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________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ] तस्स भज्जा सिवा नाम, तीसे पुत्तो महायसेो । भगवं रिट्टनेमित्ति, लोगनाहे दमीसरे ||४|| Hrsagaमिनामो उ, लक्खणस्सर संजु । अट्टसहस्सल क्खण्धरो, गोयमो कालगच्छवी ||५|| वज़रिसहसंघयणेो, समचउरंसेो भसोयरे । तस्स रायमईकन्नं, भज्जे जायइ केसवो ॥६॥ ग्रह सा रायवरकन्ना, सुसीला चारुपेहणी । सव्वलक्ख संपना, विज्जुसायामणिप्रभा ||७|| अहाह जणओ तीसे, वासुदेवं महिढिवं । इहागच्छउकुमारी, ना से कर्म ददामिऽहं ||८|| सव्वो सही हिं रहविओ, कयकोउथ मंगलो । दिग्वजुयल परिहिश्रो, श्राभरणेहिं विभूसिओ ||६|| मत्तं च गन्धहत्थि, वासुदेवस्स जेडुगं । श्ररूढो साहए श्रहियं, सिरे चूडामणि जहा ॥ १०॥ अह ऊसिएण छत्तेरा, चामराहि य साहिए । दसारचक्केण य सो, सव्वओ परिवारि ॥ ११ ॥ चउरंगिणीए सेखाए, रइयाए जहकमं । तुरिया सन्निनाण, दिव्वेगं गगणं फुसे ||१२|| एयारिसाए इड्दिए, जुत्तीए उत्तमाइ य । नियगाश्रो भवणाश्रो, निजाओ वहिंगवो ||१३|| ग्रह से तत्थ निज्जन्तो, दिस्स पाणे भयद्दुए । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धे सुदुक्खि ॥ १४॥ जीवयन्तं तु सम्पत्त, मंसट्टा भक्खियव्यए । पासित्ता से महापन्ने, सारहिं इणमब्बवी ॥ १५ ॥ [ १०६ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सब्वे सुहेसिसेा । वाढेहिं पंजरे हिं च, सन्निरूद्धा य अच्छहिं ! || १६ ||
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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