SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१२१ गवेसणाए गहणे य, परिभोगेसणा य जा। श्राहारोवहिसेजाए, एए तिन्नि विसोहए ॥११॥ उग्गमुप्पाय पढमे, बीए सोहेज पसरणं । परिभोयम्मि चउकं, विसोहेज जयं जई ॥१२॥ ओहोवहोवग्गहियं, भण्डगं दुविहं मुणी । गिरहन्तो निक्खिवन्तो या, पउंजेज इमं विहिं ॥१३॥ चक्खुसा पडिलेहित्ता,पमज्जेज जयं जई। प्रायए निक्लिवेज्जा वा, दह प्रो वि समिए सया॥१४॥ उञ्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवहिं देहं, अन्नं वावि तहाविहं ॥१५॥ अणावायमसंलोए, अणावाए चेव होइ संलोए। आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ॥१६॥ अणावायमसंलोए, परस्साणुवघाइए । समे अज्झसिरे वावि, अचिरकालकयम्मि य ॥१७।। वित्थिरणे दूरमोगाढे, नासन्ने बिलवजिए । तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥१८।। एगाओ पंच समिईओ, समासेण वियाहिया। इत्तो य नओ गुत्तीरो, वोच्छामि अणुपुत्वसो ॥१६॥ सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असञ्चमासा य, मणगुत्ती चउब्धिहा ॥२०॥ संरम्भसमारम्भे, प्रारम्भे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तिज जयं जई ॥२१॥ सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असञ्चमोसा य, वइगुत्ती चउविहा ॥२२॥ संरम्भसमारम्भे, प्रारम्भे य तहेव य। . वयं पचत्तमा तु, नियत्तिज जय जई ॥२३॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy