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श्रीश्रणुत्तरोववाइसूत्र]
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जेणेव धन्ने अगगारे तेणेव उवागच्छइ २ ता धनं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ वंदइ नमसइ, वंदइत्ता नमंसइत्ता एवं वयासी-धरणे सिणं तुम देवाणुप्पिया! सुपुराण सुकयत्थे कयलक्खणे सुलद्धे ण देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले त्ति कटुवंदइ नमसइ २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २त्ता समण भगवं महावीरं तिक्खु त्तो जाव वंदइ २ त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए ॥४८॥
तए तस्स वनस्ल अणगारस्त अन्नया कयाइ पुग्धरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए मणोगए संकप्पे समुपजित्था, एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं जहा खंदो तहेव चिंत्ता, आपुच्छण, थेरेहिं सद्धिं विपुलं दुरूहइ, । मासियाए संलेहणाए नवमासा परियाो जाव कालमासे कालं किच्चा उड्ढे चंदिम जाव नवयगेविजविजयविमाणपत्थडे उड्ढं दुरं वीइवइत्ता सम्वट्ठसिद्ध विमाणे देवत्ताए उववन्ने ।। ४६ ॥
थेरा तहेव उत्तरंति जाव इमे से आयारभंडप ॥ ५० ॥ ... भंते त्ति, भगवं गोयमे तहेव पुच्छइ जहा खंदयस्स भगवं वागरेति जाव सबट्ठसिद्ध विमाणे उववन्ने ।। ५१ ॥ .. धन्नस्स णं भन्ते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता ॥ ५२ ॥
से गं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं कहिं मच्छिहिति कहिं उववज्जेहिति ? गोयमा !