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[ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
जहा से उडुवई चन्दे, नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुराणे पुराणमासिए, एवं हवइ बहुस्सुर ॥२५॥ जहा से समाइया, कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधनपडिपुराणे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२६॥ जहा सा दुमाण पवरा, जवू नाम सुदसणा । अणाढियस्स देवस्स, एवं हवह बहुस्सुए ॥२७॥ जहा सा नईण एवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा, एवं हवइ बहुस्सए ॥२८॥ जहा से नगारण पवरे, समहं मन्दरे गिरी। नाणेासहिपजलिए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२६॥ जहा से सयंभुरमणे, उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुराणे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥३०॥ समुद्दगंभीरसमा दुरासया,
अचकिया केणइ दुप्पहंसया । सुयस्स पुराणा विउलस्स ताइणा,
खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया ॥३॥ तम्हा सुयमहिटिजा, उत्तमट्टगवेसए। जेणप्पाणं परं चेव, सिद्धिं संपाउणेजासि ॥३२॥ त्ति बेमि
॥ बहुम्सुयपुज्ज समत्तं ॥११॥ ॥ अह हरिएसिज्ज बारहं अज्झयणं । सोवागकुलसंभूत्रो, गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएसबलो नाम. प्रासी भिक्खू जिइन्दि प्रो ।।१।। इरिएसणभासाए, उच्चारसमिईसु य । जो माया निक्लेरे, मंजसो लुसमाहियो ॥२॥