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________________ चूलिया २ दसवेआलियसुत्तं . ५७ ५७ गई च गच्छे अणभिझियं दुहं __ बोही य से नो सुलभा पुणेोपुणा ।। १४ ॥ इमस्स ता नेरइयस्स जंतुणो दुहोवणीयस्स किलेसवत्तिणो । पलिअोवमं भिजइ सागरोवमं किमंग पुण मज्भ इमं मोदुहं ? ॥ १५ ॥ न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सह असासया भोगपिवास जंतुणो। न चे सरीरेण इमेणऽवेस्सइ अवेस्सई जीवियपजवेण मे ॥ १६ ॥ जस्सेवमप्पा उ हवेज निच्छिओ चएज देहं न उ धम्मसासणं । तं तारिसं नो पयलेन्ति इन्दिया उविन्तवाया व सुदसणं गिरिं ॥ १७ ॥ इच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो आय उवायं विविहं वियाणिया । कापण वाया अदु माणसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिद्विजासि ॥१८॥ त्तिबेमि॥ ॥ रइवक्का पढमा चूलिया समत्ता ॥ ॥ विवित्त चरित्राणामा बीया चूलिया । चूलियं तु पवक्खामि सुयं केवलिभासियं । जं सुणित्तु सपुजाणं धम्मे उप्पजए मई ॥१॥ अणुसोयपट्टिए बहुजणम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं । पडिसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं ॥२॥ अणुसोयसुहा लोगो पडिसोझो पासवो सुविहियाणं । अणुसोयो संसारो पडिसोश्रो तस्स उत्तारो॥३।।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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