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________________ [ २७ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ] तत्थ से चिट्ठमारास, उवसग्गाभिधारए । संकाभीओ न गच्छेजा, उट्ठित्ता अन्नमासणं ॥ २१ ॥ उच्चावयाहिं सेजाहिं, तबस्सी भिक्खु थामवं । नाइवे विहन्निज्जा, पावदिट्ठी विहन्नई ||२२|| पइरिक्कुवस्सयं लद्धुं, कल्लाणमदुवा पावयं । किमेराई करिस्सइ, एवं तत्थऽहियासए | २३ | अक्कोसेजा परे भिक्खु, न तेसिं पडिसंजले । सरसो होइ बाला, तम्हा भिक्खु न संजले ||२४|| सोच्च फरुसा भासा, दारुणा गामकश्टगा । तुमि उवेहेजा, न ताओ मणसीकरे ||२५|| हो न संजले भिक्खु, मपि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा, भिक्खू धम्मं विचिंतए ||२६|| सम संजयं दंतं, हणिज । कोइ कत्थई । नत्थि जीवस्स नासुत्ति, एवं पेहेज संजए ||२७|| दुक्करं खलु भो निश्च्च, अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ, नत्थि किंचि जाइयं ||२८|| गोयरग्गपविट्ठस्स पाणी नो सुप्पसारए 1 सेवासुति, इइ भिक्खून चिंतए ||२६|| परेस घास मेसेजा, मोयणे परिणिट्टिए । 'द्धे पिण्डे अद्धे वा, नाणुतप्पेज्ज पंडिए ||३०|| अजेवाहं न लब्भामि, श्रवि लाभो सुए सिया । जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं न तज्जए ॥ ३१ ॥ नकचा उप्पइयं दुक्खं, वेयाए दुहट्टिए । अदीणो थावर पन्न, पुट्ठो तत्थऽहियासप ||३२|| १. ण तं पेहे साहुवं । २. लद्ध पिंडे श्राहरिज्जा अलद्ध नाणुतप्पए ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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