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________________ १९] _ [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला संखिजकालमुक्कोसं, अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । बेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुचो ॥१३४।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं, अन्तरं च विया हियं ।।१३५॥ एएसिं वरणग्रो चेव, गन्धओ रस फास प्रो। संठाणादेस प्रो वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१३६।। तेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपजत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥१३७।। कुन्थुपिवीलिउडुसा, उकलुद्देहिया तहा । तणहारकट्ठहारा य, मालुगा पत्तहारगा ॥१३८।। कप्पासट्टिमिंज। य, तिंदुगा तउसमिंजगा। सदावरी य गुम्मी य, बोधव्वा इन्दगाइया ॥१३६।। इन्दगोवगमाईया णेगहा एवमायओ। लोगेगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया ॥१४०।। संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य । टिइं पडुश्च साईया, सपजवसियावि य ॥१४१॥ एगूण पराणहारत्ता, उक्कोसेण वियाहिया। तेइन्दिय पाउटिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥१४२॥ संखिजकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकाठिई, तं कायं तु अमुचो ॥१४३।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमु हुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं, अंतरं तु वियाहियं ॥१४४|| एएसिं वराणो चेव, गन्धो रसफासो । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१४५।। चउरिन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पजत्तमजत्ता, तेसिं मेए सुणेह मे ॥१४६।।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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