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________________ २६ ] न मे निवारणं त्थि, छवित्तारां न विज्जइ । अहं तु ari सेवामि, इइ भिक्खू न चिंतए ||७|| उपिरियणं, परिदाहेण तजिए । सु वा परियावे. सायं तो परिदेवए ||८| उहाहितत्तो मेहावी, सिणारां नो वि पत्थए । गायं नो परिसिं चेजा, न वीरजा य अप्पयं ||९|| पुट्ठो य दंसमलए हिं, समरे व महामुणी । नागो संगमसीसेवा, सूरो अभिहणे परं ||१०|| न संतसेन वारेजा, मां पि न पत्रोसए । उवेहे न हणे पाणे, अंजंते मंससोणियं ॥ ११ ॥ परिजुराणेहि वत्थेहिं, होक्खामि त्ति अचेलए । अदुवा सचेलए होक्खं, इइ भिक्खू न चिंतए ||१२|| एगयाऽचेलए होइ, सचेले वि एगया । एयं धम्मं हियं नच्चा, नाणी तो परिदेवए ||१३|| गामाणुगामं रीयंत, अणगारं किंचणं । अरई अणुप्पवेसेजा, तं तितिक्खे परीसहूं ||१४|| अहं पिट्ट किया, विरए श्रायर किए। धम्मारामे निरारम्भे, उवसंते मुणी चरे ॥ १५ ॥ संगो एस मणूसा, जाओ लोगम्मि इत्थिओ | नो ताहिं विणिहम्मेजा, चरेजत्तगवेसए ॥१७॥ एग एव चरे लाटे, अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए || १८ || [ जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला " लमाणे चरे भिक्खू नेव कुजा परिग्गहं । असंसत्तो गिहत्थेहिं अपि परिव्व ॥ १९ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगओ । कुक्कुओ निसीएजा, न य वित्तासए परं ||२०||
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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