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[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
महाविदेहवासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुञ्चिहिइ परिणिवाहिइ सम्वदुक्खाणमंतं करेहिइ ।। ५३ ॥
एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेण जाव संपतेणं पढ मस्स अज्झयणस्स अयम? परणते ॥ ५४॥
॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ जह णं भन्ते ! उक्खेवो एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएवं काकंदी नयरी होत्था, भद्दा सत्थवाही परिवसद ॥ १॥
तीसे गं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुनक्खत्ते नाम दारए होत्था, अहीण जाव सुरूवे, पंचधाइ-परिक्खित्ते जहा धन्नोतहेव बत्तीसो दाो जाव उपि पासायवडिसए विहरह ॥२॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जहा धन्नो तहा सुणक्खत्ते वि निग्गो जहा थावश्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अरणगारे जाए ईरियासमिए जाव गुत्तबंभयारिए ॥३॥
तए णं से सुनक्खत्ते अणगारे जे चेव दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे जाव पवइए तं चेव दिवसं अभिग्गहं तहेव बिलमिव परणगभूएणं आहारं आहारे, संजमेणं जाव विहरइ ॥ ४॥
समणं जाव बहिया जणवयविहारं विहरह । एकारस अंगाई अहिजह, संजमेणं तवसा अप्पारणं भावमाणे विहरह॥५॥