद्धं तु, नाइविगटुं तवं चरे ॥२५२॥ तओ संवच्छरद्धं तु, विगिटुं तु तवं चरे। परिमियं चेव आयाम, तम्ति संवच्छरे करे ॥२५३॥ कोडी सहियमायामं, कटु संवच्छरे मुणी। मासद्धमासिएणं तु, पाहारेण तवं चरे ॥२५४॥ कन्दप्पमाभिओगं च, किब्बिसियं मोहमासुरत्तं च ।, Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउत्तरराध्ययन सूत्र ] एयाउ दुग्गई, [ २०१ मरणम्मि विराहिया होन्ति || २५५ || मिच्छादंसणरत्ता, सनिया उ हिंसगा । इय जे मरन्ति जीवा, तेमिं पुण दुल्लहा बोही || २५६ || सम्म हंसणरत्ता, अनियाला सुक्कले समोगाढा | इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं सुलहा भवे बोही || २५७|| मिच्छादंसणरत्ता, लनिया कहलेसमोगाढा । जीवा, इय जे मरन्ति तेसिं पुण दुल्लहा बोही || २५८ || जिवयणे अणुरत्ता, जिवयां जे करेन्ति भावेण । श्रमला असं कि लिट्ठा, ते हन्ति परित्तसंसारी ॥ २५९ ॥ बालमरणाणि बहुसो, काममरणाणि चैव य बहूणि । मरिहन्ति वराया, जिरावयणं जे न ज | गन्ति || २६० || बहु आगमविन्नाणा, रूमा हिउपायगा य गुणगाही । एएणं कारणं, अरिहा आलोयणं सोउं || २६१ || कन्दष्पकुक्कुयाई, तह सीलसहावहसण विगहाइ । विम्हावेन्तोचि परं, कन्दष्पं भावणं कुणइ || २६२ || मन्ताजोगं काउं, भूइकम्मं च जे पजन्ति । साय-रस- इडिट हेउ, अभियोगं भावणं कुण्इ || २६३ || नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघसाहूणं । माई अवरवाई, किब्बिसियं भावणं कुणइ || २६४ || अणुबद्धरोसपसरो, तह य निमित्तम्मि होइ पडिसेवी । एहि कारणेहिं, सुरियं भावणं कुणइ ॥२६५॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला सत्थगहणं विसभक्खणं च, जलां च जलपवेसो य । अणायारभण्डसेवी, जम्मणमरणाणि बंधन्ति ॥२६६॥ इय पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धियसंवुडे' ।।२६७॥ त्ति बेमि ॥ जीवाजीवविभत्ती समत्ता ॥३६॥ ॥ उत्तरज्झयणसुत्तं समत्तं ।। १-सम्मए। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ सिरी नंदीसुतं ॥ जयइ जगजीव जोगीवियाण, जगगुरू जगाणंदो । जगणाहो जगबंधू, जय जगनियामहो भयवं ॥ १ ॥ जय सुरां पभवो, तित्थयां अपच्छिमो जयइ । जयह गुरू लोगाणं, जयइ महत्या महावीरो || २ || भद्दं सव्वजगुजोयगस्ल, भदं जिणस्स वीरस्स । भदं सुरासुरनमंसियस्स, भदं धुयर यस्स ||३|| गुणभवणगहण सुयरयण - भरिय दंसण विसुद्धरत्थागा । संघनगर ! भदं ते, अखंडचारित्तपागाव ||४|| संजम-तव- तुंबारयस्स, नमो सम्मत्तपा रियल्लुस्स । अडिच कस जओ, होउ सया संघ कस्स ||५|| भई सील डागूसियस्स, तवनियमतुरयजुत्तस्स । संघरहस्स भगवओो, सज्झायसुनन्दिघोसरस ||६|| कम्मरयज लोह विणिग्गयस्स, सुयरयणदीहनालस्स । पंच महाव्त्रयथिरकन्नियस्स, गुणकेसरालस्स ||७|| सावगजणमहुअर' - परिवुडस्स, जिएसूरतेयबुद्धस्स । संघपउमस्स भर्द्द, समणगसहस्सपत्तरस ॥८॥ १- महुचरि Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला तवसंजमम्यलंछण, अकिरियराहुमुहदुद्धरिस निञ्च । जय संघचंद निम्मलसम्पत्तविसुद्धजोरहागा ।।९॥ परतिस्थिवगहपहनासगस्स, तवतेयदित्तलेसस्स । नाणुजोयस्स जए, भदं दमसंघसूरस्स ॥१०॥ भदं धिइवेलापरिगयस्स, सज्झायजोगमगरस्स । अक्खोहस्स भगवओ, संघस मुद्दस्स रुदस्स ॥११॥ सम्मदंसणवरवहरद ढरूढगाढावगाढपेढस्स । धम्मवररयणमंडियचामीयरमेहलागस्स ॥१२।। नियमूसियकणयसिलायलुज्जलजलंतचित्तकूडस्स । नंदणवणमणहरसुरभिसील गंधुद्धमायस्स ।।१३।। जीवदयासुंदरकंदरुद्दरियमुणिवरम इंदइन्नस्स । हे उसयधाउपगलंतरयणदित्तोसहिगुहस्स ॥१४॥ संवरवरजलपगलिय उज्झर पविरायमाणहारस्स । सावगजणप उररवंतमोरनञ्चंतकुहरस्स ॥१५॥ विणयनयपवरमुणिवरफुरंत विज्जुज्जलंतसिहरस्स । विविहगुणकप्परुक्खगफलभरकुसुमाउलवणस्स ।।१६।। नाणवररयणदिप्पंतकंतवेरुलियविमलचूलस्स । वंदामि विणयपणो, संघमहामंदरगिरिस्स ॥१७॥ *गुणरयणुज्जलकडयं सीलसुगंधितवमंडिउद्देसं । सुयवारसंगसिहर संघमहामंदरं वंदे ।।१८।। *नगररहचकपउमे चंदे सूरे समुद्द मेरुम्मि । जो उवमिजइ सययं, तं संघगुणायरं वंदे ॥१९।। [वंदे] उसभं अजिय संभवमभिनंदणसुमइसुप्पभसुपासं। ससिपुप्फदंतसीयलरिजंसं वासुपुजं च ॥२०॥ टीकायां तु न । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२०५ विमल पतं य धम्म सन्ति कुंथु अरं च मल्लिं च । मुनिसुव्वयन मिनेमि पासं तह वद्धमाशं च ॥२१।। पढ मित्थ इंदभूई वीए पुण होइ अग्गिभूइत्ति । तइए य वाउभूई, तओ वियत्ते सुहम्मे य ।।२२।। मंडिअ-मोरियपुत्ते अकंपिए चेव अयलभाया य । मेअजे य पहासे गण हरा हुँति वीरस्स :२३॥ निव्वुइपहसासणयं, जयइ सया सव्वभावदेसणयं । कुसमयमयनासणयं जिणिंदवरवीरसासराय ॥२४॥ सुहम्मं अग्गिवेसावं, जंबुनामं च कासवं । पभवं कच्च यां वन्दे, वच्छ सिजंभवं तहा ॥२५॥ जसभदं तुंगियं वन्दे संभूयं चेव माढरं । भद्दवा हुं च पाइन्नं, थूलभदं च गोयम ।।२६।। एलावच्चसगोतं, वन्दामि महागिरिं सुहथि च । तत्तो कोसियगोतं, बहुलस्स लरिव्वयं वन्दे ॥२७॥ हारियगुत्तं साइं च, वन्दिमो हारियं च सामजं । वन्दे कोसियगोत्तं, संडिल्लं अज्जजीयधरं ॥२८॥ तिसमुद्दखायकित्ति, दीवसमुद्देसु गहियपेयाले । वन्दे अज्जसमुदं अक्खुभियस मुद्दगंभीरं ।।२।। भणगं करगं झरगं, पभावगं णाणदंसणगुणा । वन्दामि अज मंगु, सुयसागरपारगं धीरं ॥३०॥ *वन्दामि अज्जधम्म, तत्तो वन्दे र भद्दगुत्तं च । तत्तो य प्रज्जवइरं तवनियमगणेहिं वइरसमं ॥३१॥ *वन्दामि अज्जरक्खि यखमणे रक्खिय चरित्तसव्वस्से । रयणकरडंगभूओ, अणु रोगो रक्खिो जेहिं ॥३२॥ *एतच्चिह्नितास्तु टोकायां न वत्तन्ते । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला ||३३|| नागमि दंसणम्मिय, तवविणए णिञ्चकालमुज्जुत्तं । अज्जं नं दिलखमणं, सिरसा वन्दे प्रसन्नम वड्डर वायगवंसेा, जसवंसेा अज्जनागहत्थीगं । वागरणकरण भंगियकम्मप्पयडी पह ( गाणं ||३४|| जच्चजण धाउसमध्हाण मुद्दिय कुवलय निहारां । वड्डर वायगवंसो रेवइनक्खत्तनामागं ||३५|| लपुरा क्खिते कालिय सुयश्राणुओगिए धीरे । बंभद्दीवगसीहे वायगपयमुत्तमं पत्ते ||३६|| जेसिं ह मो अश्रोगो पर अजावि भर हम्मि | बहुनयर निग्गय जसे, ते वंदे खंडिलायरिए ||३७|| तत्तो हिमवंतमहंत विक्कमे धिइपरक्कममांते । सज्झायमांतधरे, हिमवंते वंदिमो सिरसा ||३८|| कालियसुयोगस्स धारप धारए य पुव्वाणं । हिमवतखमासमणे, वंदे गागज्जुणायरिये || ३९ ॥ मिमद्दव संपन्ने, अणुवि' वायगत्तणं पत्ते । ग्रह सुय समायारे नागज्जुणवायए वंदे ||४०|| * गोविंदाणं पि नमो, श्रोग विउलधारिनिंदणं । णिच्चं खंतिदयाणं परूवणे दुल्लभं दागं ॥ ४१ ॥ *तत्तो य भूयदिनं निच्चं तव संजमे अनिव्विराणां । पंडियजण सामराणं वंदामि संजमविहिराणुं ॥ ४२ ॥ वरकरणगत वियचंपग विमउलवर कमलगब्भसरिवन्ने । भवियजण हिययदइए दयागुणविसारए धीरे ॥ ४३ ॥ अड्ढमरप्पहाणे, बहुविहसज्झायसुमुणिय पहाणे । अणुगियवrवसभे नाइलकुलवंसनंदिकरे || ४४ || १. अणुपुत्री | Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र ] [२०७ . 'जगभूयहियपगब्भे वंदेऽहं भूयदिन्नमायरिए । भवभयवुच्छेयकरे सीसे नागज्जुणरिसीणं ।।४५।। सुमुणियनिच्चानिञ्चं सुमुणिय सुत्तत्थधारयं वन्दे । सब्भावुब्भावणया तत्थं लोहिचणामारणं ॥४६|| अस्थमहत्थक्खाणिं सुसमणवक्खाणकहण निव्वाणि । पहए महुरवाणिं पयो गणमामि दूसगणिं ॥४७।। तवनियमसञ्चसंजमविणयजवखंतिमद्दवरयाणं । सील गुणगद्दियावं अणुप्रोगजुगप्पहाणारा ॥४८॥ सुकुमालकोमलतले तेसिं पणमामि लक्खणपसत्थे । पाए पावयणी पडिच्छयसएहि पणिवइए ॥४९॥ जे अन्न भगवंते कालियसुयप्राणुअोगिए धीरे। ते पणमिऊण सिरसा नाणस्स परूवणं वोच्छं ।।५०।। इति । सेल-घण', कुडग', चालणि, परिपूणग', हंस', महिस', मेसे य । मसग', जलूग, बिराली, जाहग", गो", भेरी, आभीरी", ॥१॥ सा समासो तिविहा पत्ता तंजहा-जाणिया, अजाणिमा, दुब्बियड्डा । जाणिया जहा-माहा-खीरमिव जहा हंसा जे घुट्टन्ति इह गुरुगुणसमिद्धा । दोसे य विवज्जंति तं जाणसु जाणियं परिसं ॥२।। जाणिया जहा-जा होइ पगइमहुरा मियछावयसीहकुक्कुडयभूत्रा। रयण मिव असंठविया अजाणिया सा भवे परिसा ॥३॥ १. भूयहियअप्पगब्भे । २. वंदेऽहं लेहिच्च सम्भावुब्भावणा णिचं । Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला दुवियड्डा जहा-नय कथइ निम्माअो न य पुच्छइ परिभवस्ल दोसेगां । वस्थिव्व वायपुराणो फुट्टइ गामिल्लयवियड्ढो'४ (सूत्र) नाणां पंचविहं पराणत्तं, तंजहा--आभिणि बोहियनाणं, सुयनाणं, ओहिनाणं, मणपजवनाणं, केवलनाणं ।।सू० ।। तं समासो दुविहं परणतं, तंजहा-पञ्चक्खं च परोक्खं च ॥सू० २॥ __ से किं तं पञ्चक्खं ? पञ्चक्खं दुविहं पगणतं, तंजहाइंदियपञ्चक्खं, नोइंदियपच्चक्खं च ।।सू० ३॥ से किं तं इंदियपञ्चक्खं ? इन्दियपच्चक्खं पंचविहं पराणत्तं तंजहा-सोइन्दियपञ्चक्खं, चक्खिदियपञ्चक्खं, घाणिदियपञ्चक्खं, जिभिदियपच्चक्खं, फासिंदियपच्चक्खं,से तं इंदियपञ्चक्खं । सू० ४॥ से किं तं नोइन्दियपच्चक्खं ? नोइन्दियपच्चक्खं तिविहं पएणतं तंजहा-ओहिनाणपञ्चक्खं, मणपजवनाणपञ्चक्खं, केवलनाणपञ्चक्खं ॥सू० ५॥ से किं तं ओहिनाणपञ्चक्खं ? अोहिनाण पञ्चक्खं दुविहं पराणत्तं, तंजहा-भवपञ्चइयं च खाओवसमियं च ॥सू० ६।। से किं तं भवपच्चइयं ? भवपच्चइयं दुराहं, तंजहा-देवाण य नेरइयाण य ॥सू० ७॥ से किं तं खओवस मियं ? खोवसमियं दुण्हं, तंजहामणूसाण य पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य । को हेऊ खओव १. दुध्वियड्दो । Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीनन्दीसूत्र [२०६ -- - स मियं ? खोपसमियं तयावरणिजाणं कम्पारणं उदिराणाणं खए, अणु दिगणाणं उसमे ओहिना समुप्पजइ सू०८।। 'अहवा गुणपडिवनस्स अणगारम्ल ओहिना समुप्पजाइ, तं समासओ छविहं पराणत्तं, तँजहा-पाणुगामिय, अणाणुगामियं, वड्ढमाणय, हीयमाणय, पडिवाइय, अप्पडिवाइयं ।। सू०६॥ ... से कि त प्राणुगामियं ओहिनाणं ? आणुगामियं प्रोहिना दुविहं परणतं, तंजहा-अंतगयं च मझगयं च । से किं तं अंतगयं ? अंतगयं तिविहं पराणत्तं तंजहा-पुरओ अंतगयं, मग्गओ अंतगयं, पासो अंतगयं । से किं तं पुरओ अंतगयं ? पुरो अंतगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उकं वा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोइं वा पुरो काउं पणुल्ल-- माणे २ गच्छेज्जा, से त पुरओ अंतगयं । से किं तं मग्गो अंतगय? मग्गो अंतगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोई वा मग्गो काउं अणुकड्ढेमाणे २ गच्छिज्जा, से तं मग्गो अंतगयं । से किं तं पासओ अंतगयं ? पासओ अंतगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उकं वा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोइं वा पासो काउं परिक ड्ढेमाणे २ गच्छिज्जा, से तं पासओ अंतगयं, से तं अंतगयं । से किं तं मझगयं ? मझगयं से जहानामए केइ पुरि से उकं वा चडुलिय वा अलायं वा मणिं वा पईचं वा जोई वा मत्थए काउं समुधहमाणे २ गच्छिज्जा से त मझगयं । अंतगयस्स मझगयस्स य को पइविसेसो ? पुरो अंतगएशां अोहिनाणेशं पुरो चेव संखिजाणि वा असंखेजाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ, मग्गओ अंतगएणं Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला ओहिनाणेणं मग्गओ चेव संखिजःणि वा असंखिजाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । पासओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पासपो चेव संखिजाणि वा असंखिजाणि वा जोयणाई जाणा पासइ । मझगएणं प्रोहिनाणेगां सव्यत्रो समंता संखिजाणि वा असंखिजाणि वा जोयणाइ जाणइ पासइ । से तं प्राणुगामियं प्रोहिनाणं । सू० १०।। से किं तं अणाणुगामिय ओहिनाणं ? अणाणुगामियं अोहिना से जहानामए केइ पुरि से एगं महंतं जोइट्ठावं काउं तस्सेव जोइट्ठाणस्त परिपेरंतेहिं परिपेरंतेहिं परिघोलेमाणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्ठा पासइ, अन्नत्थगर न पासइ, एवा. मेवं अणाणुगामियं ओहिना जत्येव समुप्पजइ तत्थेव संखेजाणि वा असंखेजाणि वा संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा जोय. णाई जाणइ पासइ, अन्नत्थगए ण पासइ, से तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ॥सू. ११॥ से किं तं वड्ढमाणयं प्रोहिनाणं ? वढमाणयं ओहिनाणं पसत्येसु अज्झवसायट्ठाणे वट्टमाणस्ल वढ माणचरित्तस्स विसुज्झमाणस्स विसुज्झमाणचरित्तस्स सव्वो समंता प्रोही वड्ढइ गाहजावइया तिसमयाहारगस्स सुहमस्स पणगजीवस्स । ओगाहणा जहन्ना ओहीखित्तं जहनं तु ॥१॥ सवबहु अगणिजीवा निरंता जत्तियं भरिज सु । खित्त सव्वदिसागं परमोहीखेत निद्दिट्टो ॥२॥ अंगुल मावलियाणं भागमसंखिज्ज दोसु संखिज्जा । अंगुलमावलिअंतो प्रावलिया अंगुलपुहुतं ।।३।। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र ] [ २११ हत्यम्मि मुहुत्तंते, दिवसन्तो गाउयम्मि बोद्धव्वो । जोयण दिवसपुहुत्तं, पक्खंतो पनवीसाओ ||४|| भरम्मिश्रद्धासो, जम्बुद्दीवम्मि साहिओ मासो । वासं च मयले ए, वासपुहुत्तं च रुयगस्मि ॥ ५ ॥ संखिज्जम्मि उ काले, दीवसमुद्दावि हुंति संखिजा । कालम्मि असंखिजे दीवसमुद्दा उ भइयव्वा || ६ || काले च उराहवुड्ढी, कालो भइयव्वु खित्तबुड्ढीए । बुड्ढी दव्वं पज्जव, भइयव्वा खित्तकाला उ ॥ ७ ॥ सुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खित्तं । अंगुल से टी मित्त, श्रसपिणिओ असंखिजा ॥ ८ ॥ से सं वड्ढमाण्यं ओहिनाणं ॥ सू १२ ।। से किं तं हीयमाण्यं ओहिनाणं ? हीयमाणं ओहिना अप्पसत्थेहिं अज्भवसाय द्वारोहिं वट्टमाणम्स वट्टमाणचरित्तरस संकिलिस्समाणस्स संकिलि-स्ममाणचरित्तस्त सव्वम्रो समन्ता ओही परिहायइ से तं.यमाणं ओहिनारणं ॥ १३ ॥ से किं तं पडिवाइओहिनाएं ? पडिवाइओहिना जहणणं अंगुलस्स असंखिजयभागं वा संविजयभागं वा वालग्गं वा वालग्गपुहुत्तं वा लिक्खं वा लिक्खं पुहुत्तं वा, जूयं वा जूयपुहुत्तं वा, जवं वा जवपुहुत्तं वा, अंगुल वा अंगुलपुहुत्तं वा, पायं वा पाय पुहुत्तं वा, विहत्थिं वा विहत्थिपुहुत्तं वा स्यणिं वा स्यणिपुहुत्तं वा, कुच्छि वा कुच्छि पुडुवा, धणुं वा धरणुपुहुत्तं चा, गाउअं वा गाउयपुहुत्तं वा " . Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला जोयणं वा जोयणपुहुत्तं वा, जोयणसय वा जोयर सय पुष्टुत्तं वा, जोयासहस्सं वा जोयणसहस्सपुहुत्तं वा, जोयणलक् वा जोयालक्खपुहुत्तं वा जोयाकोडिं वा जोयणकोडिपुहुत्तं वा जोयणकोडाकोडिं वा जोयणकोडाकोडिपुहुत्तं, वा जोयासंखिजं वा जोयणासंखिजपुहुत्तं वा, जोया अखेज्जं वा जोय असंखेज्जपुहुत्त वा उक्कोमेणं लोगं वा पासित्ताणं पडिवइजा। से तं पडिवाइअोहिनाणं ॥ १४ ।। । से किं तं अपडिवाइ-ओहिनाणं ? अपडिवाइ-श्रोहिनाणं जेां अलोगस्ल एगमवि आगा. सपएसं जाणइ पासइ तेरा। परं अपडिवाइ प्रोहिनाणं । से तं अपडिवाइ भोहिनाणं ।।१५।। तं समासओ चउविहं पराणतं, तंजहा-दवओ, खित्तओ, कालो, भावो । तत्थ दबओ योहिनाणी जहाँ ने अणंताई रूविदव्वाई जाणइ पासइ, उक्कोसेणं सम्वाइं रूविदव्वाई जाइ पासइ। खित्तभोग ओहिनाणी जहन्नणं अंगुलस्स असंखिज्जयभाग जाणइ पासइ, उकोसेणं आसंखिज्जाई अलोगे लोगप्पमाण-मित्ताई खंडाइं जाणइ पासइ ! कालोणं अोहिनाणी जहण प्रावलियाए असंखिज्जयभाग जाणइ पासइ, उकोसेणं असंखिज्जाओ उस्सपिणीग्रो अवसप्पिणीयो अईय. मणागयं च कालं जाणइ पासइ । भावओ णं ओहिनाणी जहन्त्रेणं अते भावे जाणइ पासइ, उक्कोसेण वि अगते भावे जाणइ गलइ । सम्वभावाणमणंतभागं जाणइ पासइ ॥ १६ ॥ श्रोही भवपच्चइओ गुणपञ्चइओ य वरिणश्रो दुविहो। तस्म य बहू विगप्पा दव्वे खित्ते य काले य ॥६॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२१३ नेरइयदेवतित्थंकग य अोहिस्सऽबाहिरा हुंति । पासंति सम्वो खलु सेसा देसेण पासंति ॥ १० ॥ सं तं प्रोहिनाणपञ्चक्खं । से किं २ मणपजवनाणे ? मणपजवणाणे भन्ते ! किं मगुस्साणं उपजह अमयुस्सा ? गोयमा ! मणुस्लाणं, नो अमणुस्साणं ? जाह मणुस्स णं किं समुच्छिममणुस्साणं, गम्भवक्कंतियमणुस्लाणं? गोयमा ! नोसंमुच्छिममणुस्साणं उपजइ, गब्भवतियमगुस्सारणं । जह गम्भवतियमणुरसाणं किं कम्पभूमियगम्भवकंतियमणुस्ला, अकम्पभूमियगब्भवतियमणुस्साणं, अन्तरदीवगगब्भवतिय मणुस्साणं? ___ गोयमा ! कम्मभूमियगब्भवतियमणुस्सा, नो अकम्म - भूमियगब्भवतियमणुस्साणं, नो अन्तरदीवगगम्भवतियमणुस्साणं। . . जइ कमाभूमियगम्भवतियमणुस्साणं, किं संखिजवासाउयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्साणं असंखिजवासा. उयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्साणं ? गोयमा ! संखिजवासाउयकम्मभूमियगम्भवक्कंतियमणुस्साणं, नो असंखेजवासा उयकम्प्रभूमियगब्भवतियमणुस्सारणं । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला जइ संखेज्जवासाउयकम्त्रभूमियगब्भवतियमणुस्साणं किं पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्तभूमियगब्भवतियमणुस्लाणं, अपजत्तगसंखेजवालाउयकम्मभूमियगम्भवकंतिय-- मणुस्सारणं ? गोयमा ! पज्जतगसंखेज्जवासाउय कम्पभूमियगब्भवकतियमणुस्साणं, नो अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्साणं । जइ पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवतिय मणुस्साण, किं सम्पद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्म भूमियगब्भवतियमणुस्सारणं, मिच्छदिटिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूभियगम्भवतियमणुस्साणं, सम्म मिच्छद्दिहिपजत्तगसंखेजवामाउयकम्मभूमियगम्भवक्रतियमणुस्साणं? गोयमा ! सम्मद्दिट्ठिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्साणं, नो मिच्छदिटिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगम्भवतियमणुस्साणं, नो सम्ममिच्छदिद्धि पजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्साणं जइ सम्मद्दिट्ठिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगब्भवकंतियमणुस्साणं किं संजयसम्मदिद्विपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगम्भवतियमणुस्सा, असंजय सम्मद्दिष्टिपजत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्साणं, संजयासंजयसम्मद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्लाणं ? गोयमा! संजयसम्महिट्टिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवतियमणुस्साणं, नो असंजयसम्मद्दिट्टिपज्जत्त - Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] | २१५ संखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवक्कंतियमणुस्साणं, नो संजयासंजयसम्मद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवतियमणुस्लाणं । जइ संजयसम्मदिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्सा, किं पमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगम्भवकंतियमणुस्साणां, अप्पमत्तसंजयसम्पहिट्ठिपज्जत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगम्भवकंतियमणुस्साणं ? गोयमा ! अप्पमत्तसंजयसम्मबिटिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगब्भवतियमणुस्सायं, नो पमत्तसंजयसम्महिट्ठिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगन्भवतियमणु-- स्साणं। जइ अप्पमत्तसंजयसम्म हिट्ठिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमियगब्भवकं तियमणुस्सारणं, किं इड्ढीपत्तअप्पमत्तसंजयसम्मद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवतियमगुस्साणं, अणिड्डीपत्तअप्पमत्तसंजयसम्मद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगब्भवक्कंतियमणुस्साणं? गोयमा!इड्ढीपत्तअप्पमत्तसंजयसम्म हिट्टि पज्जत्तगसंखेज्जवास उयकम्पभूमियगब्भवतियमणुस्सा, नो अणिइढीपत्तअप्पमत्तसंजयसम्पदिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भव तेयमणुस्सायमणपज्ज बनाणं समुप्पज्जइ ॥ सू० १७॥ . तं च दुविहं उप्पजइ तंजहा-उज्जुमई य विउलमई य । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] [ जीवन - श्रेयस्कर- पाठमाला तं समासओ चहिं पन्नत्तं, तंजहा - दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ व उज्जुमई अशांते अांत परसिप खंधे जागइ पासइ, ते चैव विउलमई ग्रन्भहियतराए विउलतराए विसुद्ध तराए वितिमिरतराए जागर पासइ । वित्तओ गां उज्जुमई जहमेशां अंगुलस्स असंखेजयभागं उक्कणं हे जाव इमीसे रयणष्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डग पयरे, उड्ढं जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जाव अंतोगुस्स वित्ते अड्डाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमिसु, तीला श्रकम्मभूमिसु छपन्नाप अन्तरदीव गेसु सन्निपंचेंद्रियाणं पज्जत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ | तं चैव विलमई अड्डाइज्जेहिमंगुलेहिं अमहियतरं विडलतरं विसुद्धतरं वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ पासइ । , कालओ गं उज्जुमई जहन्नेां पलिश्रवमस्स असंखिज्जयभागं उक्को से वि पलिश्रवमस्स असंखिज्जयभागं अतीय मणागयं वा कालं जाणइ पासइ । तं चैव विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्ध तरागं वितिमिरतरागं जागइ पासइ । भावओ गं उज्जुमई ते भावे जाणइ पासइ, सवभावा अशांतभागं जाणइ पासइ । तं चैव विउलमई अब्भहियतरागं वितरागं विसुद्ध तरागं वितिभिरतरागं जाणइ पासइ । मणपजवना पुरा जगमगपरिचितियत्थपागडणं । माणुसखित्तनिबद्धं गुणपच्चइयं चरित्तवओ ॥ ११ ॥ से तं मणपजवनाएं || सू० १८ || Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२१७ से किं तं केवलना ? केवलनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहाभवत्थकेवलना च सिद्धकेवलनाणं च । से किं तं भवत्थकेवल नाणं? भवत्थ केवलनाणं दुविहं पएणतं. तंजहासजोगिभवत्थकेवल नाणं च अजोगिभवत्यकेवलनाणं च । से किं तं सजोगिभवत्थकेवलनाणं ? सजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पराणत्तं, तंजहा~पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च अपढमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च, अहवा चरमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च अचरमसमयसजोगिभवत्थ केवलनाणं च । से तं सजोगिभवत्थकेवलनाणं । से किं तं अजोगिभवत्थकेवलनाणं ? अजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहापढमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च अपढमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च, अहवा चरमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च अचरमसमय अजोगिभवत्थकेवलनाणं च । से तं अजोगिभवत्थकेवलनाणं, से तं भवत्थकेवलनाणं । सू० १६ ॥ से किं तं सिद्धकेवलनाणं ? सिद्धकेवलनाणं दुविहं पराण, तंजहा-अणंतरसिद्ध केवलनाणं च परंपरसिद्धकेवलनाणं च |सू० ॥२०॥ से किं तं अणंतरसिद्धकेवलनाणं ? अणंतरसिद्धकेवलनाणं पन्नरसविहं परणतं, तंजहा-तित्थसिद्धा १, अतित्थसिद्धा २, तित्थयरसिद्धा ३, अतित्थयरसिद्धा ४, सयबुद्धसिद्धा ५, पत्तेयवुद्धसिद्धा ६, बुद्धबोहियसिद्धा ७, इथिलिंगसिद्धा ८, पुरि-- सलिंगसिद्धा ६, नपुंसगलिंगसिद्धा १०, सलिंगसिद्धा ११, Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ ] अन्नलिंग सिद्धा १२, गिहिलिंगसिद्धा १३, एगसिद्धा १४, अणेगसिद्धा १५, से तं श्रांतर सिद्ध केवलनाणं । सू०२१॥ [ जीवन - श्रयस्करं पाठमाला - से किं तं परंपरसिद्ध केवलनाणं ? परंपरसिद्ध केवलनाां श्ररोगविहं पराणत्तं तं जहा -- पढम समय सिद्धा, दुसमय सिद्धा तिसमय सिद्धा, चउसमयसिद्धा, जाव दससमयसिद्धा, संखिज्जसमय सिद्धा, ग्रसंखिज्जसमयसिद्धा, अशांतसमय सिद्धा, से त्तं परंपरसिद्ध केवलनाणं, से त्तं सिद्ध केवलनाएं | तं समासश्रो चउविहं पराणन्तं, तंजहा- दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ । खित्त गां केवलनाणी सव्वं खित्तं जाणइ पासइ । कालो गं केवलनाणीसव्वं कालं जाणइ पासइ । भावां केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ । श्रह सपरिणामभावविरणत्ति कारणमति । सालयन पडिवाई, एगविहं केवलं नाणं ||१२|| सू० ||२२|| केवल नाणेऽत्थे, नाउं जे तत्थ पराणवराजोगे । ते भासइ तित्थयरो, वइजोगसुयं हवइ सेसं ॥ १३ ॥ से त्तं केवलन से त्तं नोइंदियगच्चक्खं, से त्तं पञ्चवक्खनाश || सू० ॥ २३ ॥ से किं तं परोक्खनाणं ? परोक्खनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहा--आभिणिवोहियनागपरोक्खं च, सुयनाणपरोक्खं च । जत्थ आभिणिवोहियनाशं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनारां तत्थ आभिणिवोहियनाणं, दोऽवि एयाई श्रमराणमरगयाई, तहवि पुरा इत्थ आयरिया नाणत्तं पराण्वयं ति श्रभिनिबुज्झइत्ति आभिणिवोहियनाणं, सुणेइत्ति सुर्यः मइकुवं जेण सुर्य, न मई सुयपुब्विया । सू० ॥ २४ ॥ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२१९ अविसे सिया मई, मइनाणं च मइअन्नाणं च । विसेलिया सम्मदिद्धिस्स मई मइनाणं, मिच्छद्दिटिरस मई मइअन्नाणं । अविसेसियं सुयं सुयनाणं च सुयअन्नाणं च । विसेसियं सुयं सम्मदिहिस्स सुयं सुयनाणं, मिच्छद्दिहिस्स सुयं सुयअन्नाणं ॥ सू० ।। २५ ॥ से किं तं आभिणिबोहियनाणं ? अभिणिबोहियनाणं दुविह पराणत्तं, तंजहा-सुयनिस्सियं च, असुयनिस्सियं च । से किं तं असुयनिस्सियं ? असुयनिरिसयं चउव्विहं घराण, तंजहाउप्पत्तिया १, वेणइया २, कम्मया ३, परिणामिया ४। बुद्धी चउम्विहा कुत्ता, पंचमा नोवल भइ ॥१४।। सू० ॥ २६ ॥ पुवमदिट्टमस्सुयमवेइय-तक्खणविसुद्धगहियथा। अव्वाहयफलजोगा, बुद्धी उप्पत्तिया नाम ।। १५॥ भरह-सिल-मिंढ-कुक्कुड-तिल-वालुय-हत्थी-अगडवणसंडे । पायस-अइया-पत्ते-खाडहिला-पंच पिरोय॥१६॥ भरहसिल-पणिय-रुक्खे--खुड्डग-पड-सरड-कायउच्चारे।गय-घयण-गोल-खंभे-खुड्डग--मग्गि--स्थि-पइ-पुत्ते॥ १७ ॥ महुसित्थ--मुद्दि--अंके--नाणए-भिक्खु-चेडगनिहाणेसिक्खा य अत्थसत्थे-'इच्छा-य महं-सयसहस्से ॥१८॥ भरनित्थरणसमत्था, तिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला । उभओ लोगफलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ॥ १९ ॥ १-इत्थी । Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला निमिले अत्थसत्थे य, लेहे गणिए य कूव-अस्से य । गहभ-लक्खण-गंठी-अगए-रहिए य गणिया य ॥ २८ ॥ सीया साडी दीह, च तणं अवसव्वयं च कुंचस्स । निव्वोदए य गोणे, घोडगपडणं च रुक्खाओ ॥ २१ ॥ उवओगदिट्टसारा, कम्मपसंगपग्घिोलणविसाला । साहुकार फलवई, कम्पसमुत्था हवइ बुद्धी ॥ २२ ॥ हेरण्णिए-करिसए-कोलिय-डोवे य मुत्ति-घय--पवए । तुन्नाए-वडईय--पूयइ -घड-चित्तकारे य ॥ २३ ॥ अणुमाणहेउदिटुंतसाहिया वयविवागपरिणाम।। हियनिस्सेयसफलधई, बुद्धी परिणामिया नाम ॥ २४ ॥ अभए-सिट्ठि-कुमारे-देवी-उदिओदए हवइ राया । साहू य नंदिसेणे-धणदत्ते-सावग-अमच्चे ॥२५॥ खमए-अमच्चपुत्ते-चाणकके चेव थूलभद्दे य । नासिकसुंदरिनंदे-वयरे-परिणामबुद्धीए ॥२६॥ चलणाहणं-श्रामंडे-मणी य सप्पे य खग्गि-थूभिंदे । परिणामियबुद्धीए, एवमाई उदाहरणा ।। २७ ।। से अस्सुय निस्सियं । से किं तं सुयनिस्तिय ? सुयनिस्सियं चउविहं पगणतं, तंजहा-उग्गहे-ईहाअवाओ-धारणा ।। सू० २७ ॥ से किं तं उग्गहे? Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दी सूत्र 1] [ २२१ उग्गहे दुविहे परणत्ते तंजहा - अथुग्गहे य वंजणुग्गहे य ।। सू० ।। २८ ।। से किं तं जग्गसेहे वंज गुग्गहे चउब्विहे पण्णत्ते, तंजहा- सोइंदिय वंज गुग्गहे, घाणिदियवंज गुग्गहे, जिब्भिदिय वंजणुग्गहे, फासिंदियवंजगुग्गहे, से तं वंजणुग्गहे ॥ सू० २६ ॥ से किं तं अत्युग्गहे ? अत्थुग्गहे छविहे पराणत्ते, तंजहा- सोइंदियअथुग्ग हे, खिदिय अत्युग्गहे, घाणिदिय अत्युग्गहे, जिभिदिय प्रत्थुगहे. फासिंदियत्युग्गहे, नोइंदिय अत्युग्गहे || सू० ३० ॥ तस् इमे एगट्टिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्ञा भवति, तंजहा - ओगे राहण्या, उवधारणया, सवण्या, अवलंबण्या, मेहा, से त्तं उग्गहे ॥ सू० ३१ । से किं तं ईहा ? ईहा छव्विह। पण्णत्ता, तंजहा- सोइंदियईहा, चलिदिया, घाणिदियईहा, जिम्मिदियईहा, फासिंदियईहा, नोइंदियईहा। तीसे गं इमे एगट्टिया नाणाघोसानाला वंजणा पंच नामधिजा भवंति, तंजहा- आभोगण्या, मग्गण्या गवेसण्या, चिंता, वीमंसा से तं ईहा ॥ सू० ३२ ॥ 9 से किं तं अवाए ? अवाए छविहे पत्ते, तंजहा- सोइंदिश्रवाप चक्खि दियश्रवाए, घाणिंदियश्रवार जिब्भिदियअवाए, फासिंदिय श्रवाप, नोइंदियअवाए । तस्स गं इमे एगट्टिया न. घोसा नाणवंजणा पंच नामधिज्जा भवन्ति, तंजहाआउट्टण्या, पच्चाउट्टणया, अवार, बुद्धी, विराणे, से तं अवाए ॥ सू० ३३ ॥ " Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला से किं तं धारणा ? धारणा छविहा पराणत्ता, तंजहा-सोइंदियधारणा, चक्खिदियधारणा, घाणि दियधारणा, जिभिदियधारणा, फासिंदियधारणा, नोइंदियधारणा। तीसे इमे एगट्रिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तंजहा धरणा, धारणा, ठवणा, पइट्टा, कोट्टे, से तं धारणा ॥ सू० ॥ ३४ ॥ उग्गहे इक्कसमइए, अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा संखेज्जं वा कालं असंखेज वा कालं ।।सू०॥३५॥ एवं अट्ठावीसाइविहस्स आभिणिवोहियनाणस्स वंजणु ग्गहस्स परूवणं करिस्तामि पडिबोहगदिटुंतेण मल्लगदिटुंतेण य । से किं तं पडिबोहग दिटुंते ? पडिबोहगदिटुंतेणं से जहानामए केइ पुरिले कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहिज्जा, अमुगा अमुगत्ति, तत्स्थ चोयगे पन्नवयं एवं वयासी-किं एगसमयपविट्टा पुग्गला गहणमागच्छंति ? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? जाव दस समयपविट्ठा पुग्गला गहण मागच्छंति ?, संखिजसमयपट्ठिा पुग्गला गहणमागच्छंति ?, असंखिजसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ?, एवं वयंतं चोयगं पण्णवर एवं वयासी-नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहण मागच्छंति,नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति; जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो संखिजसमयपविठ्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति; असंखिजसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति, से तं पडिबोहगदिटुंतेणं। Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " श्रीनन्दी सूत्र ] [ २२३ से किं तं मल्तगदितेां ? ते से जहाना मए केइ पुरिसे आवागसीसाश्रो मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदुं पक्खिविजा से नट्टे, अराणेऽवि पक्खिते सेsवि नट्टे, एवं पक्खिमाणेसु पक्खिप्यमाणेसु होही से उदगबिंदू जे शं तं मल्लगं रावेहिद्दत्ति; होही से उदगबिन्दू जे तंसि मलगंसि ठाहिति; होही से उदगबिन्दू जे गं तं मल्लगं भरिहिति होही से उदगबिंदू जे गं तं मल्लगं पवाहेहिति; एवामेव पक्खिमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं णंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ; ताहे हुंति करेइ, नो चेव णं जाइ के विएस सद्दाइ ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ मुगे एल सद्दाइ; तओ अवायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ तो गं धारणं पविसइ, तो गं धारेइ संखिज्जं वा कालं असंखिज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सद्दं सुणिजा, ते सहोत्ति उग्गहिए, नो चेव गं जागइ के वेस सद्दाइ ? तो ईहं पविसइ, तो जाणइ अमुगे एस सहे, तो गं अवायं प्रविसइ, तओ गं धारेइ संखेजं वा कालं श्रसंखेजं वा कालं । से जहानार केइ पुरिसे श्रव्वत्तं रूवं पासिजा ते रूवत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रूवत्तिः तत्र ईहं पविसइ, तओ जाइ अमुगे एस रूवे, तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तत्र धारणं पविसइ, तम्रो गं धारेइ संखेजं वा कालं, असंखेज्जं वा काले । से जहानामए केइ पुरिसे श्रवत्तं गंधं श्रग्घाइजा तेणं गंधति उग्गहिए, नो चेव गं जागर के वेस गंधेति; तभ ईहं Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . पविसइ तो जाणइ अमुगे एस गंधे; तओ अवायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ; तो धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज वा कालं असंखेज वा काल । से जहानामए वे इ पुरिसे अव्वत्तं रसं आसाइजा तेणं रसोत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रसेत्ति; तओ ईहं पविम्मइ, तो जाणइ अमुगे एस रसे, तो अवायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ, तो धार पविसइ, तओ णं धारेइ संखिजं वा कालं असंखिज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा तेणं फासेत्ति उग्गहिए, नो चेव जाणइ के वेस फासोत्ति; तो ईहं पविसइ, तो जाणइ अमुगेएस फासे, तो अवार्य पविसइ, तो से उवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तो णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । ___ से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासिज्जा तेणं सुमिणेत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस सुमिणोत्ति, तओ ईहं पविसइ, तो जाणइ अमुगे एस सुमिणे; तो अवायं पविसइ, तो ले उवगयं हवइ, तओ धार पविसइ, तो गं धारेइ संखेज का कालं, असंखेज वा काल से तं मल्लगदिटुंतेगां ।। सू० ३६॥ तं समासो च उविहं पराणत्तं, तंजहा-दव्वो , खित्तो, कालओ, भावओ । तत्थ दवप्रो रणं आभिणिबोहियनाणी आएसे सम्वाइं दवाई जाणइ, न पासइ । खेत्तोरणं आभिणिवोहियनाणी आरसेणं सब खेत्तं जाणइ न पासइ । कालो णं आभिणियोहियनाणी आएसेणं सध्वं कालं जाणइ न Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • श्रीनन्दीसूत्र [२२५ पासइ । भावओ णं आभिणिबोहियनाणी पाएसेणं सत्रे भावे जाणइ, न पासइ। उग्गह ईहाऽवाओ, य धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिबोहियनाणस्स मेयवत्थू समासेणं ॥२८॥ अत्थाणं उग्गहणम्मि उग्गहो तह विद्यालणे ईहा । ववसायम्मि प्रयाओ, धरणं पुण धारण बिन्ति ॥ २९ ॥ उग्गह इकं समय, ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु ।। कालमसंखं संखं च धारणा होइ नायब्वा ॥ ३०॥ पुढे सुणेइ सइं, रूवं पुण पास इ अपुढे तु । गंध रसं च फासंच, बद्धपुढे वियागरे ॥ ३१॥ भासासमसेढीओ, सदं जं सुणइ मीसियं सुणइ । वीसेढी पुण सह, सुणेइ नियमा पराघाए ॥ ३२ ॥ ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सन्ना सई मई पन्ना, सव्वं आभिणिबोहियं ।। ३३ ॥ से तं आभिणिवोहियनाणपरोक्खं, से तं मइनाणं ।।सू० ३७॥ से किं तं सुयनाणपरोक्खं ? सुयनाणपरोक्खं चोद्दसविहं पराणत्तं तंजहा-अक्खरसुयं १ अणक्खरसुयं २ सण्णिसुयं ३ असरिणसुयं ४ सम्मसुयं ५. मिच्छसुयं ६ साइयं ७ अणाइयं ८ सपज्जवसियं ९ अपज्जवसियं १० गमियं ११ अगमियं १२ अंगपविटुं १६ अणंगपविट्ठ १४॥ सू०॥३८॥ से किं तं अक्खरसुयं ? १ अत्थाणं उग्गहणं, च उग्गहं तह वियालणं ईहं । ववसायं च प्रवायं धरणं पुण धारणं विति ॥ ॥ इति पाठान्तरगाथा । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अक्खरसुयं तिविहं पगणतं, तंजहा-सनक्खरं, वंजणक्खरं लद्धि अक्खरं । से किं तं सन्नक्खरं ? सन्नक्खरं अक्खरस्स संठाणागिई, से तं सन्नक्खरं । से किं तं वंजणक्खरं ? वंजणक्खरं अक्खरस्स वंजणाभिलावो, से वंजणक्खरं । से किं तं सद्धिअक्खर ? लद्धिअक्खरं अक्खरलद्धियस्स लद्धिअक्खरं समुप्पजइ, तंजहा-सोइंदियलद्धिअक्खरं, चक्खिदियलद्धि अक्खरं, घाणिं. दियलद्धिअक्खरं, रसणिदियलद्धिअक्खरं, फासिंदियलद्धिक्खरं, नोइंदियलद्धिअक्खरं, से सं लद्धिअक्खरं,से तं अक्खरसुयं ॥ से किं तं अणक्खरसुयं ? अणक्खरसुयं अणेगविहं पगणतं, तंजहाऊससिय नीससिय, निच्छूटं खासियं च छीयं च । निस्लिधियमणुसारं, अणक्खरं छेलियाईयं ॥ ३४ ।। से त्तं अणक्खरसुयं ॥सू० ३६ ॥ से किं तं सरिणसुयं ? सण्णिसुयं तिविहं पण्णत्तं, तंजहा-कालिओवएसेणं, हेऊवएसेणं, दिट्ठिवाओवएसेणं । से किं तं कालिओवएसे ? Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र ] | २२७ ... कालिअोवएसेणं जस्स णं अत्थि ईहा, अबोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिन्ता, वीमंसा, से वं सरणीति लभइ । जस्स णं नत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिन्ता, वीमंसा, से णं असरणीति लन्भइ, से सं कालिओवएसेणं । से किं तं हेऊवएसेणं ? हेऊवएसेणं जस्स णं अत्थि अभिसंधारण पुम्विया करणसत्ती से णं सरणीति लब्भइ । जस्स णं नत्थि अभिसंधारणपुब्बिया करणसत्ती से णं असरणीति लभद, से तं हेऊवएसेणं। से किं तं दिट्ठिवाओवएखणं ? दिहिवाअोवएसेणं सपिणसुयस्स खओवसमेण असरणी लब्भइ, असण्णिसुयस्स खोवसमेणं असरणी लब्भइ, से तं दिट्टिवाअोवएसेण, से तं सण्णिसुयं, से तं असण्णिसुयं ॥ सू० ॥ ४०॥ से किं तं सम्मसुयं ? सम्मसुयं जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णनाणदंसणधरेहिं तेलुक्कनिरिक्खियमहियपूइएहिं तीयपडुप्परणमणागयजाणएहिं सवरहिं सव्वदरिसीहिं पगीयं दुवालसंग गणिपिडगं, तंजहा-आयारो १ सूयगडो २ ठाणं ३ समवाओ ४ विवाहपण्णत्ती ५ नायाधम्मकहाओ ६ उवालगदसाओ ७ अंतगडदसाओ ८ अणुत्तरोववाइयदसाओ ६ पहावागरणाई १० विवागसुयं ११ दिट्टिवाओ १२. इञ्चयं दुवालसंग गणिपिडगं चोद्दसपुन्विस्स सम्मसुयं, अभिगणदसपुट्विस्स Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला सम्मसुयं, तेण परं भिण्णेसु भयणा, से त्तं सम्मसुयं ॥ सू०४१ ॥ से किं तं मिच्छासुयं ? , मिच्छासुर्य जं इमं श्रणारि एहिं मिच्छादिट्टिएहिं सच्छंदबुद्धिमविगप्पियं, तंजहा - भारहं, रामायणं, भीमासुरुक्खं, कोडिलयं, सगडभद्दियाओ, 'खोडमुडं. कप्पासियं नागसुहुमं, करागसत्तरी, वइसे सियं, बुद्धवयणं, तेरासियं, का विलियं, लोगाययं सहितंतं, माढरं, पुराणं, वागरणं, भागवयं, पायंजली, पुस्सदेवयं, लेहं, गणियं, सउणरूयं, नाडयाई, ग्रहवा बावत्तरिकलाओ, चत्तारि य वेया संगोवंगा, एयाई मिच्छदिट्ठिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छासुयं, एयाइं चेव सम्मदिट्ठिस्ल सम्मत्तपरिग्गहियाई सम्मसुयं, ग्रहवा मिच्छदिट्ठिस्स विएयाई चैव सम्मसुर्य, कम्हा ? सम्मत्त हे उत्तरणओ जम्हा ते मिच्छदिट्टिया तेहिं चेव समएहिं चोइया समारणा केइ सपक्खदिडीओ चयंति से त्तं मिच्छायं || सू० || ४२ ॥ से किं तं साइयं सपजवसियं, अणाइयं अपज्जवसियं च ? इच्चेइयं दुवालसँगं गणिपिडगं बुच्छित्तिनयट्टयाए साइयं सपजवासिय, अवच्छित्तिनयट्टयाए अणाइयं अपज्जवसियं । तं समास चउव्विहं पण्णत्तं, तंजहा- दव्वत्रो, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वश्रं सम्प्रसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइय पजवसियं । खेत्तणं पंच भरहाई पंचेरवयाई पडुच्च साइयं पंचमहाविदेहाई पडुच्च श्ररणा इयं अपज्जवसियं । कालओ गं उस्सप्पिां श्रसप्पिणि च पडुच्च साइयं सपजवसियं, नो १ घोडग | Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२२६ उस्सप्पिाणं नोप्रोसप्पिणिं च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । भावो णं जे जया जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जंति, परणविज्जंति, परूविजंति, दंसिर्जति, निदंसिजति, उवदंसिजति, ते तया भावे पडुच्च साइयं सपजवसियं । खाअोवसमियं पुण भावं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । अहवा भवसिद्धियस्स सुयं साइयं सपजवसियं च, अभवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं अपजवलियं च, सव्वागासपएसग्गं सव्वागासपएसेहिं अणंतगुणियं पजवक्खरं निप्फजइ, सव्व जीवापि य णं अक्खरस्स अतभागो निच्चुग्घाडियो, जइ पुण सोऽवि आवरिजा तेणं जीवो अजीवत्तं पाविजा,-"सुट्ठवि मेहसमुदए, होइ पभा चंदसूराणां" से तं साइयं सपजवसियं, से तं प्रणाइयं अपजवसियं ॥ सू०॥४३॥ से किं तं गमियं ? गमियं दिट्टिवाओ॥ से किं तं अगमियं ? अगमियं कालियं सुयं । से त्तं गमियं, से तं अगमियं । अहवा तं समासो दुविहं पण्णतं, तंजहा-अंगपविटुं अंगबाहिरं च । से किं तं अंगबहि ? अंगबाहिरं दुविहं परणत्वं, तंजहा-अावस्सयं च, श्रावस्सयवइरित्तं च । से किं तं श्रावस्सयं ? आवस्मयं छविहं पएणतं, तंजहा-सामाइएं, चउवीसत्थो , वंदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पञ्चक्खाण; से तं श्रावस्सयं । से किं तं आवस्स्य वइरित्तं ? अावस्सयवइरित्तं दुविहं पएणतं, तंजहा–कालियं च, उक्कालियं च ॥ से किं तं उक्कालियं ? उक्कालियं अणेगविहं पएणतं, तंजहा Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला दसवेयालियं, कप्पियाकप्पियं, चुल्लकप्पसुयं, महाकप्पसुयं, उववाइयं, रायपसेणियं. जीवाभिगमो, पराणवणा, महापरणयणा, पमायप्पमायं, नंदी, अणुओगदागई, देविंदत्थओ, तंदुलवेयालियं, चन्दाविज्झयं, सूरपरणत्ती, पोरिसिमण्डलं, मण्डलपवेसो, विजाचरणविणिच्छो, गणिविजा, झाणविभत्ती, मरणविभत्ती, आयविसोही, वीयगगसुखं, संलेहणासुयं, विहारकप्पो, चरणविही, पाउरपञ्चक्खाण, महापच्चक्खाणं, एवमाइ; से तं उक्कालिय। से किं तं कालियं ? कालियं अणेगविहं पराण, तंजहा-उत्तरज्झयणाई, दमाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहं, महानिसीहं, इसिभासियाई, जम्बूदीवपन्नत्ती, दीवसागरपन्नत्ती, चन्दपन्नत्ती, खुड्डिया विमाणपविभत्ती, महल्लिया विमाणपविभत्ती, अंगचूलिया, घग्गचूलिया, विवाहचूलिया, अरुणोववाए, वरुणोववाए, गरुलोववाए, धरणोववाए, वेसमणोववाए, वेलंधरोववाए, देविंदोववाए, उट्ठाणसुए, समुट्ठाणसुए, नागपरियावणियाओ. निरयावलियाओ कप्पियाओ, कप्पवडिंसियाओ, पुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, वराहीदसाओ, (आसीविसभावणाण, दिट्टिविसभावणाण, सुमिणभावणाण, महासुमिणभावणाणं, तेयग्गिनिसग्गाणं, ) एवमाइयाई चउरासीई पइन्नगसहस्साई भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्थयरस्स, तहा संखिजाई पइन्नगसहस्साई मज्झिमगाणं जिणवराणे, चोइस पइन्नगसहस्लाइं भगवओ वद्ध माणसामिस्त, अहवा जस्ल जत्तिया सीसा उप्पत्तियाए, वेणइयाए, कम्मयाए, परिणामियाए, चउविहाए बुद्धीए उववेया तस्स तत्तियाई पइण्णगसहस्साई, Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र ] [२३१ पत्तेयबुद्धावि तत्तिया चेव, से त्तं कालियं, से तं आवस्सयवइरितं, से तं अणंगपविटुं ।। सू० ॥ ४४ ॥ से किं तं अंगपविटुं ? - अंगपविट्ठ दुवालसविहं परणतं, तंजहा-पायारो १ सूयगडो २ ठाणं ३ समवायो ४ विवाहपन्नत्ती ५ नायाधम्मकहाओ ६ उवासगदसायो ७ अंतगडदसाओ ८ अणुत्तरोववाइयदसाओ ६ पण्हावागरणाई १० विवागसुयं ११ दिट्टि-- वाओ १२ ।। सू० ॥४५॥ से किं तं आयारे ? आयारे णं समणाण निग्गंथाणं आयारगोयरविणयवेणइयसिक्खाभासाअभासाचरणकरणजायामायावित्तीओ आघविज्जति । से समासओ पंचविहे पण्णते, तंजहा-नाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे । आयारे ण परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा, संखिजा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ, (संखिजाओ संगहगीरो) संखिजाओ पडिवत्तीओ, से गं अंगट्टयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणुवीसं अज्झयणा, पंचासीइ उद्देसणकाला, पंचासीइ समुद्देसणकाला, अट्ठारस पय सहस्प्लाइं पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणता गमा, अणता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिवद्धनिकाइया जिणपएणत्ता भावा प्राधिज्जति, पन्नविज्जंति, परूविजंति, दंसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिजंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विराणाया, एवं चरणकरणपरूवरमा आघविजइ, से तं पायारे १ ॥ सू० ।। ४६ ।। से किं तं सूयगडे ? सूयगडे ण लोए सूइजइ, अलोप सूइ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला जइ, लोयालोए सूइज्जइ, जीवा सूइजंति, अजीवा सूइजंति, ससमए सूइज्ज इ. परसमए सूइज्जइ, ससमयपरसमए सूइज्जइ, सूयगडे णं असीयस्स किरियावाइसयस्स, चउरासीइए अकिरिवाईणं, सत्तट्टीए अराणाणीयवाईण, बत्तीसाए वेणइयवाईणं, तिराहं तेसट्टाणं पासंडियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविजइ । सूयगडे णं परित्ता वारणा, संखिजा अणोगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ, (संखिजाप्रो संगहणीयो ) संखिजाओ पडिवत्तीग्रो, सेणं अंगट्टयाए बिइए अंगे, दो सुयक्खधा तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं उद्देसणकाला, तित्तीसं समुद्देसणकाला, छत्तीसं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अता गमा, अणता पजवा, परित्ता तसा, प्रांताथावरा,सासयकडनिबद्धनिकाइया जिगपरागत्ता भावा आघविजंति, पराणविजंति, परूविजंति, दंसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिजंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विराणाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से सूयगडे २॥ सू० ॥४७॥ से किं तं ठाणे ? ठाणे ण जीवा ठाविजंति, अजीवा ठाविजंति, जीवाजीवा ठाविजंति, ससमए ठाविजइ, परसमए ठाविजइ, ससमयपरसमए ठाविजइ, लोए ठाविजइ, अलोए ठाविजइ, लोयालोए ठाविजइ । ठाणे णं टंका, कुडा, सेला, सिहरिणो, पम्भारा, कुंडाई गुहाअो. आगरा, दहा, नईओ, आघविजंति । ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसट्ठाणगविवढियागां भावाणं परूवणा आघरिजइ । ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजारो निन्जुत्तीग्रो, संखेजात्रो संगहणीयो; संखेजाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्टयाए तइए अंगे, एगे Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२३३ सुयक्खंधे, दस अज्झयणा एगवीसं उद्देसणकाला, एक्कवीसं समुद्देसणकाला, वावत्तरि पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेजा अक्खरा, अशंता गमा, आता पन्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासयकयनिवद्धनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति, पन्न विजंति, परूविजेति दंसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विराणाया, एवं चरण करणपरूवणा श्राघविज्जइ, से त्तं ठाणे ३॥ सू० ॥४८॥ से किं तं समवाए ? समवाए ण जीवा समासिजंति, अजीवा समासिजंति, जीवाजीवा समासि जंति, ससमए समासिजइ, परसमए समासिज्जा, ससमयपरसमए समासिजा, लोए समासिजइ, अलोए समासिजइ, लोयालोए समासिजइ । समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसयविवढियाण भावाणं परूवणा श्राघविजइ; दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समासिजइ । समवायरस णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुोगदारा, संखिजा वेढा, संखिजा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीरो, संखिजाओ संगहणीओ, संखिजानो पडिवत्तीओ, से णं अंगठ्ठयाएचउ अत्थे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झयणे, एगे उद्देसण काले, एगे चोयाले सयसहस्से पयग्गेणं; संखेजा अक्खरा, अणंता गंमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणनाथावरा, सासयकडनिबद्ध निकाइया जिणपराणत्ता भावा आघविजंति, पराणविजंति, परूविज्जति, दंसिजंनि निदंसिजंति, उवदंसिजंति । से एवं आया, एवं नाग, एवं विराणाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ । से समवाए ४॥ सू० ॥ ४ ॥ से किं तं विवाहे ? विवाहे गं जीवा विआहिजंति, अजीवा Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला विवाहिजंति, जीवाजीवा विआहि जंति, ससमए विआहिजति, परसाए विवाहिजति, ससमयपरसमए विाहिजंति, लोए विवाहिजति, अलोए विशाहिजति, लोयलोए विवाहिजति । विवाहस्त मं परित्ता वायणा, संखिजा अणुअोगदारा, संखिजा वेढा, संखिजा सलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीग्रो, संखिजाओ संगहीओ, संखिजानो पडिवत्तीयो । से रंग अंगट्टयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्चाई, दस समुद्देसगसहस्साई छत्तीसं वागरणसहस्सःई, दो लक्खा अट्ठासीई पयसहस्साई पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणता गमा, अणता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्ध नियाइया जिणपराणत्ता भावा आघविजंति परणविजंति परूविजंति दंसिजति निदंसिजति, उवदंलिज्जतिं, से एवं प्राया, एवं नाया, एवं विराणाया, एवं चरणकरणपरूवणा, आघविज्जाइ, से तं विवाहे ॥ ५ ॥ ॥ सू० ॥ ५० ॥ से किं तं नायाधम्मकहाओ? नायाधम्मकहासुनायाणं नगराई, उजाणाइं, चेहयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा, भोगपरिच्चाया पध्वजाओ, परिाया, सुयपरिग्गहा, तवोवहागाई, संलेहणाश्रो, भत्तपश्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपञ्चायाईओ, पुणवोहिलाभा, अंतकिरियाप्रो य आघविजंति । दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयालयाई, एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उबक्खाइया सयाई, एगमेगाए १. पासिणणाग Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२३५ उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई एवमेव सपुवावरेणं 'प्रधुट्टायो कहाणगकोडीअो हवंतित्ति समक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिजा अणुओगदारा, संखिजा वेढा, संखिजा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीश्रो संखिज्जाओ संगहणीओ संसिजाओ पडिवत्तीओ। से गं अंगट्टयाए छठे अंगे, दो सुयक्खंधा एगुणवीसं अज्झयणा, एगूणवीसं समुद्देसणकाला, संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेजा अक्खरा, प्रांता गमा, अरांता पजवा, परित्तः तसा, अशांता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपरागत्त। भावा आघविजंति, परणविजंति, परूविजंति, दसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिजंति । से एवं अाया, एवं नाया, एवं विराणाया, एवं चरणकरलपरूवणा आघविजइ, से तं नायाधम्मकहाओ ६ ॥ सू० ॥ ५० ॥ से किं तं उवासगदसायो ? उवासगदसासु णं समणोवासया नगराई, उजाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्पायरिया, धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिचाया, पव्वजाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं सीलन्वयगुणवेरमणपच्चक्खागपोसहोववासपडिवजणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपञ्चक्खाणाई, पाओवगमगाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपञ्चाईओ, पुणबोहिलामा, अंतकिरियाओ य आघविजंति । उवासगदसारा परित्ता वायणा, संखेज्जा असाप्रोगदारा, संखजा वेढा, संखेजा सिलोगा,संखेज प्रो निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीप्रो, संखेजाओ पडिवत्तीअो । से गं अंगट्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयस्था, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला पयग्गे, संखेजा अक्खरा, अशांता गया, अशंता पजा, परित्ता तसा, अशंता थावरा, सासयकडनिबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजत्ति, पन्नविजंति, परूविजंति, दसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिजंति । से एवं पाया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरण, करमपरूवर आघविजइ; से तं उवासगदसायो ७ ।। सू० ॥ ५२ ॥ से कितं अंतगडद लागो ? अंतगडदसासु ण अंतगडाणं नगराई, उजाणाई,चेइयाई, वसंडाई,समोसरणाई,रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिचागा, पयजामो, परिश्रागा, सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई, संलेहणाओ, मत्तपच्चक्खागाई, पायोवगमणाई अंतकिरियानो, आघविजंति । अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिजा अणुयोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज.ओ निउजुत्तीग्रो, संखेजाओ संगहणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीयो। से ग अंगठ्ठयार अट्टमे अंगे, एगे सुयक्खधे, अट्ट वरना, अट्ठ उद्द समकाला, अट्ट समुद्देसणकाला, संखेजा पयसहस्सा पयग्गेरंग; संखेजा अक्खरा, अशांता गमा, अशंता पजवा, परित्ता तसा, अता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिनपराग,त्ता भावा आघदिज्जंति, पन्नविज्जति परूविजंति, दंसिज्जति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति; से एवं प्राया, एवं नाया, एवं विनाया, एवं चरर करणपरूवणा आघविजइ; से तं अंतगडदसाओ ॥ ८ सृ० ।। ५३ ॥ से किं तं अणुत्तरोववाइयदलायो ? अणुत्तरोववाइयदसासु ण अणुत्तरोववाइयाणं नगगई, उजाणाई, चेइयाई, वणसंडाइ, समोसरणाई, रायाणो, अम्नापियरो, धम्मायरिया, Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दी सूत्र ] [ २३७ धम्मक हाओ, इहलोइय पर लोइया इढिविसेसा, भोगपरिचागा. पव्वज्जाओ. परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडि माओ, उवसग्गा, संलेह णाश्रो, भत्तपञ्चकख गाई, पाओचगमणाई, अणुत्तरोवव इयत्ते उववत्ती, सुकुल पश्च्चाय। ईओ, पुण्व हिलाभा, अंत किरियायो, श्राघविजंति । अनुत्तरावचाइयदसासु गं परित्ता वायणा, संखेजा श्रणुओोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजा ओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संग्रहणी, संखे जाओ पडिवत्तीओ, से गं अंगट्टयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे. तिन्नि वग्गा, तिम्नि उद्देसणकाला, तिन्नि समुद्दे सणकाला, संखेजाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्ज ( अक्खरा, अरांता गमा, अरांता पज्जवा, परित्ता तसा, अांता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पराविज्जंति, परुविज्जति, दंसिज्अंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति से एवं श्राया एवं नाया, एवं विराणाया, एवं करणकरणपरूवणा आघविजह से त्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ६ ॥ सूत्र ॥ ५४ ॥ से किं तं परहावागरणाई ? परहा वागरणेसु णं श्रट्टुत्तरं परिणयं श्रट्टुत्तरं अपसि सयं, अट्टुत्तरं पसिगापसिरासयं तं जहा - अंगुटुपसिगाई, बाहुपसिगाई, अहाग पसिगाई, अने विविचित्त विजाइसया, नागसुवरणेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जति । पण्हावागरणारी परित्ता वायणा, संखेजा अणु गदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज ओ निज्जुतीओ, संखे जाओ संग्रहणीश्र, संखेजा ओ पडिवत्तीओ से ग अंगट्टयाए दसमे अंगे; एगे सुयक्खंधे परणयालीसं अज्झयणा, पण्यालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्दे सणकाला, संखेज' इं पयसहस्साइं पयग्गेणं; संखेज' अक्खरा, अगता गमा " Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपरणत्ता भावा आघविज्जति, पएणविज्जति परूविज्जति, दसिज्जति, निदसिजति, उवदंसिज्जति, से एवं आया एवं नाया एवं विण्ण या एवं चरण करणपरूवणा आघविजइ, से त्तं पण्हावागरणाई १० ।। सू० ॥ ५५ ।। से किं तं विवागसुयं ? विवाग सुए ण तुकडदुक्कडाण कम्माणं फलविवागे अाघविजइ । तत्थ णं दस दुद्दविवागा, दस सुहविवागा । से किं तं दहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुह निवागारमा नगराई उजाणाई वणसंडाई बेश्याई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धाबरिया धम्मक हायो इहलोहयपरलोइया इढिविसेसा. निरयगमाई, संसारभवपवंचा दुह परंपराओ, दुकुलपच्चायाइरो, दुल्लहवोहियत्त श्राघविजइ; से त्त दुह विवागा । से किं तं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई वणसंडाई चेइयाई: समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्य जाओ, परियागा, सुयपरिग्गहा, तवोक्हाणाई,संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमगाई, सुहपरंपरात्रो, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ, आघविज्जति । विवागसुयस्य णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखजाओ निज्जुत्तीओ, संखिजानो संगहणी ग्रो, संखिजारो पडिवत्तीओ । से गं अंगठ्ठयाए इक्कारसमे अंगे, दो सुयक्खंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसण काला, वीसं समुद्देसणकाला, संखिजाइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेजा अक्खरा, अशंता गमा, अता पजवा, परित्ता तसा, अता थावरा, सासय. Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२३९ कडनिबद्ध मिकाइया जिणपराणत्ता भावा प्राविति, पन्नविज्जति, परूविज्जति, दंसिजति निदंसिज्जंति, उवदंसिजति । से एवं पाया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवरणा ग्राघविजइ, से विवागसुयं ११ । सू० ॥५६॥ से किं तं दिट्टिवाए ? दिट्टिवाए णं सयभावपरूवणा आघविजइ, से समासो पंचविहे पण्णते, तंजहा-परिकम्मे १ सुत्ताई २ पुधगए ३ अणु प्रोगे ४ चूलिया ५। से किं तं परिकम्से ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णते, तंजहासिद्धसेणियापरिकम्मे १ मणुस्ससेणियापरिकम्मे २ पुट्ठसेणिया परिकम्मे ३ श्रोगाढ सेणियापरिकम्मे ४ उवसंपजणसेणियापरिकम्ने ५ विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ६ चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ७। से किं तं सिद्ध सेणियापरिकम्मे ? सिद्धसेणियापरिकम्ने चउद्दलविहे परणनने, तंजहा-माउगापयाइं १ एगट्ठियपयाई २ अट्ठपयाई ३ पाढोागासपयाइं ४ के उभूयं ५ रासि-. बद्धं ६ एगगुणं ७ दुगुणं ८ तिगुणं के उभूयं १० पडिग्गहो११ संसारपडिग्गहो १२ नंदावतं १३ सिद्धावत् १४, ले तं सिद्धसेणियापरिकम्मे १। से किं तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे ? मणुस्ससेणिपरिकम्मे चउद्दसविहे पराणते, तंजहा-माउयापयाइं १ एगट्ठियपवाई२ अटुपयाइं३ पाढोगासपयाइंड केउ भूयं५ रासिबद्धं ६ एगगु७ दुगुणांक तिगुणह केउभूयं १० पडिग्गहो११ संसारपडिग्गहो१२ नंदावतं१३ मणुस्सावत्१४, सेत्तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे २। से किं तं पुट्टपेणियापरिकम्मे ? पुट्ठसेणियापरिकम्मे इकारसविहे पराणते, तंजहा-पाढोागास १-प्रामास । Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला पयाई १ केउभूयं २ शसिबद्धं ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसार पडिग्गहो ६ नंदावत् १० पुट्ठावत्तं ११, से त्तं पुट्टसेणियापरिकम्मे ३ । से किं तं ओगाढसेणियापरिकम्मे ? प्रोगाढसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पराणते, तंजहा--पाढोआगासपयाइं १ केउभूयं २ रासिबद्धं ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो९ नंदावत्तं १० ओगाढावत् ११, से तं ओगाढसेणियापरिकम्मे ।। से किं तं उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ? उवसंपजणसेणिया. परिकम्मे इकारसविहे पराणत्ते, तंजह-ढोागासपयाई १ केउभूयं २ रासिबद्धं ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ६ नंदावत् १० उवसंपजण-- वत् ११, से तं उवसंपजणसेणिया परिकम्मे ५ । से किं तं विप्पजहणसेणियापरिकम्ने ? विप्पजहणसेणियापरिकम्ने इक्कारसविहे पण्णते, तंजहा-पाढोआगासपयाई १ केउभूयं २ रासिबद्धं ३ एगगुण ४ दुगुणं ५ तिगुणणं ६ के उभूयं ७ पढिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ६ नंदावत्तं १० विप्पजहणावत्तं ११, से सं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ६ । से किं तं चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ? चुयाचुयसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पन्नत्ते, तंजहा-पाढोआगासण्याइं १ केउभूयं २ रासिबद्धं ३ एगगुण४ दुगुर्ण ५ तिगुणं ६ के उभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो । नंदावत्तं १० चुयाचुयवत्तं ११. से तं चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ७ । छ । उक्कनइयाई, सत्त तेरासियाई: से तं परिकम्मे । से किं तं सुत्ताई ? सुत्ताई वावीसं पन्नत्ताई, तंजहाउज्जुसुयं १ परिणयापरिणयं २ बहुभंगियं ३ विजयचरियं ४ अतरं ५ परंपरं ६ मासाणं संजूहं संभिरण९ ओहब्वायं१० १ सामाणे । २-पचायं । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनन्दीसूत्र] [२४१ सोवत्थियावत्तं ११ नंदावत्तं १२ बहुलं १३ पुट्ठापुढे १४ वियावत्त १५ एवंभूयं १६ दुयावत् १७ वत्तमाणपयं १८ समभिरूढं १६ सव्वओभई २० पस्सासं २१ दुप्पडिग्गहं २२ इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताई छिन्नच्छेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए; इञ्चेइयाइं बावीसं सुत्ताइं अच्छिन्नच्छेयनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए; इच्चइयाई बावीसं सुत्ताई तिगणइयाणि तेरासिय सुत्तपरिवाडिए; इञ्चेइयाई बावीसं सुत्ताई चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए; एवामेव सपुवावरे अट्ठासीई सुत्ताई भवंतित्ति मक्खायं, से तं सुत्ताई २ ॥ से किं तं पुव्वगए ? पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्त, तंजहाउप्पायपुव्वं १ अग्गाणीयं २ वीरियं ३ अत्थिनत्थिप्पवायं ४ नाणप्पवायं ५ सञ्चप्पवायं ६ अायप्पवायं ७ कम्मप्पवायं ८ पञ्चक्खाणपवायं ९ विजाणुप्पवायं १० अवंझं ११ पाणाऊ १५ किरियाविसालं १३ लोकबिंदुसारं १४ । उप्पायपुवस्स रां दस वत्थू, चत्तारि चूलियावत्थू पण्णत्ता । अग्गाणीयपव्वस्स णं चोद्दस वत्थू; दुवालल चूलियावत्थू पराणत्ता । वीरियपुव्वस्स ण अट्ट वत्थू अट्ट चूलियावत्थू पराणत्ता। अत्थिनत्थिप्पवायपुवस्स णं अट्ठारस वत्थू दस चूलियावत्थू पएणत्ता । नाणप्पवायपुवस्स ण बारस वत्थू पराणत्ता । सच्चप्पवायपुव्वस्त णं दोण्णि वत्थू पण्णत्ता । अायप्पवायपुवस्स णं सोलस वत्थू पण्णत्ता । कम्मप्पवायपुवस्स णे तीसं वत्थू पराणत्ता । पच्चक्खाणपुवस्स गं वीसं वत्थू पराणत्ता । विजाणुप्पवायपुव्वस्स णं पन्नरस वत्थू पराणत्ता । अवंझपुवस्स रंग बास्स वत्थू पण्णत्ता । पाणाउपुवस्स णं तेरस वत्थू पराणत्ता । किरि १ पच्चक्खाणं। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला याविसाल पुवस्ल तीसं वत्थू पण्णत्ता । लोकबिंदुसारपुवस्स णं पणुवीसं वत्थू पराणत्ता, गाहा दस १ चोदस २ अट्ट ३ ऽटारसेव ४ बारस ५ दुवे ६ य वत्थूणि । सोलस ७ तीस ८ बीसा ९ पन्नरस १० अणुप्पवायम्ति ।। ३५॥ वारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा पुस तेरसमे, चोदसमे परणविसाप्रो ॥ ३६ ।। चत्तारि १ दुवालस २ अट्ट ३ चेव दस ४ चेव चुल्लवत्थूणि। आइल्लाण चउराहं, ससाण चूलिया नत्थि ॥ ३७ ॥ से त पुब्वगए। से किंतं अगुोगे? अणुओगे दुविहे पर णत्ते, तंजहा-मूलपढमागुनोगे; गंडि गणु प्रोगे य । से किं तं मूलपढ माणुओगे? मूलपढमाणुप्रोगे गं अरहंताणं भगवंताणं पुवभवा, देवलोग-- गमणाई, आउं, चवणाई; जम्मणाणि, अभिसेया रायवरसिरीओ पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयानो, तित्थपवत्तणाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्ज पवत्तिणीश्रो संघस्स चउहिस्स जं च परिमाणं, जिणमणपज्जवओहिनाणी, सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगईय, उत्तरवेउविणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो जह देसिओ, जञ्चिरं च कालं, पाओवगया जे जहिं जत्तियाई भत्ताई (अणसणाए ) छेइत्ता अंतगडे, मुणिवरुत्तमे, तिमिरोघविप्पमुक्के मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्त, एवमन्ने य एवमाइभावा मूलपढमाणुनोगे कहिया, से त्तं मूलगढमाणुओगे । से कंतं गंडियाणुओगे ? गंडियाणुओगे कुलगरगंडियाओ, तित्थयरगंडियाओ, चक्कवट्टिगंडि Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • श्रीनन्दीसूत्र] [२४३ यात्रो, दसारगंडियानो, बलदेवगंडियानो, वासुदेवगंडियाओ गणधरगंडियाओ, भद्दबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ, उस्सप्पिणीगंडियाओ, ओसप्पिणीगंडि-- यात्रो, चित्तरगंडियाओ, अमरनरतिरियनिरयगइगमरण विविहपरियट्टणेसु एवमाइयाओ गंडियागो आविज्जति पगणविज्जति से तं गंडियाणुओगे, से वे अणुअोगे ४॥ से किं तं चूलियाो ? आइल्लाणं चउराहं पुव्वाणं चूलिया, सेसाई पुवाई अचूलियाई, से तं यूलियाओ। दिट्टिवायस्स परित्ता वायणा, संखजा अणुओगदारा, संखेजा वेढा, संखेमा सिलोगा संखेजाओ पडिवत्तीयसंलि. जानो निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ, से गं अंगट्टयाए वारसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, चोहस पुव्वाई, संखेजा वत्थू, संखेजा चूलपत्थू, संखेजा पाहुडा, संखेजापाहुउपाहुडा, संखेजाओ पाहुडियाओ, संखेजाओ पाहुडपाहुडियाओ, संखेजाई पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेजा अक्खरा, अयंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा अता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपत्नत्ता भावा आघविज्जति, परणविजंति, परूविज्जति दसिज्जति, निदंसिज्जति, उपदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया एवं विराणाया, एवं चरणकरण परूषणा आघविज्जति, से तं दिट्ठिवाए १२ ।। सू० ।। ५७ ॥ __ इच्चइयंमि दुवालसंगे गणिपिडगे अणंता भावा अशंता अभावा, अांता हेऊ, अशंता अहेऊ, अणंता कारणा, अणंता अकारणा, अता जीवा, अांता अजीवा अणंता भवसिद्धिया अयंता अभवसिद्धिया अता सिद्धा, अपांता असिद्धा पराणत्ता Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला भावमभावा हेऊमहेऊ कारणमकारणे चेव । जीवाजीवा भवियमभविया सिद्धा असिद्धा य ॥ ३८॥ इच्चइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणता जीवा आणाए विगहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियटिसु । इच्चइयं दुवालसंग गणिपिडगं पडुपरणकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता च उतं संसारकंतारं अणुपरियहति । इच्चइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काणे अशंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति । इच्चइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा प्राणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंसु । इश्वयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पएणकाले परित्ता जीवा आणाए बाराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवयंति । इच्चइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकतारं वीईवइस्संति । ___इच्चइयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ य,भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए अव्वए, अवट्टिए, निच्चे । से जहानामए पंचत्थिकाए न कयाइ नासीन कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ. भुविंच,भवइ य,भविस्ताइ य, धुवे, नियए सालए, अक्खए, अचए, अवट्टिए, निच्चे, एवामेव दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अवए, अवट्टिए, निच्चे । से समासो चउविहे पण्णत्ते, तंजहा-दवो खिस्तो, Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीनन्दीसूत्र 1] [ २४५ कालो, भावओ, । तत्थ दव्वओ गं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाई जाइ पास खित्तओ गं सुयनाणी उवउत्ते सब्बं खेत्तं जाणइ पासइ, खित्तओ गं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं कालं जाणइ पासइ, भावओ गं सुयनाणी उवउते सव्वे भावे जाणइ पासइ ॥ सू० ५८ ॥ अक्खर सन्नी सम्मं, साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविहूं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥ ३६ ॥ आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अहिं दिहूं । बिसि सुयनालंभं तं पुब्वबिसारया धीरा ॥ ४० ॥ सुस्सर पडिपुच्छर सुणेइ गिराहर य ईहए यावि । तत्तो अपोह वा धारेइ करेइ वा सम्मं ॥ ३१ ॥ मूंअं हुंकारं वा, वाढक्कारं पडिपुच्छवीमंसा | तत्तोपसंगपारायणं च परिणिट्टु सत्तमए ॥ ४२ ॥ सुत्तत्थो खलु पढभो, बीनो निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ । तो य निरवसेसो, एस विही होइ अणुओगे ॥ ४३ ॥ से अंगपविट्ठ, सेतं सुयनाणं, से तं परोक्खनाणं, से तं नंदी || नंदी समत्ता ॥ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनुत्तरोववाइयदशांग सूत्रम् तेणं कालेणं, तेणं समएणं, रायगिहेणामणयरे होत्था, सेणियनामहराया होत्था, चेलणा देवीए गुरणसिलए चेहए वरणको ॥ १ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, अज-सुहम्मस्स समोसरणं, परिसा णिग्गया धम्प्रकहिओ परिसा पडिगया ॥२।। जंबू जाव पज़्जुवासइ एवं वयासी-जहणं भन्ते! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्त अंतगडदसाणं अयम? पण्णते; नवमस्स णं भन्ते ! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे परणते? ॥ ३॥ तएणं से सुहम्मे अणगारे, जम्बू अणगारं एवं धयासी-एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा परणत्ता ॥४॥ जाणं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तो वग्गा पराणत्ता, पढमस्स गं भन्ते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपतेरणं कइ अज्झयणा पराणत्ता?॥५।। एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अगुत्तरोवाइय Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअनुत्तरोववाइसूत्र] [२४७ दसाणं पढमस्स वगास्स दस अज्झयणा पराणत्ता तं जहाजालि, मयालि, उवयालि । पुरिससेणे य, वारिसेणे य, । दीहदंते य, लट्ठदंते य, वेहल्ले, वेहायसे, अभये-ति कुमारे ॥१॥६।। ____ जइ णं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पराणत्ता, पढमस्स णं भन्ते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे परणते? एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएवं रायगिहे नयरे रिद्धिस्थिमिय-समिद्धे,गुणसिलए चेइए सेणिए राया, धारिणी देवी, सीहसुमिणंपासित्ताणं पडिबुद्धा जाव जालि कुमारे जाए, जहा मेहो आव अट्ठो दाओ, जाव उप्पि पासाय जाव विहरइ ॥८॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे सेणिओ णिग्गओ, जहा मेहो तहा जाली वि णिग्गओ, तहेव णिक्खन्तो, जहा मेहो, एक्कारस अंगाई अहिजा ॥६॥ तएणं से जाली अणगारे जेणेव स्रमणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ २ त्ता एवं वयासी-इच्छामि गं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाय समाणे गुण-रयण संवच्छरं तवोकम्म उवसंपज्जित्तारणं विहरित्तर ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ॥ १०॥ ___तएणं से जाली अणगारे समणेणं भगवया महावीरेण अब्णुराणाय समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ २ त्ता गुणरयणं संवच्छरं तवो कम्म उवसंपजित्ताणं विहरह- तंजहा Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला १ पढमं मासं चउत्थं चउत्थेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूरराभिमुहे आयावणभूमिए पायावेमाणे रत्तिं वीरासणे अवाउडेणय । - २ दोश्चं मासं छटुं छटे अणिक्विते तवोकम्प्रेणं दियटाणुकडुए सूराभिमुहे आयावण भूमिए आयावेमाणे, रतिं वीरासेणेणं अवाउडेणय । . ३ तचं मासं अट्ठम अट्टमेणं अणिक्खितेणं तवो कम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे, आयावणभूमिए पायावेमाणे, रत्तिं वीरासरोणं अवाउडेणय । ४ चउत्थं मासं दसमं दसमेणं अनिक्विते तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे अायावणभूमिए पायावेमाणे रत्ति वीरासणे अवाउडेणय। .. .. ५पंचमं मासं बारसम बारसमेणं अनिक्खितेणं तवो-- कम्मेणं दियट्ठाणुकडुए सूराभिमुहे पायावणभूमिए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेणय । ६ छटुं मासं वउदस चउदसमेण अणिक्खितेण तवोकम्मेणं दियाठाणुक्कडुए सूराभिमुहे पायावणभूमिए पायावे माणे रत्तिवीरासणेणं अवाउडेणय । _ ७ सत्तमं मासं सोलसमें सोलसमेणं अनिक्खितेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूगभिमुहे पायावणभूमिए आयावेमाणे रतिं वीरासणेण अवाउडेण य । . ८ अट्ठमं मासं अट्ठारसमं अट्ठारसमेणं अनिक्खित्तेणं तको Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रणुत्तरोववाइयसूत्र ] [ २४६ कम्मे दियाट्ठाकडुए सूगभिमुहे श्रयावणभूमिए आयामणे, रतिं वीरास रोगं श्रवा उडेय । सावमं मासं विसइमं वीसइमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मे दिया कडुए सूगभिमुहे आयावणभूमिप आयावेमाणे रतिं वीरासणेणं अवाउडेराय । १० दसमं मासं बावीसाए बावीसइमेणं अनिक्खित्तेणं दिक्कडुए सूराभिमुहे आयावणभूमिए आयावेमाणे रतिं वीरासणे अवाउडेय । ११ एकारसमं मासं चउवीसाए चउवीसइमेणं णिक्खिते तव कम्मे दिया कडुए सूराभिमुहे यावरणभूमिए म रतिं वीरासणेणं अवा उडेय | १२ बारसमं मासं छथ्वीसाए छव्वीस इमेां श्रनिक्खितेां नवोकम्मे दिट्टाणुकडुए सूराभिमुहे श्रायावण भूमिए श्रायावेमाणे रतिं वीरासणेणं अवाउडेय । १३ तेरसमं मासं अट्ठावीसाए अट्ठावीस इमेणं अनिक्खितैं तवोकम्मे दिया कडुए सूराभिमुहे आयावणभूमिए यावेमा रतिं वीरासणेणं अवाउडेराय । १४ चउदसमं मासं तीसइमं तीसइमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मे दिया कडुए सूराभिमुद्दे श्राया वरणभूमिए आयावेमाणे रतिं वीरासणे अव उडेय | १५ पेन्नरसमं मासं बत्तीसइमं बत्तीसइमेणं अनिक्खित्तेां तवकम्मे दिया कडुए सुराभिमुहे आयावणभूमिए आया Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला वेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेणय ।। १६ सोलमं मासं चोत्तीसइमं चोत्तीसइमेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे अायावणभूमिए अायावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेणय ॥ ११ ॥ तए णं से जालि अणगारे गुणरयणं संवच्छरं तवोकम्म श्राहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं समकाएणं फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तिरित्ता किट्टित्ता आणाए आगहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद २त्ता समरणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदइत्ता नमंस इत्ता वहूहिं च उत्थछट्ट अट्ठमदसमदुवाल से हिं मासेहिं अद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पारणं भावेमाणे विहर इ ॥ १२॥ तए रणं से जाली अणगारे तेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं एवं जा चेव जहा खंदगस्स वत्तव्यया सा चेव चिन्तणा, पापुच्छणा थेरेहिं सद्धिं विपुलं तहेव दुरूहति, गवरं सोलस वासाइं सामरणपरियागं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उड्ढे चंदिमसोहम्मीसा। जाव आरणच्चुए कप्पे नव य गेवेज्जे विमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीतीवतित्ता विजयविमाणे देवत्ताए उववरणे ।। १३ ॥ तए णं ते थेरा भगवंतो जालिं अणगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेंति, पत्तचीवराई गिराहंति तहेव उत्तरंति जाव इमे से अायारभंडए ॥१४॥ भंतेत्ति ! भगवं गोयमे जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुपियाणं अंतेवासी जाली नाम अणगारे पगइभद्दए, से णं Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअणुत्तरोववाइयसूत्र ] | २५१ जाली अणगारे कालगए कहिं गए, कहिं उववरणे ? । एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी तहेव जहा खंदयस्स जाव कालगए उड्ढं चंदिमाइ जाव विजए विमाणे देवत्ताए उववण्णे ।। १५॥ जालिस्म णं भन्ते ! देवस्त केवइयं कालं ठिई पराणत्ता ? गोयमा ! बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १६॥ से ण भंते ! तानो देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएणं ठिईक्खएणं कहि गच्छिहिइ कहिं उववजहिइ ? । गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सइ ॥ १७ ॥ एवं खलु जम्बू ! समणेण जाय संपत्तेण अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पराणत्ते । एवं सेसाणवि अटण्हं भाणियव्वं । नवरं छ धारिणिसुआ वेहल्लवेहायसा चेल्लणाए । अभयस्स नाण-रायगिहे नगरे, सेणिए राया, नंदा देवी माया, सेसे तहेव । आइल्लाणं पंचरहं सोलस वासाइं सामरणपरियाओ, तिराहं बारसवासाइं, दोराहे पंच वासाइं। आइल्लाणं पंचराहं अणुपुबीए उववानो; विजए विजयंते जयंते अपराजिए सव्वट्ठसिद्धे । दीहदंते सव्वट्ठसिद्ध, अणुक्कमेणं सेसा । अभओ विजये । सेसं जहा पढमे । एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरेववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमटे पराणत्ते । ॥ इति पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा समत्ता ॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२] जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला ॥ द्वितीय-वर्ग॥ ___ जइ णं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्ल अयमढे पराणत्ते, दोच्चस्स में भंते ! वग्गस्ल अणुत्तरोक्वाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तणं के अटे परणत्ते ? ॥१॥ एवं खलु जम्बू ! समणेण जाव संपत्तणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पराणत्ता? तंजहा दीहसेणे, महासेणे, लट्ठदंते य, गुढदंते य,। सुद्धदंते य, हल्ले, दुमे, दुमसेणे, महादुमसेणे य आहिए।॥१॥ सीहे य, सीहसेणे य, महासीहसेणे य ाहिए । पुन्नसेणे य बोधव्वे, तेरसमे होति अज्झयण ॥२॥ जइ णं भंते ! समणेशं जाव संपत्तेणं अगुत्तरोववाइयदसा दोच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पराणत्ता, दोच्चस्स एवं भंते ! वग्गस्ल पढमस्स अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पएणते ? एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेण तेणं समएण रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, धारिणी देवी, सीहो सुमिणे जहा जाली तहा जम्म, बालत्तणं कलाओ, णवरं दीह सेणे कुमारे सव्वे वत्तव्वया, जहा-जालिस्स जाव अंतं काहिति ॥१॥ एवं तेरसवि, रायगिहे नयरे, सेणिोपिया, धारिणी माया तेरसराहवि सोल लवासाए परियायं मासियाए संलेहणाए प्राणु पुवीए उववाओ विजए दोन्नि, विजयंते दोन्नि, जयंते दोन्नि, अपराजिते दोन्नि, सेसा महादुमसेणमाइए पंच सव्वट्ठसिद्ध ॥२॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअणुत्तरोववाइयसूत्र ] [२५३ एवं वलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमढे पराणत्ते, मासियाए संलेह. णाए दोसुवि वग्गेसु । त्ति बेमि ॥ ॥ बीओ बग्गो समत्तो॥ ॥ तृतीय--वर्ग ॥ जइ णं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसा दोवस्त वग्गस्स अयम? पराणत्ते; तच्चस्स भन्ते ! वग्गस्त अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पएणत्ते ? ॥ १ ॥ एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पराणत्ता तंजहा धरणे य, सुनक्खत्ते य, इसिदासे य, आहिते । पेल्लए, रामपुत्ते य, चन्दिमा, पिटिमाइ य ॥ १॥ पेढालपुत्ते अणगारे, नवमे पोट्टिले इ य । वेहल्ले, दसमे वुत्ते, इमे य दस आहिया ।।२।। जइ णं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसा तञ्चस्स वग्गस्ल दस ज्झयणा पराणत्ता, पढमस्स णं भन्ते ! अझयणस्स समणेणं जाव संपत्ते के अटे पराणते? ॥३॥ एवं खलु जम्बू ! तेणं काले ते समएणं काकन्दी नाम नयरी होत्था, रिद्धिस्थिमियसमिद्धा, सहस्संबवणे उजाणे सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे जाव पासाइए, जियसत्तू राया ॥४॥ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला तत्थ णं काकन्दीए नयरीए भद्दा णाम सत्थवाही परिवसइ, अड्डा जाव अपरिभूया ।।५।। तीसे ण भद्दए सत्थवाहीए पुत्ते धन्न नाम दारए होत्था अहीण जाव सुरूवे, पंचधाई-परिग्गहिए, तंजहा-खीरधाइए जहा महब्बलो जाव बावत्तरि कलाओ अहिए जाच अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था ॥ ६ ॥ तए णं स। भद्दा सत्थवाही धरणद रयं उम्मुक्कबालभावं जाव भोगसमत्थं जाणित्ता, वत्तीसं पासायवडिसए कारेइ अब्भुग्गयमूसिए जाव तेसिं मज्झे प्रणेग-भवण --खभ-सयसन्निविटुं जाव बत्तीसाए इब्भवरकन्नगाणं एगदिवसे रंग पाणिंगिराहावेइ २ त्ता बत्तीसाओ दाओ जाव उधि पासायडिंसए फुट्टतेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव विहरइ ॥ ७॥ तेणं कालेण तेण समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे, परिसा निग्गया, जहा कोणिो तहा जियसत्तू णिग्गो ॥ ८॥ तए णं तस्स धराणस्स तं महया जणसइं जहा जमाली तहा णिग्गो , गवां पायचारेणं जाव जं गवां अम्मयं भदं सत्थवाहिं आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि, जाव जहा जमाली तहा श्रापुच्छइ, मुच्छिया, वुत्तपडिवुत्तया, जहा महबले जाव जाहे नो संचाइया, जहा थावच्चापुत्ते तहा जियसत्तूं आपुच्छइ, छत-चामराओ, सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेइ; जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो, जाव पवइए, अणगारे जाए, ईरियासमिए जावगुत्तबंभयारी ॥६॥ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रणुत्तरोववाइयसूत्र ] [ २५५ तर से धरणे अणगारे, जं चैव दिवस मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए तं चेव दिवसं समगं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी एवं खलु इच्छामि गं भन्ते ! तुभेहिं अब्भरपुरणाए समाणे जावजीवाए छटुंछट्ठे अणिक्खित्तें आयंबिल - परिग्गहिएं तवोकम्में अपां भावेमाणे विहरित्तए, छट्ठस्सवि य गं पारणगंसि कप मे श्रयंबिलं पडिग्गहितए, गो चेव णं णायंबिलं, तंपि य संसद्वेग णो चेव गं संसद्वेग तं पि य ग उज्झियधम्यं णो चेवं श्रणुज्भिवधम्मियं तंपि य ग जं अने बहवे समणमाहरा अतिहि- किवण - वणिमगा गावखति । श्रहासुहं देवापिया ! मा पडिबंधं करेह || १० | 9 तप से धरणे अणगारे समणेां भगवया महावीरेां अब्भणुण्णायसमाणे हट्ट-तुट्ठ जावजीवाए छट्ठ-छट्टेणं अणिक्खिणं तवोकम्मे अप्पा भावेमाणे विहरइ ॥ ११ ॥ तएां से धरणे अणगारे पढम - छुट्टख मणं - पारयसि पढमाए पोरिसीए सभायं करेति जहा गोयमस्वामी तहेव आपुच्छति जाव जेणेव काकंदी ायरी तेणेव उवागच्छइ २ ता काकंदीए नयरीए उच्चनीय जाव अडमाणे आयंबिलं जाव नावखति ॥ १२ ॥ तसे धरणे अणगारे ताए श्रभुजताए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमा जइ भत्तं लभइ तो पाां ण लभइ, ग्रह पा लभइ तो भत्तं ए लभइ ॥ १३ ॥ तर धन्न अणगारे अदी अधिमणे अकलुसे अविसादी अपरितंत जोगी जयणघडण - जोग-चरिते अहापजतं समुदाणं Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ ] [ जीवन-श्नेयस्कर-पाठमाला . पडिगाहेइ २त्ता काकंदीओ णयरीओ पडिणिक्खमइ २ त्ता जहा गोयने तहा पडिदंसेइ ॥ १४ ॥ तए ण से धरणे अणगारे, समणणं भगवया महावीरेण अब्भणुराणाए समाण अमुच्छिए जाव अणझोववन्ने बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणणं आहारं आहारेइ २त्ता, संजमेण तवसा अप्पाण-भावेमाणे विहरइ ॥ १५ ॥ तए ण समणे भगवं महावीरे अराणया कयाइ काकंदीओ णयरीओ सहस्संबवणाओ उजाणाओ पडिणिक्ख Rइ २त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ १६॥ तए ण से धरणे अणगारे समणस्स भगवभो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एकारस अंगाई अहिजति २त्तासंजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥१७॥ तए णं से धरणे अरणगारे तेणं ओरालेणं जहा खंदओ जाव सुहुयहुयासणे इव तेयसा जलते उवसोभेमाणे चिट्ठति ।। १८ ।। धन्नस्स णं अणगारस्स पायाणं अयमेयारूवे तवरूवलावराणे होत्था से जहानामए सुक्खछल्लीइ वा, · कट्टपाउयाइ वा, जरग्गओवाहणाइ वा, एवामेव धनस्स अणगारस्स पाया सुक्का भुक्खा लुक्ख। निमंसा अट्टिचम्प्रछिरत्ताए पन्नायंति, नो चेव णं मंससोणियत्ताए ।। १६ ॥ धन्नस्सण अणगारस्स प.यंगुलियाण अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था से जहानामए कलसंगलियाइ वा मुग्गमाससंगलियाइ वा, तरुणिया छिण्णा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी मिलायमाणी चिटुंति, एवामेव धनस्स Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअणुत्तरोववाइसूत्र ] [ २५७ पायंगुलियाओ सुक्काश्रो जाव णो मंससोणियन्ताए ॥ २० ॥ धन्नस्ल अणगारस्स जंघाणं अयमेयारूवे से जहानाम कंकजंघाइ वा, काकजंघाइ वा, ढेणिया लिया जंघाइ वा, एवं जाव सोणियत्ताए ॥ २१ ॥ धनस्त गं जाणं अयमेयारूवे से जहानामए-कालिपोरेह वा, मयूरपोरेह वा, ढेणिया लियापोरे वा, एवं जाव सोणियत्ताए ।। २२ । धन्नस्सणं उरूणं-जहा नामए सामकरिल्लेह वा, बोरिकरिलेइ वा सल्लइयकरिलेइ वा, सामलिंकरिल्लेह प्रा, तरुणिया छिन्ना उन्हे दिरणा जाव चिट्ठइ, एवामेव धन्नस्स उरूगं जाव सोणियन्ताए ॥ २३ ॥ - ·P धन्नस्सां कडिपत्तस्स इमेयारूवे, से जहा नामए उट्टपाएर, वा, जरग्गपाएड़वा, महिलपाएइ वा जाव णो सोशियत्त | ए ॥ २४ ॥ धन्नस्ल गं उदरभ । यणस्स अयमेयारूवे से जहा नामएसुक्क दिए इवा, भज्जराय कभल्ल इवा, कटुकोलंबएहवा, एवामेव उदरस्रुक्कं ।। २५ । धनस्सां पांसु लिया कड्याणं श्रयमेयारूवे से जहा नामएथासयावलीइ वा, पाणावलीइ वा, मुंडावलीइ वा, एवामेव ॥ २६ ॥ धन्नस्त पिटुकरंडगाणं श्रयमेयारूवे से जहा नामए-कनावल्लीइ वा, गोलावलीइ वा, वट्टावली वा, एयामेव० ॥ २७॥ : धराणस्स उरकडयस्स श्रयमेयारूवे से जहा नामए-चित्तकट्टरे वा, वियणपत्रोह वा, तालियंट व रोइ वा, एवामेव ॥२८॥ 2 Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला धनस्त बाहाणं से जहा नामए-समिसंग लियाइ वा पहाया गत्थिय संगलियाह वाः एवामेवः ॥ २६ ॥ संगलियाइ वा 9 धरणस्स हत्थाणं श्रयमेयारूवे से जहा नामए-सुक्क छगशियाइ वा वडपत्तेइ वा, पलासपतेइ वा एवामेव० ||३०|| धरण हत्थंगुलियागं से जहा नामए-कलसंगलिया इ वा, मुग्ग-पास संग लियाइ वा, तरुणिया छिन्ना श्रायवे दिरणा सुक्का समाणी एवामेव० ॥ ३१ ॥ धन्नस्स गीवार से जहा नामए-करगगीवाइ वा, कुंडियागीवाइवा, [कोत्थाइ वा ] उच्चटुवणएइ वा एवामेव० ॥३२॥ धनस्त गं हणुयार से जहा नामए-लाउफलेइ वा, हकुवफलेइ वा अंगट्टियाइ वा एवामेव ॥ ३३ ॥ धन्नस्ल गं उट्ठां से जहा नामए - सुक्कजलोयाइ वा, सिलेसगुलियाई वा अलसगुलिया वा [ अंबाडगपेसीयाइ वा ] एवामेव० ॥ ३४ ॥ धन्नस्स जिन्भार से जहा नामए वडपत्ते वा, पलासपतेइ वा [ उंबरपर्त्तर वा ] सागपतेइ वा एवामेव० ॥ ३५ ॥ धन्नस्स नाखाए से जहा नामए-अंबग पेसियाइ वा, अंबाडगपेसियाइ वा, माउलिंग पेसियाइ वा, तरुणियाइ वा, एवामेव० ।। ३६ ।। धरणस्स अच्छी से जहा नामए-वीणाछिडेइ वा बद्धीसगछि वा पाभाइयतारगाड़ वा, एवामेव० ॥ ३७ ॥ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .श्रीअणुत्तरोववादसूत्र ] . [२५९ धनस्स कन्ना, से जहा नामए मूलाछलियाह वा, वालुंकछल्लियाइ वा, कारेल्लगल्लियाद वा, एवामेव० ॥ ३८ ॥ धनस्सण अणगारस्स सीसस्स अयमेवारुवे से जहानामए तरुणगलाउएइ वा, तरुणगएलालुएइ वा, सिण्हालएइ वा, तरुणए जाव चिट्ठति एवामेव धनस्स अणगारस्स सीसं सुकंभुक्ख-लुक्ख-निम्मंसं अट्ठिचम्मछिरसाए पन्नायइ नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए ॥ ३९ ॥ . __ एवं सव्वत्थमेव नवरं उदर--भायणं, कन्ना, जीहा, उट्टा, एएसिं अट्ठी न भरणइ, चम्मछिरत्ताए पन्नायंति इति भणति ॥ ४० ॥ धन्ने णं अणगारे सुक्केण भुक्खेणं पायजंघोरूणा विगत-- तडिकरालेणं कडिकडाहेण पिट्टमवस्सिएणं उदरभायणेणं जोइजमाणेहिं पासुलियकडाएहिं अक्खसुसमालाइ वा मणिजमाणेहिं पिढिकरंडगसंधीहिं गंगातरंग-भूएण, उरकडाग देसभाएणं सुक्क-सप्पेसमाणेहिं बाहाहिं सिढिल-कडाली विव लंबंतेहि य अग्गहत्थेहिं कंपणवाइए विव वेवमाणीए सीसघडीए पव्वादवदन-कमले उब्भडघडमुहे उब्बुडनयणकोसे ॥४१॥ जीवं जीवेणं गच्छइ, जीवं जीवेण चिट्ठइ भासं भासिस्सामित्ति गिलायइ से जहा नामए इंगालसगडियाइ वा, जहा खंदओ तहा हुयासणे इव भास-रासिपलिच्छन्ने, तवेणं तेएवं तवतेयसिरीए उवसोमेमाणे चिट्ठइ ॥ ४२ ॥ तेणं कालेण तेण समरण रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेहए; सेणिय राया । समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा णिग्गया सेणिओ णिग्गओ, धम्मकहा, परिसा पडिगया ॥४३॥ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . . तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदइत्ता वमंसित्ता एवं वयासी-इमेसि णं भंते ! इंदभूइपामोक्खाणं चउद्दसराहं समणसाहस्सीणं कयरे अणगारे महा-- दुक्करकारए चेव महाणिजरयराए चेव ? ॥ ४४ ॥ एवं खलु सेणिया! इमेसिं इंदभूइपामोक्खाणं चउद्दसराहं समणसाहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुक्करकारए चेव, महानिजरतराए चेव ॥ ४५ ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ इमेसिं चउद्दलण्हं समणसाहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुक्कर कारए चेव महानिजरयराण चेव ॥ ४६॥ '. एवं खलु सेणिया ! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नाम नयरी होत्था, जाव प्पि पासायवडिसए विहरइ । तए णं अहं अराणया कयाइ पुव्वाणुपुब्बीए चरमाणे गामाणुगाम दुइजमाणे जेणेव क.कंदी नयरी जेणेव सहस्संबवणे उजाणे तेणेव उवागए २त्ता अहापडिरूवं उग्गह उग्गिरिहत्ता संजमेणं तवसा जाव विहरामि । परिसा णिग्गया, तं चैव जाव पवइए जाव बिलमिव जाव आहारेति.धनस्लणं अणगारस्स पादाणं सरीरवन्नो सव्वो जाव उवसोमेमाणे २ चिट्ठइ । से तेणटेणं सेणिया ! एवं वुच्चइ इमेसिं चउदसराहं समणसाहस्सीणं धन्ने अरणगारे महादुकरकारए चेव महानिजरयराए चेव ।। ४७ ॥ तते ण से सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म हट्टतुटे समां भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ वंदइ नमंसह २ त्ता Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रणुत्तरोववाइसूत्र] [२६६ जेणेव धन्ने अगगारे तेणेव उवागच्छइ २ ता धनं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ वंदइ नमसइ, वंदइत्ता नमंसइत्ता एवं वयासी-धरणे सिणं तुम देवाणुप्पिया! सुपुराण सुकयत्थे कयलक्खणे सुलद्धे ण देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले त्ति कटुवंदइ नमसइ २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २त्ता समण भगवं महावीरं तिक्खु त्तो जाव वंदइ २ त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए ॥४८॥ तए तस्स वनस्ल अणगारस्त अन्नया कयाइ पुग्धरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए मणोगए संकप्पे समुपजित्था, एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं जहा खंदो तहेव चिंत्ता, आपुच्छण, थेरेहिं सद्धिं विपुलं दुरूहइ, । मासियाए संलेहणाए नवमासा परियाो जाव कालमासे कालं किच्चा उड्ढे चंदिम जाव नवयगेविजविजयविमाणपत्थडे उड्ढं दुरं वीइवइत्ता सम्वट्ठसिद्ध विमाणे देवत्ताए उववन्ने ।। ४६ ॥ थेरा तहेव उत्तरंति जाव इमे से आयारभंडप ॥ ५० ॥ ... भंते त्ति, भगवं गोयमे तहेव पुच्छइ जहा खंदयस्स भगवं वागरेति जाव सबट्ठसिद्ध विमाणे उववन्ने ।। ५१ ॥ .. धन्नस्स णं भन्ते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता ॥ ५२ ॥ से गं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं कहिं मच्छिहिति कहिं उववज्जेहिति ? गोयमा ! Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला महाविदेहवासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुञ्चिहिइ परिणिवाहिइ सम्वदुक्खाणमंतं करेहिइ ।। ५३ ॥ एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेण जाव संपतेणं पढ मस्स अज्झयणस्स अयम? परणते ॥ ५४॥ ॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ जह णं भन्ते ! उक्खेवो एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएवं काकंदी नयरी होत्था, भद्दा सत्थवाही परिवसद ॥ १॥ तीसे गं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुनक्खत्ते नाम दारए होत्था, अहीण जाव सुरूवे, पंचधाइ-परिक्खित्ते जहा धन्नोतहेव बत्तीसो दाो जाव उपि पासायवडिसए विहरह ॥२॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जहा धन्नो तहा सुणक्खत्ते वि निग्गो जहा थावश्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अरणगारे जाए ईरियासमिए जाव गुत्तबंभयारिए ॥३॥ तए णं से सुनक्खत्ते अणगारे जे चेव दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे जाव पवइए तं चेव दिवसं अभिग्गहं तहेव बिलमिव परणगभूएणं आहारं आहारे, संजमेणं जाव विहरइ ॥ ४॥ समणं जाव बहिया जणवयविहारं विहरह । एकारस अंगाई अहिजह, संजमेणं तवसा अप्पारणं भावमाणे विहरह॥५॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रणुत्तरोववाइसूत्र ] [ १६३ तप से सुनक्खते अणगारे तेां उरालेां जहा खंदो ॥ ६॥ तेां कालेां तेां समएणं रायगिहे रायरे गुण सिलए चेहए, सेरिए राया सामी समोसढे, परिसा णिग्गया, राया निग्गश्रो धम्मक हा राया पडिगो, परिसा पडिगया ॥ ७ ॥ तपणं तस्स सुनक्खत्तस्स श्रनया कयाइ पुव्वरत्ता जाव धम्मजागरियं जहा खंदयस्स बहुवासाश्री परियाओ ॥ ८ ॥ गोयमपुच्छा जाव सव्वट्टसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववरणे । जाव महाविदेहवासे सिज्झिहिति ॥ ६॥ ॥ इति बीयं श्रभयं समत्तं ॥ एवं खलु जम्बू ! सुनक्खत्तगमेां सेसावि श्रट्ट भाणियव्वा, गवरं आणुपुवीए - दोन रायगिहे, दोनि साइए, दोन वाणियग्गामे, नवमो हत्थिणापुरे, दसमो रायगिहे ॥ १ ॥ नवराहं भद्दाश्रो जणणीओ, नवराहवि बत्तीस दाश्रो नवराहं निक्खमणं थावच्च पुत्तस्स सरिसं वेहल्लुप्पिया करेह, नवमास धरणे वेहल छमासापरियाश्रो, सेसारां बहुवालाई, मासं संलेहणा सव्त्रे महाविदेहवासे सिज्झिहिंति । एवं दस अज्झयणाणि । एवं खलु जम्बू ! समरोगं भगवया महावीरेण अणुत्तरोववाइयदसाणं तश्चस्स वग्गस्त श्रयमट्टे पसे । अणुत्तरोववाइयदसा श्रो सम्मत्ताओ । ऋणुत्तरोववाइयदसाणं एगो सुयखंधो तिनि वग्गा तिसु दिवसेसु उद्दिसिजंति, पढमे वग्गे दस उद्देसगा बीए वग्गे तेरस उद्दे लगा, तइये वग्गे दस उद्देसगा, सेसं जहा धम्मका नायव्वा ॥ इति ॥ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दशाश्रुतस्कंध चित्त-समाधि पंचमी दशा ॥ नमो सुयदेवयाए भगवतीए ।सुयं मे पाउसं! तेणं भगवया एवमक्खाय, इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहिठाणा पन्नत्ता । कयरा खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्तसमाहिठाणा--पराणता ? इमे खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दसचित्तसमाहिठाणा-पन्नता तंजहा-तेणं कालेणं तेण समएणं वाणियग्गामे नगरे होत्था, नगर-वरणओ भाणियन्वो ॥१॥ तस्स ण वाणियग्गामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए दूतिपलासए नाम चेइए होत्था, चेइए वरणो भाणियव्वो ॥ २॥ जियसत्तू राया, तस्स धारिणी नामं देवी एवं सव्वं समोसर भाणियन्वं जाव पढविसिलापट्टए, सामी समोसढे परिसा निग्गया; धम्मो कहिओ परिसा पडिगया ॥३॥ अजो! इति सपणे भगवं महावीरे समणाय समणीओय निग्गंथा य निग्गंधीओ य आमंतिता एव वयासी-इह खलु अजो! निग्गंथाणं वा, निग्गथीणं वा इरियास मियाणं, भासास मियामां, एसणासमियाणं, आयाणभंड-मत्त-निक्खेवणा-समियाणं, उञ्चारपासवण-खेल-जल्लसिंघाण-पारिट्ठावणिया-समियाणं, मण समियाणं, वय-समियाणं, काय-समियाणं, मण-गुत्ति Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशा श्रुतस्कंध चित्त समाधि ] [२६५ याण, वय-गुत्तियाणं, काय-गुत्तियाण, गुत्ति-दियाणं गुत्तबंभयारीणं, शायट्ठीणं, आय-हियाणं, पाय--जोय, आय-परिकमाणं पक्खिए-पोसहिएसु समाहि-पत्तणं मियायमाणाणं इमाइं दसचित्तसमाहि-टाणाई असमुप्पण्ण-पुव्वाइं समुप्पजित्था तंजहा-धम्मचिंता वा से असमुप्पण-पुवाइंसमुप्पजजा सव्वं धम्मं जाणित्तए ॥ १॥ सुमिण-दसिण वा से असमुप्पण-पुब्वे समुप्पज्जेजा, अहातश्च सुमिणं पासित्तए, सरिण-जाइ-सरणेणं सण्णि-णाणं वा से असमुप्पएण-पुव्वे समुप्पज्जेजा अप्पणो पोराणियं जाइ समरित्तए ॥३॥ देव-दंसणे वा से असमुप्पराण-पव्वे समुप्पज्जेजा दिव्वं देवढि दिव्वं देव-जुई दिव्वं देवाणुभावं पासित्तए ॥ ४॥ ओहिणाणे वासे असमुपपरण-पुत्रे समुप्पज्जेजा, ओहिणा लोगं जाणित्तए ॥५॥ ओहि-दसणे वा से असमुप्पण्ण-पुत्रे समुप्पज्जेजा-अड्डाइज्जेसु दीव-समुद्देसु सराणी-पंचिंदिया पजत्तगाणं मणोगपभावे जाणित्तए ॥ ७॥ केवलनाणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेजा केवलकप्पं लोया-लोयं जाणित्तए ॥ ८ ॥ केवल-दसणे वा से असमुप्पएण-पुत्रे समुप्पज्जेजा केवलकप्पं लोयालोयं पासित्तए ।॥ ९॥ केवल-मरणे वा से असमुप्पगण-पुत्रे समुप्पज्जेजा सव्वदुक्खप्पहाणाए ॥ १० ॥ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६] . [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला. ओयं चित्त समादाय, ज्झारा समुप्पजइ । धम्मे टिओ अविमगो, निब्याणम भिगच्छद ॥ १॥ ण इमं चित्तं समादाय, भुजो लोयंसि जायइ । अप्पणो उत्तमं ठाणं, सरणी णाणेण जाणइ ॥२॥ अहातच्चं तु सुमि, खिप्पं पासेति संवुडे । सव्वं वा ओहं तरति, दुक्खओ य विमुच्चइ ॥ ३॥ पंताई भयमाणस्स, विवित्तं सयणासणं । अप्पाहारस्स दंतस्स, देवा दंसेति ताइणो ॥ ४ ॥ सम्व-काम-विरतस्स, खमणो भय-भेरवं । तो से अोही भवइ, संजयस्स तवस्सियो ।॥ ५॥ तवसा अवहटु लेस्सस्स, दंसरणं परिसुज्झइ । उड्ढं अहे तिरियं च, सव्वमणुपस्सति । ६॥ सुसमाहियलेस्सस्स, अवितकस्स भिक्खुणो। सम्बो विपामुकरल, प्राया जाणाइ पज्जवे ॥ ७॥ जया से नाणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं । तो लोगमलोगं च, जिरणो जाणति केवली ॥ ८ ॥ जया से दरसणावरण, सव्वं होइ खयं गयं । तो लोगमलोगं च, जिणो पासति केवली ॥ ६ ॥ पडिमाए विसुद्धाए, मोहणिजं खयं गयं । असेसं लोगमलोगं च पासेति सुसमाहिए ॥ १० ॥ जहा मत्थए सूइए, हंताए हम्मइ तले । एवं कम्माणि हम्मंति, मोहणिजे खयं गए ॥ ११ ॥ सेणावइमिन निहते, जहा सेणा पणस्सइ । एवं कम्पाणि णस्संति, मोहणिजे खयं गए ॥ १२ ।। धूम-हीणो जहा अग्गी, खीयति से निरिंधणे । एवं कम्माणि खीयंति, मोहणिजे खयं गए ॥ १३ ॥ . Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउसरण पयन्ना] सुक्क-मूले जहा रुक्खे, सिंचमाणे ण रोहति। . एवं कम्मा ण रोहंति, मोहणिजे खयं गए ॥१४॥ जहा दड्डाणं बीयाणं, न जायंति पुण अंकुरा । कम्म-बीएसु दडढेसु न जायंति भवंकुरा ॥ १५ ॥ चिञ्च। ओरालियं बोंदि, नाम-गोयं च केवली । पाउयं वेयणिज च, छित्ता भवति णीरए ॥ १६ ॥ एवं अभिसमागम्म, चित्तमादाय आउसो। सेणिसुद्धिमुवागम्म आया सुद्धिमुवागइ।त्ति बेमि ॥१७॥ ॥ इति दशाश्रुतम्कन्ध-चित्तसमाधि-नाम-पंचमी दशा ।। ॥ चउसरण पइराणा ॥ सावज जोगविरई', उक्त्तिण', गुणवओ अ पडिवत्ती। खलिअस्स निंदणा, वणतिगिच्छ',गुणधारणा चेव ॥१॥ चारित्तस्स विसोही करइ सामाइएण किल इहयं । सावजे अरजोगाण वजणासेवणत्तणो ॥ २॥ दंसणायारविसोही चउवीसत्थएण किच्चइ य। अञ्चब्भुअगुणकित्तणरूवेण जिणवरिंदाणं ॥ ३ ॥ नाणाईश्रा उ गुणा तस्संपन्नपडिवत्तिकरणाओ। वंदणएणं विहिणा कीरइ सोही उ तेसिं तु ॥४॥ खलिअस्स य तेसिं पुणो विहिणा जं निंदणाइ पडिक्कमणं । तेण पडिकमणेगां तेसिपि अकीरए सोही ॥५॥ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला ४ ५ ७ ८ १४ चरणाईयारा गं जहक्कम्मं वणतिगिच्छरूवेणं । पडिक्कम सुद्धा सोही तह काउसग्गेणं ॥ ६ ॥ गुणधारणरूवेणं पञ्चक्खाणेण तवइया रस्स । विरश्रायास्स पुणो सव्वेहिवि कीरए सोही ॥ ७ ॥ 'सह' सीह अभिसे दाम सर्सिदिएर झर्य कुभं । पउमसर सागर" विमाण - भवण रयणुच्चय” सिहिं च अमरिंदन रिंदमुदिबंदिअं वंदिउं महावीरं कुसलाणुबंधि बंधुरमज्झयां कित्तइस्साभि ॥ ६ ॥ चउसरणगमण दुक्कड गरिहा सुकाणुमोश्रणा चेव । एस गणो अवश्यं कायव्वो कुसल हेउत्ति ॥ १० ॥ अरहंत-सिद्ध- साहू केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो । एए चउरो चउगइहरणा सरां लहइ धन्नो ॥ ११ ॥ ग्रह सो जिणभत्ति-भरुत्थरंत रोमंच-कंचुअ- करालो । पहरिसण- उम्मीसं सीसंमि कथंजलि भगइ ॥ १२ ॥ रागद्दोसारीणं हंता कम्मट्ठगाइअरिहंता / विसय - कसायारीणं अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥ १३ ॥ राय सिरिमुवक्कमि (सि) ता तवचरणं दुच्चरं श्रणुचरिता । केवल सिरिमरिहंता अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥ १४ ॥ थुइ-दमरिहंता अमरिंद-नरिंद्रपूर अमरिहंता । सासय सुहमरहंता अरिहंता हुंतु मे सरां ॥ १५ ॥ परमरागयं मुांता जोइंद महिंद भाणमरहंता । धम्मकहं अरहंता अरिहंता हुतु मे सरणं ॥ १६ ॥ सव्वजिश्राणमहिंसं अरहंता सच्चवयणमरहंता । बंभव्वयमरहंता अरिहंता हुतु मे सरणं ॥ १७ ॥ ओसरणमवसरित्ता चउतीसं इसए निसेवित्ता । धम्मक च कहंता अरिहंता हुतु मे सरणं ॥ १८ ॥ १२ 13 Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउसरण पयन्ना [२६६ एगाइ गिराऽणेगे संदेहे देहि समं छित्ता। तिहुयणमणुसासंता अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥ १६ ॥ वयणामएण भुवणं निव्वाविंता गुणेसु ठावंता । जिअलोअमुद्धरंता अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥ २० ॥ अञ्चब्भुयगुणवंते नियजसससारपसाहिअदिअंते । नियमणाइ अणंते पडिवन्नो सरणमरिहते ॥ २१ ॥ उज्झिअजरमरणाणं समत्तदुक्खत्तसत्त-सरणाणं। तिहुअणजणसुहयाणं अरिहंतारणं नमो ताणं ॥ २२॥ अरिहंत-सरण मल-सुद्धिलद्ध-सुविसुद्ध-सिद्धबहुमायो । पणय सिर रइय-कर-कमल-सेहरो-सहरिसं भणइ ।। २३ ।। कम्मटुक्खयसिद्धा साहाविअनाणदसणसमिद्धा । सम्वट्ठलद्धिसिद्धा ते सिद्धा हुंतु मे सरणं ॥ २४॥ तिअलोप्रमत्थयत्था परमपयत्था अचिंतसामत्था। मंगलसिद्धपयत्था सिद्धा सरणं सुहपसत्था ॥ २५ ॥ मूलुक्खयपडिवक्खा अमूढलक्खा सजोगिपञ्चक्खा । साहवित्तसुक्खा सिद्धा सरण परममुक्खा ॥ २६ ॥ पडिपिल्लिन पडिणीया समग्गाणग्गिदड्डभवबीमा। जोइसरसरणीया सिद्धा सरणं सुमरणिया ॥२७॥ पावियपरमादा गुणनीसंदा विभिन्न भवकंदा । लहुईकय-रविचंदा सिद्धा सरणं खविपदंदा ॥२८॥ उवल द्धपरमबंभा दुल्लहलभा विमुक्कसंरंभा । भुवणघरधरणखंभा सिद्धा सरणं निरारंभा ॥ २९ ॥ सिद्धसरणेण नवबंभहेउसाहुगुणजणि-बहुमायो मेइणिमिलंत सुपसत्थमत्थओ तत्थिमं भणइ ॥ ३०॥ जिअलोअबंधुणो कुगइसिंधुणो पारगा महाभागा। नाणाइएहिं सिवसुक्खसाहगा साहुणो सरणं ॥ ३१॥ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला केवलिणो परमोही विउलमई सुअहरा जिणमयंमि। आयरिन उवज्झाया ते सव्वे साहुणो सरां ॥ ३२ ॥ च उदस-दस-नवयुवी दुवालसिकारसंगिणो जे । जिणकप्पाहालंदिअपरिहार-विसुद्धि-साहू अ ॥ ३३॥ खीरासवमहु-आसवसंभिन्नस्सोअकुट्टवुद्धी श्र। चारणवेउविपयाणुसारिणो साहुणो सरणं ।। ३ ।। उझियवइरविरोहा निच्चमदोहा पसंतमुहसोहा । अभिमयगुणसंदोहा हयमोहा साहुगो सरणं ।। ३५ ।। खंडिअसिणेहदामा छाकामघामा निकामसुहकामा । सुपरिसमणाभिरामा आयारामा मुणी सरां ॥ ३६॥ मिल्हि अविसयकसाया उभियघरघरणिसंगसुहसाया । अकलि अहरिस विलाया साहू सरणं गयपमाया ॥३७ ॥ हिंसाइदोससुन्ना कयकारुन्ना सयंभुरुप्पन्ना-(प्पुराणा )। अजरामरपहखुन्ना साहू सरणं सुकयपुन्ना ॥ ३८ ॥ कामविंडबणचुका कलिमलमुका विवि [मु] कचोरिका । पावरय-सुरयरिका साहू गुणरयणचच्चिका ।। ३६ ।। साहुत्तसुट्टिया जं आयरिश्राई तो य ते साहू । साहुभणि.एण गहिया तम्हा ते साहुणो सरणं ॥ ४०।। पडिवन्नसाहुसरणो सर काउं पुणोवि जिणधम्म । पहरिसरोमंचपवंचकंचुचिअतरणू भणइ ॥ ४१ ।। पवरसुकरहिं पत्तं पत्तेहिवि नवरि केहिवि न पत्तं । तं केवलिपन्नत्तं धम्म सरगां पवन्नोऽहं ॥ ४२ ॥ पत्तेण अपत्तेण य पत्ताणि अ जेण नरसुरसुहाई। मुक्खसुहं पुण पत्तेण नवरि धम्मो स मे सरणं ।। ४३ ॥ निद्दलि अकलुसकम्मो कयसुहजम्मो खलीकय--अहम्मो । पमुहपरिणामरम्मो सरणं मे होउ जिणधम्मो ॥४४॥ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउसरण पयन्ना 1 [ २७१ कालत्तरवि न मयं जम्प्रण-- जर मरणवाहिलय - समयं । श्रमयं व बहुमयं जिणमयं च सरणं पवन्नोऽहं ।। ४५ ।। पस मिश्रकाममोहं दिट्टादिट्ठेसु नकलिअविरोहं । सिवसुहफलयम मोहं धम्मं सरणं पवन्नोऽहं ॥ ४६ ॥ नरय- गइ गमणरोहं गुणसंदोहं पवाइनिकखोह | निहणिअवम्प्रहजोहं धम्मं सरणं पवनोऽहं ॥ ४७ ॥ भासुर - सुवन्न- सुंदर - रयणालंकार- गारव-महग्घं । निहिमिव दोगच्चहरं धम्मं जिणदेसिअं वंदे ॥ ४८ ॥ चउसरागमणसंचि अपवरिअरे मंच अंचियसरीरो । कयदुक्कड गरिहो असुहकम्पक्खयकंखिरो भइ ॥ ४६ ॥ seभविश्रमन्नभविअं मिच्छत्तपवत्तां जमहिगरणं । जिपवयणपड़िकुटुं दुट्टु गरिहामि तं पावं ।। ५० ।। मिच्छत्ततमंधेां अरिहंताइसु अवन्नवयणं जं । अन्नाणेण विरइयं इरिह गरिहामि तं पावं ।। ५१ ।। सुग्रधम्म- संघ साहुसु पावं पडिणीअयाइ जं रइअं । अम्ने अपावेसुं इसिंह गरिहामि तं पावं ॥ ५२ ॥ अन्सु जीवेसुं मित्ती- करुणा इ-गोयरेसु कथं । परिश्रावणाई दुक्खं इहि गरिहामि तं पावें ॥ ५३ ॥ जं मरावयकारहिं कयकारिअ - अणुमईहिं आयरियं । धम्मविरुद्ध सुद्धं सव्वं गरिहामि तं पावं ॥ ५४ ॥ अह सो दुक्कड गरिहाद लिउक्कड दुक्कडो फुडं भणइ | सुकाणुरायसमुइन्न पुन्नपुलयं कुरकरालो ॥ ५५ ॥ अरिहत्तं अरिहंतेसु जं च सिद्धत्तणं च सिद्धे सु । आयारं आयरिए उज्झायत्तं उवज्झाए ॥ ५६ ॥ साहू साहुचरिअं च देसविरइं च सावय - जणां । अणुमन्ते सवेसिं सम्मत्तं सम्मदिट्ठीगं ।। ५७ ।। Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला अहवा सव्वं चिअ वीयरायवयणाणुसारि जे सुकयं । कालत्तए वि तिविहं अणुमोएमो तयं सव्वं ।। ५८ ।। सुहपरिणामो निञ्च चउसरणगमाइ अायारं जीवो। कुसलपयडीउ बंधा बंद्धाउ सुहाणुबंधाउ ॥ ५६ ।। मंदाणुभावा बद्धा तिवाणुभावाउ कुणइ ता चेव । असुहाउ निरणुबंधाउ कुणइ तिव्वाउ मंदाउ ॥ ६० ॥ ता एयं कायव्वं बुहेहिं निञ्चपि संकिले सम्मि । होइ तिकाल सम्म असंकिलेसंमि सुकयफलं ।। ६१ ।। चउरंगो जिणधम्मो न को चउरंगसरणमवि न कयं । चउरंगभवुच्छेत्रो नको हा हारिओ जम्मो ॥ १२ ॥ इ-जीवपमायमहारिवीर-भदंतमे-अमझयणं । झाएसु तिसंझमवंझ-कारण निव्वुइसुहाणं ।। ६३ ॥ . ॥ चउसरणं समत्तं ॥ १ ॥ ॥ सुभाषित ॥ -- ()::::-- पंच-महव्यय-सुव्वय-मूलं, समण-मणाइल-साहू सुचिन्न । वेरविरमणपजवस्मारणं, सव्वसमुदगहोदधी तित्थं ॥ १ ॥ तित्थंकरहिं सुदेसियमग्गं, नरग-तिरिय विवजिय-मग्गं । सव्वं-पवित्तंसुनिम्मियसारं, सिद्धि विमाणं अवंगुय-दारं ॥२॥ देव नरिंद-नमंसिय-पूइयं, सव्व जगुत्तम-मंगल-मग्गं । उद्धरिसं गुण-नायगमेग, मोक्खपहस्स-वडिंसगभूयं ॥३॥ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सुभाषित] [२७३ धम्माराम चरे भिक्खू, धिमं धम्म-सारही। धम्मारामे रया दंते, बंभचेर-समाहिए ॥४॥ देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस्स-किनारा। बंभयारिं नमसंति दुक्करं जे करन्ति तं ॥ ५॥ एस धम्मे धुवे निश्चे, सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिज्झंति चाणेणं, सिझिस्संति तहावरे ॥ ६ ॥ अरहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुए-तवस्सीसु। वच्छल्लया य तेसिं अभिक्खनाणावोगे य ॥७॥ दसण-विणय-श्रावस्सए य, सीलब्वए निरइयारे । खणलव-तव-चियाए, वेयावच्चे समाहीए ।। अपुव्वनागरगहणे सुयभत्ती, पव्वयणे पभावणया । एएहिं कारणेहिं तित्थयरत्तं लहइ जीवो ।। ६ ।। जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करंति भावेणं । अमला असं किलिट्ठा, ते डंति य परित्तसंसारि ॥ १०॥ एवं खुनाणिणो-सारं, जं न हिंसई किंचणं । अहिंसा-समयं चेव, एत्तावतं वियाणिया ॥ ११ ॥ जाइं च बुढिच इहेज-पासं, भूतेहिं जाण पडिलेह सायं।. तम्हा तिविजो-परमंतिणञ्चा, सम्मत्तदंसीन करेइ पावं १२.. उम्मुश्च पासंह मचिए हिं, आरंभजीवीऊज्झपयाणुपस्सी। कामेसु गिद्धा णित्रयं करंति, संसिंचमाणा पुणरेति गम्भं१३ सवणे नाणे विन्नाणे, पञ्चक्खाणे य संजो। अणएहए तवे चेव, वोदाणे अकिरियासिद्धि ॥ १४ ॥ एगोहं नत्थि मे कोइ नाहमनस्स कस्सई । एवं अहीणमणसा; अपाणमांसासई ॥१५ ।। Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजो । सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वं संजोगलक्खणा ॥ १६ ॥ जीवियं नाभिगच्छेजा मरणं नोवि पत्थए। दुह उवि न इच्छेजा, जीवियं मरणं तहा ॥ १७ ॥ सारं दसणना, सारं-तव-नियम-संजम-सी । सारं जिणवरधम्मं; सारं संलेहणा पंडियमरणं ॥१८॥ कल्लाणकोडिकारिणी, दुग्गइदुहनिट्ठवणी । संसारजलतारिणी, एगंत होइ जीवदया। १९ ।। आरंभे नत्थि दया, महिलए संग नासइ बंभं । संकाए नासइ सम्मत्तं, एवज्झा अत्थग्गहरणं च ॥ २० ।। मजं विसयकसाया, निद्दा विकहा य पंचमी भणिया। एए पंच पमाया, जीवा पाडेति संसारे ।। २१॥ लब्भति विमला भोए, लम्भंति सुरसंपया। लभंति पुत्तमित्तं च, एगो धम्मो न लब्भई॥ २२॥ न वि सुही देवता देवलोए, न वि सुही पुढवीपइराया । न वि सुही सेट्ठिसेणावइ य,एगत सुही मुणी वीयरागी ।।२३।। नगरी सोहंती जलमूल बागे, नारी सोहंति परपुरुषत्यागे। राजासोहंत सभा पुराणी, साधु सोहंता अमृतवाणी ॥५४॥ चलंति मेरु चलति मंदिरं, चलंति तारा रविचन्द्रमंडल । कदापिकाले पृथ्वी चलति, साहसपुरुषवाक्यो न चलति धर्मे २५ अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टि दिव्यध्वनिश्चामरमासनं च। भामण्डल दुंदुभिरातपत्रं, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् २६ अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कुडसामली। ..... अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नंदणं वर्ण ॥ २७॥... Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामरस्तोत्रम् | - [२७५ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममितं च, दुष्पट्टियसुपट्टिओ॥ २८ ।। जो सहस्सं सहस्साणां, संगामे दुजए जिए । एग जिणेज अप्पारणं, एस से परमो जओ ॥ २६ ॥ लाभालाभे सुहे-दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो मिन्दापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ ३० ॥ ॥ भक्तामरस्तोत्रम् ॥ भक्तामरप्रणतमालिमणिपभाणामुद्योतक दलितपापतमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादावालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ॥१॥ यः संस्तुतः सकलवाङ्मयतत्त्वबोधा दुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः । .. स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्तहरैरुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥२॥ 'बुध्ध्या विनाऽपि विबुधार्चितपादपीठ !, स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम् । बाल विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्बसन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥३॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला. वक्तुंगुणान् गुणसमुद्र!शशाङ्ककान्तान् , कस्ते क्षमः सुरगुरोःप्रतिमोऽपि बुध्ध्या । कल्पांतकालपवनोद्धतनकचक्रं, को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्॥४॥ सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश !, कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्यात्मवीर्य विचार्य मृगो मृगेन्द्र, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ॥५॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधो मधुरं विरौति, तश्चारुचाम्रकलिकानिकरैकहेतुः ॥६॥ भवसन्ततिसन्निबद्धं, पापं क्षणाक्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु, सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ।। ७ ।। मत्वेति नाथ ! तव संस्तवनं मयेदमरिभ्यते तनुधियाऽपि तंव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतों नलिनीदलेसु, मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः ॥८॥ आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं, त्वत्संकथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशभाञ्जि ॥६॥ - Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर स्तोत्रम् ] | २७७ नात्यद्भुतं भुवनभूषण ! भूतनाथ ! भूतैर्गुणैभूवि भवन्तमभिष्टुवन्तः 1 तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा, भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति । १० ॥ भवन्तमनिमेषविलोकनीयं. दृष्ट्वा नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः । पीत्वा पयः शशिकरद्युति दुग्ध सिन्धोः, क्षारं जल जलनिधेरशितुं क इच्छेत् ॥ ११ ॥ यैः शान्त गगरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं, निर्मापित स्त्रिभुवनैकललामभूत ! | तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां, यत्ते समानमपरं न हि रूपमस्ति ॥ १२ ॥ वक्त्रं क ते सुरनरोरगनेत्रहारि, निःशेष निर्जित जगत्त्रितयोपमानम् । बिम्बं कलङ्कमलिनं क निशाकरस्य, यद्वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम् ॥ १३॥ सम्पूर्णमण्डलशशाङ्ककलाकलाप ! शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति । ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वर ! नाथमेकं, कस्तान्निवारयति सञ्चरतो यथेष्टम् ।। १४ ।। चित्र किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभिनीत मनागपि मनो न विकारमार्गम् । कल्पान्तकालमरुता चलिताचलेन, किं मन्दराद्रिशिखरं चलितं कदाचित् ॥ १५ ॥ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला प्रकटीकरोषि । निर्धूमवर्तिरपवज्र्जित तैलपूरः, कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोsपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः || १६|| नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति । नाम्भोधरोदर निरुद्ध महाप्रभावः सूर्यातिशायिमहिमाऽसि मुनीन्द्र ! लोके ।। १७ । दलितमोह महान्धकारं, नित्योदयं गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति, विद्योतयज्जगद पूर्व शशाङ्कविम्बम् ॥ १८ ॥ किं शर्वरीषु शशिनाऽह्नि विवस्वता वा, युष्मन्मुखेन्दुदलितेषु तमस्सु नाथ ! । निष्पन्नश। लिवन शालिनि जीवलोके, कार्य कियज्जलधरैर्जलभारनम्रः ॥ १६ ॥ ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु । तेजः स्फुरन्मणिषु यांति यथा महत्त्वं, नैवं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ॥ २० ॥ मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्ट्रा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः, कश्चिन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि ॥ २१ ॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामरस्तोत्रम् ] [६७६ स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् ,.. नान्यसुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता। . . सर्वा दिशो दधति-भानु-सहस्ररश्मिः, प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम् ।।२२।। त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसमादित्यवर्णममलं तमसःपुरस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु नान्यः शिवः शिक्पदस्य मुनीन्द्र! पन्थाः॥२३॥ त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसङ्ख्यमादयं, ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् । योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं, ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥ २४ ॥ बुद्धस्त्वमेव - विबुधार्चितबुद्धिबोधात्, त्वं शङ्करोऽसिभुवनत्रयशङ्करत्वात् । .. धाताऽसि धीर ! शिवमार्गविधेर्विधानात्, ... व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥२५॥ तुभ्यं नमस्त्रिभुवनातिहराय नाथ ! तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधिशोषणाय ॥ २६॥ को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणरशेषैस्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश ! । दोषैरुपात्तविविधाश्रयजातगर्वैः, स्वप्नांतरेऽपिन कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥२७॥ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूखमाभाति रूपममलं भवतो नितान्तम । स्पष्टोल्लसत्किरणमस्ततमोवितानं, बिम्बं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति ॥ २८ ॥ सिंहासने मणिमयूख शिखा विचित्र, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियद्विलसदंशुलतावितानं, तुङ्गोदयाद्विशिरसीव सहस्ररश्मेः ॥ २६ ॥ कुन्दावदातचलचामरचारुशोभं, विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् । उद्यच्छशाङ्कशुचि निर्जर वारिधारमुच्चस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् || ३० ॥ छत्रत्रयं तव विभाति शशाङ्ककान्तमुचैः स्थितं स्थगितभानुकरप्रतापम् । मुक्ताफलप्रकरजाल विवृद्धशोभंप्रख्यापयत्त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥ ३१ ॥ [ गम्भीरताररवपूरितदिग्विभागत्रैलोक्यलोकशुभसङ्गमभूतिदक्षः । सद्धर्मराज जय घोषणघोषकः सन्, खे दुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी ॥ ३२ ॥ मन्दारसुन्दरन मेरुसुपारिजातसंतानकादिकुसुमोत्करवृष्टिरुद्धा | गन्धोद विन्दुशुभमन्द मरुत्प्रपाता, दिघ्या दिवः पतति ते वचसां ततिर्वा ॥ ३३ ॥ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामरस्तोत्र [२८१ शुभ्रप्रभावलयभूरिविभा विभोस्ते, लोकत्रययुतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती । प्रोद्यदिवाकरनिरन्तरभूरिसङ्ख्या, दीप्त्यिार्जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याः ॥३४॥ स्वर्गापवर्गगममार्गविमार्गणेष्टसद्धर्मतत्त्वकथनैकपटुस्त्रिलोक्याः । दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थसर्वभाषास्वभावपरिणामगुणैः प्रयोज्यः ] ॥३५॥ उन्निद्रहेमनवपङ्कजपुञ्जकांति, पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाऽभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥ ३६॥ इत्थं यथा तव विभूतिरभूजिनेन्द्र ! धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य । यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा, तादृक् कुतो ग्रहगणस्य विकासिनोऽपि ॥३०॥ श्च्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूलमत्तभ्रमभ्रमरनादविद्धवृकोषम् । ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं, दृष्ट्वा भयं भवतिनो भवदाश्रितानाम् ॥३८॥ मिन्नेभकुम्भगलदुज्ज्वलशोणितातमुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः। -- .. बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥ ३९ ॥ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला कल्पान्तकालपवनोद्धतवनिकल्पं, दावानल ज्वलितमुज्ज्वलमुत्स्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघत्सुमिव सन्मुखमापतन्तं, त्वन्नामकीर्तनजल शमयत्यशेषम् ॥ ४० ॥ रक्तक्षणं समदकोकिलकण्ठनील, क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम् । प्राकामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्कस्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुसः ॥४१॥ वल्गत्तुरङ्गगजगजितभीमनादमाजी बल बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यदिवाकरमयूखशिखापविद्धं, त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति ॥ ४२॥ कुन्ताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाहवेगावतारतरणातुरयोधभीमे । युद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षास्त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणो लभन्ते ॥ ४३ ॥ अम्भोनिधौ शुभितभीषणनचक्रपाठीनपीठभयदोल्वणवाडवाग्नौ । रङ्गत्तरंगशिखरस्थितयानपात्रास्त्रासं विहाय भवतःस्मरणाद् व्रजति॥४४॥ उद्भूतभीषणजलोदरभारभुग्नाः, शोच्यां दशामुपगताश्च्युतजीविताशा । त्वत्पादपङ्कजरजोऽमृतदिग्धदेहा. मा भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः ॥ ४५ ॥ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . कल्याणमन्दिरस्तोत्रम् ] आपादकण्ठ मुरुशृङ्खलवेष्टिताङ्गा, गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजङ्घाः । त्वन्नाममंत्रमनिशं स्मरन्तः, मनुजाः सद्यः स्वयं विगतबंधभया भवन्ति ॥ ४६ ॥ मत्तद्विपेन्द्र मृगराजदवानलाहिसङ्ग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थम् । तस्याशुनाशमुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥ ४७ ॥ स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धां, भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम् । धरो जनो धत्ते य इह कण्ठगतामजस्रं, तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥ ४८ ॥ ॥ इति मान्तुगाचार्य विरचिते स्तोत्रम् ॥ || श्री सिद्धसेनदिवाकरप्रणीतम् ॥ || श्री कल्याणमन्दरस्तोत्रम् || [ २८३ कल्याणमन्दिर मुदारमबद्यभेदि, भीताभयप्रद मनिन्दित मंत्रिपद्मम् । संसारसागर निमज्जदशेषजंतु - पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य ॥ १ ॥ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला यस्य स्वयं सुरगुरुगरिमाम्बुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुर्विधातुम् । तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतोस्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये ॥२॥ सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूपमस्मादृशाः कथमधीश ! भवंत्यधीशाः । धृष्टोऽपि कौशिकशिशुर्यदि वा दिवान्धो, रूपं प्ररूपयति किं किल धर्मरश्मेः ।। ३ ।। मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ ! मर्यो, नूनं गुणान् गणयितुं न तव क्षमेत । कल्पान्तवान्तपयसःप्रकटोऽपि यस्मान्मीयेत केन जलधेननु रत्नराशिः ? ॥४|| अभ्युद्यतोऽस्मि तव नाथ ! जडाशयोऽपि, कर्तुं स्तवं लसदसङ्ख्यगुणाकरस्य । बालोऽपि किं न निजबाहुयुगं वितत्य, विस्तीर्णतां कथयति स्वधियाऽम्बुराशेः?॥५॥ ये योगिनामपि न यान्ति गुणास्तवेश वक्तुं कथं भवति तेषु ममावकाशः । जाता तदेवमसमीक्षितकारितेयं, जल्पन्ति वा निजगिराननु पक्षिणोऽपि ॥६॥ प्रास्तामचिन्त्यमहिमा जिन ! संस्तवस्ते, नामाऽपि पाति भवतो भवतो जगन्ति । तीव्रातपोपहतपान्थजनान्निदाघे, प्रीणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि ॥ ७॥ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्याणमन्दिरस्तोत्रम् [२८५ हृद्धर्तिनि त्वयि विभो ! शिथिलीभवन्ति, जंतोः क्षणेन निविडा अपि कर्मबन्धाः । सदयो भुजङ्गममया इव मध्यभागमभ्यागते वनशिखण्डिनि चन्दनस्य ॥ ८॥ मुच्यंत एव मनुजा सहसा जिनेन्द्र ! रौद्र्रुपद्रवशतैस्त्वयि वीक्षितेऽपि । गोस्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रे, चोरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः ॥ ६ ॥ त्वं तारको जिन ! कथं ? भविनां त एव, त्वामुद्वहन्ति हृदयेन यदुत्तरन्तः । यद्वा दृतिस्तरति यजलमेष नूनमन्तर्गतस्य मरुतः स किलानुभावः ॥ १० ॥ यस्मिन् हरप्रभृतयोऽपि हतप्रभावाः, सोऽपि त्वया रतिपतिः क्षपितः क्षणेन । विध्यापिता हुतभुजः पयसाऽथ येन, पीतं न किं तदपि दुर्धरवाडवेन ? ॥ ११ ॥ स्वामिन्ननल्पगरिमाणमपि प्रपन्नास्त्वां जन्तवः कथमहो हृदये दधानाः । जन्मोदधिं लघु तरन्त्यतिलाघवेन, चिन्त्यो न हन्त ! महतां यदि वाप्रभावः॥१२।। क्रोधस्त्वया यदि विभो ! प्रथमं निरस्तो, ध्वस्तास्तदा बत कथं किल कर्मचौराः ? प्लोषत्यमुत्र यदि वा शिशिराऽपि लोके, नीलमाणि विपिनानि न कि हिमानी ॥१३।। Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला त्वां योगिनो जिन ! सदा परमात्मरूपमन्वेषयन्ति हृदयाम्बुजकोशदेशे । पूतस्य निर्मलरुचेर्यदि वा किमन्यदक्षस्य सम्भवि पदं ननु कर्णिकायाः ? || १४॥ ध्यानाजिनेश ! भवतो भविनः क्षणेन, देहं विहाय परमात्मदशां व्रजन्ति । तीव्रानला दुपलभावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातुभेदाः ।। १५ ।। अन्तः सदैव जिन ! यस्य विभाव्यसे त्वं, भव्यैः कथं तदपि नाशय से शरीरम् । एतत्स्वरूपमथ मध्यविवर्त्तिनो हि, यद्विग्रहं प्रशमयन्ति महानुभावाः ॥ १६॥ आत्मा मनीषिभिरयं त्वदभेदबुद्धया, ध्यातो जिनेन्द्र ! भवतीह भवत्प्रभावः । पानीयमध्यमृतमित्यनुचिन्त्यमानं, किं नाम नो विषविकारमपाकरोति ॥ १७ ॥ त्वामेव वीततमसं परवादिनोऽपि, नूनं विभो ! हरिहरादिधिया प्रसन्नाः । किं काचकामलिभिरीश ! सितोऽपि शङ्खो, नो गृह्यते विविधवर्णविपर्ययेण ॥ १८ ॥ धर्मोपदेशसमये सविधानुभावादास्तां जनो भवति ते तरुरप्यशोकः । अभ्युद्गते दिनपतौ स महीरुहोऽपि किं वा विबोधमुपयाति न जीवलोकः ॥ १६ ॥ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्याणमन्दिरस्तोत्रम् ] [२८७ चित्रं विभो ! कथमवाङ्मुखवृन्तमेव, विष्वक् पतत्यविरला सुरपुष्पवृष्टिः ? । त्वद्गोचरे सुमनसां यदि वा मुनीश !, गच्छन्ति नूनमध एव हि बन्धनानि ।। २० ।। स्थाने गंभीरहृदयोदधिसंभवायाः, पीयूषतां तव गिरः समुदीरयन्ति । पीत्वा यतः परमसंमद सङ्गभाजो, भव्या वजन्ति तरसाऽप्य जरामरत्वम् ।।२१।। स्वामिन् ! सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो, मन्ये वदन्ति शुचयः सुरचामरौघाः । येऽस्मै नतिं विदधते मुनिपुङ्गवाय, ते नूनमूर्ध्वगतयः खलु शुद्धभावाः ॥ २२ ।। श्याम गंभीरगिरमुज्ज्वलहेमरत्नसिंहासनस्थमिह भव्यशिखण्डिनस्त्वाम्। आलोकयन्ति रभसेन नदन्तमुच्चैश्चामीकराद्रिशिरसीव नवाम्बुवाहम् ।। २३ ॥ उद्गच्छता तव शितिद्युतिमंडलेन, लुप्तच्छदच्छविरशोकतरुर्बभूव । सान्निध्यतोऽपि यदि वा तव वीतराग ! नीरागतां व्रजति को न सचेतनोऽपि ॥२४॥ भो भो ! प्रमादमवधूय भजध्वमेनमागत्य निर्वृतिपुरी प्रति सार्थवाहम् । एतनिवेदयति देव ! जगस्त्रयाय, मन्ये नवन्नमिनभः सुरदुन्दुभिस्ते ॥ २५ ।। Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला उद्योति तेषु भवता भुवनेषु नाथ ! तारान्वितो विधुरयं विहताधिकारः । मुक्काकलापक लितोच्छ्वसितातपत्रव्याजात्त्रधा धृततनुर्भ वमभ्युपेतः ॥ २६ ॥ स्वेन प्रपूरितजगत्त्रयपिण्डितेन, कान्तिप्रतापयशसामिव सञ्चयेन ! माणिक्य हेमरजतप्रविनिर्मितेन, सालत्रयेण भगवन्नभितो विभासि ॥ २७ ॥ दिव्यत्रजो जिन ! नमस्त्रिदशाधिपानामुत्सृज्य रत्नरचितानपि मौलिबन्धान् ! पादौ श्रयन्ति भवतो यदि वा परत्र, त्वत्सङ्गमे सुमनसो न रमन्त एव ॥ २८ ॥ त्वं नाथ ! जन्मजोर्विपराङमुखोऽपि, यत्तारयस्यसुमतो निजपृष्ठला युद्धं हि पार्थिव निपस्य सतस्तवैव, चित्रं विभो ! यदति वर्षाविपाक शून्यः || २९॥ विश्वेश्वरोऽपि जनवालक ! दुर्गतस्त्वं किंवाक्षरप्रकृतिरप्यलिपिस्त्वमीश ! | अज्ञानवत्यपि सदैव कथञ्चिदेव, ज्ञानं त्वयि स्फुरति विश्वविकाशहेतुः ॥ ३० ॥ प्राग्भारसंभूतनभांसि रजांसि रोषादुत्थापितानि कमठेन शठेन यानि । छायापि तैस्तवन नाथ ! हता हताशो, प्रस्तवमीभिरयमेव परं दुरात्मा ॥ ३१ ॥ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्याणमन्दिरस्तोत्रम् ] [२८६ यद्गर्जदुर्जितघनौघमदभ्रमीम, भ्रश्यत्तडिन्मुसलमांसलघोरधारम् ।। दैत्येन मुक्तमयदुस्तरवारि दधे, तेनैव तस्य जिन ! दुस्तरवारिकृत्यम् ।। ३२ ॥ ध्वस्तो केशविकृताकृतिमय मुण्डप्रालम्बभृद्भयदवक्रविनिर्यदग्निः । प्रेतव्रजः प्रतिभवन्तमपीरितो यः, सोऽस्याऽभवत्प्रतिभुवं भवदुःखहेतुः॥३३॥ धन्यास्त एव भुवनाधिप! ये त्रिसन्ध्यमाधयन्ति विधिवद्विधुतान्यकृत्याः। भक्त्योल्लसत्पुलकपदमलदेह देशाः; . पादद्वयं तव विभो!भुविजन्मभाजः ॥३४ ।। अस्मिन्नपारभववारिनिधौ मुनीश!, मन्ये न मे श्रवणगोचरतां गतोऽसि । . आकर्णिते तु तव गोत्रपवित्रमन्त्रे, किं वा विपद्विषधरी सविधं समेति ॥ ३५ ॥ जन्मांतरेऽपि तव पादयुगं न देव!, . मन्ये मया महितमीहितदानदक्षम् । तेनेह जन्मनि मुनीश ! पराभवानां, जातो निकेतनमहं मथिताशयानाम् ।। ३६ ॥ नूनं न मोहतिमिरावृतलोचनेन, . . पूर्व विभो ! सकृदपि प्रविलोकितोऽसि । मर्माविधो विधुरयन्ति हि मामनर्थाः, .. प्रोद्यत्प्रवन्धगतयः कथमन्यथैते ॥ ३७॥ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६०] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . आकर्णितोऽपि महितोऽपि निरीक्षितोऽपि, ननं न चेतसि मया विधुतोऽसि भक्त्या। जातोऽस्मि तेन जनबान्धव : दुःखपात्रं, यस्माक्रियाःप्रतिफ लन्ति न भावशून्याः। ॥३८।। त्वं नाथ ! दुःखिजनवत्सल ! हे शरण्य !, कारुण्यपुण्यवसते ! वशिनां वरेण्य ! । भक्त्या न ते मयि महेश ! दयां विधाय, दुःखाङ्कुरोद्दलनतत्परतां विधेहि ॥ ३९ ।। निःसङ्ख्यसारशरणं शरणं शरण्यमासाद्य सादितरिपुप्रथितावदानम । त्वत्पाद पङ्कजमपि प्रणिधानवन्ध्यो, वध्योऽस्मि चेद् भुवनपावन ! हा हतोऽस्मि ॥४०॥ देवेन्द्रवन्ध ! विदिताखिलवस्तुसार !, संसारतारक ! विभो ! भुवनाधिनाथ ! । त्रायस्व देव ! करुणाहृद ! मां पुनीहि, सीदन्तमद्य भयदव्यसनाम्बुराशेः ॥४१॥ यद्यस्ति नाथ ! भवदघ्रिसरोरुहाणां, भक्तेः फलं किमपि सन्ततसञ्चितायाः। . तन्मे त्वदेकशरणस्य शरण्य ! भूयाः, स्वामी त्वमेव भुवनेऽत्र भवान्तरेऽपि ॥ ४२ ॥ इत्थं समाहितधियो विधिवजिनेन्द्र ! सान्द्रोल्लसत्पुलककञ्चुकिताङ्गभागाः । स्वद्विम्बनिर्मलसुखाम्बुजबद्धलक्ष्या, ये संस्तव तव विभो ! रचयति भध्याः ॥४३॥ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - रत्नाकरपञ्चविंशतिः ] [ २९१ जननयनकुमुदचंद्र - प्रभास्वरा स्वर्गसंपदो भुक्त्वा । ते विगलितमलनिचया, अचिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते ॥ ४४ ॥ || श्री रत्नाकर पञ्चविंशतिः ॥ उपजातिवृत्तम् श्रेयः श्रियां मंगलकेलिसझ !, नरेन्द्रदेवेन्द्रनतांघ्रिपद्म ! | सर्वज्ञ ! सर्वातिशयप्रधान !, चिरञ्जयज्ञानकला निधान ! ॥१॥ जगत्त्रयाधार ! कृपावतार ! दुर्वारसंसार विकारवैद्य ! श्रीवीतराग ! त्वयि मुग्धभावा द्विज्ञप्रभो विज्ञपयामि किंचित् २ किं बाललीलाकलितो न बालः, पित्रोः पुरो जल्पति निर्विकल्पः । तथा यथार्थ कथयामि नाथ !, निजाशयं सानुशयस्तवाग्रे ||३|| दत्तं न दानं परिशीलितं च, न शालि शीलं न तपोऽभितप्तम् । शुभो न भावोऽप्यभवद् भवेऽस्मिन् विभो ! मया भ्रांतमहो मुधैव दग्धोऽग्निना क्रोधमयेन दष्टो, दुष्टेन लोभाख्य महोरगेण । ग्रस्तोऽभिमानाजगरे माया-जालेन बद्धोऽस्मि कथं भजे त्वां ५ कृतं मयाऽमुत्र हितं न चेह, लोकेऽपि लोकेश ! सुखं न मेऽभूत् । अस्मादृशां केवलमेव जन्म, जिनेश ! जज्ञे भवपूरणाय || ६ || मन्ये मनो यन्नमनोज्ञवृत्त !, त्वदास्यपीयूष मयूख लाभात् । द्रुतं महानन्दरसं कठोर मस्मादृशां देव ! तदश्मतोऽपि ॥ ७ ॥ त्वत्तः सुदुः प्रापमिदं मयाऽऽतं, रत्नत्रयं भूरिभवभ्रमेण । प्रमादनिद्रावशतो गतं तत् कस्याऽग्रतो नायक ! पूरकरोमि ||८|| Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ ] [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला वैर(ग्यरङ्गः परवञ्चनाय, धर्मोपदेशो जनरञ्जनाय । वादाय विद्याऽध्ययनं च मेऽभूत् कियद् ब्रु वे हास्यकरं स्वमीश ! परापवादेन मुखं सदोपं, नेत्रं परस्त्रीजनवी क्षणेन । चेतः परापायविचिन्तनेन कृतं भविस्यामि कथं विभोऽहं ॥ १०॥ विडम्बितं यत्स्मरघस्मरार्त्ति - दशावशात्स्वं विषयांधलेन । प्रकाशितं तद्भवतो हियैव सर्वश! सर्व स्वयमेव वेत्सि || ११ ॥ ध्वस्तो ऽन्यमन्त्रैः परमेष्टिमन्त्रः कुशास्त्रवाक्यैर्निहतागमोक्तिः । कर्तुं वृथाकर्मकुदेव संगादवाच्छि हि नाथ ! मतिभ्रमो मे ॥ १२ ॥ विमुच्य दृग लक्ष्यगतं भवन्तं ध्याता मया मूढधिया हृदन्तः । कटाक्षवक्षोजगभीरनाभी, कटीतटीयाः सुदृशां विलासाः ||१३|| लोलेक्षणावक्त्रनिरीक्षणेन यो मानसे रागलवो विलग्नः । न शुद्ध सिद्धांत पयोधिमध्ये, धौतोप्यगात्तारक कारणं किं || १४ || अंगं न चंगं न गणो गुणानां, न निर्मलः कोऽपि कलाविलासः । स्फुरत्प्रधानप्रभुता च काऽपि, तथाप्यहंकारकदर्थितोऽहं ॥ १५ ॥ आयुर्गलत्याशु न पापबुद्धि-र्गतं वयो नो विषयाभिलाषः । यत्नश्च भैषज्यविधौ न धर्म, स्वामिन्महामोह विडम्बना मे ॥ १६ ॥ नात्मा न पुण्यं न भवो पापं मया विटानां कटुगीरपीयं । अधारिक त्वयि केवलार्के, परिस्फुटे सत्यपि देव ! धिग्माम् १७ न देवपूजा न च पात्रपूजा, न श्राद्धधर्मश्च न साधुधर्मः । लब्ध्वापि मानुष्यमिदं समस्तं कृतं मयाऽरण्यविलाप तुल्यं ॥ १८॥ चक्रे मया सत्स्वपि कामधेनु कल्पचिन्तामणिषु स्पृहार्त्तिः । न जैनधर्मे स्फुटशर्म देऽपि, जिनेश ! मे पश्य विमूढभावं ॥ १६ ॥ सद्भोगलीला न च रोगकीला, धनागमो नो निधनागमञ्च । दाकारा नरकस्य चित्ते, व्यचिन्ति नित्यं मयकाऽधमेन २०. स्थितं न साधो दिसाधुवृत्तात् परोपकारान्न यशोऽर्जितं च । कृतं न तीर्थोद्धरणादिकृत्यं, मया सुधा हारितमेव जन्म ||२१|| : Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० प्रा० पञ्चविंशतिः । [ २६३ वैराग्यरंगो न गुरुदितेषु, न दुर्जनानां वचनेषु शान्तिः । नाध्यात्मलेशो ममकोऽपि देव, तार्यः कथङ्कारमयम्भवाब्धिः २२. पूर्वे भवेऽकारि मया न पुण्य- मागामिजन्मन्यपि नोकरिष्ये । यदीदृशोऽहं मम ते न नष्टा, भूतोद्भवाद्भाविभवत्रयीश ! ||२३|| किंवा मुधाऽहं बहुधा सुधाभुक् पूज्य ! त्वद ग्रे चरितं स्वकीयं । जल्पामि यस्मात् त्रिजगत्स्वरूप ! निरूप करत्वं कियदेतदत्र ||२४|| शार्दूलः - दीनोद्धार धुरन्धरस्त्वदपरो नास्ते मदन्यः कृपा । · पात्र नात्र जने जिनेश्वर ! तथाऽप्येतां न याचे श्रियं । किं त्वदिमेव केवलमहो सद्बोधिरत्नंशिव । श्रीरत्नाकर मंगलैकनिलय ! श्रेयस्करं प्रार्थये ||२५|| श्री अमित गतिसूरिविरचित प्रार्थना पञ्चविंशतिः ॥ उपजातिवृत्तम् ॥ " सत्त्रेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । माध्यस्थभावं विपरीत वृत्तौ सदा ममात्मा विदधातु देव ! ||१|| शरीरतः कर्तुमनन्तशक्तिं, विभिन्नमात्मानमपरस्तदोषम् जिनेन्द्र ! कोपादिव खड्गयष्टिं, तव प्रसादेन मभास्तु शक्तिः ॥ २ ॥ दुःखे सुखे वैरिणि बन्धुवर्गे, योगे वियोगे भवने वने वा । निराकृताऽशेष ममत्व बुद्धेः, समं मनो मेऽस्तु सदाऽपि नाथ ! ||३|| ::, यः स्मर्यते सर्वमुनीन्द्रवृन्दैः यः स्तूयते सर्व नरामरेन्द्रैः । यो गीयते वेदपुराणशास्त्रैः, स देवदेवो हृदये ममः स्ताम् ॥ ४ ॥ यो दर्शनज्ञानसुखस्वभावः समस्तसंसारविकारबाह्यः । समाधिगम्यः परमात्मसंज्ञः सदेवदेवो हृदये मम। स्ताम् ॥ ५ ॥ , Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला निषूदते यो भवदुःखजालम्, निरीक्षते यो जगदन्तरालम् । योऽन्तर्गतो योगिनिरीक्षणीयः, स देवदेवो हृदये ममास्ताम्॥६॥ विमुक्तिपार्गप्रतिपादको यो, यो जन्ममृत्युव्यसनातीतः। त्रिलोकलोकी विकलोऽकलंकः, स देवदेवो हृदये ममास्ताम्।।७॥ क्रोडीकृताशेषशरीरिवर्गा, रागादयो यस्य न संति दोषाः । निरिन्द्रियो ज्ञानमयोऽनपायः, स देवदेवो हृदये ममास्ताम्॥८॥ यो व्यापको विश्वजनीनवृत्तिः, सिद्धो विबुद्धो धृतकर्मबन्धः । ध्यातोधुनीते सकलं विकारं, स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ॥ ६॥ न स्पृश्यते कर्मकल कदोषैः, यो ध्वान्तसंधैरिव तिग्मरश्मिः । निरञ्जनं नित्यमनेकमेकं, तं देवमाप्तं शरणं प्रपद्ये ॥ १० ॥ विभासते यत्र मरीचिमालि-न्यविद्यमाने भुवनावभासि । स्वात्मस्थितं वोधमयप्रकाशं; तं देवमाप्तं शरणं प्रपद्ये ।। ११ ।। विलोक्यमाने सति यत्र विश्वं विलोक्यते स्पष्टमिदं विविक्तम् । शुध्धं शिव शान्तमनाद्यनंतं, तं देवमाप्तं शरणं प्रपद्ये ।। १२ ॥ येन क्षता मन्मथमानमूर्छा-विषादनिद्राभयशोकचिन्ताः। क्षय्योऽनलेनेव तरुप्रपश्चस्तं देवबाप्त शरगां प्रपद्ये ॥ १३ ॥ प्रतिक्रपण- [प्रभुसमी पेस्वात्मचिन्तनं] विनिन्दनालोचनगर्हणैरहं, मनोवचःकायकपायनिर्मितम् । निहन्मि पापं भवदुःखकारणं, भिषग्विषं मंत्रगुणैरिवाखिलम् १४ अतिक्रम यं विमतेर्व्यतिक्रम, जिनातिचारं सुचरित्रकर्मणः । व्यधामनाचारमपि प्रमादतः, प्रतिक्रमं तस्य करोमि शुद्धये १५. नसंस्तरोऽश्मा न तृणं न मेदिनी, विधानतो नो फलको विनिर्मित यतो निरस्ताक्षकषायविद्विप, सुधीभिरात्मैव सुनिमलोमतः १६ न संस्तरोभद्र समाधिसाधनं, न लोक पूजा न च संघमेलनम् । यतस्ततोऽध्यात्मरतोभवाऽनिशं, विमुच्य सर्वामपिबाह्यवासनाम् Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिन्तामणि पाश्वनाथ स्तोत्रम् ] [२६५ न संति बाह्या मम केचनार्था,भवामि तेषां न कदाचनाहम् । इत्थं विनिश्चित्य विमुच्य बाह्य, स्वस्थः सदात्वं भव भद्र-मुक्तये श्रात्मानमात्मन्यविलोक्यमानस्त्वं दर्शनशानमयो विशुद्धः, एकाग्रचित्तः खलु यत्र तत्र, स्थितोऽपि साधुलभते समाधिम् १६ एकः सदा शाश्वतिको ममात्मा, विनिर्मलः साधिगमस्वभावः, बहिर्भवाःसन्त्यपरे समस्ताः, न शाश्वताः कर्मभवाः स्वकीयाः२० यस्यास्ति नैक्यं वपुषापि साध, तस्यास्ति किं पुत्रकलत्रमित्रैः, पृथकृते चर्मणि रोमकूपाः, कुतो हि तिष्ठन्ति शरीरमध्ये ॥२१।। संयोगतो दुःखमकभेद, यतोऽश्नुते जन्मवने शरीरी, ततस्त्रिऽधासौ परिवर्जनीयो, यियासुना निवृतिमात्मनीनाम् २२ सर्व निराकृत्य विकल्पजालं. संसारकान्तारनिपातहेतुम्; विविक्तमात्मानमवेक्ष्यमाणो, निलीयसे त्वं परमात्मतत्त्वे ॥ ५३ ॥ स्वयं कृतं कर्म यदात्मना पुर। फलं तदीयं लभते शुभाशुभम्, परेण दत्त यदि लभ्यते स्फुट, स्वयंकृतं कर्म निरर्थकं तदा ।। २४॥ विमुक्तिमार्गप्रतिकूलवर्तिना, मया कषायाक्षवशेन दुर्धिया, चारित्रशुद्धेर्यदकारि लोपनं तदस्तु मिथ्या मम दुष्कृतं प्रभो! २५ ॥ श्री चिन्तामणि--पाश्वनाथ--स्तोत्रम् ॥ ॥शार्दूलविक्रीडितत्तम् ॥ किं कर्पूरमयं सुधारसमयं किं चन्द्ररोचिर्मयं । किं लावण्यमयं महामणिमयं कारुण्यकेलिमयम् ॥ विश्वानन्दमयं महोदयमयं शोभामयं चिन्मयं । शुक्लध्यानमय वपुर्जिनपते भूयाद् भवालयमस् ॥१॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६] [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . पातालं कलयन् धरां धवलयन्नाकाशमापूरयन् । दिक्चक्रं क्रमयन् सुरासुरनरश्रेणिं च विस्मापयन् ।। ब्रह्माण्डं सुखयन् जलानि जलधेः फेनच्छलालोलयन् । श्रीचिन्तामणि पार्श्वसंभवयशो हंसश्चिरं राजते॥२॥ पुरयानां विपणिस्तमो दिनमणिः कामेमकुम्भे सृणिमोक्षे निस्सरणिः सुरेन्द्र करिणी ज्योतिःप्रकाशारणिः ॥ दाने देवमणिनतोत्त जनश्रेणिः कृपासारिणी। विश्वानन्दसुधाघृणिर्भवभिदे श्रीपाश्चचिन्तामणिः ॥ ३ ॥ श्रीचिन्तामणिपार्श्वविश्वजनतासजीवनस्त्वं मया । दृष्टस्तात ! ततः श्रियः समनवनाशक्रमाचक्रिणम् ।। मुक्तिः क्रीडति हस्तयोबहुविध सिद्ध मनोवाच्छितं । दुर्दैवं दुरितं च दुर्दिनभयं कष्टं प्रणष्टं मम ॥ ४॥ . यस्य प्रौढतमप्रतापतपनः प्रोद्दामधामा जगजकालः कलिका केलिदलनो मोहान्धविध्वंलका नित्योद्घोतपदं तमस्तकमला लिगृहं राजते । स श्रोगवजिनो जने हितकरश्चिन्तामणिः पातु माम् ॥५॥ विश्वव्यापितमो हिनस्ति तरणिवीलोपि कल्पारो। दारिद्राणि गजावली हरिशिशुः काष्ठानि वढ्नेः कणः ।। पीयूषस्य लवोऽपि रोगनिवहं यद्वत्तथा ते विभो!। मूर्तिः स्फूर्तिमती सनी त्रिजगतीकष्टानि हर्तुं क्षमा ।। ६ ।। श्रीचिन्तामणिमंत्राँकृतियुतं ह्रींकारसारथितं । श्रीमदहनमिऊणपाशकलितं त्रैलोक्यवश्यावहम् ।। द्वेधाभूतविषापहं विषहरं श्रेयःप्रभावाश्रय । सोलासं वसहाङ्कितं ज़िनफुल्लिंगानन्ददं देहिनाम् ॥७॥ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरी भावना] ही श्रींकारवरं नमोऽक्षरपरं ध्यायति ये योगिनोहृत्पद्म विनिवेश्य पार्श्वमधिपं चिंतामणिसंशकम् ॥ भाले वामभुजे च नाभिकरयो यो भुजे दक्षिणे । पश्चादष्टदलेषु ते शिवपदं द्वित्रैर्भवैर्यान्त्यहो ॥ ८॥ स्रग्धरा-नोरोगानैव शोकान कलहकलना नारिमारिप्रचारानवाधि समाधिन च दरदुरिते दुष्टदारिद्रता नो ॥ नो शाकिन्यो ग्रहा नो न हरिकरिगणा व्यालवेताल जाला जायते पार्श्वचिन्तामणिनतिवशतःप्राणिनां भक्तिभाजाम् । शार्दूलः-गीर्वाणदु मधेनुकुम्भमणयस्तस्याङ्गणे रंगिणो देवा दानवमानवाः सविनयं तस्मै हितध्यायिनः॥ लक्ष्मीस्तस्य वशाऽवशेव गुणिनां ब्रह्माण्डसंस्थायिनी..। श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथमनिशं संस्तौति यो ध्यायति १० मालिनीः-इति जिनपतिपार्श्वः पावपाख्यियक्षः प्रदलितदुरितौघःप्रीणितप्राणिसार्थः। त्रिभुवनजनवाञ्छादानचिंतामणिकः। शिवपदसरुबीज बोधिबीजं ददातु ॥ ११ ॥ मेरी भावना जिसने राग द्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्ष माग का, निस्पृह हो उपदेश दिया । बुद्ध वीर जिन हरि हर ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो, यह चित्त उसी में लीन रहो ॥१॥ विषयों की आशा नहीं जिनके, साम्य भाव धन रखते हैं। निज पर के हित साधन में जो, निशिदिन तत्पर रहते हैं। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला " स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते हैं । ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुःख समूह को हरते हैं ||२॥ रहे सदा सत्संग उन्हीं का, ध्यान उन्हीं का नित्य रहे । उन्हीं जैसी चर्या में यह, चित्त सदा अनुरक्त रहे || नहीं संताऊँ किसी जीव को, झूठ कभी नहीं कहा करूँ । परधन वनिता पर न लुभाऊँ, संतोषामृत पिया करूँ ||३|| अहंकार का भाव न रक्खूं, नहीं किसी पर क्रोध करूँ । देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ । रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार करूँ । बने जहाँ तक इस जीवन में, औरों का उपकार करूँ ॥४॥ मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे। दीन दुःखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा स्रोत वहे ॥ दुर्जन- क्रूर - कुमार्गरतों पर, क्षोभ नहीं मुझको आवे । साम्यभाव रक्खूं मैं उन पर ऐसी परिणति हो जाये ||१| गुणी जनों को देख हृदय में, मेरे प्रेम उमड़ आवे । जहाँ तक उनकी सेवा, 'करके यह मन सुख पावे || होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे । गुण ग्रहण का भाव रहे, नित दृष्टि न दोषों पर जावे ||६|| कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे । लाखों वर्षो तक जीव, या मृत्यु आज ही आ जावे ॥ अथवा कोई कैसा ही, भय या लालच देने श्रवे । तो भी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न पद डिगने पावे ||७|| होकर सुख में मग्न न फूलें, दुःख में कभी न घबरावें । पर्वत, नदी, स्मशान भयानक, अटवी से नहीं भय खावे ॥ रहे डोल, अकम्प निरन्तर, यह मन दृढ़तर बन जावे ! इष्ट वियोग अनिष्ट योग में, सहनशीलता दिखलावें ||८|| Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • प्रसेर्णगाथाएँ] [२६६ सुखी रहे सब जीव जगत के, कोई कभी न घबरावे । वैर पाप अभिमान छोड़, जग जित्य नये मंगल गावें॥ घर घर चर्चा रहे धर्म की, दुष्कृत दुष्कर हो जावें । श.नच.रेत उन्नत कर अपना, मनुज जन्म फल सब पावें ६ ईति भीति व्पापे नहीं जग में, वृष्टि समय पर हुआ करे । धर्मनिष्ठ होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे ।। रोग मरी दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे । परम अहिंसा धर्म जगत में, फेल सर्व हित किया करे १०।। फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर पर रहा करे । अप्रिय, कटुक, कठोर शब्द नहीं, कोई मुख से कहा करे ॥ वनकर सब "युग-वीर" हृदय से, देशोन्नतिरत रहा करें। वस्तु स्वरूप विच र खुशी से, सब दुःख संकट सहा करे ११ प्रकीर्ण गाथाएँ नमिऊणं असुर सुरगरूल-भूयंगपरिवंदिय-गयकिलेसे । अरिहंतसिध्धायरियउवज्झायसव्वसाहणं ॥ सिद्धाशं बुद्धाणं पारगया परंपारगया । लोअग्गमुवगया नामो सया सव्व-सिद्धाणं । १॥ जो देवाणमवि देवो, जं देवा पंजली नमसंति । तं देवं देवमहियं सिरसा वन्दे महावीरं ॥२॥ इको वि नमुक्कारो, जिणवर वसहस्स वद्धमाणस्स। संसार-सागराओ तारेड नरं व नारिं वा ॥३।। उजिंतसेल-सिहरे दिक्खा ना निसिहीया जस्स । त धम्मचकवाष्ट्टि अरिटुनेमि नमस्साभि ।।४। Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३.०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . चत्तारि अट्ठदस दोय वंदिया जिणवग चउबीसं । परमट्ट निटिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं ममं दिसंतु ॥५॥ सिद्धा नमो किच्चा, संजया च भावो। सन्ती सन्तीकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ अर्थ-इच्छित कार्य-सिद्धि होने के लिए प्रथम इष्टदेव को नमस्कार किया जाता है। सिद्धार अर्थात् सिद्ध भगवान् को नमस्कार हों। ___ संजयाणं अर्थात् संयति-प्राचार्य, उपाध्याय घ सर्व साधु-साध्वीजी महाराज को नमस्कार हों। सारे लोक में शान्ति करने वाले शान्तिनाथ प्रभुजी को त्रिकरण-शुद्धभावपूर्वक नमस्कार हो। चइत्ता भारह वासं, चकवट्टी महड्ढिो । सन्ती सन्तीकरे लोर, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ अर्थ-सारे लोक में शान्ति स्थापित करने वाले सोलहवें शांतिनाथ नामके चक्रवर्ती महान् ऋद्धि-सिद्धि वाले भरत क्षेत्र का राज्य छोड़कर उत्तम (मोक्ष) गति को प्रप्त हुए। अलर्छ पुव्वलद्धं जिणवयण-सुभासियं अमियं । भूइसुयगइमग्गं ना मरणाय बीयामो ।।१।। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ । अहम्म कुणमाणस्स, अफला जति राईअो ।।२।। जा जा वच्चइ रयणी. न सा पडिनियत्तइ । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राईओ॥३॥ एवं लोए पलित्तम्मि, जगए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्लामि, तुब्भेहि अणुमनिओ।।४।। एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । दसहा उ जिणित्ता णं, सव्व सत्तू जिणामहं ॥५॥ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छपाई का उत्तम साधन श्री कालिमासिंह के प्रबन्ध से श्री गुरुकुल मन्टिमा प्रस, व्यावर से प्रकाशित