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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [६५ - - जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया, इहं जयंते समणो मिजाओ ॥१२॥ उञ्चोयए महु कके य बम्भे, पवेइया पावसहा य रम्मा। इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं, पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥१३॥ नहेहि गीएहि य वाइए हिं, नारीजणाहिं परिवारयन्तो । भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिखू ! मम रोयई पव्वजा हुदुक्खं ॥१४॥ तं पुवनेहेण कयाणुराग, नराहिवं कामगुणेसु गिर्छ । धम्मस्सिो तस्स हियाणुपेही, चित्तो इमं वयणमुदाहरित्था ॥१॥ सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नर्से विडम्बियं । सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ॥१६॥ बालाभिरामेसु दुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणेमु रायं ! विरत्तकामाण तवोधणारा, ज भिक्खु सीलगुणे रयारणं ॥१७॥ नरिंद ! जाई अहमा नराणं, सोवागजाई दुहो गया। जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा, वसीय सोवागनिवेसणेसु ॥१८॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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