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[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला .
तीसे य जाईइ उ पावियाए,
वुच्छामु सोवागनिवेसणेसु । सवस्स लोगस्स दुगंछणि जा,
इहं तु कम्माइ पुरे कडाई ॥१६॥ सो दाणिसिं राय ! महाणुभागो,
महिड्ढिओ पुराणफलोववेओ। चइत्त भोगाइ असासयाई,
श्रादाणहेउं अभिणिक्खमाहि ॥२०॥ इह जीविए राय ! असासयम्मि,
धणियं तु पुराणाइ अकुबमाण । से सोयइ मच्चुमुहोवणीए,
धम्म अकाऊण परंसि लोए ॥२१॥ जहेह सीहो व मियं गहाय,
मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले । न तस्स माया व पिया व भाया,
कालम्मि तम्मंसहरा भवन्ति ॥२२॥ न तस्स दुक्ख विभयन्ति नाइओ,
न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एक्को सयं पञ्चणुहोइ दुक्खं,
कत्तारमेवं अणुजाइ कम्मं ॥२३॥ चिच्चा दुपयं च चउप्पयं च,
खेत्तं गिहंधणधन्नं च सव्वं । सकम्मबीओ अवसो पयाइ, . परं भवं सुंदरपावगं वा ॥२४॥ तं एक्कग तुच्छसरीरगं से,
चिईसय दहिय उ पावगेणं ।