________________
[१९६
श्रीउत्तराराध्ययन सूत्र ]
अन्धिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीडपयंगे य, ढिकुणे कंकणे तहा || १४७ || कुक्कुडे सिंगिरीडी य, नन्दायत्ते य विच्छुए । डोले भिंगीरीडी य, विरिली अच्छिवेह || १४८ || अच्छिले माहए अच्छरोडए,
विचित् चित्रापत्तए 1 उहिंजलिया जलकारी य नया 'तन्तवय इया
इय चउरिन्दिया एए, रोगहा एवमायो । 'लोगेग देसे ते सब्वे, न सव्वत्थ वियाहिया || १५० || संतई पप्पाईया, अपज्जवसिया विय । ठिरं पडुच्च साईया, सपज्जवसिय । विय ॥१५२॥ छच्चैव मासाऊ, उक्को सेण वियाहिया । चाउरिन्दिय आउठिई, अन्तोमुहुतं जहनिया ॥ १५२ ॥ संखिजकालमुक्कसं, श्रन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकाय लिई, तं कार्यं तु प्रभुचओ ।। १५३ ।। प्रणन्तकालमुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ १५४ || एएसिं वरणश्रो चेव, गन्धओ रसफास संठाण देवावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१५५॥ पंचिन्दिया उ जे जीवा, चउव्हिा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया || १५६ || रइया सत्तविहा, पुढवीसु सत्सु भवे । रयणाभसक्काराभा, वालुयाभा य आहिया ॥ १५७ ॥
।
१. तंत्र त्रगाइया । २. लोगस्स उगा देखम्ति तेलवे परिवित्तिमा !
॥१४९॥